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शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

Bhakra Nangal Dam to Jawala Mukhi ji Temple भाखड़ा नांगल बाँध होते हुए ज्वाला जी मुखी तक

हिमाचल स्कारपियो-बस वाली यात्रा-03                                                                    SANDEEP PANWAR

नैना देवी मन्दिर में मुख्य मूर्ति के दर्शन करने के उपरांत अपना काफ़िला ज्वाला जी ओर चल दिया। बाइक वाले दोस्त एक घन्टा पहले ही आगे की मंजिल के लिये प्रस्थान कर गये थे। हमने भी वहाँ ज्यादा समय ना लगाते हुए ज्वाला जी के लिये प्रस्थान कर दिया। नैना देवी के पहाड़ पर चढ़ते ही सतलुज नदी पर बना बांध के कारण रुका हुआ पानी दिखायी देने लगता है। यहाँ एक बात स्पष्ट कर रहा हूँ कि बोलने में तो सभी भले ही भाखड़ा-नांगल बांध बोलते हो लेकिन भाखड़ा और नांगल दो अलग-अलग बांध है जिसमें से नांगल बांध नीचे बना है और भाखड़ा बांध इससे 13-14 किमी ऊपर बना हुआ है। यहाँ आने से पहले तो मेरे लिये दोनों बांध एक ही हुआ करते थे। भाखड़ा बांध को ही गोविन्द सागर झील कहा जाता है। हिमाचल में ही एक अन्य बांध पोन्ग बांध भी देखने घूमने लायक स्थान है। पोन्ग बांध को महाराणा प्रताप सागर बान्ध कहा जाता है। नैना देवी के ऊपर पहाड़ से ही भाखड़ा बांध के दर्शन होने आरम्भ हो जाते है। इसलिये हम इसी बान्ध के साथ-साथ चलते हुए चले आ रहे थे।

अति सुन्दर
देखा



झील का दिलकश नजारा

वाह प्यारा पौधा
बाइक वाले दोस्त तो पहले ही जा चुके थे इसलिये हम भी अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जा रहे थे। जब बांध सड़क के बेहद ही नजदीक आ गया तो गाड़ी में बैठे सभी सात बन्दे एक साथ आवाज लगाते थे कि वो देखो यहाँ से फ़ोटो अच्छा आयेगा। ऐसा कई बार हुआ लेकिन गाड़ी चलती रही, एक जगह जाकर कुछ खुली सा स्थान आ ही गया,यहाँ सभी गाड़ी से उतर गये। गाड़ी का चालक बलवान भी गाड़ी से उतर कर फ़ोटो खिचवाने के लिये बाहर निकल आया था। पहले तो सबने फ़ोटो लिये उसके बाद कुछ पल वहाँ बिताने के बाद, हम एक बार इसी भाखड़ा बान्ध के साथ बनी हुई सड़क पर ही आगे बढते रहे। आगे जाकर एक जगह एक बोर्ड़ लगा देखा जिस पर लिखा था कि बान्ध के फ़ोटो लेना मना है। हम समझ गये कि यदि बान्ध के फ़ोटो लेने है तो हमें सुरक्षा कर्मी की पहुँच से दूर जाकर या उनकी पैनी निगाह बचाकर फ़ोटो लेने होंगे। अन्यथा सुरक्षा कर्मी कानून बताकर फ़ोटो मिटाने को जरुर अड़ जायेगा। बाइक वाले दोस्तों को यह बात पता नहीं थी इसलिये उनके बांध के सभी फ़ोटो मिटवा दिये गये थे।

अपना कच्चा-पक्का गैंग।
भाखड़ा बांध का इससे ज्यादा साफ़ फ़ोटो मेरे पास फ़िल्हाल नहीं है।

वैसे बांध के फ़ोटो लेने के लिये ढ़ेर सारे तरीके है और जिसे बान्ध का फ़ोटो लेना ही होगा व विडियों बनाता हुआ चलता रहेगा। इससे सुरक्षा कर्मी कैसे पकड़ पायेंगे? हमने बान्ध के ठीक सामने आकर बिना रुके हुए कई फ़ोटो चलती गाड़ी से लिये थे। यदि किसी के पास तगड़ा जूम वाला कैमरा है जैसा कि मनु के पास 50x वाला जूम का कैमरा है, विधान व नीरज के क्रमश: 35x-35x के जूम वाले कैमरे है। इन शक्तिशाली कैमरो से काफ़ी दूर से भी जानदार फ़ोटो लिये जा सकते है। फ़िर कौन सुरक्षा कर्मी किस मतवाले को रोक पायेगा? जिस समय हम यहाँ गये थे उस समय जुलाई की शुरुआत ही थी जिस कारण बारिश अभी पहाड़ों में शुरु भी नहीं हो पायी थी। बारिश ना होने के कारण यहाँ भाखड़ा बान्ध के पानी का स्तर बहुत नीचे दिखायी दे रहा था। बारिश के बाद अगर यहाँ आया जाये तो तब जाकर यहाँ का असली नजारा दिखायी देता होगा। बारिश के बाद यहाँ चारों और हरियाली भी देखते ही बनेगी।

लो जी मनु का ढ़ाबा आओ भोजन करे।
यह मन्दिर मनु के ढाबे के सामने था।
भाखड़ा बान्ध से आगे बढ़ने पर कोई 13-14 किमी जाने के बाद नांगल बान्ध नजर आता है। हमारी गाड़ी उना होकर अम्ब की ओर बढ़ रही थी। अम्ब पहुँचने से पहले कई बन्दों के पेट में जोर की भूख लगने लगी थी इसलिये सबसे पहले सड़क किनारे एक खाने का ढ़ाबा देखकर रुकना था इसलिये सड़क किनारे देखते हुए बढ़ते जा रहे थे। एक जगह पनोह गाँव में मनु नाम का ढ़ाबा दिखाई दिया। मनु का ढ़ाबा हमें खाना खाने के लिये मिला लेकिन हमारे साथ बैठा हुआ मनु बता ही नहीं रहा था कि मनु ने ने वहाँ कोई ढ़ाबा भी खोला हुआ है। हमने गाड़ी रोकते ही सबसे पहले मनु को कहा यह क्या बात हुई मनु, यहाँ ढ़ाबा खोला हुआ है और हमें बताया भी नहीं। मनु ने कई बार कहा कि वह ढ़ाबा उसका नहीं है। हमें तो पता था किसका ढ़ाबा है? इसलिये हम मनु को तंग करते रहे। ढ़ाबे वाले से कहा गया कि सबकी पसन्द की रोटी सब्जी बनायी जाये। सबने कुल मिलाकर चार तरह की सब्जी बनवाई थी। यहाँ पर दही हमें अलग से लेनी थी इसलिये हमने सोचा कि एक किलो दही ले लेते है ताकि जिसे जितनी लेनी हो लेता रहे। ढ़ाबे वाले का लड़का थाली रखते समय तो बोल गया कि एक किलो दही लेकर आता हूँ लेकिन बाद में वो किलो के हिसाब से दही लेकर नहीं आया था।

सब धन्धा है।
ज्वाला जी बाजार मार्ग
 अम्ब जाकर हमें मार्ग भटकने की गड़बड़ी महसूस होने लगी इसलिये दो-तीन लोगों से पता किया गया कि ज्वालादेवी जाने वाला मार्ग कौन सा है? जब सभी ने लगभग एक जैसी ही राय दी तो अपुन उसी मार्ग पर चल दिये। अम्ब में घुसते ही नहर की पटरी पर सीधे हाथ कुछ दूर जाने के बाद एक पुल से नहर पार करनी पड़ी। नहर पार करने के बाद हमारी गाड़ी सीधी चलती रही। आखिरकार पहाड़ एक बार फ़िर नजर आने लगे थे। हम सुबह हिमाचल में आने से पहले पंजाब से होकर नैना देवी पहुंचे थे, हिमाचल के बाद एक बार फ़िर पंजाब में प्रवेश करना पड़ा था। आखिर पंजाब पीछे छोड़कर एक बार दे हिमाचल में घुस गये।  हम सीधे उस जगह जा पहुँचे जहाँ से ज्वाला मुखी मन्दिर के लिये आगे की पौन किमी की यात्रा पैदल ही तय करनी पड़ती है। यहाँ सबने अपना फ़ालतू सामान गाड़ी में ही रहने दिया। जब हम गाड़ी चालक बलवान को गाड़ी पार्किंग में लगाने की बोल कर सभी को ज्वाला जी चलने की कह रहे थे। तो यहाँ पर एक बार फ़िर गाड़ी वाले तीनों भक्तों ने मन्दिर जाने से मना कर दिया। सुबह नैना देवी नहीं गये। कोई बात नहीं, यहाँ भी नहीं चल रहे, हमारी सेहत पर उससे भी कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था मन्दिर में कुछ लोग सिर्फ़ श्रद्धा से जाते है जबकि मैं सिर्फ़ मूर्ति/ईमारत आदि देखने जाता हूँ, चिपक कर काफ़ी देर बैठना और पूजा-पाठ करना अपनी आदत नहीं है। 

लो जी ज्वालामुखी मन्दिर भी आ पहुँचे है।
मन्दिर तक पहुँचने के लिये लगभग पौने किमी लम्बे बाजार वाले मार्ग को पार करना होता है। इस बाजार मार्ग में अब तो पूरा मार्ग ही लोहे की चददर से ढ़क दिया गया है। यहाँ आम दिनों में ही घन्टे भर के बाद मुश्किल से नम्बर आता है। जैसे आजकल नवरात्र चल रहे है, आजकल यहाँ जाकर देखो आपको छटी का दूध याद आ जायेगा। तीज-त्यौहार के अवसर पर ही आजकल हिन्दू लोग एक दूसरे को दिखावा दिखाने के लिये ही पूजा-पाठ करने लगे है। पहले लोग महीनों का समय निकाल कर तीर्थ यात्रा पर निकलते थे। आजकल वाहन होने के कारण महीनों का काम दिनों में सिमट कर रह गया है। हमारे बाइक वाले साथी पहले ही यहाँ आ चुके थे। हम सब एक साथ मन्दिर के लिये चल दिये थे। कुछ देर में ही मन्दिर की सीढियाँ दिखायी देने लगी थी। सीढियाँ चढ़ते ही सबसे पहले फ़ोटो लेने का दौर चलाया गया उसके बाद मन्दिर में जलने वाली ज्योत को देखने के लिये लाइन में लग गये। कल आपको मन्दिर के दर्शन भी करा दिये जायेंगे। (क्रमश:)

आगे है संतोष तिड़के, उसके पीछे बसंता, मेरे बाजू में उसका नाम याद नहीं, पीछे मनु और जयपुर विधान का दोस्त

ज्वालामुखी मार्ग में फ़ल की दुकान का फ़ोटो।
हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया। 
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान 
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
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5 टिप्‍पणियां:

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