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शनिवार, 13 अप्रैल 2013

Maa Jawala ji Temple माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी जी मन्दिर दर्शन।

हिमाचल स्कारपियो-बस वाली यात्रा-04                                                                    SANDEEP PANWAR

ज्वाला जी को कुछ लोग ज्वाला मुखी भी बोलते है। जब हम ऊपर मन्दिर के प्रागंण मॆं पहुँचे तो देखा कि वहाँ पर लगभग 200 मीटर लम्बी लाईन लगी हुई है। अगर यहाँ जलती ज्वाला रुपी ज्योत देखने की बात ना रही होती तो मैं लाईन में लगना पसन्द नहीं करता लेकिन अपने मराठे व जयपुरिया दोस्त तो यहाँ पहली बार आये थे, इसलिये मैं भी उनके साथ लाईन में लग ही गया। लाईन बहुत ज्यादा गति से नहीं बढ़ रही थी इसलिये मुझे वहाँ खड़े-खड़े झुन्झलाहट होने लगी थी। लाईन की लम्बाई को सीमित स्थान में रखने के लिये उसको बलखाती पाईपों में मोड़ दिया गया था। चूंकि हम तो यहाँ अपनी गाड़ी में आये थे। मैं पहली बार यहाँ अपनी नीली परी बाइक पर आया था। अपने वाहन से यात्रा करने का अलग ही आनन्द है। पठानकोट से मात्र 212 किमी है, अम्बाला से 273 किमी दूरी है। ज्वालामुखी मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढी हुई है। आगे बढ़ने से पहले आपको यहाँ की कुछ काम की जानकारी दे दी जाये। तब तक लाईन भी आगे सरक जायेगी और आपको मन्दिर के दर्शन भी करा दूँगा। समुन्द्र तल से मन्दिर की ऊँचाई 2100 मीटर के आसपास है।
सोने का छत्र

यही सामने वाले भवन में ज्वाला जी अग्नि रुप में जलती रहती है।

ज्वालामुखी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से ज्यादा दूर नहीं है। भगवान भोले नाथ और उनकी पत्नी सती के कारण बनाये गये 51 मन्दिर में भी यह मन्दिर  शामिल है। आपको इतना तो पता ही है कि पूरे भारत में कुल 51 शक्तिपीठ है। जिन सभी का आरम्भ एक ही कथा से होता है। वह यह कि सभी मंदिर शिव और शक्ति के कारण ही है। पुराणों (सत्यार्थ प्रकाश में इनकी सच्चाई बतायी गयी है।) के अनुसार इन सभी स्थलो पर देवी के अंग कट कर गिरे थे। सती के पिता व भोलेनाथ शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था जिसमे उन्होंने दामाद शिव और बेटी सती को नहीं बुलाया था, क्योंकि वह शिव से नफ़रत करता था। इस बात से सती को दुख पहुँचा और वह बिना बुलाए बिना शिव को साथ लिये यज्ञ स्थल कनखल जा पहुँची। यज्ञ स्‍थल पर शिव का काफी अपमान किया गया जिसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड की जलती आग में कूद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह कनखल आये और सती के मृत शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर गुस्से से तांडव करने लगे। जिस कारण पुराण बताते है कि सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। समूचे ब्रह्माण्ड को इस विकट संकट से बचाने हेतू भगवान विष्णु ने सती के मृत शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बाँट दिया जो अंग जहां पर गिरा वहाँ शक्ति पीठ बनता चला गया। बताया गया कि ज्वालाजी मे माता सती की जीभ गिरी थी। ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर भी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर के प्रांगण में ही बाबा गोरख नाथ का मंदिर है। जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। 

देख लो लाईन





यहाँ जलती ज्वाला के बारे में जानने के लिये अंग्रेजों ने अपना पूरा जोर लगा दिया था कि किसी तरह धरती से निकलती इस अग्नि 'ऊर्जा' का इस्तेमाल किया जाए। लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वे इस अग्नि 'ऊर्जा' के कारण को नहीं तलाश पाए। अंत में अंग्रेजों मान लिया कि यहाँ ज्वाला चमत्कारी रूप से ही निकलती है। यदि अंगेजों को इस ज्योति का छोर मिल जाता तो आज यहाँ मंदिर की जगह मशीनें लगी होतीं और बिजली या अन्य किसी चीज का उत्पादन हो रहा होता। मंदिर के पास ही गोरख डिब्बी है। कहते हैं कि यहाँ कभी गुरु गोरखनाथ जी पधारे थे और अपने कुछ चमत्कार भी दिखाए थे। इस जगह पर एक कमाल का कुण्ड है। उसमें भरा जल लगातार उबलता रहता है हाथ से छूकर देखो तो ठंडा मिलता है। इस ज्वालामुखी मंदिर को कई नामों से पुकारा जाता है जैसे जोता वाली का मंदिर, ज्वाला माँ, ज्वालामुखी। ज्वालामुखी मंदिर को सबसे पहले पांडवो ने इस पवित्र धार्मिक स्थल की खोज की थी। इस मंदिर में माता के दर्शन अग्नि रुपी ज्वाला ज्योत रूप में होते है। मंदिर के अंदर माता की नौ ज्योतियां है, सभी एक साथ मुश्किल ही दिखायी देती है। इनके नाम महाकाली, अन्नापूर्णा, अम्बिका, अंजीदेवी, सरस्वती, महालक्ष्मी, हिंगलाज, चंड़ी, विंध्यावासिनी के नाम से जाना जाता है। 




अकबर की भी एक कथा जुडी है। जिस समय अकबर दिल्ली का राजा था। ध्यानु भक्त माता ज्वाला जी का परम भक्त था। एक बार देवी के दर्शन के लिए वह अपने गाँववासियों के साथ ज्वाला जी यात्रा के लिए निकला। जब उसका काफिला दिल्ली से गुजर रहा था तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर ने ध्यानु से पूछा कि वह अपने गाँववासियों के साथ कहाँ जा रहा है? तो इसके उत्तर में ध्यानु ने कहा वे सभी जोतावाली माँ ज्वाला जी के दर्शनों के लिए जा रहे है। अकबर ने कहा तेरी माँ में क्या-क्या शक्ति है ? वह क्या-क्या कर सकती है ? तब ध्यानु ने बताया कि वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं। ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है। अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सर कटवा दिया और चेतावनी दी कि अगर तेरी माँ में शक्ति है तो घोड़े के सर को जोड़कर उसे जीवित कर दें। यह चेतावनी सुन कर ध्यानु देवी ज्वाला माई की स्तुति करने लगा और ध्यानू भक्त ने अपना सिर काट कर माता को भेट में चढ़ा दिया। माता आश्चर्यजनक शक्ति से घोड़े का सिर जुड गया। इस प्रकार अकबर को ज्वाला माई देवी की शक्ति का एहसास हुआ। 



अकबर ने जब इस मन्दिर की ज्वाला के बारे में सुना तो उसने भी इस ज्वाला को किसी भी तरह बंद करने का आदेश दिया। जो अकबर को महान मानते है जरा वे आँखे खोल कर पढ़ ले। अकबर की अनगिनत कोशिश करने पर भी वो इस आग को बन्द ना करवा सका। आखिरकार अकबर भी हार मानकर इसकी चमत्कारी शक्ति को मान गया, उसने यहाँ पर वही मत्था टेका जिससे कहते है कि सिर्फ़ खुदा के सामने टेका जाता है। अकबर सवा मन (50 किलो) सोने का छत्र यहाँ चढ़ाने के लिये लाया था। बादशाह अकबर ने देवी के मंदिर में सोने का छत्र तो चढाने लाया था। किन्तु उसके मन मे अभिमान हो गया था कि वो सोने का छत्र चढाने लाया है, तो माता ने उसके हाथ से छत्र को गिरवा दिया (50 किलो वजन ज्यादा दूर तक उठाया ना गया होगा) और उसे एक अन्जान धातु का बना दिया। आज तक यह धातु एक रहस्य है? यह छत्र आज भी मंदिर में मौजूद है। मैंने भी देखा था। कुछ ऐसा ही चमत्कार मुस्लिम धर्म की शुरुआत करने वाले हजरत पैगम्बर साहब के बारे में बताया जाता है कि उसने अपने लड़के की गर्दन काटकर अल्ला को चढ़ा दी थी। जिससे अल्ला ने उसके लड़के को जीवित कर दिया था। उसी गर्दन कटने की वार्षिक रस्म के बदले आजकल मुस्लमान ईद के नाम पर जमकर जानवरों को काटते है। यदि उनका अल्ला है तो काटो अपनी औलादो को यदि उनमें से 2-4 भी जिन्दा हो जाये तो मानो अल्ला को। 




मंदिर का प्रांगण काफी सुंदर एव भव्य बनाया गया है। पाँच-सात साल पहले ऐसा नहीं था। मंदिर में बाये हाथ पर अकबर नहर है। इस नहर को अकबर ने बनवाया था। उसने मंदिर में प्रज्‍जवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए यह नहर बनवाई थी। उसके आगे मंदिर का गर्भ गृह है जिसके अंदर माता ज्योति के रूम में विराजमान है। यहाँ मन्दिर में मूर्ति पूजा नहीं होती है। इसलिये अपुन ठहरे आर्य समाजी हवन करने, हमारे लिये इस अग्नि का महत्व है। ज्वालाजी में साल के दोनों नवरात्रि के समय में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। साल के दोनों नवरात्रि में यहाँ पर बडे़ धूमधाम से मनाये जाते होंगे। नवरात्रि में यहाँ पर आने वाले श्रद्धालुओं की सँख्या तीन-चार हो जाती होगी। नवरात्रों में यहाँ पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है। अखंड देवी पाठ रखे जाते हैं और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हवन इत्यादि किया जाता है। मंदिर में 5 बार आरती होती है। पहली मंदिर के कपाट खुलते समय सूर्योदय के साथ की जाती है। दूसरी दोपहर को होती है। दोपहर की आरती के साथ-साथ माता को भोग भी लगाया जाता है। फिर संध्या आरती होती है। इसके पश्चात रात्रि आरती होती है। इसके बाद देवी की शयन शय्या को तैयार किया जाता है। उसे फूलों और सुगंधित सामग्रियों से सजाया जाता है। इसके पश्चात देवी की शयन आरती की जाती है जिसमें भारी संख्या में आये श्रद्धालु भाग लेते है। हमने भी अपना नम्बर आने पर ज्वाला जी को हाथों से छुकर महसूस किया था। अग्नि दर्शन कर हम मन्दिर से बाहर आये, वहाँ गोरखनाथ के मन्दिर गये। उसके बाद वहाँ से ड़लहौजी-चम्बा-खजियार देखने  के लिये प्रस्थान कर दिया।


यही वह सबूत है जिसने अकबर का घमन्ड़ चूर किया था।

हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया। 
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान 
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
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4 टिप्‍पणियां:

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