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बुधवार, 10 अप्रैल 2013

Let's go to Manimahesh Kailash चले हिमाचल प्रदेश के मणिमहेश कैलाश की यात्रा पर

हिमाचल स्कारपियो-बस वाली यात्रा-01                                                                    SANDEEP PANWAR


जय मणिमहेश- जी हाँ दोस्तों आज से आपको अपनी दूसरी मणिमहेश यात्रा के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। बीते साल जुलाई माह की बात है, मैंने बाइक से हिमाचल जाने का 10-11 दिन का कार्यक्रम बनाया हुआ था। मैंने अपने इस कार्यक्रम के बारे में अपने ब्लॉग के सूचना पट "आगामी यात्रा" कॉलम में कई महीने पहले ही लिख दिया था। मेरा कार्यक्रम कुछ इस प्रकार से था दिल्ली से चलकर नैना देवी, ज्वाला मुखी देवी, होते हुए ड़लहौजी-खजियार देखकर चम्बा पहुँचने के बाद मणिमहेश यात्रा के लिये भरमौर-हड़सर तक बाइक से जाने की तैयारी की गयी थी। उसके बाद दो दिन की मणिमहेश पद यात्रा कर वापसी चम्बा होकर साच-पास होते हुए उदयपुर होकर चन्द्रताल देखकर लाहौल स्पीति के काजा होकर रिकांगपियो देखते हुए शिमला रुट से दिल्ली तक की यात्रा का विचार बनाया गया था लेकिन कहते है ना होनी को कुछ और ही मंजूर था। हमारी यात्रा वापसी में चम्बा आने के बाद अचानक अंतिम पलो में गाड़ी वालों के कारण बदलनी पड़ी। लेकिन असली घुमक्कड़ वही है जो अंतिम पलों में अपनी यात्रा बदल कर कही भी चला जाये। जिस कारण मैं वापसी में हजारों साल पुराने मशरुर मन्दिर देखकर, कांगड़ा छोटी रेलवे लाइन की सवारी करता हुआ। पालमपुर जा पहुँचा था। पालमपुर चाय के बागान में घूमता हुआ आगे मैंने बैजनाथ दर्शन कर बीड़ की सैर भी की थी, वहाँ से सुन्दरनगर होते हुए, करसोग घाटी के कई स्थलों को देखता हुआ। वापसी में चिन्दी, ततापानी, शिमला होते हुए दिल्ली पहुँचा था।
यात्रा पर जाने का वाहन


जैसा कि ऊपर मैंने बताया है कि मैंने इस यात्रा में बाइक से दिल्ली से ही हिमाचल रिंग करने की तैयारी की हुई थी। मेरे (संदीप पवाँर) साथ मुरादनगर के बाइक वाले व पैदल यात्रा के मस्त  घुमक्कड़ मनु प्रकाश त्यागी, विपिन गौड़, व कमल सिंह पहले ही जाने की हाँ कर चुके थे। हमारे साथ दिल्ली के राजेश सहरावत भी पहले तो बाइक से जाने के इच्छुक थे लेकिन राजेश जी ने दो-तीन दिन पहले बता दिया कि मैं अपनी स्कार्पियों लेकर जा रहा हूँ यदि किसी को मेरी गाड़ी में चलना हो तो बता दे, बस यही मुझसे गलती हो गयी। मैंने उनकी यह बात सबको बताकर गड़बड़ कर दी। गाड़ी की बात सुनकर बाइक से जाने की योजना ठन्ड़े बस्ते में चली गयी। जिस कारण मैंने भी सोचा कि चलो अब मैं भी गाड़ी में ही यह यात्रा कर आता हूँ। यात्रा पर जाने वाले दिन सुबह सबको फ़ोन कर पक्का करना चाहा कि कोई सा रात को चलने के समय बहाना ना बनाने लगे। इसी क्रम में कमल सिंह नारद ने अपनी कुछ घरेलू मजबूरियाँ बतानी शुरु कर दी जिससे मैं समझ गया कि यह तो टैं बोल कर काम से गया। ईधर अपने नान्देड़ बाले दोस्त भी अपनी बाइक लेकर एक दिन पहले ही मेरे घर आ गये। मैंने उन्हे सुबह ही नैना देवी के लिए रवाना कर दिया था।

कमल की ना होने के बाद हम केवल चार बन्दे बाकि रह गये थे। अचानक मेरे दिमाग में जयपुर के रहने वाले विधान चन्द्र का ध्यान आया तो मैंने यात्रा वाले दिन दोपहर 1 बजे विधान को फ़ोन लगाकर कहा कि हमारी गाड़ी में चार बन्दे ही जाने वाले है अगर तुम्हे मणिमहेश जाना है तो रात के नौ बजे तक दिल्ली पहुँच जाओ। विधान के कहा कि वह 5 मिनट में गृहमन्त्री से बात कर अभी जवाब देता है। विधान ने पता नहीं कहाँ बात की थी लेकिन उसने एक शर्त बीच में घुसेड़ दी कि मैं अकेला नहीं आ रहा हूँ मेरे साथ मेरे एक दोस्त भी आयेंगे। मैंने सोचा अभी तो हम चार ही है इसलिये अगर विधान का दोस्त भी साथ होगा तो हम 6 हो जायेंगे। मैंने कमल की ना होने व विधान की हाँ वाली बात किसी से नहीं बतायी। क्योंकि मुझे लग रहा था कि रात तक विधान का दिल्ली आना मुश्किल है। इसलिये अगर विधान दिल्ली के लिये चल देगा तभी किसी से कोई जिक्र करना सही रहेगा। इधर सबकी तैयारी पूरी हो चुकी थी। तय हुआ कि रात के 9 बजे सब दिल्ली के आजादपुर मट्रो के बाहर मिलेंगे। ईधर राजेश जी ने मुझे बताये बिना अपने बड़े लड़के को साथ ले लिया था।

मनु प्रकाश त्यागी और विपिन मुझसे पहले आजादपुर पहुँच चुके थे। इनके बाद मैं पहुँचा। पहले सबसे मुलाकात हुई, उसके बाद राजेश सहरावत से हुई बातचीत अनुसार हमें सिंधु बार्डर पहुँचना था। आजादपुर से सिंधु बार्ड़र के लिये रात के 11 बजे तक बस उपलब्ध रहती है। हम रात नौ बजे के बाद आजादपुर से सिंधु बार्ड़र जाने वाली बस में बैठ गये थे। इधर विधान लगातार सम्पर्क में था और कह रहा था कि मैं गुड़गाँव पहुँच चुका हूँ विधान के गुड़गाँव पहुँचने का मतलब था कि वह हमसे लगभग 2 घन्टे के फ़ासले पर चल रहा था। हम 10 बजे तक आसानी से सिंधु बार्ड़र पहुँच गये। यहाँ हमें राजेश सहरावत और उनकी गाड़ी दिखायी नहीं दी तो उन्हे फ़ोन मिलाया और अपने आने की सूचना दी। उनका जवाब था कि आप एक मिनट रुकिये हम अभी पहुँचते है। अरे यह क्या सच में एक मिनट भी नहीं हुआ था कि एक स्कारपियों हमारे सामने आकर रुक गयी। इस गाड़ी में हमारी उम्मीद से एक बन्दा ज्यादा था। एक बन्दा विधान के साथ आ रहा था इसलिये मुझे लगने लगा कि सफ़र में दिक्कत आ सकती है। सबसे आगे की सीट पर राजेश जी का लड़का कब्जा जमाए हुए था। जिसकी कोई आशा भी नहीं की थी।

बलवान नाम का मस्त मौला चालक हमारी गाड़ी को चला रहा था। अगर राजेश जी ने पहले बताया होता तो मैं विधान को फ़ोन नहीं करता। लेकिन कहते है भगवान जिसको बुलाते है किसी न किसी के बहाने अपने दर्शन करने के लियॆ बुलाते है। यह बात यहाँ विधान व उसके दोस्त के बारे में सिद्ध होने जा रही थी। हम गाड़ी में बैठकर चल दिये। राजेश जी के कहा कि आप तो 4 बन्दे बता रहे थे लेकिन आप तो 3 बन्दे ही हो, मैंने कहा कि दो बन्दे जयपुर से आ रहे है वे सीधे अम्बाला वाली बस में बैठे है। अभी धौला कुआँ तक ही पहुँचे होंगे इसलिये हम आराम से अम्बाला की ओर चलेंगे ताकि वे हमें पकड़ सके। इधर गाड़ी की स्टेपनी में पंचर था, चूंकि हमारे पास समय की समस्या नहीं थी इसलिये एक दुकान पर रोककर पहिये में पंचर भी लगवाया गया। पंचर लगवाने के बाद हम वहाँ से आगे चलते रहे। आगे जाकर रात के 1 बजे पानीपत पार करने के बाद राजेश व उनके लड़के को भूख लगने लगी जिस कारण एक होटल/ढ़ाबे पर गाड़ी रोक दी गयी। हम तीनों तो खा पीकर घर से चले थे इसलिये हमें भूख नहीं लग रही थी। यहाँ खाना खाकर कुछ देर बैठे रहे।

विधान का फ़ोन आया कि उनकी बस एक ढ़ाबे पर पानीपत पार करने के बाद खड़ी हुई है। अरे यह क्या हम भी पानीपर पार करने के बाद ही रुके हुए थे, सरकारी बसे कुछ बंधे बंधाये ढ़ाबों पर ही रुका करती है, इसलिये अपने ढ़ाबे वाले से यह पता किया गया कि उनकी बस किस ढ़ाबे पर खड़ी होगी। ढ़ाबे वाले के अनुसार उनका ढ़ाबा सड़क पार करने के बाद एक किमी पीछे है। हम गाड़ी लेकर 1 किमी पीछे गये। वहाँ हमें विधान व उनका दोस्त मिल गया। दोनों को बैठाकर हम अपनी यात्रा पर बढ़ चले। अम्बाला पार करने के बाद हम चढ़ीगढ़ जाने वाले मार्ग पर नहीं गये। हम अमृतसर लुधियाना, जालंधर जाने वाले मार्ग पर चलते रहे। अम्बाला से कोई 4-15 किमी पार करने के बाद एक टोल टैक्स बैरियर आता है। इसे खर्र या खरड़ मोड़ के नाम से जाना जाता है। यहाँ से सीधे हाथ मुड़ जाने का लाभ यह है कि चढ़ीगढ़ की भीड़ एक तरह रह जाती है। यहाँ से आगे जाने पर हमें दिन निकलने का अहसास होने लगा। रोपड पहुँचते-पहुँचते दिन पूरी तरह निकल चुका था। हमारी आज की पहली मंजिल नैना देवी के दर्शन करना था इसलिये हम सबसे पहले नैना देवी  के आधार स्थल पहुँच गये। गाड़ी को पार्किंग में लगाकर अपने महाराष्ट्र से बाइक पर आये दोस्तों को तलाश करने लगे।



हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया। 
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान 
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6 टिप्‍पणियां:

  1. राम राम जी, कई बार गाड़ी में ज्यादा लोग होने के कारण यात्रा का मज़ा किरकिरा हो जाता है.. और वह यात्रा, यात्रा नहीं यातना बन जाती हैं... वन्देमातरम...

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  2. खरर मोड़ वाले इस सफ़र में हम भी आपके साथ चल रहे हैं..... शुरुआत अच्छी रही..

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  3. बहुत शानदार शुरुआत संदीप जी, हम भी आपके साथ साथ चल रहे हैं .........अगली कड़ी का इंतज़ार।

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  4. नव वर्ष, विक्रमी सम्वत 2070 की हार्दिक शुभकामनायें.

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  5. जब यात्रा और राह पर पूरा नियन्त्रण हो तो घुमक्कड़ी का आनन्द है।

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