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गुरुवार, 15 नवंबर 2012

मन्डौर-रावण की ससुराल Mandore-Mandodri's home (wife of Rawan)


वैसे तो हम पिछले लेख में ही लंका पति महाराज रावण की ससुराल अथवा रावण की पत्नी मन्दोदरी का मायका मण्डौर पहुँच गये थे। लेकिन लेख ज्यादा लम्बा होने के कारण रावण की ससुराल नहीं दिखाई गयी थी, चलिये दोस्तों आज आपको मन्डौर के दर्शन भी कराये जा रहे है। रामायण काल को बीते हुए कई हजार साल हो चुके है अत: उस काल की कोई असली निशानी मिलने की उम्मीद तो हमको बिल्कुल भी नहीं थी। लेकिन जितना कुछ हमें दिखाई दिया उसने हमारा दिल गार्डन-गार्डन कर दिया था। मैंने बाग-बाग की जगह गार्डन-गार्डन इसलिये लिखा है कि यहाँ जिस स्थल को रावण की ससुराल कहा जाता है उसे आजकल मण्डौर गार्डन के नाम से पुकारा जाता है। पहले इसे माण्डव्यपुर कहा जाता था। यहाँ चौथी शातब्दी के एक किले के खण्डहर बचे हुए है।  अब इस स्थल का चित्रमय विवरण झेलने के लिये तैयार रहे।



जैसे ही ऑटो चालक ने अपना ऑटो रोका और बोला कि लो जी आपका मण्डौर आ गया है। हम ऑटो से बाहर निकल आये। यहाँ आते समय ही हमने ऑटो वाले से यह पूछ लिया था कि उसने यह जगह कितने बार देखी है? उसने हमें बताया था कि उसने यह स्थल तीन बार देखा हुआ है। ऑटो से उतरते ही सामने कई दुकान दिखाई दी जिन पर खाने-पीने की लजीज व स्वादिष्ट वस्तुएँ दिखाई दे रही थी। मैंने पहले तो नीम्बू शिकंजी के दो गिलास पेल दिये, उसके बाद वहाँ की गर्मी से कुछ राहत मिली। इसके बाद शिकंजी वाले के बराबर वाले से वापसी में दही-भल्ले वाले की एक-एक प्लेट बनवाकर खायी गयी थी। खा पीकर हम इस मण्डौर गार्डन की और बढ चले।


जब हम इस गार्डन में अन्दर जाने लगे तो ऑटो चालक को भी हमने अपने साथ ले लिया था। चालक को अपने साथ लेने का फ़ायदा यह था कि हमें अन्दर घूमते समय किसी गाईड आदि की जरुरत नहीं पडने वाली थी। जैसा कि उस चालक ने बताया था कि यह स्थल काफ़ी बडा है अत: हमें एक घन्टा वहाँ लगने वाला था ही जिस कारण ऑटो वाला भी अपना समय बिताने के लिये हमारे साथ हो लिया। उसके साथ का हमें बडा लाभ हुआ था। अन्दर प्रवेश करने के लिये टिकट लेना पडता है। 


मुख्य दरवाजे से अन्दर प्रवेश करते ही काफ़ी लम्बा मार्ग दिखाई दिया था जिस पर चलते रहने के बाद एक विशाल प्रांगण आया जहाँ से कई दिशा में कई मार्ग आते-जाते दिखाई दिये। यहाँ हम सीधे वाले मार्ग से आगे बढते गये। अब यहाँ के असली नजारे दिखाई दे रहे थे। यहाँ विशाल चौराहे जैसी जगह आने पर सीधे हाथ शानदार मन्दिर दिखाई दे रहे थे। लेकिन ऑटो वाले ने बताया कि मन्दिरों को वापसी में देखना। अत: हम सीधे चलते रहे। जहाँ से आगे जाने पर किले में जाने के लिये जिस तरह का प्रवेश द्धार बना होता है ठीक उसी तरह का द्धार हमें यहाँ दिखाई दिया था। हम भी उसी द्धार से होकर आगे बढ गये। 


यहाँ विशाल द्धार से आगे चलते ही उल्टे हाथ की ओर देवताओं की साल व वीरों की दालान दिखाई दी। अब आप सोच रहे होंगे कि यह साल व दालान क्या बला है? जहाँ तक एक बोर्ड को देख मेरी समझ में आया है, जिस बोर्ड को देखकर मुझ समझ आया था, मैंने उस बोर्ड का एक फ़ोटो आप सब के लिये भी ले लिया था अत: आप भी उसे एक बार पढ ले तो हो सकता है कि मुझे कुछ लिखना ही ना पडे। यहाँ देवताओं व वीरों की शानदार प्रतिमाएँ जो कि एक ही विशाल पत्थर को काटकर बनायी हुई है। इन प्रतिमाओं का फ़ोटो लेना याद ही नहीं रहा, लेकिन आपको जो बरामदा दिख रहा है उसी में सारी की सारी प्रतिमाएँ बनायी गयी है।


इस जगह से आगे बढने पर सीधे हाथ एक संग्रहालय का बोर्ड दिखाई दिया था। वहाँ अन्दर जाने का टिकट भी लेना पडता है साथ ही, हमारे जैसे बन्दों के लिये एक परेशानी भी पैदा कर रखी है जी हाँ, यहाँ संग्रहालय में अन्दर रखे पुरात्तव काल की धरोहर वाली वस्तुओं के फ़ोटो खींचना मना है। जब फ़ोटो ही ना लेने दे तो किस काम की धरोहर? इस संग्रहालय को देख आगे बढने पाया कि एक तीन मंजिला शानदार नक्काशी वाला भवन सामने खडा हुआ है। इसके बाहर एक बोर्ड लगा हुआ था। जिस पर इकथम्बा महल लिखा हुआ था। इसके बारे में ज्यादा पूछताछ मैंने नहीं की। मुझे कौन सा इसके बारे में कोई पुस्तक लिखनी थी। ऑटो चालक ने इसके बारे में कुछ बताया तो था याद नहीं रहा क्या कहा था?

यहाँ से आगे बढने पर यहाँ का असली गार्डन हमारे सामने आ रहा था। जैसे-जैसे हम आगे बढते वैसे-वैसे एक से बढकर एक, दिलकश नजारे दिखाई दिये जा रहे थे। यहाँ से आगे-आगे हम ऊँचाई की और भी चढते जा रहे थे। जिस कारण पीछे का सारा बागीचा बहुत सुन्दर लग रहा था। जहाँ तक नजर जाती सब कुछ व्यवस्थित ढ़ंग से बना हुआ दिखाई देता था। जिस मार्ग से हम जा रहे थे वहाँ पर बनी हुई सीढियाँ भी बहुत बढिया नजारा बना रही थी। लाल सीढ़ी-सफ़ेद सीढ़ी, जो कुछ भी था बहुत सुन्दर था।


अब हमें एक झरने जैसा नदी नुमा कुछ दिखाई दिया। जब उसके पास पहुँचे तो पाया कि वहाँ बरसात का रोकने के लिये बेहतरीन कारीगरी का प्रयोग किया गया है। यह बगीचा एक छोटी सी पहाडी पर बना हुआ है। सम्पूर्ण पहाडी का बरसाती पानी शानदार तरीक से रोककर उसको तीस-तीस मीटर के कुन्ड के रुप में रोककर 
रखा गया है। हर कुन्ड में कई लाख लीटर पानी रोकने का प्रबन्ध किया गया है। कुन्ड इतने भी ज्यादा गहरे नहीं है कि कोई उसमें गिर कर या कूदकर अपनी जान खतरे में डाल सके।


इस जगह के सबसे ऊपरी भाग में जब हम पहुँचे तो वहाँ हमने एक मन्दिर बना हुआ पाया। उस मन्दिर के बराबर में ही एक किले रुपी भवन का खण्डहर तहस-नहस हुआ पडा था। चालक ने बताया कि यह राजा का निवास स्थान हुआ करता था किसी कारण से या किसी अभिशाप से यह उल्टा हो गया था। तब से यह उसी हालत में है। अब असली कहानी क्या है मुझे नहीं मालूम किसी को मालूम हो तो बता देना मैं वह जानकारी यहाँ लगा दूंगा।


यह उल्टा-पुल्टा किला, यहाँ की सबसे ऊँची जगह थी। यहाँ तक इक्के दुक्के बन्दे ही आ रहे थे। हम यहाँ से वापिस चल पडे, वापिस चलने के बाद थोडी दूर जाते ही हमारा मार्ग पहले वाले मार्ग से अलग हो गया था। जहाँ इस ओर आते समय हम संग्रहालय की ओर से होते हुए आये थ। वही अब वापसी में नदी नुमा तालाब के कुन्ड की लम्बी धारा के साथ-साथ नीचे उतर रहे थे। यहाँ एक कुन्ड नुमा तालाब में कुछ बच्चे स्नान कर रहे थे। बच्चों को देखकर कमल सिंह नारद भी स्नान करने उनके बीच जा कूदे। काफ़ी देर पानी में कूदा फ़ांदी करने के बाद नारद जी पानी से बाहर आये, जिसके बाद हम आगे बढ़ चले।


कुछ आगे चलने पर समतल मैदान आ गया था जहाँ पर हमें वह मन्दिर देखना था जो हमें यहाँ हर जगह से दिखाई दे रहा था। आखिरकार हमने यहाँ का मुख्य मन्दिर भी देख ही लिया। सब कुछ देखकर हम यहाँ से बाहर आने के लिये चल पडे। बाहर आने पर हम अपने ऑटो में सवार होकर एक बार फ़िर जोधपुर शहर की ओर चल पडे थे। अब हमें तीन शानदार होटल व यहाँ के राजा के परिवार का वर्तमान निवास देखना था। इनका वर्णन अगले लेख में किया जायेगा।

अगले लेख में तीन-तीन शानदार होटल जो खुद किसी महल से कम ना थे तथा यहाँ के राजपरिवार का वर्तमान निवास जिसके बारे में कहा जाता है कि यह 16 साल में बनकर तैयार हुआ था।  
.............(क्रमश:) 

18 टिप्‍पणियां:

  1. बढिया यात्रा । मेरी अधूरी है पर जल्द ही पूरी करूंगा

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  2. बढिया यात्रा.......दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये आपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को !

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  3. संदीप जी शुभकामनायें-
    अच्छा वर्णन ।।

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  4. कुछ नहीं बचता है संदीप जी की आँख से रेगिस्तान में पानी ढूंढ लेती है स्नान भी कर लेती है .वर्षा जल संरक्षण में राजस्थान निश्चय ही शेष भारत से आगे रहा है .शुक्रिया इस शानदार विवरण और सजीव

    छायांकन के लिए अब जनकपुरी ले चलो .रावण जी की सुसराल तो देख ली .मनभावन भवन निर्माण कला देखी .

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  5. आपने तो पुरानी यादें ताज़ा कर दीं, जब जोधपुर था तो घर की मुर्गी दाल बराबर था ये सब :)

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  6. सुन्दर प्रस्तुति!
    भइयादूज की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  7. सही में शानदार जगह है, जैसी आशा थी उससे भी ज्यादा शानदार।
    राजकीय संग्रहालय मण्डोर का बोर्ड वाला चित्र बहुत लाभदायक है, पाठकों में से कोई मण्डोर जाने का इच्छुक हुआ तो अपना कार्यक्रम बनाते समय ऐसी बहुत सी छोटी छोटी जानकारियों का पता रहेगा। और शिकंजी पेलना भी कोई पेलना है? पेली तो अंग्रेजी है बोर्ड पर लिखने वाले ने:)
    जो भी हो, यात्रा में मजा आ रहा है।

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  8. बेहतरीन सुन्दर प्रस्तुति । आपके ब्लाग में 1 ताजगी और सार्थकता सी महसूस होती है ।

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  9. हा हा हा हा , पुरानी यादें ताजा हो गयीं ...

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  10. अच्छा प्रस्तुति, .चित्र भी सुन्दर है ,चित्र के नीचे यदि कैप्शन होता तो चित्र को समझने में आसानी होती .

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  11. रावण से इसे कैसे व क्यों जोड़ा गया .... यह मांडव्य ऋषि जी कर्मस्थली है मंदोदरी तो माय दानव की पुत्री थी ...जो शायद मयराष्ट्र ( मेरठ ) का था....

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  12. हमारे पास में स्थित शहर मंदसौर (मध्य प्रदेश) को भी रावण की ससुराल कहा जाता है। मंदोदरी के नाम से मिलते जुलते सारे शहरों/ गावों को रावण की ससुराल कहा जाता है, जब की इस सब में सच्चाई की गुंजाइश बहुत कम है।

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  13. कुछ नहीं बचता संदीप जी के लेंस से ,चितेरी आँख से रेगिस्तान में पानी ढूंढ लेती है डुबकी भी लगा लेती है .वर्षा जल संरक्षण (रेन वाटर हार्वेस्टिंग में )राजस्थान शेष भारत से बहुत आगे रहा है .शुक्रिया इस शानदार विवरण और चितेरी आँख का जो छायानाकं को नित नूतन परवाज़ दे रही है .

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  14. बहुत सुन्दर चित्र और वृतांत आगे का इन्तजार है

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  15. बेहतरीन सुन्दर प्रस्तुति
    like the title

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  16. बहुत अच्छा लगा मंदौर के बारे में जानकर...खासकर फोटो बहुत अच्छे लगे....

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  17. संदीप भाई बहुत अच्छी पोस्ट है . मुझे यह पोस्ट में बड़ा मजा आया है. जब भी कोई तकनीक इस्तेमाल करके लोगो का भला किया जाता है तो मुझे उसे देखने की इच्छा जागृत होती है. आपके इस मंडौर के कुण्ड ने मेरा दिल जीत लिया . मैं भी नारद जी की तरह वहा होता तो जरूर डूबकी लगता. मंडौर की यात्रा दिखाने के लिए धन्यवाद

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