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सोमवार, 19 नवंबर 2012

Hotel- Candy Rajputana and Ummed Bhawan होटल कैन्डी राजपूताना व उम्मेद भवन


रावण की ससुराल देखने के बाद हम पुन: अपने ऑटो में सवार होकर एक बार फ़िर जोधपुर शहर की ओर चल पडे थे। आज आगे की यात्रा में अब हमें तीन शानदार होटल व यहाँ के राज-परिवार का वर्तमान निवास उम्मेद-भवन जो देखना था। मण्डौर से हम सीधे होटल कैन्डी राजपूताना की ओर चल दिये थे। होटल राजपूताना इसलिये क्योंकि अपने जोडीदार कमल सिंह होटल इन्डस्ट्रीज से जुडे हुए है, जिस कारण कमल भाई का भ्रमण इस प्रकार के कई शानदार होटलों में होता रहता है। कमल भाई जिस कम्पनी में कार्य करते है वहाँ विदेशों से पर्यटक द्वारा भारत भ्रमण करने के पूरे टूर के लिये एडवांस बुकिंग आनलाईन करायी जाती है। जिस लिये कमल भाई तथा इनके कार्यालय के अन्य बन्दों का भारत भर में होटल निरीक्षण कार्य चलता रहता है। अत: ऐसे ही एक निरीक्षण कार्यक्रम में कमल सिंह नारद और जाटदेवता संदीप पवाँर का कार्यक्रम बन गया था। इस निरीक्षन कार्य का वर्णन ही आज के लेख में किया जा रहा है।



ऑटो यानि तीन पहिये वाले, जी हाँ थ्रीव्हीलर वाले चालक ने हमें होटल राजपूताना कैन्डी के ठीक सामने लाकर पटक अरे नहीं उतार दिया था। बाहर से देखने पर तो पहली नजर में होटल ज्यादा आकर्षक नहीं लग रहा था। अगर होटल पर बाहर बोर्ड ना लगा होता तो शायद मैं इसे होटल मानने को तैयार भी नहीं होता। बाहर से देखने पर पहली नजर में यह एक अमीर आदमी का बंगला ज्यादा दिखाई देता है। हम दोनों ऑटो से उतर कर होटल में अन्दर की ओर चल पडे। गेट के बाहर ही एक बडी-बडी मुच्च्छों वाला सुरक्षाकर्मी अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद था।

होटल के टीम लीडर संदीप बघेल

जैसे ही हमने अन्दर मुख्य हॉल में प्रवेश किया तो वहाँ का माहौल एकदम बदला हुआ पाया। जहाँ बाहर से देखने पर सब कुछ सुना-सुना सा लग रहा था वही अन्दर जाते ही सब कुछ आबाद-आबाद दिखाई दिया था। स्वागत हॉल (कक्ष नहीं) कहना ज्यादा ठीक है क्योंकि यह हॉल लगभग सौ गज से भी ज्यादा क्षेत्र में बना हुआ है। यहाँ सामने ही स्वागत करने के लिये कर्मचारी अपने कार्य पर एकदम तैयार मिले। उल्टे हाथ की और प्रतीक्षा करने के लिये शानदार सोफ़े रखे हुए थे। सीधे हाथ साथ में ही मैनेजर का कमरा था। मैनेजर का कमरा नजदेक होने से मेहमानों को ज्यादा आराम महसूस होता होगा। मैनेजर कक्ष से पहले उल्टे हाथ की और ऊपरी मंजिलों पर जाने के लिये लिफ़्ट बनायी गयी थी।


जैसे ही हमने अन्दर प्रवेश किया, वैसे ही स्वागत कक्ष की महिला कर्मचारी बोली नमस्कार सर। क्या मदद कर सकती हूँ? अब उस कर्मचारी से तो हमें कुछ काम नहीं था। हमने उससे कहा आप हमारी मदद नहीं कर सकती है। कमल भाई ने अपना परिचय दिया और कहा कि आप अपने मैनेजर को बुलाईये। उसने अपने मैनेजर से फ़ोन पर बात की (जबकि कमरा सामने ही था।) मैंनेजर महोदय ने तुरन्त हमारे समक्ष अपने टीम लीडर हाजिर कर दिये। वे हमें मैनेजर के पास ले गये। टीम लीडर भी हमारी ही उम्र के नौजवान बन्दे थे कोई बुजुर्ग नहीं थे। 




मैनेजर महोदय अपने साथ अपने कार्यालय में ले गये। जहाँ हमने काफ़ी देर तक, होटल के बारे में तथा अन्य कार्यों पर वार्तालाप किया था। इसी दौरान कुछ ठन्डा व स्नैक्स आदि भी खा लिया गया था। जब खाने पीने का दौर समाप्त हुआ तो हमने होटल का निरीक्षण करने की बात आयी। टीम लीडर हमारे साथ-साथ घूमते रहे। हमने होटल के कई कमरे देखे लेकिन हमें उनमें से किसी कमरे में कोई आपत्ति नजर नहीं आई थी। धरातल के बाद पहली मंजिल के कमरे भी देखे गये। वहाँ भी सब कुछ सही सलामत दिखाई दिया था।


यहाँ से हमारा आगे का कार्यक्रम उम्मेद भवन तथा दो अन्य होटल की विजिट करने का बचा हुआ था। सुबह से हम नहाये धोये भी नहीं थे। होटल के बाहर से एक गाडी हमारे आगे के कार्यक्रम के लिये कमल भाई ने मंगवा ली गयी थी। लेकिन गाडी आने में अभी 10-15 मिनट बाकि थे। तब तक हमने नहा-धोकर फ़्रेस होना ठीक समझा। मैनेजर महोदय ने एक कमरा हमारे फ़्रेस होने के लिये खुलवा दिया था। जिस कमरे में हम नहा रहे थे। उसी कमरे का फ़ोटो मैंने यहाँ इस लेख में लगाया है। 
होटल कैन्डी राजपूताना का विशाल लॉन

अब चले उम्मेद भवन

होटल कैन्डी राजपूताना के टीम लीडर काम संदीप सिंह बघेल है। इस होटल का अता-पता है। पीपरमीन्ट होटल, पाँच बत्ती सर्किल, हवाई अडडा रोड, जोधपुर। यहाँ का फ़ोन नम्बर आदि सब कुछ मेरे पास लिखा हुआ है। इस होटल में 50 कमरे है। यहां कुल 65 कर्मचारी कार्य करते है। यहाँ काफ़ी विशाल लॉन है जहाँ तीन से छ हजार तक लोग एक साथ खाना खा सकते है। हवाई अडडे से मात्र 1.5 किमी, रेलवे स्टेशन व बस अडडे से 3 किमी दूरी पर स्थित है। यहाँ के राजा का वर्तमान निवास महल उम्मेद भवन मात्र एक किमी दूरी पर ही है। मेहरानगढ किला 7 किमी दूर है। मन्डौर गार्डन 9 किमी दूरी पर स्थित है।

उम्मेद भवन से पहले एक शानदार स्थल

नहा धोकर हम तरोताजा हो गये थे। वहाँ की गर्मी में बिना नहाये भी चिपचिपे से लग रहे थे। जैसे ही नहाये तो लगा कि वाह अब आयेगा घूमने का मजा। जिस कार को कमल भाई के जानने वाले ने बुलाया था। उसका चालक होटल के बाहर हमारा इन्तजार कर रहा था। हमारे बैठते ही चालक बोला- सर जी कहाँ चलना है? अपुन उस समय थोडा सा मस्त मूड में थे अत: बोल दिया कि जहाँ मन करे वहाँ ले चल, अब हमारी बात सुनकर वो परॆशान कि कहाँ लेकर जाऊँ। सबसे पहले मैंने कहा चल भाई पहले स्टेशन लेकर चल हमें रात की ट्रेन का जैसलमेर तक का रिजर्वेसन यानि आरक्षण कराना है। 
कमल सिंह, ओम सिंह व पीठ पीछे उम्मेद भवन

उम्मेद भवन के पास यह नील गाय दिखाई दी थी।

कार चालक का नाम ओम सिंह भाटी है ओम सिंह को वहाँ सब लोग सिंह साहब कहकर बुला रहे थे। इनका खुद का ट्रेवल एजेंसी का काम है, इनके पास अपनी कई गाडियाँ है। यह जोधपुर में ही रहते है। अगर किसी पाठक को जोधपुर में गाडी की जरुरत हो तो इनसे अवश्य सम्पर्क करे। इनका मोबाईल नम्बर जिसे चाहिए मुझसे ले लेना। आदत में बहुत ही अच्छे इन्सान है। इनका एक फ़ोटो भी कमल भाई के साथ कार के पास सफ़ेद कपडों में लगाया हुआ है। 
उम्मेद भवन से नीचे घाटी की ओर बने हुए आलीसान घर


हम सबसे पहले स्टेशन पहुँचे, जहाँ हमने उसी रात की ट्रेन का आरक्षण कराया था। हमें ट्रेन से उसी रात को जैसलमेर जाना था, और देखो हम उसी शाम चार बजे आरक्षण करा रहे थे। जब हमने आरक्षण कराया तो हमारी वेटिंग RAC में थी। टिकट आरक्षित कराकर हम उम्मेद भवन की ओर चल पडे। ओम सिंह भाटी ने बताया था कि उम्मेद भवन में प्रवेश करने का समय शाम साढे पाँच बजे तक का है और अब कई मिनट उपर हो गये है। उम्मेद भवन से कोई एक किमी पहले से यह महसूस होना शुरु हो गया था कि हम किसी राजा के महल की ओर जा रहे है। महल से काफ़ी पहले एक सुरक्षा चौकी बनी हुई थी जहाँ राज परिवार का सुरक्षा कर्मचारी आने-जाने वाले वाहन व पैदल यात्री को चैक करा था। हमारी गाडी भी उसने चैक की हमारे बारे में भी पूछा तो ओम सिंह भाटी ने जवाब दिया कि ये गेस्ट है जो उम्मेद पैलेस होटल जा रहे है। हम समय समाप्त होने के बाद पहुँचे। जैसे ही हमने अन्दर प्रवेश करना चाहा तो होटल के सुरक्षा कर्मचारियों ने हमें अन्दर जाने से मना कर दिया। 
अन्दर चले या कहीं और?


हमने बहुत कोशिश की लेकिन क्या हमारा उम्मेद भवन जाना बेकार साबित हुआ?यह अगले लेख मे बताया जायेगा। 
.............(क्रमश:)  यह मेरे ब्लॉग की 100 वी पोस्ट है।



राजस्थान यात्रा-
भाग 2-जोधपुर का मेहरानगढ़ दुर्ग


10 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति |
    आभार संदीप जी-

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  2. घूमते ही रहोगे या किसी अन्‍य ब्‍लाग पर कमेन्‍ट भी करोगे

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    1. कौन कहता है कि संदीप भाई कमेंट की आस करते हैं । क्या ब्लाग में पोस्ट लिखी है या तुम्हारे ब्लाग पर कहने गये थे कि मेरे ब्लाग पर कमेंट किया करो

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  3. आप तो किसी अन्‍य ब्‍लाग पर कमेन्‍ट करते नही और खुद कमेन्‍ट की आस करते हो आपको यह ब्‍लाग बन्‍द कर देना चाहिये श्रीमान जी

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    उत्तर
    1. बेनामी आप अपनी शक्ल दिखाओ आपके ब्लॉग पर मेरी पसन्द का लेख मिला तो कमेन्ट जरुर करुँगा। लेख पसन्द ना भी आया तो एक नया ब्लाग मिल जायेगा।

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  4. सेंचुरी की बधाई।
    दूरदर्शन के सीरियल की तरह लास्ट में आकर कह देते हो, क्या होगा नन्हें का, अगली बार देखेंगे ’ हम लोग’ :)

    जो भी हो, सफ़र मजेदार चल रहा है।

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. संदीप भाई बढिया पोस्ट । मुझे इस जगह के बारे में जानकारी मिल रही है जो आगे काम आयेगी । वैसे ये बेनामी टिप्प्णीया बंद कर दो क्योंकि इससे कुछ कमअक्ल और ईष्यालु लोगो को मौका मिलता है ऐसे लोग अक्सर अपने घर में कुछ नही होते हा हा हा
    congrats for 100th post

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  7. 100 posts , Congrats Jatdevta.

    आपसे होटल रिव्यू कि दो पोस्ट पढकर मेरे मन भी ख़याल आ रहा है कि मैं भी कुछ होटल रेविएव लिखू.

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