हम जोधपुर महाराज का वर्तमान निवास स्थान उम्मेद भवन देखने जा रहे थे। हालांकि हम उम्मेद भवन में प्रवेश करने का तय समय शाम पाँच बजे, समाप्त होने के बाद पहुँचे थे। जैसे ही हमने जोधपुर के निर्वतमान महाराजा परिवार का वर्तमान निवास देखने के लिये, उनके भवन में अन्दर प्रवेश करना चाहा, तो वहाँ के सुरक्षा कर्मचारियों ने हमें अन्दर जाने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि आप अब अन्दर नहीं जा सकते हो। हमने कोशिश की, कि शायद कुछ देर के लिये ही सही वे हमें अन्दर जाने दे, लेकिन हमारा उम्मेद भवन जाना बेकार साबित हुआ। आखिरकार हम मुख्य दरवाजे से ही दो चार फ़ोटो खींच-खांच कर वापिस लौटने लगे। वैसे तो यह भवन काफ़ी बडा बना हुआ है। इसके बारे में बताया जाता है कि एक बार यहाँ अकाल जैसी स्थिति आ गयी थी जिस कारण यहाँ के तत्कालीन महाराजा ने आम जनता की मदद के लिये अपना खजाना खोलने का निश्चय कर लिया था। चूंकि राजा बडा चतुर था वह ऐसे ही जनता पर अपना धन बर्बाद भी नहीं करना चाहता था। अत: राजा ने जनता को धन देने के लिये एक तरीका निकाल लिया था। वह तरीका आपको बताऊँ उससे पहले यह बात बता देता हूँ कि उस तरीके का परिणाम ही यह उम्मेद भवन था।
राजा ने आम जनता को धन देने के बदले, अपने यहाँ एक पहाडी पर काम करने को कहा, ताकि लोगों को धन मिले और राजा को उसका परिणाम मिले। लोग राजा के यहाँ काम करते थे। बदले में राजा उन्हें मजदूरी के रुप में नगद नारायण दिया करता था। अब हमें उस सूखे का तो पता नहीं चल पाया कि वह कितने साल तक चला था? लेकिन इस महल के बारे में पता लग गया कि इसे बनाने में पूरे १६ साल लगे थे। खैर जब हमें उस उम्मेद भवन में नहीं जाने दिया गया तो हम वहाँ से बनार रोड, जयपुर राजमार्ग पर स्थित एक अन्य होटल देखने चल दिये। उम्मेद भवन से काफ़ी अलग, उससे कई किमी दूर, मुख्य शहर से भी काफ़ी हटकर बना हुआ, एक अन्य विशाल भव्य सुन्दर होटल देखने हम जा रहे थे। जैसे ही हमारे कार चालक ओम सिंह ने मुख्य सडक से दाये हाथ की ओर कार मोडी तो वहाँ एक बोर्ड दिखाई दिया था जिस पर लिखा था होटल "दा गेट वे" THE GATE WAY यहाँ इस होटल तक जाने में भी सडक से थोडा आगे होटल की अपनी बनी हुई सडक पर चलना होता है।
जैसे ही होटल वालों की हरियाली से घिरी हुई सडक समाप्त हुई, वैसे ही एक विशाल मैदान में एक शानदार ईमारत दिखाई देने लगी थी। मैंने पहली नजर में समझा कि यहाँ चारों और किले ही किले बने हुए है। लेकिन जब हम कार से उतर कर अन्दर गये तो पता लगा कि हम एक होटल में आये है। वहाँ होटल में सबसे पहले हमारा स्वागत ठन्डा पिलाकर किया गया। गर्मी में ठन्डा बहुत अच्छा लगता है। उस गर्मी में मन तो आइसक्रीम खाने का कर रहा था, लेकिन वह उस समय हमें नजर नहीं आ रही थी। ठन्डा पीने के बाद मैनजर ने हमारे साथ अपना टीम लीडर भेज दिया था। टीम लीडर को हमें पूरा होटल दिखाने की जिम्मेदारी दे दी गयी थी। होटल में प्रवेश करने से पहले ही कमल सिंह मोबाईल से होटल के मैनजर से सम्पर्क कर अपने आने की सूचना दे दिया करते थे। जिस कारण हमॆं अपने बारे में ज्यादा नहीं बताना पडता था। इस होटल में जैसे-जैसे हम घूमते रहे, वैसे ही यह महसूस होता रहा कि वाह होटल हो तो ऐसा। वैसे तो मैंने दिल्ली के होटल अशोका व होटल ताज का भ्रमण भी किया हुआ है। लेकिन इस होटल के सामने दिल्ली वाले दोनों होटल पानी भरते नजर आये। दिल्ली वाले होटल व इस होटल में सबसे बडा अन्तर तो क्षेत्रफ़ल का लगा। दिल्ली के पाँच सितारा होटल व इस तीन सितारा होटल में क्षेत्रफ़ल में ही कई गुणा का अन्तर है। यह देखने में ही एक किले जैसा दिखाई देता है।
होटल के कमरे मे प्रवेश करते समय होटल की साफ़-सफ़ाई भी दिल को छू गयी थी। सारा होटल बेहद ही खूबसूरत तरीके से साफ़ व स्वच्छ रखा गया था। हम जिस होटल में जाते थे वहाँ के सिर्फ़ दो तरह के कमरे देखते थे। पहला सबसे सस्ता कमरा, दूसरा सबसे महँगा कमरा। बडे-बडे होटलों में महँगे कमरों को सूइट suite बोला जाता है। यहाँ का सबसे सस्ता कमरा आठ हजार रुपये प्रतिदिन किराये वाला है। कमरे देखने के बाद हम होटल का विशाल तरणताल देखने चल पडे। यहाँ इस शानदार होटल में खुले में विशाल सुन्दर तरणताल swimming pool बनाया हुआ है। इस पूल के ठीक सामने ही यहाँ इसी होटल का विशाल हरा भरा मैदान भी है। जहाँ एक साथ कई हजार लोग आराम से पिकनिक मना सकते है। होटल देखने के बाद हम वहाँ से स्टेशन की ओर चल पडे।
हमारी ट्रेन रात को ग्यारह बजे के बाद थी। जब हम स्टेशन पहुँचे तो घडी में समय देखा तो पाया कि अभी तो आठ बज रहे है। हमारे पास अभी भी कई घन्टे थे जिसे हम जोधपुर में बिता सकते थे। सबसे पहले हमारे कार चालक ने कार रेलवे रिजर्वेशन पार्किंग में लगायी। उसके बाद हम तीनों वहीं नजदीक मॆं ही वहाँ की मशहूर दुकान से वहाँ के अच्छे अच्छे खाने-पीने की चीजे खाने पहुँच गये थे। यहाँ हमने कई प्रकार की खाने की वस्तुएँ चखी थी। जोधपुर की मलाईदार लस्सी का स्वाद भी मस्त था। और एक मिठाई जैसा कुछ खाया था नाम याद नहीं आ रहा है। एक-एक पकौडा और साथ में लस्सी वाह क्या पार्टी हुई थी।
इतना खाने-पीने के बाद, जब हम वहाँ उस दुकान से बाहर निकले ही थे कि हमें स्टेशन के बाहर एक गोल-गप्पे वाला दिखाई दे गया था। दुकान में मीठी-मीठी चीजे खाने के बाद चटपटा गोलगप्पे वाला दिख जाये और गोलगप्पा ना जाये, ऐसा नहीं हो सकता था। ओम सिंह ने गोलगप्पे खाने में हमारा साथ नहीं दिया। जाट देवता व नारद जी दोनों जुट गये गोल-गोल गप्पे खाने में। गोल गप्पे वाला बोला कि कितने के खिलाऊँ? मैंने कहा अरे ताऊ पहले खाने तो दे अगर तेरे गप्पे मस्त हुए तो पेट भरकर खायेंगे नहीं तो एक-दो से तौबा कर लेंगे। गोलगप्पे वाला बोला आप एक खाकर दस मांगोगे।
एक खाओगे तो दस मांगोगे, उसकी यह बात सुनकर लगा कि गोलगप्पे बहुत मस्त चटपटे बनाये होंगे। जैसे ही मैंने पहला गोल गप्पा खाया तो मैं गोल गप्पा खाकर चुप हो गया। नारद जी बोले क्यों जाट देवता कैसा स्वाद है? मैंने कहा खाकर देख लो अगर उसके बाद भी मन करे तो दूसरा ले लेना। जैसे ही नारद जी ने पहला गोल गप्पा खाया तो मैंने गोलगप्पे वाले को कह दिया था कि तु बनाता रह और साथ ही गिनता रह कि कितने खाये? गोल गप्पे वाले ने बेहद ही चटपटे टैस्टी गोलगप्पे बनाये थे। हम दोनों ने कुल मिलाकर चालीस रुपये के गोल गप्पे चट कर दिये थे। भारत में कई जगह इन्हें पानी पूरी कहीं-कहीं पानी पताशे भी बोला जाता है। इसके बाद हमने ओमसिंह को भी विदा कर दिया। जाते-जाते कार चालक व मालिक ओमंसिंह का विजिटिंग हमने ले लिया था। इसके बाद हम स्टॆशन स्थित वेटिंग हॉल पहुँच गये।
दो घन्टे ट्रेन का इन्तजार किया रात को बारह बजे के करीब हम अपनी रेल में सवार होकर जैसलमेर की ओर प्रस्थान कर गये।
सुबह-सुबह उजाला होने से पहले हम जैसलमेर पहुँच गये थे। जैसलमेर यात्रा अगले लेख में करायी जायेगी।
.............(क्रमश:)
राजस्थान यात्रा-
भाग 1-जोधपुर शहर आगमन
भाग 2-जोधपुर का मेहरानगढ़ दुर्ग
भाग 3-जोधपुर कायलाना झील व होटल लेक व्यू
भाग 4-जोधपुर- मन्डौर- महापंडित लंकाधीश रावण की ससुराल
- जोधपुर-यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे जोधपुर शहर आगमन
- जैसलमेर यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे जैसलमेर का किला (दुर्ग)
- बीकानेर यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे दशनोक वाला करणी माता का चूहों वाला मन्दिर
संदीप जी राम राम, उम्मेद भवन तो हम लोग भी अंदर से नहीं देख पाए थे, बाहर ही से लौट गए थे...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चित्रमयी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंअहा, नयनाभिराम दृश्य..
जवाब देंहटाएंसुन्दर वर्णन जाटदेवता ,
जवाब देंहटाएंउम्मेद भवन बनाने कि कहानी अच्छी लगी. राजा ने बहुत चतुराई से काम लिया. १६ साल बहुत ज्यादा है . लेकिन अब इसे अंदर से देखने की चाह है. आपकी यह यात्रा ने जोधपुर जैसलमेर बीकानेर में लिस्ट में आगे ला डी है .
आपके दोस्त नारद से मेरी पहचान कराओ भाई ?
उम्मीद भवन और होटल देख कर तबियत खुश हो गई ...इतने महंगे होटल में रहना तो मुश्किल है पर देख कर ही काम चला लेते है ..हा हा हा हा
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