इससे पहले वाले लेख में आपको किले से बाहर निकाल कर, मुख्य दरवाजे पर लाकर छोड दिया गया था, ताकि अगर किसी को जल्दी हो तो आगे भी कुछ देख आये, लेकिन कोई आगे नहीं गया, बल्कि सभी मेरे साथ ही आगे की यात्रा करना चाहते है तो दोस्तों मैं भी आपको ज्यादा प्रतीक्षा ना कराते हुए आज जोधपुर की आगे की यात्रा दिखाने ले चल रहा हूँ। हमारी जोडी सुरसागर सरोवर देखने चल पडी। अब मेहरानगढ किले से आगे की यात्रा का वर्णन.......
जैसे ही किले से बाहर आये तो वहाँ पर एक आइसक्रीम वाला खडा दिखाई दे गया। जब अपुन को आइसक्रीम व कच्चा नारियल दिख जाता है तो जब तक इन्हें खा ना लूँ तब तक मन को तसल्ली नहीं होती है। अत: यहाँ मैं कौन सा यह सुनहरा मौका हाथ से जाने देने वाला था। वैसे तो उस समय वहाँ गर्मी थी, लेकिन आइसक्रीम खाने का असली मजा ठन्ड में आता है। ठन्ड में आइसक्रीम पिघलने की परेशानी नहीं होती है। जबकि गर्मी में फ़टाफ़ट सटकनी पडती है नहीं तो पिघलने का डर बना रहता है। पिघलने के बाद आइसक्रीम में वो स्वाद नहीं रहता। अभी दो दिन पहले ही की बात है शनिवार को मैं परिवार सहित कार से अपने गाँव-मम्मी के गाँव-घरवाली के गाँव तथा वापसी में भाई के पास मेरठ होते हुए शाम को मनु प्रकाश त्यागी से मिलते हुए, घर वापसी का एक छोटा सा सफ़र किया गया था, जिसकी दूरी बस 253 किमी ही हुई थी। इस यात्रा में मुरादनगर की गंग नहर पर मिलने वाली कुल्फ़ी सभी ने खायी थी। जिस किसी ने यहाँ की कुल्फ़ी एक बार खायी होगी, वह जब भी यहाँ से जाता है तो हर बार यहाँ की कुल्फ़ी खाता है। आपमें से जिसने ना खाई हो, एक बार खाकर देखे उसके बाद बताना कि कैसा स्वाद रहा?
बात चल रही थी किले से बाहर की और मैं पहुँच गया आपको लेकर मुरादनगर गंग नहर के पुल की आइसक्रीम खिलाने। अब किले से आगे...... आइसक्रीम खाकर हम सीधे सुरसागर की और बढ चले, जब हमें पैदल चलते हुए काफ़ी देर हो गयी तो हमनें एक बन्दे/व्यक्ति से पूछा कि यह सुरसागर कहाँ है? उसने कहा कि सुरसागर तो पीछे ही रह गया है, अब तक तो हम ढलान पर दो किमी उतर चुके थे। वापस जाने का मन नहीं हुआ छोड दिया सुरसागर, फ़िर कभी देख लेंगे। हमने एक बन्दे से पता किया कि कोयलाना जाने के लिये आटो कहाँ से मिल सकते है? उसने जैसे हमें समझाया हम ठीक वैसे ही एक तिराहे पर पहुँच गये, वहाँ से कोयलाना उदयान जाने के लिये एक ऑटो वाले से बात हुई, वह पचास रुपये में वहाँ उस मोड तक जाने को तैयार हो गया था। जहाँ से कायलाना जाने के दूसरे ऑटो मिल जाते है, हमने उससे कहा कि तुम्हे क्या परेशानी है? लेकिन वह नहीं माना, इससे पहले एक और ऑटो वाले को रोककर, हमने कायलाना जाने की बात की थी, लेकिन उसने वहाँ जाने के ही इतने दाम बोल दिये कि हमने उसे तुरन्त बोल दिया कि ठीक है हमें कहीं नहीं जाना है, तु जा किसी और को लूट। हम दोनों उसमें बैठकर कोयलाना के लिये रवाना हो गये।
दो-तीन किमी चलने पर हमने देखा कि शहर की आबादी तो लगभग समाप्त हो गयी थी जिससे सडक खाली पडी थी इससे और आगे जाने पर उल्टे हाथ एक विशाल होटल दिखाई दिया। पहली नजर में हमें यह होटल कुछ खास नहीं लगा था जिस कारण हम आगे बढ गये। लेकिन जैसे ही हम आगे बढे तो हमें होटल से आगे एक झील दिखाई दी, इस नजारे को देखते ही हमारा मन वापिस आकर पूरा होटल देखने को कर गया, जिस कारण ऑटो वाले को वापिस चलने के लिये बोला गया, शुक्र रहा कि हम मुश्किल से दौ सौ मीटर आगे ही गये होंगे कि हमें होटल की झील दिखाई दे गयी थी नहीं तो इतना शानदार होटल हमसे छूट जाता।
होटल के बाहर ऑटो रोक हम पैदल ही होटल कम रिजार्ट की ओर बढ चले। होटल के मुख्य द्धार से जैसे ही अन्दर प्रवेश किया तो होटल के सामने झील के किनारे बनाया गया शानदार बडा सा हरा-भरा पार्क दिखाई देने लगा। हमें राजस्थान यात्रा में इतनी शानदार हरियाली पहली बार दिखाई दी थी, जिस कारण हम काफ़ी देर तक वहीं बुत बनकर खडे-खडे उस हरे-भरे पार्क व पार्क के सामने की झील को देखते रहे। इसके बाद हम होटल के अन्दर कमरे आदि की जानकारी लेने के लिये चल दिये। वैसे तो यह होटल शहर से काफ़ी दूर है जिस कारण वहाँ यात्रियों की संख्या लगभग नगण्य़ ही थी। लेकिन जिस तरह इस होटल के मालिक ने दिल खोलकर इसमें पैसा लगाया हुआ है वह एक बार वहाँ जाकर देखने की चीज है।
होटल में अन्दर प्रवेश करते ही सबसे पहले हमें होटल के मालिक मिल गये हमने सोचा था कि शायद वह वहाँ के मैनजर होंगे। काफ़ी देर तक उनसे बातचीत होती रही। बातचीत के दौरान हमें पता लगा कि जिसे हम मैनेजर समझ रहे है वहीं होटल के मालिक भी है। लेक व्यूह रिजार्ट के मालिक का व्यवहार बहुत ही मिलनशील रहा। हमें एक बार भी ऐसे नहीं लगा कि हम एक अरबपति इन्सान से मिल रहे है। आजकल की दुनिया में थोडे से पैसे या प्रसिद्धि मिलते ही इन्सान हवा से बाते करने लगता है। जबकि इन्सान को हमेशा अपनी जडों से जुडा रहना ही चाहिए। होटल के कमरे आदि का छोटा सा दौरा भी किया गया था हमने कई कमरे खुलवा कर देखे थे किसी तरह की कोई समस्या हमें वहाँ महसूस नहीं हुई। मुझे मौका मिला तो एक बार यहाँ जाकर जरुर ठहरुँगा। यहाँ आकर ठहरना यादगार पल रहेगा। होटल देखने के बाद हम फ़िर से अपने ऑटो में सवार होकर कायलाना के लिये चल दिये थे।
होटल से थोडा आगे जाने पर हमें कायलाना की झील दिखाई देने लगी थी। जैसे ही कायलाना का बोर्ड दिखाई दिया, तुरन्त ऑटो रुकवाकर बोर्ड के पास पहुँच गये। वहाँ से कायलाना झील का विस्तृत नजारा दिखाई दे रहा था। वैसे उस समय झील में पानी तो काफ़ी कम हो गया था, लेकिन उसके बाद भी झील में काफ़ी मात्रा में पानी शेष बचा हुआ था। इस कायलाना उद्यान के खुलने व बन्द होने का समय तो बोर्ड में लिखा हुआ है ही। अत: आप उसका फ़ोटो देख सब कुछ समझ ले, मैं इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखने जा रहा हूँ। यह कायलाना झील कई किमी लम्बी बतायी गयी है। हमने वहाँ गर्मी में ज्यादा देर रुकना उचित नहीं माना, अत: हम वहाँ से आगे की यात्रा पर चल दिये।
आगे चलते ही सडक किनारे हमें झाड ही झाड दिखाई देने लगे। यहाँ से हमने ऑटो वाले से कहा कि अब हमें वापिस जोधपुर ना ले जाकर, मन्डौर किले ले चल। मण्डौर की बात सुनते ही ऑटो वाला बिफ़र गया कि नहीं मैं वहाँ नहीं जाऊँगा, उसे थोडा सा लालच देने की कोशिश भी बेकार हुई। आखिरकार हमें उसे बोलना पडा कि चल वापिस जोधपुर चल हम वहाँ से दूसरा ऑटो करके आयेंगे या वहाँ से बस में बैठकर आयेंगे, पर अब तेरे साथ नहीं जायेंगे। हमारी यह बात सुनते ही ऑटो वाले का नखरा तुरन्त छूमन्तर हो गया। उसने हमें समझाया कि अब हम ऐसी जगह पर है जहाँ से मण्डौर अभी भी दस किमी से ऊपर बचा हुआ है, इसके बाद आप लोग वहाँ घूमने में कम से कम एक से दो घन्टे का समय जरुर लगाओगे, जिसके बाद वहाँ से जोधपुर लगभग आठ किमी दूर रह जाता है और इसके बाद आपको जिस जगह छोडना है वह जगह और भी तीन किमी आगे है अगर आप तीन सौ रुपये और दो तो मैं आपको घूमा लाता हूँ नहीं तो इतने में कोई और वहाँ जाता हो तो आप उसके साथ चले जाओ।
उस समय हम ऐसी जगह पर थे जहाँ आसानी से हमें दूसरा ऑटो भी नहीं मिलने वाला था, अत: थोडा मोलभाव करके उसके साथ ही आगे का सफ़र जारी रहने दिया गया था। कायलाना झील के साथ-साथ काफ़ी दूर तक चलते हुए हम एक चौराहे पर पहुँच गये, जहाँ से एक मार्ग रामदेवरा व पोखरण होते हुए जैसलमेर की ओर जा रहा था। हमें जैसलमेर जाना तो था लेकिन अभी नहीं रात की ट्रेन से जाना था। अत: हम ऑटो वाले के साथ मण्डौर की ओर बढ चले, मार्ग में एक जगह रुककर ऑटो वाले ने हम दोनों का फ़ोटो भी लिया था जो आपने देखा ही है। इसके बाद हम बिना कही रुके हुए आगे बढते रहे। मन्डौर से कुछ पहले सीधे हाथ की और पत्थर की खदाने दिखाई देने लगी थी। कुछ खदाने तो काफ़ी गहरी थी हमने ऑटो से नीचे उतर कर उनकी गहराई देखी थी जो कि कई मंजिल के बराबर दिख रही थी। मन्डौर वाले मार्ग में एक बहुत पुराना भवन या किला होगा जिसे आजकल हेरीटैज होटल बना दिया गया है। हम वहाँ नहीं गये। लेकिन ऊपर से हमने वहाँ की दिलकश हरियाली जरुर देख ली थी। इसके बाद हम लंका पति महाराज रावण की पत्नी मन्दोदरी का मायका मण्डौर पहुँच गये।.............(क्रमश:)
आज भले ही दीवाली हो लेकिन यह दीवाली इसी रावण की वजह से मनायी जाती है।
जिसके बारे में अगले लेख में बताया जायेगा। रावण की ससुराल भी दिखाई जायेगी?
राजस्थान यात्रा-
भाग 1-जोधपुर शहर आगमन
भाग 2-जोधपुर का मेहरानगढ़ दुर्ग
भाग 3-जोधपुर कायलाना झील व होटल लेक व्यू
भाग 4-जोधपुर- मन्डौर- महापंडित लंकाधीश रावण की ससुराल
- जोधपुर-यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे जोधपुर शहर आगमन
- जैसलमेर यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे जैसलमेर का किला (दुर्ग)
- बीकानेर यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे दशनोक वाला करणी माता का चूहों वाला मन्दिर
- गंग नहर वाली कुल्फ़ी जरूर ट्राई की जायेगी, अब तक तो सिर्फ़ जैन की शिकंजी के लिये उस प्वाइंट को जानते थे।
जवाब देंहटाएं- शराब व बीयर न पीने की हिदायत वाले बोर्ड से संदीप और कमल की दूरी बराबर नहीं है, कमल पर ज्यादा प्रभाव पड़ा दिखता है(बोर्ड का) :)
- तस्वीरें देखकर जी सा आ गया।
- रावण महाराज की ससुराल भी जरूर देखना चाहेंगे।
- दीपावली की ढेर सारी शुभकामनायें।
संजय भाई दीवाली की शुभकामना।
हटाएंबीयर शराब वाले बोर्ड से साफ़ जाहिर हो रहा है कि कौन इसके नजदीक है और कौन दूर,फ़ोटो लगाने का यही तो लाभ है कि बिना बताये सारी बात समझ आ जाती है।
और हम तस्वीर को यूँ डिकोड कर रहे थे -
हटाएं......
आज्ञा से
कमल सिंह
:)
हा हा हा हा हा ... वैसे मई इन सब चींजो से दूर ही रहता हूँ
हटाएं(नेपथ्य से )
मंदोदरी का मायका रोचक रहेगा देखना । वैसे कमल भाई तो बोर्ड के उपर गिरा जाने को हो रहा है । संदीप भाई वैसे पी तो आपने भी थी इस टूर में फेसबुक पर जाम हाथ में था उस फोटो को जरूर लगाना
जवाब देंहटाएंमनु भाई फ़ेसबुक पर सिर्फ़ एक ही फ़ोटो लगा था जब उस लेख का जिक्र आयेगा तो २ फ़ोटो लगाये जायेंगे। तब आयेगा असली चक्कर।
हटाएंक्या छायानाकन है मेरे भाई ,यह कैमरा है या गिद्ध की आँख मेरे भाई ,कितना विस्तार है इसकी आँखों में हर चीज़ का छोटा छोटा डिटेल ,इसका नहीं कोई मेल .वीरू भाई की फिलाल थमी हुई है रेल ,टिकिट कैंसल कराया दिल्ली का ,काम हो गया मुंबई में ,वीरू भाई ज़िंदा है दिया सर्टिफिकेट (लाइफ सर्टिफिकेट )वुड रोड ब्रांच एस बी आई मुंबई ने ,हो गई पेंशन पक्की इस साल की भी .गई ज़िन्दगी किश्तों में ....अब तो रिहर्सल है यहाँ से जाना जा तो हम चुके ही हैं .....
जवाब देंहटाएंसौहाद्र का है पर्व दिवाली ,
मिलजुल के मनाये दिवाली ,
कोई घर रहे न रौशनी से खाली .
हैपी दिवाली हैपी दिवाली .
वीरुभाई
संदीप भाई, रेगिस्तान में नखलिस्तान, बहुत खूब, मंदोदरी का माईका मेरठ को भी बोलते हैं.....
जवाब देंहटाएंमंदोदरी के पिता का नाम था मय दानव, मय दानव से मय राष्ट्र, जो की मेरठ का पुरातन नाम हैं....
जवाब देंहटाएंवाह, राजस्थान में भी हरियाली..
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जवाब देंहटाएंधन वैभव दें लक्ष्मी , सरस्वती दें ज्ञान ।
गणपति जी संकट हरें,मिले नेह सम्मान ।।
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दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
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अरुण कुमार निगम एवं निगम परिवार
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बहुत ही बढ़िया होटल थी संदीप भाई . ज़रा इसके प्रतिदिन के रेट नहीं लिखे आपने. और वह लेक नहीं नदी लगती है फोटो देखकर . आगे मंडौर की ओर बढ़ता हूँ
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत जगह घुमाया है संदीप ....कभी गए तो गाइड का काम करेगा ...
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