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सोमवार, 5 सितंबर 2011

CHAKRATA चकराता (TIGER FALL टाइगर फ़ाल)


ये है चकराता।


ये हमारी यात्रा श्रीखण्ड महादेव भाग 11 से वापसी में यहाँ चकराता तक आ पहुँची है। इस यात्रा को शुरु से पढने के लिये यहाँ क्लिक करना होगा फ़िर लीजिए इस यात्रा का पूरा आनन्द। सहिया नामक जगह पर हम लोग रात में रुके थे। यह ठीक-ठाक कस्बा है, जहाँ हर तरह की सुविधा उचित कीमत पर मिल जाती है, ये जगह चकराता से सिर्फ़ 22 किलोमीटर दूरी पर है। सुबह ठीक 8 बजे नहा धो कर चकराता का विश्व प्रसिद्ध झरना, जो कि टाइगर-फ़ॉल के नाम से जाना जाता है को देखने के लिये चल दिये थे, वापसी भी इसी मार्ग से आना था, अत: अपने बैग व लठ भी यहीं पर छोड दिये थे, जब वापसी इसी मार्ग से है तो बेवजह 80 किलोमीटर सामान को क्यों ढोया जाए? जब यहाँ से चले तो मौसम के हालात कुछ ठीक नहीं लग रहे थे, अत: अपने-अपने रैन-कोट पहन लिये थे, यहाँ सडक बहुत ही अच्छी थी जिससे सफ़र का पता ही नहीं चला।

ये है चकराता की साफ़ व शान्त सडक।

चकराता से 5-6 किलोमीटर पहले सडक पर बादलों का कब्जा हो गया था। आसपास का दिखाई देना बन्द हो गया था, जिससे हम बहुत ही सावधानी से चल रहे थे। कुछ आगे जाकर फ़ौजियों की एक टुकडी सडक पर गश्त करती हुई मिली थी। मुख्य तिराहे से पहले एक बोर्ड मिला, जिस पर चकराता की ऊँचाई लिखी हुई थी। उम्मीद से कहीं ज्यादा शीतल, शान्त और सुहावना मिला, समुद्र तल से 6730 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह नगर देहरादून जिले में आता है, जो कि 97-98 किमी. दूर है। चकराता का शांत माहौल और प्रदूषण रहित वातावरण मन को भा जाता है। चकराता के जंगलों में जौनसारी जनजाति के गाँव हैं। जिसे जौनसर बवार क्षेत्र भी कहते है। 

चकराता में पानी निकासी का एक स्थान।

ठीक नौ बजे तक चकराता पार हो गया था, यहाँ हम में से हर कोई पहली बार ही आया था। हमें यहाँ के बाजार में कोई दिलचस्पी नहीं थी। यहाँ तीन मार्ग हो जाते है एक त्यूनी के लिये, दूसरा मंसूरी के लिये, व तीसरा कलसी-विकास नगर के लिये(हम इसी से आये थे) चला जाता है, टाइगर-फ़ॉल के लिये पता किया, तो मालूम हुआ कि तो अभी त्यूनी वाले मार्ग पर दो-तीन किलोमीटर आगे जाने पर सीधे हाथ, त्यूनी से आते समय ये चकराता से पहले उल्टे हाथ पर आयेगा। एक मार्ग नीचे की ओर जायेगा जिस पर आपको 17-18 किलोमीटर दूरी पर टाइगर फ़ॉल आयेगा। समुद्र तल से 1395 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह झरना चकराता के पूर्व दिशा में जाकर आता है। चकराता से एक 5 किमी का पैदल मार्ग भी इस झरने पर जाता है, लेकिन वहाँ के स्थानीय लोगों ने हमें उस पैदल मार्ग से जाने से मना कर दिया, वे बोले कि ये मार्ग घने जंगल से होकर जाता है, और आजकल कोई यहाँ से जाता भी नहीं है, आप मार्ग में भटक सकते हो। 

एक शानदार घुमावदार मोड।

चकराता में सेना के कमाण्डों को तैयार किया जाता है, अंग्रेजों के समय से ही यहाँ पर सैनिक छावनी बनी हुई है। दो-तीन किलोमीटर आगे जाने पर एक आरा मशीन आती है, इस आरा मशीन के सामने से एक मार्ग नीचे की ओर चला जाता है, हम भी इस ढलान वाले मार्ग पर उतर गये, शुरु की कुछ दूरी पर तो ये मार्ग काफ़ी खराब था, लेकिन जैसे-जैसे आगे बढते गये मार्ग की हालात में सुधार होता गया। ये मार्ग लगभग सूना सूना ही रहता है, कभी-कभार ही कोई वाहन नजर आता था।

दूर कही पहाडों में जा रहा दूसरा मार्ग है।

धीरे-धीरे हम आगे बढ रहे थे कि मौसम ने अपना असर दिखाना शुरु कर दिया था। हल्की-हल्की बूंदा-बांदी शुरु हो गयी थीहम तो इस हालात के लिये पहले से ही तैयार थे। चलते रहेलेकिन एक जगह आकर वर्षा रानी इतनी तेज हो गयी कि हमें एक पहाड के नीचे शरण लेनी पडीकुछ देर बादबारिश का असर कुछ कम हुआ तो हम फ़िर आगे की ओर चल पडे। दस-बारह किलोमीटर जाने पर सोचा कि एक बार फ़िर से मार्ग के बारे में पता कर लेने में ही भलाई समझीतो पता चला कि तीन-चार किलोमीटर बाद एक मार्ग सीधे हाथ की ओर जाता है। जहाँ से सिर्फ़ दो-तीन किलोमीटर जाने पर आपको झरने के दर्शन हो जायेंगे। वैसे झरने के दर्शन दो किलोमीटर पहले से हो जाते है लेकिन जो पहली बार जाता है, उसे इस बात का ध्यान नहीं होता हैकि झरना नीचे खाई में भी हो सकता है, हम या वो हर कोई जो यहाँ पहली बार आयेगायही सोचेगा कि झरना तो कही पहाडों के ऊपर से गिरता हुआ नजर आयेगा।

इस जगह से इस मोड से एक अलग मार्ग कट जाता है, इस झरने के लिये।

हमने भी यही सोचा था। लेकिन झरना हमें कहीं भी दिखाई नहीं दिया, जब हम काफ़ी आगे आ गये तो एक जगह काम कर रहे मजदूरों से पता किया कि भाई यहाँ कोई झरना बताया गया है, आप जानते हो तो बता दो। उनमें से एक को पता था, उसने बताया कि आप लोग थोडा आगे आ गये हो पीछे कोई 300-400 मीटर वापस जाने पर जो पक्का ठिया बैठने का स्थान नजर आ रहा है वहीं से आप लोग नीचे पक्के मार्ग पर उतरते चले जाना। ये पक्का मार्ग आपको सीधे झरने पर ही ले कर जायेगा। हम वापस आये और उस पक्के मार्ग के किनारे अपनी-अपनी बाइक लगा दी। वर्षा अभी चल रही थी, इसलिये हमने अपने-अपने हैलमेट, अपने-अपने साथ ही लेकर पैदल चल दिये। यहाँ से लेकर झरने तक जोरदार ढलान है, बल्कि तीखी ढलान में टेढ़ी-मेड़ी पगडण्डी और जरा सी लापरवाही से फ़िसलने का खतरा भी है, इस पक्के मार्ग पर पानी बहने से जगह-जगह काई जमी हुई थी, जिस पर मैं एक बार ऐसा फ़िसला कि मेरे पैर की अंगुली ऐसी मुडी जो बहुत देर तक दर्द करती रही। अब हम अत्यधिक सावधानी से इस मार्ग पर उतरने लगे। कुछ देर बाद एक नदी आ गयी, कुछ और आगे जाने पर एक पुल द्धारा इस नदी को भी हमने पार किया।

 सामने जो स्थान दिखाई दे रहा है, यहाँ से शुरु होती है एक किलोमीटर की पैदल यात्रा। यही है यहाँ जाने की पहचान।

अब एक जगह जाकर मार्ग समाप्त हो गया। लेकिन झरना नजर नहीं आया। हाँ, पानी गिरने की आवाज साफ़ सुनायी दे रही थी। कुछ और आगे जाकर देखा तो झरने के थोडे से दीदार होने शुरु हो गये थे। अब एक मुश्किल ये थी कि झरने तक जाने के लिये हमें एक नदी को पार करना था। अब नदी पार किये बिना और कोई चारा नहीं था, कुछ तो बारिश में भीगे और जो कसर बची थी अब इस नदी को पार करने में पूरी होने वाली थी। सब खडे हुए सोच रहे थे कि क्या किया जाये?


इस पुल को पैदल मार्ग में पार करना होता है।

मैंने जूते नहीं पहने हुए थे मैं तो सीधा पत्थरों के ऊपर से होता हुआ नदी पार करने लगाजब नदी पूरी पार हो गयी थी तो तभी मेरा पैर फ़िसला और मैं धडाम से घुटनों तक पानी में लबा-लब भीग गया थामेरा ये फ़िसलने वाला सीन देख, अब सबकी हालात खराब थीतो पत्थरों के ऊपर से ना आकर बाकि तीनों ने पानी के अन्दर से होकर इस नदी को पार किया थावैसे इस नदी का पानी दो-ढाई फ़ुट से ज्यादा नहीं था। पानी कोई खास ठन्डा भी नहीं था। भीड़ बिल्कुल भी नहीं थीहमारे अलावा कोई और नहीं था। टाइगर फाल्स अपने कुदरती रूप में बह रहा है। कोई सरकारी छेडछाड अभी तक नहीं हुई है।
पुल के पास चावल के खेत में उगाई गयी फ़सल है।

जब मैं इस झरने के सामने पहुँचा तो इस झरने की विशालता देखकर मेरे होश उड गये थे। मैंने जीवन में बहुत झरने देखे है पर ऐसा एक भी नहीं। यहाँ आने से पहले हम ये सोच रहे थे कि इस झरने में जी भर कर नहायेंगे, लेकिन हम पहले तो बारिश में पूरे भीग गये और दूसरे इस झरने के भीमकाय, विशाल, भयंकर रूप को देखकर हमारी हिम्मत नहीं हुई, यहाँ इसके नीचे नहाने की। इसके आसपास पत्थर भी पानी से इतने चिकने हो गये थे कि हाथ से पकड में नहीं आ रहे थे। पत्थरों को पकडने की लगभग सभी ने असफ़ल कोशिश की थी। हम सभी बहुत देर तक इस 95 फ़ुट 29 मीटर से भी ज्यादा ऊँचे झरने को जी भरकर देखने के बाद, बिना नहाये यहाँ से वापस चल दिये थे। हमारी बाइक इस झरने से लगभग एक किलोमीटर दूर थी। हम मस्ती के साथ अपनी-अपनी बाइक के पास आ गये थे। अब हम सोच रहे थे कि ये झरना ऊपर से भी जरुर दिखाई देता होगा, अत: हम वापसी में नीचे खाई की ओर देखकर चल रहे थे, कि तभी हमें एक लोमडी नजर आयी, वैसे यहाँ पहाडों में लोमडी मिलना मामूली बात है। कुछ आगे जाने पर एक मोड से हमें इस झरने के आमने-सामने दर्शन हो ही गये। हम यहाँ रुके, एक बार फ़िर इसके जी भरकर दर्शन किये। अब हम इस झरने से बहुत ऊपर आ गये थे जहाँ से ये झरना बहुत ही छोटा सा लग रहा था।

ये फ़िसला मेरा पैर और मैं गया पानी में।
अभी और आगे जाना है, अब काफ़ी सावधानी से जाना होगा।
ये हुए दर्शन इस टाईगर झरने के।
ये हुए सम्पूर्ण दर्शन इस टाईगर फ़ाल/झरने के।

अब सब कुछ देख कर हम सब वापस उस जगह के लिये चल दिये जहाँ से हमें अपने बैग व लठ उठाने थे, कोई एक बजे तक हम उसी होटल में वापस आ गये थे। सुबह तो परांठे खाये थे अब दोपहर में राजवाँ-रोटी खाकर हम दो बजे तक आगे के सफ़र पर चल दिये थे। राष्ट्रीय राजमार्ग 123 पर हम आज की यात्रा कर रहे थे। ये मार्ग चकराता, सहिया, कालसी और हर्बटपुर को जोडता है। सहिया से आगे का मार्ग पूरा ढलान वाला है जो कि कालसी में जाकर ही समाप्त होता है। सहिया से 17-18 किलोमीटर बाद ही ये पहाडी मार्ग समाप्त हो जाता है व मैदानी मार्ग आ जाता है, सामने यमुना नदी की घाटी दिखाई दे रही होती है, और लो जी हम आ गये कालसी में ये काफ़ी प्राचीन नगर है। यमुना के किनारे बसा हुआ है। दिल्ली से चकराता जाने के लिये वजीराबाद पुल, लोनी, बागपत, बडौत, कांधला, शामली, थानाभवन, सहारनपुर, से आगे शाकुम्बरी माँ के मन्दिर जाने वाले मार्ग पर, हर्बटपुर, होते हुए, विकासनगर, कालसी, सहिया, होते हुए शाम तक आराम से चकराता  जा सकते हो।
पुल के पास निर्माण कार्य होता हुआ।
चलो! अब चले वापस बाइक के पास।
तीन अलबेले जाट, अनोखे जाट।
ये देखो लोमडी बैठी हुई है।
ऊपर आने के बाद इस झरने का आखिरी नजारा लिया जा रहा है।
ऊपर आने के बाद इस झरने का आखिरी नजारा आप भी देख लो कैसा लगता है।
जहाँ हम खडे थे वहीं ये पौधा भी था।

इस सफ़र के साथी दो ब्लॉगर दोस्तों के ब्लॉग पर जाने के लिये यहाँ देखे,
   नीरज जाट जी,    व   विपिन गौर   की यात्रा देखने के लिये यहाँ जाना होगा।

यहीं पर सम्राट अशोक के समय का शिला-लेख भी है, उसका भी दर्शन अगले लेख में कराया जायेगा। इस यात्रा का आगे का भाग देखने के लिये यहाँ क्लिक करना होगा

                    इस यात्रा का जो भाग देखना चाहते हो उसके लिये यहाँ नीचे क्लिक करना होगा

भाग-01-दिल्ली से पिंजौर गार्ड़न तक।
भाग-02-पिंजौर का भव्य गार्ड़न
भाग-03-पिंजौर से जलोड़ी जोत/जलोढ़ी दर्रा

भाग-04-सरोलसर झील व रघुपुर किले के अवशेष
भाग-05-सैंज से निरमुन्ड़ होते हुए जॉव तक
भाग-06-सिंहगाड़ से ड़न्ड़ाधार की खड़ी चढ़ाई कर, थाचडू होते हुए काली घाटी तक


भाग-07-काली घाटी से भीमद्धार/भीमडवार तक
भाग-08-पार्वती बाग, नैन सरोवर होते हुए, श्रीखण्ड़ महादेव शिला के दर्शन
भाग-09-वापसी श्रीखन्ड़ से भीमड़वार होते हुए, रामपुर बुशैहर तक


भाग-10-रामपुर से रोहड़ होते हुए चकराता तक।
भाग-11-चकराता  का टाईगर फ़ॉल/झरना
भाग-12-सम्राट अशोक कालीन शिलालेख, कालसी में


भाग-13-पौंटा-साहिब गुरुद्धारा
भाग-14-पौंटा-साहिब से सहारनपुर-शामली होते हुए दिल्ली तक।
भाग-15-श्रीखन्ड़ यात्रा पर जाने के लिये महत्वपूर्ण बाते।

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26 टिप्‍पणियां:

  1. सुबह सुबह खूबसूरत प्राकृतिक नजारे देखने को मिले, दिन जरूर अच्छा बीतेगा।

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  2. जो हम अन्यता नहीं देख पाते वह आपके यहाँ देख लेते हैं. मज़ा आ गया.

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  3. हम तो इस यात्रा का वालपेपर नित्य देखते हैं अपने कम्प्यूटर पर।

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  4. इतना सुंदर नजारा देखकर तबियत खुश हो गई संदीप ! चकराता का नाम सुना जरुर था आज तुमने दिखा भी दिया ...दूर का द्रश्य देखकर समझ नहीं आया की इतने बड़े झरने में पानी कहाँ से आया होगा ..वो भी इतना ढेरो पानी ? क्योकि ऊपर तो मुझे खेत दिखाई दे रहे हें ---
    और चप्पल पहनोगे तो फिसलोगे तो जरुर न ?

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  5. गुरुजनों को सादर प्रणाम ||

    सुन्दर प्रस्तुति पर
    हार्दिक बधाई ||

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  6. 1. मालूम हुआ कि तो अभी त्यूनी वाले मार्ग पर दो-तीन किलोमीटर आगे जाने पर उल्टे हाथ, एक मार्ग नीचे की ओर जायेगा- फिर वही उल्टे-सीधे का चक्कर, ठीक करो इसे।
    2. दस-बारह किलोमीटर जाने पर सोचा कि एक बार फ़िर से मार्ग के बारे में पता कर लेने में ही भलाई समझी, तो पता चला कि तीन-चार किलोमीटर बाद एक मार्ग उल्टे हाथ की ओर जाता है।- मानोगे नहीं, इस उल्टे को सीधा करो।
    मुझे ताज्जुब होता है कि उत्तराखण्ड जैसे पिछडे माने जाने वाले राज्य में सडकें इतनी अच्छी हैं। इस बात को हम आराकोट से ही देखते आ रहे थे।

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  7. jaat ji aapke hai thaat ji, sach mei aap apni life ko kitne ache se jeete hai, kash mai bhi aap hi ki tarah hoti, aapke lekh padh ke boht acha lagta hai or sath sath pahado ke darshan maja hi aa jata hai, aap job wagairah nahi karte kya, bas ghumte hi rehte hai hahaha

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  8. वाह ....... चकराता...

    चौधरी साहेब, दिल्ली से चकराता तक का रास्ता भी बता देते...

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  9. वाह संदीप जी वाह , मज़ा आ गया ये लेख पढकर. बहुत सुन्दर प्राकर्तिक फोटो, लेख भी मज़ेदार.............. कुल मिलकर सब कुछ बढ़िया ........

    माउन्ट आबू : पर्वतीय स्थल के मुख्य आकर्षण (1)..............3
    herf:"http://safarhainsuhana.blogspot.com/2011/09/13.html"

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  10. बहुत रोचक और मजेदार सफर था आपका .......प्रकृति के निराले रूप ने तो मन मोह लिया

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  11. सुन्दर यात्रा चल रही है. ऐसे दृश्य के लिए धन्यवाद.
    भाई मात्र ९५ फीट ऊँचा झरना देखकर घबरा गए.
    कुछ दिनों पहले मैं मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के 'पचमढ़ी' गया था वहां ऐसे कई फाल थे, कम से कम ६ झरने तो जरुर ही हैं जिसमे से सबसे ऊँचा 350 फीट का था लेकिन मैंने नहाया २५० फीट वाले में.

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  12. सुन्दर प्रस्तुति पर
    हार्दिक बधाई ||

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  13. सुन्दर तस्वीरें ।
    एक झरने के लिए बड़े पापड़ बेलने पड़े ।
    लेकिन प्रयास सार्थक रहा ।

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  14. बहुत सुन्दर प्राकर्तिक फोटो| सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई|

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  15. आपकी पोस्ट का इंतजार रहता है...और वो कभी निराश भी नहीं करती...

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  16. आपके साथ-सथ चल रहे हैं और प्रकृति के अद्भुत और मनोरम नजारे देख रहे हैं.

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  17. बेहद खूबसूरत चित्र और गज़ब का वर्णन आनंद आ गया भाई

    नीरज

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  18. बहुत सुन्दर फोटो| सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई|

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  19. वाह जी...आपके साथ चकराता घूम आये...सुन्दर दृष्य!!!

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  20. nice place to visit

    nice photos

    "HAPPY ONAM TO YOUR & YOUR FAMILY"

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  21. बहुत ही अच्छी यात्रा खुबसूरत वादियाँ मनमोहक फोटो हसीन नज़ारे और क्या कहूँ बहुत ही मजा आ रहा है आपकी यात्रा में ........

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  22. प्रकृति का उद्दात सौन्दर्य बिखेरते चलते हो दोश्त .चीते से फुर्ती आपके आगे बढ़ने में बढ़ते जाने में देखी "टाइगर फाल "क्या कर लेगा आपका .यात्रा और ज़िन्दगी दोनों ही हौसले से कि जातीं हैं यह एहसास आज शिद्दत से हुआ .

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