ये रहा भारत का राजकीय प्रतीक/चिन्ह चार शेर।
ये नेट से लिया गया है।
हमारी ये श्रीखण्ड यात्रा यहाँ कालसी तक आ गयी है ये है भाग 12 और इस यात्रा का असली लुत्फ़ तो शुरु से पढने व देखने में ही आयेगा, यहाँ क्लिक कर शुरु से देखो।
ये है अशोक के शिलालेख स्थल जाने का मार्ग।
कालसी तक पहुँचने के लिये देहरादून (56 किलोमीटर)/ सहारनपुर से हर्बटपुर(दिल्ली से दूरी 225) होते हुए जाना होता है। हम लोग चकराता से वापस आते हुए यहाँ गये थे। चकराता से आते समय पहले सहिया नाम का कस्बा आता है, जहाँ से कालसी सिर्फ़ 17-18 किलोमीटर दूरी पर ही है। कालसी यमुना नदी के किनारे पर बसा हुआ है, लेकिन यहाँ पर यमुना व टोंस नदी का संगम भी होता है। यहाँ पर यमुना नदी बहुत ही शानदार घाटी बनाती है। यह काफ़ी अच्छा शहर है, लगभग हर तरह की सुख सुविधा यहाँ पर उपलब्ध है, मार्ग भले ही पहाडों में एकलौता होता हो, दो लेन की यहाँ जरुरत ही महसूस नहीं होती है। ये घाटी इतनी शानदार है कि कोई भी यहाँ घन्टों खाली बैठ कर समय व्यतीत कर स्कता है।
यहाँ बोर्ड पर लिखा हुआ संदेश है।
अगर-अगर इस बोर्ड पर लिखा हुआ हम मानते तो आप क्या देखते?
दीवार का कितना प्यारा नजारा है।
इस शिलालेख पर क्या लिखा है उसे यहाँ समझ सकते हो।
हम इस प्यारी सी ढलान वाली सडक पर आराम से चले आ रहे थे, कि तभी हमें इस शहर के मुख्य बस अडडे से पहले उल्टे हाथ एक बोर्ड नजर आया जिस पर लिखा था, अशोक का शिलालेख 200 मीटर दूरी पर है। हम तो थे ही इसी तलाश में, मुड गये इस शिलालेख को देखने के लिये। कुछ आगे जाने पर इस जगह का प्रवेश द्धार भी आ ही गया। यहाँ से ही फ़ोटो खिचवाने की शुरुआत कर दी थी। यहाँ अपनी बाइक खडी कर पैदल ही पत्थरों का बना हुआ ढलान का मार्ग था, उस पर उतरते हुए चले गये। यहाँ पर तीन चार पैडी उतरने के बाद हमें इस जगह के दर्शन हुए। यहाँ भी एक दो बोर्ड लगे हुए थे, जिन पर लिखा हुआ देखा, व पढा भी। असली जगह जिसकी तलाश में हम यहाँ आये थे। यहाँ एक कमरे के अन्दर एक विशाल शिलालेख है जिस पर ब्राहमी लिपी में कुछ लिखा हुआ था, इस कमरे के बराबर में ही इस लिपी का हिन्दी व अंग्रेजी में अनुवाद भी लिखा हुआ था। जिसको आप आसानी से पढ सकते हो। दीवार पर लगे एक पत्थर से पता चलता है कि इस कमरे का निर्माण अंग्रेजों ने करवाया था, ताकि ये शिलालेख सुरक्षित रह सके। आप देखिए यू पी को पहले क्या कहा जाता था, चित्र में साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा है।
ये है अशोक का शिलालेख जो कालसी में है।
शिलालेख के सामने मेरा भी।
इस शिलालेख के सामने ही दो व्यक्ति बैठे हुए थे, हमने इनसे पूछा कि इस आकार के पत्थर यहाँ आसानी से मिल जाते है या इसे कही से यहाँ लाया गया था। तो वे हमे क्या जबाब देते है कि हम दोनों इस पत्थर को यहाँ ले कर आये थे। खैर ये तो रही मजाक की बात, पत्थर काफ़ी बडा है। कई टन का तो जरुर ही होगा। इस जगह के पीछे की दीवार जो कि पत्थरों की बनी हुई है देखने में बडी शानदार लग रही थी। आप भी उसका फ़ोटो देखिए। इस जगह से आगे सिर्फ़ खेत ही खेत है और यमुना का किनारा व पहाड का सुन्दर सा नजारा। जिससे मन करता है कि बस यहीं बैठे रहो-बैठे रहो-बैठे रहो जब मन भर जाये तो ही आगे जाने की सोचो। हम कोई घन्टा भर इस छोटी सी जगह पर रहे, इसके बाद हम आगे के सफ़र पर चल दिये। यहाँ से चलते ही सडक पर एक मोड आता है जिस पर मुडते हुए हम भी आगे चलते रहे, दो किलोमीटर बाद ही यमुना पर बना हुआ पुल आ जाता है। जिस के बीचों बीच जाकर हमने एक बार फ़िर अपना डेरा डाल दिया, और लग गये फ़ोटो लेने में यहाँ भी कई फ़ोटो लिये गये। इस जगह से इस शानदार घाटी को देखने का अपना एक अलग मजा आया था। यहाँ से आगे चलते हुए हम धीरे-धीरे हर्बटपुर के पास जा पहुँचे, बीच में एक जगह विकास नगर जाने का मार्ग भी था। विकासनगर इस मार्ग से एक किलोमीटर अलग हटकर है। वैसे अब तो आबादी इस मार्ग तक भी फ़ैल चुकी है।
मैं तो इसे अशोक की मूर्ति ही मानता था, लेकिन छ्तीसगढ के वरिष्ठ ब्लॉगर श्री राहुल सिंह जी ने बताया है कि यह आवक्ष प्रतिमा, चैत्य गवाक्ष या चन्द्रशाला कहे जाने वाले स्थापत्य अंग का अंकन है।
अगर आपको ब्राहमी लिपि आती है तो पढ लो। मुझे तो कोनी आती?
हर्बटपुर के लगभग आखिर में जाकर एक चौराहा आता है जहाँ से एक मार्ग उल्टे हाथ देहरादून व सीधे हाथ पौंटा साहिब, तथा सामने वाला मार्ग जिस पर हम जा रहे थे, सीधे सहारनपुर की ओर चला जाता है। हमें तो पौंटा साहिब गुरुद्धारा जाना था, अत: हम तो मुड गये सीधे हाथ की ओर जाने वाले मार्ग पर इस मोड से कोई दस किलोमीटर तक सीधा व शानदार मार्ग पर जाने के बाद एकदम से मार्ग गायब सा हो जाता है, तलाशने पर पता चला कि यहाँ पर कोई बैराज बना हुआ है जिससे मार्ग कुछ घुमा-फ़िरा कर बनाया हुआ था। इस बैराज का नाम तो पता नहीं था किसी ने बताया कि ये तो देहरादून की ओर से आने वाली आसन नदी पर बना हुआ बैराज है। जिस कारण सब इसे आसन बैराज के नाम से जानते है। यहाँ से केवल छोटे वाहन ही पार कर सकते है, क्योंकि यहाँ सडक पर लोहे के बैरियर लगाये हुए है।
इस पर ये कमरा कब बनाया गया है देख लो?
इस कमरे के अन्दर है शिलालेख।
इस बैरियर को पार करने के बाद जब हम रुके तो आगे सिर्फ़ एक बडी सी पक्की नहर ही जा रही थी। आगे का सारा सफ़र इस नहर के किनारे-किनारे ही रहता है। कुछ आगे जाकर यह नहर वाला मार्ग, उल्टे हाथ सहारनपुर, देहरादून व हर्बटपुर की ओर से आने वाले मुख्य मार्ग में भी मिल जाता है। इस नहर से आगे जाकर बिजली बनायी जाती है उस जगह पर एक बडा सा बिजलीघर भी बना हुआ है। यहीं पर ये नहर यमुना में भी गिर जाती है। यहाँ से कुछ आगे जाने पर यमुना नदी पर बना पुल भी नजर आ जाता है। इस पुल के इस किनारे तक उतराखण्ड व पुल को पार करते ही हिमाचल शुरु हो जाता है।
यहाँ फ़ूल भी थे।
सामने यमुना की घाटी व खेत।
सामने से ही तो हम यहाँ तक आये थे।
ये है यमुना पर बना हुआ पुल जो कालसी पार करते ही आता है।
तीनों मस्तमौला जाट इस पुल पर।
पुल पार करने के बाद ही हिमाचल का बैरियर भी आ जाता है। इस बैरियर पर कार, बस, ट्रक आदि वाहनों से टेक्स वसूली हो रही थी, बाइक यहाँ भी माफ़ थी बिना रोक टोक हम चलते गये और इस बैरियर को पार करते ही उल्टे हाथ पर एक मार्ग पौंटा साहिब गुरुद्धारा की ओर चला जाता है। व सीधा मार्ग अम्बाला की ओर चला जाता है यहाँ से अम्बाला 105 किलोमीटर दूरी पर है। यहाँ से रेणुका झील 86 किलोमीटर दूर है। पहले हमारा इरादा इस रेणुका झील तक भी जाने का था लेकिन हिमाचल के पहाड के सडे हुए टूटे-फ़ूटे से कच्चे मार्गों पर जाने कि हिम्मत दुबारा नहीं हुई थी। हम सीधे गुरुद्धारे के सामने जा पहुँचे।
आसन्न बैराज के पास।
आगे का सफ़र इस नहर के किनारे।
बच्चे पानी में कूदते हुए।
ये नेट से लिया गया है।
कालसी अशोक का शिलालेख देखने की इच्छा बहुत दिनों से थी, जो आज पूरी होने जा रही थी। एक बार चार साल पहले भी इस जगह के बहुत पास से होकर जा चुका हूँ, महाराष्ट्र वाले दोस्त अपनी सूमों में तथा मैं अपनी इसी नीली परी पर सवार था। चार धाम के लिये गये थे, उसी सफ़र में यमुनोत्री के बाद गंगोत्री जाते समय डबरानी के पास पहाड खिसक जाने पर हम गंगनानी के गर्मागर्म पानी में नहा धोकर जब वापिस आ रहे थे तो भटवाडी से पहले भी सडक खिसक कर गंगा में समाती हुई देखी है, सडक पर एक सीमेंट से भरा हुआ ट्रक भी उसके साथ-साथ मैंने पानी में जाता हुआ देखा था। सडक खिसकने के बाद सिर्फ़ इतना मार्ग बचा था जिसपर पैदल यात्री या बाइक ही जा सकती थी। मेरी बाइक तो निकल गयी थी महाराष्ट्र वाले दोस्तों की सूमो तीन दिन बाद जाकर निकल पायी थी। वो सफ़र फ़िर कभी?
यहाँ से यमुना घाटी का प्यारा सा नजरा।हमारी ये श्रीखण्ड यात्रा यहाँ कालसी तक आ गयी है ये है भाग 12 और इस यात्रा का असली लुत्फ़ तो शुरु से पढने व देखने में ही आयेगा, यहाँ क्लिक कर शुरु से देखो।
ये है अशोक के शिलालेख स्थल जाने का मार्ग।
कालसी तक पहुँचने के लिये देहरादून (56 किलोमीटर)/ सहारनपुर से हर्बटपुर(दिल्ली से दूरी 225) होते हुए जाना होता है। हम लोग चकराता से वापस आते हुए यहाँ गये थे। चकराता से आते समय पहले सहिया नाम का कस्बा आता है, जहाँ से कालसी सिर्फ़ 17-18 किलोमीटर दूरी पर ही है। कालसी यमुना नदी के किनारे पर बसा हुआ है, लेकिन यहाँ पर यमुना व टोंस नदी का संगम भी होता है। यहाँ पर यमुना नदी बहुत ही शानदार घाटी बनाती है। यह काफ़ी अच्छा शहर है, लगभग हर तरह की सुख सुविधा यहाँ पर उपलब्ध है, मार्ग भले ही पहाडों में एकलौता होता हो, दो लेन की यहाँ जरुरत ही महसूस नहीं होती है। ये घाटी इतनी शानदार है कि कोई भी यहाँ घन्टों खाली बैठ कर समय व्यतीत कर स्कता है।
यहाँ बोर्ड पर लिखा हुआ संदेश है।
अगर-अगर इस बोर्ड पर लिखा हुआ हम मानते तो आप क्या देखते?
भारत का राजकीय प्रतीक/ चिन्ह सम्राट अशोक की सारनाथ की लाट/स्तंभ से लिया गया चिन्ह है। इस चिन्ह में चारों दिशाओं में मुँह किये हुए चार शेर है जो एक गोल आधार पर टिके हुए है। ये गोल आधार खिले हुए उल्टे लटके कमल के जैसा है। एक ही पत्थर को काट कर बनाए गए इस सिंह स्तंभ के ऊपर 'धर्मचक्र' रखा हुआ है। चक्र केंद्र में दिखाई देता है, सांड सीधे हाथ, और घोड़ा उल्टे हाथ पर। चिन्ह के नीचे सत्यमेव जयते देवनागरी लिपि में लिखा हुआ है। सत्यमेव जयते शब्द मुंडकोपनिषद से लिया गया हैं, जिसका अर्थ है केवल सत्य की जीत होती है। राष्ट्र चिन्ह 26 जनवरी 1950 में संविधान अपनाते समय ही भारत सरकार द्धारा अपनाया गया था। कालसी भारत के महान सम्राट अशोक के पत्थर पर बने हुए शिलालेख के कारण प्रसिद्ध है। पुराने समय में पत्थरों जैसी कठोर सतह पर कुछ लिखने की परम्परा थी। प्राचीन काल से ही राजा महाराजा अपने आदेश इसी प्रकार लिखवाते थे। जिससे लोग इन्हे पढे व इन पर अमल करे। सम्राट अशोक का राजकाल ईसापूर्व 273-232 के समय का रहा है। इनका राज अफ़गानिस्तान से लेकर पूर्वी भारत तक व दक्षिण भारत में सिर्फ़ तमिलनाडु व केरल को छोड कर पूरे भारत पर था। इतिहास में मात्र तीन लोगों अशोक, सिकन्दर व अकबर को महान कहा गया है, अशोक के पिता बिंदुसार व माता कल्याणी थी। (वैसे क्रिकेट खिलाडी कपिल देव को भी महान कहते है।) इनका का जन्म 297 ई. के आसपास का है। कलिंग की भीषण लडाई के बाद अपनी दुनिया पर विजय करने की योजना छोड दी थी, बौद्ध धर्म स्वीकार व उसका प्रसार किया। मौर्यवंश में तीसरे स्थान पर नाम आता है।
दीवार का कितना प्यारा नजारा है।
इस शिलालेख पर क्या लिखा है उसे यहाँ समझ सकते हो।
हम इस प्यारी सी ढलान वाली सडक पर आराम से चले आ रहे थे, कि तभी हमें इस शहर के मुख्य बस अडडे से पहले उल्टे हाथ एक बोर्ड नजर आया जिस पर लिखा था, अशोक का शिलालेख 200 मीटर दूरी पर है। हम तो थे ही इसी तलाश में, मुड गये इस शिलालेख को देखने के लिये। कुछ आगे जाने पर इस जगह का प्रवेश द्धार भी आ ही गया। यहाँ से ही फ़ोटो खिचवाने की शुरुआत कर दी थी। यहाँ अपनी बाइक खडी कर पैदल ही पत्थरों का बना हुआ ढलान का मार्ग था, उस पर उतरते हुए चले गये। यहाँ पर तीन चार पैडी उतरने के बाद हमें इस जगह के दर्शन हुए। यहाँ भी एक दो बोर्ड लगे हुए थे, जिन पर लिखा हुआ देखा, व पढा भी। असली जगह जिसकी तलाश में हम यहाँ आये थे। यहाँ एक कमरे के अन्दर एक विशाल शिलालेख है जिस पर ब्राहमी लिपी में कुछ लिखा हुआ था, इस कमरे के बराबर में ही इस लिपी का हिन्दी व अंग्रेजी में अनुवाद भी लिखा हुआ था। जिसको आप आसानी से पढ सकते हो। दीवार पर लगे एक पत्थर से पता चलता है कि इस कमरे का निर्माण अंग्रेजों ने करवाया था, ताकि ये शिलालेख सुरक्षित रह सके। आप देखिए यू पी को पहले क्या कहा जाता था, चित्र में साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा है।
ये है अशोक का शिलालेख जो कालसी में है।
शिलालेख के सामने मेरा भी।
इस शिलालेख के सामने ही दो व्यक्ति बैठे हुए थे, हमने इनसे पूछा कि इस आकार के पत्थर यहाँ आसानी से मिल जाते है या इसे कही से यहाँ लाया गया था। तो वे हमे क्या जबाब देते है कि हम दोनों इस पत्थर को यहाँ ले कर आये थे। खैर ये तो रही मजाक की बात, पत्थर काफ़ी बडा है। कई टन का तो जरुर ही होगा। इस जगह के पीछे की दीवार जो कि पत्थरों की बनी हुई है देखने में बडी शानदार लग रही थी। आप भी उसका फ़ोटो देखिए। इस जगह से आगे सिर्फ़ खेत ही खेत है और यमुना का किनारा व पहाड का सुन्दर सा नजारा। जिससे मन करता है कि बस यहीं बैठे रहो-बैठे रहो-बैठे रहो जब मन भर जाये तो ही आगे जाने की सोचो। हम कोई घन्टा भर इस छोटी सी जगह पर रहे, इसके बाद हम आगे के सफ़र पर चल दिये। यहाँ से चलते ही सडक पर एक मोड आता है जिस पर मुडते हुए हम भी आगे चलते रहे, दो किलोमीटर बाद ही यमुना पर बना हुआ पुल आ जाता है। जिस के बीचों बीच जाकर हमने एक बार फ़िर अपना डेरा डाल दिया, और लग गये फ़ोटो लेने में यहाँ भी कई फ़ोटो लिये गये। इस जगह से इस शानदार घाटी को देखने का अपना एक अलग मजा आया था। यहाँ से आगे चलते हुए हम धीरे-धीरे हर्बटपुर के पास जा पहुँचे, बीच में एक जगह विकास नगर जाने का मार्ग भी था। विकासनगर इस मार्ग से एक किलोमीटर अलग हटकर है। वैसे अब तो आबादी इस मार्ग तक भी फ़ैल चुकी है।
मैं तो इसे अशोक की मूर्ति ही मानता था, लेकिन छ्तीसगढ के वरिष्ठ ब्लॉगर श्री राहुल सिंह जी ने बताया है कि यह आवक्ष प्रतिमा, चैत्य गवाक्ष या चन्द्रशाला कहे जाने वाले स्थापत्य अंग का अंकन है।
अगर आपको ब्राहमी लिपि आती है तो पढ लो। मुझे तो कोनी आती?
हर्बटपुर के लगभग आखिर में जाकर एक चौराहा आता है जहाँ से एक मार्ग उल्टे हाथ देहरादून व सीधे हाथ पौंटा साहिब, तथा सामने वाला मार्ग जिस पर हम जा रहे थे, सीधे सहारनपुर की ओर चला जाता है। हमें तो पौंटा साहिब गुरुद्धारा जाना था, अत: हम तो मुड गये सीधे हाथ की ओर जाने वाले मार्ग पर इस मोड से कोई दस किलोमीटर तक सीधा व शानदार मार्ग पर जाने के बाद एकदम से मार्ग गायब सा हो जाता है, तलाशने पर पता चला कि यहाँ पर कोई बैराज बना हुआ है जिससे मार्ग कुछ घुमा-फ़िरा कर बनाया हुआ था। इस बैराज का नाम तो पता नहीं था किसी ने बताया कि ये तो देहरादून की ओर से आने वाली आसन नदी पर बना हुआ बैराज है। जिस कारण सब इसे आसन बैराज के नाम से जानते है। यहाँ से केवल छोटे वाहन ही पार कर सकते है, क्योंकि यहाँ सडक पर लोहे के बैरियर लगाये हुए है।
इस पर ये कमरा कब बनाया गया है देख लो?
इस कमरे के अन्दर है शिलालेख।
इस बैरियर को पार करने के बाद जब हम रुके तो आगे सिर्फ़ एक बडी सी पक्की नहर ही जा रही थी। आगे का सारा सफ़र इस नहर के किनारे-किनारे ही रहता है। कुछ आगे जाकर यह नहर वाला मार्ग, उल्टे हाथ सहारनपुर, देहरादून व हर्बटपुर की ओर से आने वाले मुख्य मार्ग में भी मिल जाता है। इस नहर से आगे जाकर बिजली बनायी जाती है उस जगह पर एक बडा सा बिजलीघर भी बना हुआ है। यहीं पर ये नहर यमुना में भी गिर जाती है। यहाँ से कुछ आगे जाने पर यमुना नदी पर बना पुल भी नजर आ जाता है। इस पुल के इस किनारे तक उतराखण्ड व पुल को पार करते ही हिमाचल शुरु हो जाता है।
यहाँ फ़ूल भी थे।
सामने यमुना की घाटी व खेत।
सामने से ही तो हम यहाँ तक आये थे।
ये है यमुना पर बना हुआ पुल जो कालसी पार करते ही आता है।
तीनों मस्तमौला जाट इस पुल पर।
पुल पार करने के बाद ही हिमाचल का बैरियर भी आ जाता है। इस बैरियर पर कार, बस, ट्रक आदि वाहनों से टेक्स वसूली हो रही थी, बाइक यहाँ भी माफ़ थी बिना रोक टोक हम चलते गये और इस बैरियर को पार करते ही उल्टे हाथ पर एक मार्ग पौंटा साहिब गुरुद्धारा की ओर चला जाता है। व सीधा मार्ग अम्बाला की ओर चला जाता है यहाँ से अम्बाला 105 किलोमीटर दूरी पर है। यहाँ से रेणुका झील 86 किलोमीटर दूर है। पहले हमारा इरादा इस रेणुका झील तक भी जाने का था लेकिन हिमाचल के पहाड के सडे हुए टूटे-फ़ूटे से कच्चे मार्गों पर जाने कि हिम्मत दुबारा नहीं हुई थी। हम सीधे गुरुद्धारे के सामने जा पहुँचे।
आसन्न बैराज के पास।
आगे का सफ़र इस नहर के किनारे।
बच्चे पानी में कूदते हुए।
पौंटा साहिब गुरुद्धारे से लिया गया यमुना के पुल का चित्र है।
इस यात्रा का जो भाग देखना चाहते हो उसके लिये यहाँ नीचे क्लिक करना होगा
भाग-01-दिल्ली से पिंजौर गार्ड़न तक।
भाग-02-पिंजौर का भव्य गार्ड़न
भाग-03-पिंजौर से जलोड़ी जोत/जलोढ़ी दर्रा
भाग-04-सरोलसर झील व रघुपुर किले के अवशेष
भाग-05-सैंज से निरमुन्ड़ होते हुए जॉव तक
भाग-06-सिंहगाड़ से ड़न्ड़ाधार की खड़ी चढ़ाई कर, थाचडू होते हुए काली घाटी तक
भाग-07-काली घाटी से भीमद्धार/भीमडवार तक
भाग-08-पार्वती बाग, नैन सरोवर होते हुए, श्रीखण्ड़ महादेव शिला के दर्शन
भाग-09-वापसी श्रीखन्ड़ से भीमड़वार होते हुए, रामपुर बुशैहर तक
भाग-10-रामपुर से रोहड़ होते हुए चकराता तक।
भाग-11-चकराता का टाईगर फ़ॉल/झरना
भाग-12-सम्राट अशोक कालीन शिलालेख, कालसी में
भाग-13-पौंटा-साहिब गुरुद्धारा
भाग-14-पौंटा-साहिब से सहारनपुर-शामली होते हुए दिल्ली तक।
भाग-15-श्रीखन्ड़ यात्रा पर जाने के लिये महत्वपूर्ण बाते।
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इस यात्रा के दो अन्य ब्लॉगर नीरज जाट जी, व विपिन गौड देखो सबने क्या-क्या लिखा है।
अब पौंटा साहिब गुरुद्धारे में क्या-क्या देखा इसके लिये तो आपको इस यात्रा का आगे का भाग देखने के लिये यहाँ क्लिक करना होगा
इस यात्रा का जो भाग देखना चाहते हो उसके लिये यहाँ नीचे क्लिक करना होगा
भाग-01-दिल्ली से पिंजौर गार्ड़न तक।
भाग-02-पिंजौर का भव्य गार्ड़न
भाग-03-पिंजौर से जलोड़ी जोत/जलोढ़ी दर्रा
भाग-04-सरोलसर झील व रघुपुर किले के अवशेष
भाग-05-सैंज से निरमुन्ड़ होते हुए जॉव तक
भाग-06-सिंहगाड़ से ड़न्ड़ाधार की खड़ी चढ़ाई कर, थाचडू होते हुए काली घाटी तक
भाग-07-काली घाटी से भीमद्धार/भीमडवार तक
भाग-08-पार्वती बाग, नैन सरोवर होते हुए, श्रीखण्ड़ महादेव शिला के दर्शन
भाग-09-वापसी श्रीखन्ड़ से भीमड़वार होते हुए, रामपुर बुशैहर तक
भाग-10-रामपुर से रोहड़ होते हुए चकराता तक।
भाग-11-चकराता का टाईगर फ़ॉल/झरना
भाग-12-सम्राट अशोक कालीन शिलालेख, कालसी में
भाग-13-पौंटा-साहिब गुरुद्धारा
भाग-14-पौंटा-साहिब से सहारनपुर-शामली होते हुए दिल्ली तक।
भाग-15-श्रीखन्ड़ यात्रा पर जाने के लिये महत्वपूर्ण बाते।
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अशोक का शोक यही रहा कि उसका सत्य असत्य हो गया। बहुत ही सुन्दर दृश्य।
जवाब देंहटाएंसत्यमेव जयते.
हटाएंब्राह्मी पढनी नहीं आती वर्ना कब का पढ़ चुके होते इस शिलालेख को..........:)
जवाब देंहटाएंहां, आज दाहिने-बायें का चक्कर ठीक है।
जवाब देंहटाएंऔर मैं शिलालेख के इतिहास वाले एक पैराग्राफ को कॉपी करके अपने यहां लगाना चाहता हूं। बस, अनुमति दे देना। इंतजार कर रहा हूं।
नई जानकारी मिली । आभार ।
जवाब देंहटाएंदिल की पुकार सुनी जाती है, कल रात ही एक मेल भेजी थी कि भाई नई पोस्ट कब डाल रहे हो और आज ये दिख गई।
जवाब देंहटाएंये वही यमुना है न जो दिल्ली तक आते आते एक गंदा नाला बन चुकी होती है? कितना बेरहम है आदमी, कुदरती अनमोल चीजों की कद्र नहीं करता।
सभी चित्र नयनाभिराम दृश्य समेटे हैं, अच्छे लगे।
करेंगे भाई अगली पोस्ट का - इंतजार।
एक और शानदार सफ़र का वृतान्त . चित्रों के साथ काफी रोचक लगा.
जवाब देंहटाएंAapke aalekh padhkar aapki himmat ko sallm karne ko ji chahata hai.
जवाब देंहटाएंIs saahsik yatra ko sajha karne ka aabhar.
संदीप भाई ,फोटो बहुत ही शानदार हैं, इसके साथ -साथ जानकारी भी बढ़िया दी है आपने |
जवाब देंहटाएं..................धन्यवाद् ..........
बिना टिकट के जो आप हमे सफ़र कराते हैं उसका मजा ही कुछ और है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर दृश्य। धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंसडक पर एक सीमेंट से भरा हुआ ट्रक भी उसके साथ-साथ मैंने पानी में जाता हुआ देखा था। सडक खिसकने के बाद सिर्फ़ इतना मार्ग बचा था जिसपर पैदल यात्री या बाइक ही जा सकती थी। मेरी बाइक तो निकल गयी थी महाराष्ट्र वाले दोस्तों की सूमो तीन दिन बाद जाकर निकल पायी थी।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति |
बधाई ||
जाट देवता आप महान हैं जो हमें घर बैठे अदभुत जगहों के दर्शन करा देते हैं...वो भी कानून तोड़ के...शुक्रिया...
जवाब देंहटाएं''ये रहे सम्राट अशॊक का चित्र भी पत्थर पर बना हुआ है।'' ऐसा आपने माना है, लेकिन जहां तक मेरी जानकारी है, वस्तुतः ऐसा कुछ है नहीं.
जवाब देंहटाएंकालसी के बारे में बिल्कुल ही अंजान थे. एक नई जानकारी देने का शुक्रिया. सारनाथ के संग्रहालय में अशोक स्तम्भ को जरूर देखा है. यात्रा वृत्तांत बड़ा ही मनोरम.
जवाब देंहटाएंनई और रोचक जानकारी....चलते चलो राही..शुभकामनाओ सहित.....
जवाब देंहटाएंbade ghumakkad आप hain , नए नए आयाम |
जवाब देंहटाएंदेत बधाई प्रेम से, chalat raho अविराम ||
शानदार वृतान्त
जवाब देंहटाएंनई जानकारी देने का शुक्रिया
सुन्दर सार्थक जानकारी देता आलेख बधाई भाई संदीप जी
जवाब देंहटाएंSuperb , thanks for sharing about this place .
जवाब देंहटाएंसुंदर यात्रा वर्णन. फोटो के साथ मज़ा दुगना हो जाता है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर दृश्य।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट जानकारी से भरी .....
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुतिकरण. आभार.
जवाब देंहटाएंकालसी दर्शन और पौंटा साहब से लिए गए चित्रों के लिए आपका आभार .लगा कई दिन से आपके पास नहीं आ सका था .
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति , मनमोहक रहा ये सफ़र . बहुत कुछ जानने को मिला . सिर्फ एक शब्द " रोचक ... जानकारी .... मनमोहक सफ़र "
जवाब देंहटाएंमनमोहक दृश्य और जगह दिखाने के लिये धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंPanwar ji
जवाब देंहटाएंsundar prastuti ke liye badhai sweekaren.
मेरी १०० वीं पोस्ट , पर आप सादर आमंत्रित हैं
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ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! आपकी टिप्पणियों ने मेरा लगातार मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया है /अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर आपसे बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार - एस . एन . शुक्ल
जय हो जाट महाराज की...बेहतरीन और शानदार!!
जवाब देंहटाएंbahut kuch jana...
जवाब देंहटाएंnice info...
जवाब देंहटाएंthanks for sharing...
क्या बात है, संदीप जी लग रहा है कि मैं भी घूम आया ।
जवाब देंहटाएंयात्रा का सजीव वर्णन और सुंदर चित्र घर बैठे ही यात्रा का आनंद देते हैं.ज्ञानवर्द्धन भी करा रहे हैं.
जवाब देंहटाएंसंदीप भाई कैसे हो .ब्लोगिया दस्तक के लिए आपका शक्रिया .आज देर रात चंडीगढ़ से दिल्ली पहुँच रहा हूँ ,१०१३ ,लक्ष्मीबाई नगर .
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी और सुन्दर चित्र.
जवाब देंहटाएंवाह! मजा आ गया.
बहुत अच्छी तस्वीरें हैं-एकदम से आमंत्रण देती हुईं।
जवाब देंहटाएंgreat Job !!!!!
जवाब देंहटाएंjaat devta ji namskar.
जवाब देंहटाएंkalsi ko lekar bahut achha likha gya hai. kya es matter ko mai apne pryog me la sakta hu. suchit kare
mahesh shiva
maheshshivapress@gmail.com
www.kaalamita.com
jaat devta ji namskar.
जवाब देंहटाएंkalsi ko lekar bahut achha likha gya hai. kya es matter ko mai apne pryog me la sakta hu. suchit kare
mahesh shiva
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