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गुरुवार, 30 जून 2011

संगम (प्रयाग) से काशी(बनारस) तक पद यात्रा भाग 2, SANGAM, ALLAHABAD, VARANASHI, GANGA

प्रयाग काशी पद यात्रा-
आज हमारी पैदल यात्रा का तीसरा दिन शुरु हो गया था, दिनांक थी 27 फ़रवरी 2011, पहले दिन हम चले 20-22 किलोमीटर, दूसरे दिन चले 40-42 किलोमीटर के आसपास, हम ठीक छ: बजे नहा धो कर आज के अपने सफ़र पर चल पडे, ये तो मैं पहले ही बता चुका हूँ कि जिस जगह हम रुके हुए थे, उस के ठीक सामने एक बोर्ड था जिस पर लिखी दूरी से साफ़ हो रहा था, कि हम दिल्ली व कोलकत्ता से एक समान दूरी पर खडे थे। 

ये देखो ट्रक पर क्या जा रहा है, पहिया गिन सकते हो।

रविवार, 26 जून 2011

संगम (प्रयाग) से काशी(बनारस) तक पद यात्रा भाग 1, SANGAM, ALLAHABAD,

प्रयाग काशी पद यात्रा-
पैदल यात्रा के लिये जरुरी सामान लेकर हम तीनों संगम की ओर चल दिये, यहाँ सामने ही हनुमान जी का  मन्दिर है। किले के एकदम किनारे सटा हुआ है। शनिवार का दिन होने के कारण श्रद्धालु बहुत बडी संख्या में यहाँ मौजूद थे। हमने भी हनुमान जी को प्रणाम किया, व सीधे संगम की ओर चले गये, इस मन्दिर से यमुना नदी नजदीक है हम सीधे यमुना के किनारे जा पहुँचे, यमुना जी का फ़ोटो भी खींचा था। आप भी देख लो। आज दिनांक थी 26 फ़रवरी 2011 
यमुना नदी की धारा का अन्त यही हो जाता है, मैंने इस नदी के दोनों छोर देख लिये है।

गुरुवार, 23 जून 2011

निर्दयी नीरज से सावधान रहना


आज पोस्ट तो संगम से काशी पैदल यात्रा वाली लगानी थी, पर क्या करु मैं इस छोटे भाई नीरज जाट जी का, जिस के कारण मुझे पहले ये पोस्ट लगानी पड रही है।

मैं और नीरज आसपास ही रहते है। कोई तीन-चार किलोमीटर के फ़ासले पर, और मेरे अपने घर से कार्यालय जाते समय बीच मार्ग में ही नीरज जाट जी का कार्यालय भी आता है। अक्सर हमारी मुलाकात होती रहती है।

नीरज के अपने कार्यालय में पानी पीने का जो यंत्र लगा हुआ है, उसमें एक गडबड कर रखी है या अपने आप हो गयी है, ये तो वो ही जाने, वो ये है, कि इस जगह पर पीने के पानी का ये जो कूलर लगा हुआ है, इसमें दो टोंटी है। पानी पीने के लिये आया प्यासा बंदा किस टोंटी से पानी लेगा, जब दो टोंटी में से एक खराब हो व दूसरी सही हो, आपका जवाब भी मेरे जैसा ही होगा कि सही टोंटी में से, बस ये मैंने भी किया एक बार नहीं दो-दो बार,

अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें कौन सी पोस्ट लिखने वाली बात थी, अब जरा इससे आगे देख लो कि इस सही टोंटी में से जो पानी निकलता है उसे आप पीना तो दूर हाथ भी नहीं धो सकते हो, क्योंकि सही टोंटी में से निकलने वाला पानी इतना गर्म है कि उसमें चाय की पत्ती व दूध डाल दो तो चाय़ सैंकडों में तैयार हो जायेगी।

इसलिये मैं आप सब को कह रहा हूँ कि जो कोई भी नीरज के पास जाये तो वो अपने पीने का पानी अपने साथ ले जाये, तथा इस टोंटी से हाथ भी ना धोये, नहीं तो चिल्लाते रहना, और निर्दयी नीरज आपको निहारते रहेगा।


देख लो अब भी यही कह रहा है, कि इसी से पानी पी लो।

उसकी बातों में मत आना, नहीं तो चिल्लाते रहना, बाद में।


हद तो तब हो गयी, जब मैं इस टोंटी के फोटो खिच रहा था, तो तब भी नीरज को देखो, इशारा कौन सी टोंटी की तरफ़ कर रहा है। मैं सही टोंटी की और इशारा कर रहा था। मैं नीरज को अपनी शादी की सालगिरह पर आइसक्रीम की दावत का न्यौता देने गया था। जो कि आज है। अब आप बच के रहना इस पानी से?

बुधवार, 15 जून 2011

ANAND BHAWAN आनंद/आनन्द भवन, प्रयाग

प्रयाग काशी पद यात्रा-
अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद के बलिदान स्थल के दर्शन करने के बाद हम इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर नहीं गये। हम सीधे आनन्द भवन की ओर चले आये। ये दोनों जगह मुश्किल से एक किलोमीटर से भी कम के फ़ासले पर है। आजाद पार्क से चलने पर एक चौराहा आता है, जहाँ से एक मार्ग सीधे हाथ संगम की ओर व उल्टे हाथ आनन्द भवन की ओर जाता है।
ये है आनन्द भवन, प्रयाग में
             

शनिवार, 11 जून 2011

मिंटो पार्क, चन्द्रशेखर आजाद पार्क, प्रयाग, MINTO PARK, PARYAG, SANGAM

प्रयाग काशी पद यात्रा-
केदारनाथ से वापस आते समय ही बनारस का कार्यक्रम बना लिया था। कुल छ: बंदे जाने के लिये तैयार थे। बस यह रह गया था कि जाना कब है, अब शिव का घर हो और महाशिवरात्रि का मौका हो, इससे बडी बात और क्या हो सकती थी। वैसे तो अगस्त में ही ये कार्यक्रम बन गया था कि महाशिवरात्रि के मौके पर यहाँ जाना है, जो कि 2 मार्च 2011 को आनी थी अब यहाँ पर बाइक वाली बात मेरे अलावा किसी ने नहीं मानी। अत: मैं भी उनके साथ ही हो लिया।

लो जी आ गये इलाहाबाद यानी प्रयाग

मंगलवार, 7 जून 2011

मन POEM, GEET


आज पडोस के एक लडके ने अपने स्कूल की वार्षिक कार्यक्रम की पुस्तिका में लिखी हुई एक कविता मुझे दी है,
मैंने इसमें कोई छेडखानी नहीं की है, नाम की भी नहीं,
अगर आपको धन्यवाद देना है, तो उस बच्चे को जिसने ये प्यारी सी रचना मुझे दी है,

कवि "दिनेश रघुवंशी" ने यह प्यारी रचना  लिखी है।

                     जीवन ग्रंथ
जीवन ऐसा चाहिए, मन संतुष्ट होना चाहिए।
रिश्ते कई बार बेड़ी बन जाते हैं
प्रश्नचिह्न बन राहों में तन जाते हैं
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ मेरा, अकेले चलने का मन है
अपना बनकर जब उजियारे छ्लते हों
अँधियारों का हाथ थामना अच्छा है
रोज़-रोज़ शबनम भी अगर दग़ा दे तो
अंगारों का हाथ थामना अच्छा है
क़दम-क़दम पर शर्त लगे जिस रिश्ते में
तो वह रिश्ता भी केवल इक बन्धन है
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ मेरा, अकेले चलने का मन है
दुनिया में जिसने भी आँखें खोली हैं
साथ जन्म के उसकी एक कहानी है
उसकी आँखों में जीवन के सपने हैं
आँसू हैं,आँसू के साथ रवानी है
अब ये उसकी क़िस्मत कितने आँसू हैं
और उसकी आँखों में कितने सपने हैं
बेगाने तो आख़िर बेगाने ठहरे
उसके अपनों मे भी कितने अपने हैं
अपनों और बेगानों से भी तो हटकर
जीकर देखा जाए कि कैसा जीवन है
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ मेरा, अकेले चलने का मन है
अपना बोझा खुद ही ढोना पडता है
सच है रिश्ते अक्सर साथ नहीं देते
पाँवों को छाले तो हँसकर देते है
पर हँसती-गाती सौग़ात नहीं देते
जिसने भी सुलझाना चाहा रिश्तों को
रिश्ते उससे उतना रोज़ उलझते हैं
जिसने भी परवाह नहीं की रिश्तों की
रिश्ते उससे अपने आप सुलझते हैं
कभी ज़िन्दगी अगर मिली तो कह देंगे
तुझको सुलझाना भी कितनी उलझन है
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है





यह रचना प्रख्यात कवि एवं गीतकार दिनेश रघुवंशी जी की है: यहाँ देखिये:

http://kavyanchal.com/navlekhan/?p=943

बुधवार, 1 जून 2011

LEH LADAKH BIKE TOUR बाइक से लाल किला से लेह-लद्दाख (आखिरी भाग) 11, KATRA, JAMMU, AMBALA, DELHI

लेह बाइक यात्रा-
पहले दिन सवा चार सौ किलोमीटर बाइक चलाने के बाद भी, रात में माता के दर्शन पैदल किये, उसके बाद भी सिर्फ़ तीन घंटे सोये, हम सब घर जाने के लिये उतावले थे। सब नहा धोकर, सुबह साढे नौ बजे अपने प्यारे घर की और चल दिये। आज उस मार्ग से नहीं जाना था जिससे कल आये थे। आधे घंटे बाद हम जम्मू-श्रीनगर हाइवे पर आ गये थे। जम्मू की ओर जाते समय, हमें जम्मू बाईपास से जाना था, लेकिन मेरे दोनों बाइक वाले साथी कुछ ज्यादा ही तेजी से जा रहे थे, बाईपास को देखा ही नहीं, और घुस गये जम्मू सिटी की भीड में, जबकि मैं बाईपास से होता हुआ सीधा सांबा जा निकला, व यहाँ एक भंडारे पर भोले का प्रसाद दाल मखनी व तंदूरी रोटी ग्रहण किया। जब तक उन दोनों ने जम्मू पार ही किया था। अब तय हुआ कि कठुआ या पठानकोट पार करने के बाद उस मोड पर मिलंगे, जहाँ से एक मार्ग चम्बा, धर्मशाला, मण्डी की ओर जाता है व दूसरा जालंधर, लुधियाना, अम्बाला, दिल्ली की ओर, लेकिन पठानकोट में फ़िर गडबड हो गयी। ये चारों पठानकोट से जालंधर वाले मार्ग पर ना आकर, सीधे हाथ अमृतसर की ओर चले गये।
हम जब भी घर से बाहर होते है, तो हमेशा इस बोर्ड पर लिखी बात ध्यान में रखते है। आप भी रखो,

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