पहले दिन सवा चार सौ किलोमीटर बाइक चलाने के बाद भी, रात में माता के दर्शन पैदल किये, उसके बाद भी सिर्फ़ तीन घंटे सोये, हम सब घर जाने के लिये उतावले थे। सब नहा धोकर, सुबह साढे नौ बजे अपने प्यारे घर की और चल दिये। आज उस मार्ग से नहीं जाना था जिससे कल आये थे। आधे घंटे बाद हम जम्मू-श्रीनगर हाइवे पर आ गये थे। जम्मू की ओर जाते समय, हमें जम्मू बाईपास से जाना था, लेकिन मेरे दोनों बाइक वाले साथी कुछ ज्यादा ही तेजी से जा रहे थे, बाईपास को देखा ही नहीं, और घुस गये जम्मू सिटी की भीड में, जबकि मैं बाईपास से होता हुआ सीधा सांबा जा निकला, व यहाँ एक भंडारे पर भोले का प्रसाद दाल मखनी व तंदूरी रोटी ग्रहण किया। जब तक उन दोनों ने जम्मू पार ही किया था। अब तय हुआ कि कठुआ या पठानकोट पार करने के बाद उस मोड पर मिलंगे, जहाँ से एक मार्ग चम्बा, धर्मशाला, मण्डी की ओर जाता है व दूसरा जालंधर, लुधियाना, अम्बाला, दिल्ली की ओर, लेकिन पठानकोट में फ़िर गडबड हो गयी। ये चारों पठानकोट से जालंधर वाले मार्ग पर ना आकर, सीधे हाथ अमृतसर की ओर चले गये।
हम जब भी घर से बाहर होते है, तो हमेशा इस बोर्ड पर लिखी बात ध्यान में रखते है। आप भी रखो,
य़ात्रा की तैयारी के लिये कुछ खास नहीं करना पडता है। सबसे पहले आपको आपको अपना वाहन तय करना है, कि कैसे, किस वाहन से जाना है। प्रत्येक वाहन के अपने-अपने फ़ायदे व नुकसान होते है, हर इंसान की पसंद अलग-अलग होती है, मेरी राय से तो सबसे अच्छा वाहन रेल है, लेकिन वो हर जगह उपलब्ध नहीं है, खासकर पहाडों में। रही बात आपको कोई जगह देखनी है तो सबसे अच्छा वाहन बाइक ही है जिससे हम उस जगह व मार्ग का अवलोकन अपनी मर्जी से कर सकते है, जब जहाँ मन करा, वही रोक लो, देखो व आगे बढो। जब बात कम इंसान व समय बचाने की आती है तो सबसे बढिया है बाइक जिसे आप जब चाहे जहाँ चाहे ले जा सकते है, बाइक पर अकेले या दो जने जैसे भी आप का मन करे, वैसे जा सकते है। अगर सामान ज्यादा हो तो बाइक पर अकेले जाना ही ठीक रहता है, दो सवारी होने पर खासकर खराब मार्ग पर थोडी समस्या तो आती ही है। लेह जैसे दुर्गम स्थानों पर जाने के लिये 125 सी.सी से कम की बाइक से बहुत परेशानी आती है, अत: बाइक थोडी जानदार या फ़िर उस पर अकेले सवार हो तो बेचारी बाइक झेल सकती है अन्यथा नहीं, बाइक कार में तुलना करनी बेकार है, कार में आराम व बाइक से रोमाँच का मुकाबला कभी नहीं कर सकती है, सबसे बडी बात जहाँ मेरे जैसे सिरफ़िरे बाइक ले जा सकते है, कार वाले उस रास्ते पर जाने की भी नहीं सोच सकते है। दिल्ली व आसपास के लोग तो सीधे बाइक पर लेह व ऐसी यात्रा की ओर जा सकते है, लेकिन दूर-दराज मध्य भारत व दक्षिण भारत से आने वालों को जम्मू, पठानकोट या चंडीगढ तक रेल से आकर इन जगहों से अपनी "बाइक यात्रा" की शुरुआत कर सकते है। (हमारे जांबाज़ मराठा वीर साथी तो हर बार नान्देड से ही बाइक चला कर दिल्ली आते है। फ़िर यहाँ से सब साथ जाते है।) एक बात गांठ बांध ले कि आप प्रत्येक दिन का सफ़र सुबह जल्दी मुँह अंधेरे शुरु करे व शाम को जल्दी आराम करे।
सामान- बाइक व इंसान के लिये एक प्लग, एक चैन साकेट, व हो सके तो पेंचर लगाने का सामान जरुर रख ले, नहीं तो दो टयूब अपने बैग में जरुर रख ले, क्या पता कब जरुरत पड जाये। बाइक के टायर, चैन का सैट, नये हो, ज्यादा पुराने ना हो, बाइक की सर्विस करा ले, व किसी भी मार्ग से जाये, लेह जाकर अपनी बाइक को जरुर चैक करे। अपने साथ कपडे एक जोडी पहनने के बाद सिर्फ़ दो जोडी से ज्यादा मत ले जाये, जुराब तीन जोडी, बाकि जरुरी सामान जैसे दांत साफ़ करने का, नहाने का, जरुर साथ रखे, हां एक गर्म हल्का कम्बल/चद्धर ओढने के लिये, एक गर्म बनियान, एक हल्की जैकेट हवा रोकने वाली, दस्ताने, गर्म टोपी/मफ़लर के बिना भूल कर भी मत जाये, चाहे दिल्ली में लू ही क्यों न चल रही हो, कोई भी मौसम हो। हाँ कुछ जरुरी दवाई जरुर रख ले व बैग हो सके तो पिट्ठू ले जाना ज्यादा बेहतर रहता है।
खाने पीने की पूरे मार्ग में कोई समस्या नहीं है। प्रत्येक 40-50 किमी बाद खाने का मिल जाता है, खासतौर पर मांसाहारी लोगों की मौज है। हम जैसे शाकाहारी मैगी/चाऊमीन, रोटी चावल से काम चला लेते है। एक समय का साधा खाना चालीस-पचास रुपये से शुरु हो जाता है। अब जितने चोंचले करोगे उतना मंहगा होता जायेगा।
रात में ठहरने की कोई खास समस्या नहीं है। मार्ग में जम्मू शहर, कटरा शहर, उधमपुर शहर, पटनी टाप सीमित संख्या में, रामबन, अन्नतनाग, श्रीनगर डलझील में, सोनमर्ग होटल में, बाल्टाल टैंट में, द्रास होटल में, कारगिल गुरुद्दारे/होटल में, पत्थर साहिब गुरुदारे में, लेह सिटी मंहगे होटल में, उपशी सस्ते होटल में, पांग टैंट में, सरचू टैंट में, भरतपुर सिटी टैंट में (मत रुकना आक्सीजन की कमी सतायेगी), दारचा पुल के पास दुकानों व पीछे घरों में, कैलोंग, मनाली, कुल्लू, हणोगी माता का मन्दिर होटल जैसी सुविधा वाली धर्मशाला में, मंडी होटल में, बस इतने नाम बहुत है। इनमें से ज्यादातर जगह मात्र एक व्यक्ति सौ रुपये में बात बन जाती है, एक-दो जगह पर दौ सौ का खर्च भी आ जाता है। आप चाहे तो एक दिन के हजार से चार-चार हजार वाले कमरे व होटल भी मिल जायेंगे। जैसा गुड डालोगे वैसा मीठा मिलेगा। मनाली से जाते हुए, ये लेख आपका पूरा साथ निभायेगा। जम्मू से जा रहे हो तो, माता के दर्शन कर अगली सुबह हैली पैड के बराबर वाले मार्ग से उधमपुर आ जाये, फ़िर आराम से शाम तक श्रीनगर आ सकते है, श्रीनगर शहर में कुछ नहीं रखा है जो है, मशहूर निशात बाग व शालीमार बाग भी डलझील के किनारे ही है, यहाँ से गुलमर्ग देख कर शाम तक सोनमर्ग या द्रास आसानी से जाया जा सकता है, इसके बाद कारगिल युद्ध संग्रहालय देखते हुए, कारगिल शहर गुरुद्धारे होते/रुकते हुए, लेह से 26 किमी पहले पत्थर साहिब गुरुद्धारे आ जाये, अगली सुबह दस बजे तक लेह आकर डी.सी दफ़्तर से खर्दूगंला जाने की लिखित आज्ञा ले घूम कर आये, साथ ही अगले दिन के लिये पैन्गोग लेक की भी आज्ञा भी उसी समय ले ले। पैगोग से आकर रात में उपशी रुके, व मनाली की ओर चले आये, बस 3-4 जगह बर्फ़बारी मिलेगी, इस सफ़र में दुनिया के तीन सबसे ऊंचे दर्रे पार करने पडते है, पूरे पांच सौ किलोमीटर का गंजा पहाडी रेगिस्तान(मगर हसीन भी) पार करना होता है, मनाली से जाते समय दारचा के बाद, व आते समय सरचू के बाद बारालाचा दर्रा तो बर्फ़ का समुद्र ही है, बस जबर्दस्त ठण्ड से जूझना पडेगा, इससे ज्यादा कोई खास परेशानी नहीं आयेगी। अरे जब हमारे जैसे का कुछ नहीं बिगडा तो फ़िर किसका बिगडेगा। बर्फ़बारी होते समय ज्यादा सावधानी से बाइक चलानी पडेगी। जून के महीने को छोड कर ज्यादा महंगाई भी नहीं मिलती है। सुरक्षित रात्री-विश्राम के लिये जरुर सावधान रहे, वैसे वहाँ के लोग धोखेबाज कम ही है। फ़िर भी जहाँ रुके फ़ोन से अपने घर जरुर सूचित कर दे व आगे अगले दिन का कार्यक्रम भी बताना ना भूले कि कल कहाँ तक जाना है? सरकारी विभाग के विश्राम गृह में आसानी से जगह मिल जाती है।
जाने का सही समय, अपनी नजर में तो हमेशा सारा समय ही सही होता है। जब जी करा, उधर मुहं/मुंडी/बाइक उठा कर चल दो, फ़िर भी इस जगह जाने के लिये दर्रों के खुलने पर निर्भर करना पडता है। जो आमतौर पर मई के आखिरी सप्ताह में जाकर ही खुल पाते है। बरसात में ऐसी जगह जाने से बचना चाहिए, और दर्रों के बंद होने का समय अक्टूबर का आखिरी सप्ताह है। अत: ये कहना ठीक है कि जून से लेकर मध्य अक्टूबर तक सबसे ज्यादा सही समय है।
पैट्रोल का खर्च तो वाहन के अनुसार आयेगा। दिल्ली से मनाली, लेह खर्दूंगला, पैगोंग लेक, अमरनाथ, वैष्णो माता सहित कुल दूरी तीन हजार किलोमीटर के आसपास है। बाइक का खर्च आप अपनी बाइक के औसत से हिसाब लगा लेना, ये ध्यान रखना पहाड में औसत पाँच किलोमीटर कम हो जाता है। फ़िर भी गुणा भाग कर के चलना। कार वाले तो बाइक से तीन गुणा मान कर चले, मनाली से जा रहे हो तो टांडी से अपनी टंकी फ़ुल करा ले क्योंकि इसके बाद लेह सिटी में (350 किलोमीटर दूर) ही पैट्रोल मिलेगा, बुलेट पर जा रहे हो तो एक दस लीटर या पाँच-पाँच लीटर की दो कैनी साथ भर कर रख ले। हमारा यात्रा खर्च तो एक बंदे का कुल/मात्र साढे तीन हजार सब कुछ मिलाकर आया था, उन दस-ग्यारह दिनों का कोई ज्यादा नहीं है। सारे चीजे तो मैने छोड ही रखी है, रोटी के सिवाय, अब ज्यादा खर्चा कहाँ से होता?
अब भी कुछ कसर रह गयी हो तो मुझे बता देना, उसे भी बता दिया जायेगा, अब आपको अगले लेख का इंतज़ार करना है।
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इस यात्रा को पढ़ते हुए, आप को कष्ट हुआ होगा, तो बोर्ड पर लिखा शब्द आपके लिए है, जरुर बताये,
जैसे ही हमें पता चला कि मेरे अलावा, बाकि दोनों बाइक अमृतसर की ओर चली गयी, जानी भी थी, क्योंकि पठानकोट में मार्ग पर कोई बोर्ड नहीं था, जिससे ये पता चल सकता हो कि जालंधर किधर व अमृतसर किधर है, हमने पठानकोट पार करने के बाद एक पेट्रौल पम्प से बाइक की टंकी फ़ुल करायी तथा कुछ आगे जाकर अपने साथियों का इन्तजार करने लगे। जब हमें आधा घंटा हो गया तो, खोपडी खुजाने लगी कि अब तक आये क्यों नहीं, एक बार फ़िर फ़ोन मिलाया व पूछा कि अब कहाँ तक आ गये हो, उनका जवाब था कि हम पठानकोट ना आकर सीधा जालंधर जा रहे है, आप भी वहीं पहुँचों, हमें खूब गुस्सा आया क्योंकि उन्होंने हमारा आधा घंटा खराब जो करा दिया था। अब हम उनसे आधा घंटा पीछे हो गये थे, कहाँ तो उनसे चालीस किलोमीटर आगे थे।
इस फ़ोटो से आप दिल्ली से जालंधर तक का मैप देख सकते है, वैसे ये अटारी तक का है। (मेरा नहीं है)
ये वाला दिल्ली से श्रीनगर तक के कस्बे व दूरी बता रहा है(मेरा नहीं है)
हम काफ़ी तेजी से जालंधर की ओर आये। दोपहर का समय था, गर्मी बहुत लग रही थी, हाँ यहाँ मार्ग में एक जगह नीबू की शिकंजी की ठेली लगी हुई थी, उस पर दो-दो गिलास शिकंजी के पेल दिये, जिससे गर्मी से कुछ तसल्ली मिली। दो घंटे के बाद हम जालंधर के टी पवाइंट पर थे। यहाँ से एक मार्ग अमृतसर व दूसरा लुधियाना, अम्बाला, की ओर चला जाता है। हमने यहाँ आकर फ़िर फ़ोन किया तो पता चला कि ये लोग बीस-पच्चीस किलोमीटर आगे चल रहे है, अब तय हुआ कि अम्बाला में मिलेंगे, चलते रहो। अपनी-अपनी रफ़तार से जो अधिकतम पैसंठ-सत्तर के आस-पास रही होगी। धीरे-धीरे हम लुधियाना भी बिना रुके पार कर गये। इस शहर में अब भीड-भाड काफ़ी ज्यादा हो गयी है। यहाँ ये बताना अच्छा रहेगा कि मार्ग जम्मू से दिल्ली तक ही जोरदार है, चौडा इतना कि एक साथ पाँच-पाँच बस भगा लो। अम्बाला के पास आते-आते अंधेरा होने लगा था। यहाँ हमें पुल पार करने पर प्यारे दोस्त संतोष तिडके व गजानंद उर्फ़ ढिल्लू जी हमारा इंतजार करते मिले।
श्रीनगर से लेह तक के कस्बे व दूरी बता रहा है,(मेरा चित्र नहीं है)
अम्बाला में एक अन्य बाइक भी हमारे साथ ही 50-55 की रफ़्तार से चल रही थी, यहाँ आवारा जानवर सड़क पर डिवाईडर के साथ ही बैठे हुए थे, जिससे साथ चल रहा बाइक वाला एक गाय के मुँह से टकरा गया था। इस टक्कर से गाय व बाइकर दोनों लहुलुहान हो गये थे। हमने अपनी बाइक रोकी उस युवक की हालत बेहद खराब थी, वो वही अम्बाला का ही रहने वाला था, उसने हेलमेट भी नहीं पहना था, उसे कुछ अन्य लोगों की मदद से उठाकर एक किनारे किया, तथा एक युवक ने पुलिस को फ़ोन किया। इसके बाद हम चारों आगे चल दिये, कुछ दूर आगे जाने पर एक पुलिस की गाडी भी खडी थी उन्हे उस घटना के बारे में बताया वो तुरन्त उस दिशा में चले गये थे। ये घटना देख हमारी हालत भी बुरी हो गयी थी, जिससे रात में बाइक चलाने का मन नहीं कर रहा था। घर अभी दो सौ किमी दूर था। मैं तो रुकने को कह रहा था पर मराठे नहीं माने। अत: मुझे भी उनके साथ चलना पडा। हाँ पल्सर वाले हमारे साथ नहीं थे, वे अपने दोस्त/ रिश्तेदार के पास चंडीगढ चले गये थे। हमें घर जाने की जल्दी थी, इसलिये हम रात में भी चलते रहे। कहीं कोई परेशानी नहीं आयी, जब हम पानीपत आये तो जोरदार बारिश हमारा इंतजार कर रही थी, हमने घर फ़ोन करके खाना बनाने को कह दिया था कि रात बारह बजे तक हम आ जायेंगे। ये भी एक संयोग रहा आते व जाते दोनों बार हम बारिश में भीग गये। हमने पूरा पानीपत व बीस-पच्चीस किलोमीटर आगे तक जोरदार बारिश में ही यात्रा जारी रखी। मार्ग में गर्मी लग रही थी, बारिश में भीगने से गर्मी भाग गयी थी, रात के ठीक एक बजे हम अपने घर पर मौजूद थे। मेरी माता जी, पत्नी, व दोनों बच्चे हमारा इंतजार कर रहे थे। हमारे चेहरे पर एक विजेता की खुशी थी। आखिर ऐसे कितने सनकी, पागल, दीवाने, हिम्मती, मतवाले, होते होंगे जो ऐसी यात्रा कर पाते होंगे? मुझे उम्मीद है कि ये लेख देख कर और दीवाने ऐसी यात्रा पर जाना चाहेंगे, उन सबको मेरी शुभकामनाएँ। ये यात्रा यहीं समाप्त होती है।
इस यात्रा में मेरा साथ देने के लिये, मेरे पास बोर्ड पर लिखा, एकमात्र शब्द है। आप सबके लिए।
दिल्ली(DELHI), से सोनीपत(SONIPAT), पानीपत(PANIPAT), कुरुक्षेत्र(KURUKSHETRA), अम्बाला(AMABALA), चडीगढ(CHANDIGARH), रोपड(ROPAR), बिलासपुर(BILASPUR), मंडी(MANDI), पण्डोह(PANDOH DAM) बांध, हणोगी माता मन्दिर(HANOGI MATA), कुल्लू(KULLU), मणिकर्ण(MANIKARAN), मनाली(MANALI), रोहतांग जोत दर्रा(ROHTANG PASS), पास टांडी(TANDI), कैलोंग(KEYLONG), बारालाचा दर्रा(BARALACHA LA PASS), सरचू(SARCHU), गाटा लूप(GATA LOOP), पांग(PANG), तंगलंगला दर्रा(TANGLANG LA PASS), उपशी(UPASI), कारु(KARU) चांग ला(CHANG LA), पैगोंग सो(PANGONG LAKE), झील लेह(LEH), खर्दूंगला पास(KHARDUNGLA PASS), सियाचीन ग्लेशियर(SIACHEN GLACIER), पत्थर साहिब गुरुद्धारा(PATHAR SAHIB), फ़ोतूला टॉप(FOTULA TOP), जलेबी बैंड कारगिल(KARGIL) की लडाई का यादगार स्मारक स्थल, द्रास(DRASS), कस्बा जोजिला दर्रा(JOJILA PASS), बाल्टाल(BALTAL), श्री अमरनाथ यात्रा(AMARNATH YATRA), श्रीनगर(SRINAGAR), शहर अंनतनाग(ANANTNAG), जवाहर सुरंग(JAWAHAR TUNNEL), बटोट(BATOT), पटनी टॉप(PATNI TOP), उधमपुर(UDHAMPUR), कटरा(KATRA), जम्मू(JAMMU), पठानकोट(PATHANKOT), जालंधर(JALANDHAR), लुधियाना(LUDHIANA), खन्ना(KHANNA), अम्बाला पानीपत होते हुए हमारी यात्रा रही थी।
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ये यात्रा यहीं समाप्त होती है आगे इसी पोस्ट में इस यात्रा के बारे में कैसे जाना, कहाँ रहना, कितना खर्चा, क्या परेशानी, क्या ले कर जाना है आदि-आदि सब कुछ बताया जा रहा है। जिससे इस यात्रा पर जाने के इच्छुक दीवानों को फ़ायदा हो।
य़ात्रा की तैयारी के लिये कुछ खास नहीं करना पडता है। सबसे पहले आपको आपको अपना वाहन तय करना है, कि कैसे, किस वाहन से जाना है। प्रत्येक वाहन के अपने-अपने फ़ायदे व नुकसान होते है, हर इंसान की पसंद अलग-अलग होती है, मेरी राय से तो सबसे अच्छा वाहन रेल है, लेकिन वो हर जगह उपलब्ध नहीं है, खासकर पहाडों में। रही बात आपको कोई जगह देखनी है तो सबसे अच्छा वाहन बाइक ही है जिससे हम उस जगह व मार्ग का अवलोकन अपनी मर्जी से कर सकते है, जब जहाँ मन करा, वही रोक लो, देखो व आगे बढो। जब बात कम इंसान व समय बचाने की आती है तो सबसे बढिया है बाइक जिसे आप जब चाहे जहाँ चाहे ले जा सकते है, बाइक पर अकेले या दो जने जैसे भी आप का मन करे, वैसे जा सकते है। अगर सामान ज्यादा हो तो बाइक पर अकेले जाना ही ठीक रहता है, दो सवारी होने पर खासकर खराब मार्ग पर थोडी समस्या तो आती ही है। लेह जैसे दुर्गम स्थानों पर जाने के लिये 125 सी.सी से कम की बाइक से बहुत परेशानी आती है, अत: बाइक थोडी जानदार या फ़िर उस पर अकेले सवार हो तो बेचारी बाइक झेल सकती है अन्यथा नहीं, बाइक कार में तुलना करनी बेकार है, कार में आराम व बाइक से रोमाँच का मुकाबला कभी नहीं कर सकती है, सबसे बडी बात जहाँ मेरे जैसे सिरफ़िरे बाइक ले जा सकते है, कार वाले उस रास्ते पर जाने की भी नहीं सोच सकते है। दिल्ली व आसपास के लोग तो सीधे बाइक पर लेह व ऐसी यात्रा की ओर जा सकते है, लेकिन दूर-दराज मध्य भारत व दक्षिण भारत से आने वालों को जम्मू, पठानकोट या चंडीगढ तक रेल से आकर इन जगहों से अपनी "बाइक यात्रा" की शुरुआत कर सकते है। (हमारे जांबाज़ मराठा वीर साथी तो हर बार नान्देड से ही बाइक चला कर दिल्ली आते है। फ़िर यहाँ से सब साथ जाते है।) एक बात गांठ बांध ले कि आप प्रत्येक दिन का सफ़र सुबह जल्दी मुँह अंधेरे शुरु करे व शाम को जल्दी आराम करे।
सामान- बाइक व इंसान के लिये एक प्लग, एक चैन साकेट, व हो सके तो पेंचर लगाने का सामान जरुर रख ले, नहीं तो दो टयूब अपने बैग में जरुर रख ले, क्या पता कब जरुरत पड जाये। बाइक के टायर, चैन का सैट, नये हो, ज्यादा पुराने ना हो, बाइक की सर्विस करा ले, व किसी भी मार्ग से जाये, लेह जाकर अपनी बाइक को जरुर चैक करे। अपने साथ कपडे एक जोडी पहनने के बाद सिर्फ़ दो जोडी से ज्यादा मत ले जाये, जुराब तीन जोडी, बाकि जरुरी सामान जैसे दांत साफ़ करने का, नहाने का, जरुर साथ रखे, हां एक गर्म हल्का कम्बल/चद्धर ओढने के लिये, एक गर्म बनियान, एक हल्की जैकेट हवा रोकने वाली, दस्ताने, गर्म टोपी/मफ़लर के बिना भूल कर भी मत जाये, चाहे दिल्ली में लू ही क्यों न चल रही हो, कोई भी मौसम हो। हाँ कुछ जरुरी दवाई जरुर रख ले व बैग हो सके तो पिट्ठू ले जाना ज्यादा बेहतर रहता है।
खाने पीने की पूरे मार्ग में कोई समस्या नहीं है। प्रत्येक 40-50 किमी बाद खाने का मिल जाता है, खासतौर पर मांसाहारी लोगों की मौज है। हम जैसे शाकाहारी मैगी/चाऊमीन, रोटी चावल से काम चला लेते है। एक समय का साधा खाना चालीस-पचास रुपये से शुरु हो जाता है। अब जितने चोंचले करोगे उतना मंहगा होता जायेगा।
रात में ठहरने की कोई खास समस्या नहीं है। मार्ग में जम्मू शहर, कटरा शहर, उधमपुर शहर, पटनी टाप सीमित संख्या में, रामबन, अन्नतनाग, श्रीनगर डलझील में, सोनमर्ग होटल में, बाल्टाल टैंट में, द्रास होटल में, कारगिल गुरुद्दारे/होटल में, पत्थर साहिब गुरुदारे में, लेह सिटी मंहगे होटल में, उपशी सस्ते होटल में, पांग टैंट में, सरचू टैंट में, भरतपुर सिटी टैंट में (मत रुकना आक्सीजन की कमी सतायेगी), दारचा पुल के पास दुकानों व पीछे घरों में, कैलोंग, मनाली, कुल्लू, हणोगी माता का मन्दिर होटल जैसी सुविधा वाली धर्मशाला में, मंडी होटल में, बस इतने नाम बहुत है। इनमें से ज्यादातर जगह मात्र एक व्यक्ति सौ रुपये में बात बन जाती है, एक-दो जगह पर दौ सौ का खर्च भी आ जाता है। आप चाहे तो एक दिन के हजार से चार-चार हजार वाले कमरे व होटल भी मिल जायेंगे। जैसा गुड डालोगे वैसा मीठा मिलेगा। मनाली से जाते हुए, ये लेख आपका पूरा साथ निभायेगा। जम्मू से जा रहे हो तो, माता के दर्शन कर अगली सुबह हैली पैड के बराबर वाले मार्ग से उधमपुर आ जाये, फ़िर आराम से शाम तक श्रीनगर आ सकते है, श्रीनगर शहर में कुछ नहीं रखा है जो है, मशहूर निशात बाग व शालीमार बाग भी डलझील के किनारे ही है, यहाँ से गुलमर्ग देख कर शाम तक सोनमर्ग या द्रास आसानी से जाया जा सकता है, इसके बाद कारगिल युद्ध संग्रहालय देखते हुए, कारगिल शहर गुरुद्धारे होते/रुकते हुए, लेह से 26 किमी पहले पत्थर साहिब गुरुद्धारे आ जाये, अगली सुबह दस बजे तक लेह आकर डी.सी दफ़्तर से खर्दूगंला जाने की लिखित आज्ञा ले घूम कर आये, साथ ही अगले दिन के लिये पैन्गोग लेक की भी आज्ञा भी उसी समय ले ले। पैगोग से आकर रात में उपशी रुके, व मनाली की ओर चले आये, बस 3-4 जगह बर्फ़बारी मिलेगी, इस सफ़र में दुनिया के तीन सबसे ऊंचे दर्रे पार करने पडते है, पूरे पांच सौ किलोमीटर का गंजा पहाडी रेगिस्तान(मगर हसीन भी) पार करना होता है, मनाली से जाते समय दारचा के बाद, व आते समय सरचू के बाद बारालाचा दर्रा तो बर्फ़ का समुद्र ही है, बस जबर्दस्त ठण्ड से जूझना पडेगा, इससे ज्यादा कोई खास परेशानी नहीं आयेगी। अरे जब हमारे जैसे का कुछ नहीं बिगडा तो फ़िर किसका बिगडेगा। बर्फ़बारी होते समय ज्यादा सावधानी से बाइक चलानी पडेगी। जून के महीने को छोड कर ज्यादा महंगाई भी नहीं मिलती है। सुरक्षित रात्री-विश्राम के लिये जरुर सावधान रहे, वैसे वहाँ के लोग धोखेबाज कम ही है। फ़िर भी जहाँ रुके फ़ोन से अपने घर जरुर सूचित कर दे व आगे अगले दिन का कार्यक्रम भी बताना ना भूले कि कल कहाँ तक जाना है? सरकारी विभाग के विश्राम गृह में आसानी से जगह मिल जाती है।
जाने का सही समय, अपनी नजर में तो हमेशा सारा समय ही सही होता है। जब जी करा, उधर मुहं/मुंडी/बाइक उठा कर चल दो, फ़िर भी इस जगह जाने के लिये दर्रों के खुलने पर निर्भर करना पडता है। जो आमतौर पर मई के आखिरी सप्ताह में जाकर ही खुल पाते है। बरसात में ऐसी जगह जाने से बचना चाहिए, और दर्रों के बंद होने का समय अक्टूबर का आखिरी सप्ताह है। अत: ये कहना ठीक है कि जून से लेकर मध्य अक्टूबर तक सबसे ज्यादा सही समय है।
पैट्रोल का खर्च तो वाहन के अनुसार आयेगा। दिल्ली से मनाली, लेह खर्दूंगला, पैगोंग लेक, अमरनाथ, वैष्णो माता सहित कुल दूरी तीन हजार किलोमीटर के आसपास है। बाइक का खर्च आप अपनी बाइक के औसत से हिसाब लगा लेना, ये ध्यान रखना पहाड में औसत पाँच किलोमीटर कम हो जाता है। फ़िर भी गुणा भाग कर के चलना। कार वाले तो बाइक से तीन गुणा मान कर चले, मनाली से जा रहे हो तो टांडी से अपनी टंकी फ़ुल करा ले क्योंकि इसके बाद लेह सिटी में (350 किलोमीटर दूर) ही पैट्रोल मिलेगा, बुलेट पर जा रहे हो तो एक दस लीटर या पाँच-पाँच लीटर की दो कैनी साथ भर कर रख ले। हमारा यात्रा खर्च तो एक बंदे का कुल/मात्र साढे तीन हजार सब कुछ मिलाकर आया था, उन दस-ग्यारह दिनों का कोई ज्यादा नहीं है। सारे चीजे तो मैने छोड ही रखी है, रोटी के सिवाय, अब ज्यादा खर्चा कहाँ से होता?
अब भी कुछ कसर रह गयी हो तो मुझे बता देना, उसे भी बता दिया जायेगा, अब आपको अगले लेख का इंतज़ार करना है।
अगला लेख इलाहाबाद से बनारस पैदल यात्रा होगी, जो हम तीन जबरदस्त, सिरफ़िरे, बंदों ( संदीप पवाँर, प्रेम सिंह व नरेश ) ने 26 फ़रवरी से शुरु कर 1 मार्च 2011 को पूरी की थी, साथ ही सोमनाथ की यात्रा भी होगी।
लेह वाली इस बाइक यात्रा के जिस लेख को पढ़ना चाहते है नीचे उसी लिंक पर क्लिक करे।
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आखिर तुम घर आ ही गये, ये भी बता देना की हम दो दिन बाद नान्देड पहुंचे थे, और अब भी तैयार है दुबारा इस यात्रा पर जाने के लिए बोला कब चलोगे,
जवाब देंहटाएंsandeep ji
जवाब देंहटाएंaapteeno mitro ki yatra mata rani ke aashirvad se shubh -shub rahi .
waqai aapki yatra ek sansmaran ki tarah bahut hi achhi lagi .are bhai!agar yatra me rukavate rahsy ,romanch aur himmt se sab paar kar
lene ka jajba na ho to fir ytara kaisi.aur aap sakushal apne mitro sahit chere par madhur muskaan liye loute to ghar walo ko bhi utni hi hui hogi jaise aap ko ek vijete ki tarah----;)
jai mata di
poonam
Apki is yatra se aur naujavano ko prerna milegi aisi asha hai aur maza apne full liya aesa mera vishvas hai !!
जवाब देंहटाएंIs prakar ki yatraon se mera purana naata hai kyonki mere khayaal se apne desh ko hi na dekha to Bharat bhumi pe janam hi kyon liya.
Jo log samarth hote hue bhi Sindhu nadi ka darshan nahin karte ve abhaage hain.
Bhagwan ne chaaha to fir Himalay ke darshan honge, jai shiv shankar !
जाट भाई, आपणे तो कमाल कर दी और जानकारी भी अच्छी दे दी. इस मार्ग पर यात्रा करने वालों के लिए आपने लाभकारी बातें बता दी हैं ताकि उनको वे कष्ट न आएँ जो आपने महसूस किए. यह आपने सही कहा कि पठानकोट से जालंधर जाने वाले लोग अमृतसर की ओर निकल जाते हैं क्योंकि वहाँ समुचित बोर्ड नहीं लगा है या यह बाबे की फुल कृपा है कि वह अमृतसर की ओर खींचता है.
जवाब देंहटाएंबहरहाल आपका यह यात्रा वर्णन भी खूब रहा और पढ़ कर आनंद आया. आपकी आगामी यात्राओं के संस्मरणों की प्रतीक्षा रहेगी.
आपका पुनः आभार.
जवाब देंहटाएंबढिया जानकारी दी है आपने संदीप भाई।
जवाब देंहटाएंयह रुट ऐसा है कि इसका रोमांच ताजिन्दगी बना रहेगा।
आपके द्वारा जुटाई गयी जानकारी और भी यात्रियों के काम आयेगी।
अगर किसी का सिर फ़िर जाए तो:)
राम राम
कमाल के जीवट हो भाई!
जवाब देंहटाएंऐसी दीवानगी न कभी देखी न सुनी। आपने तो न सिर्फ़ दिखाया बल्कि सुनाया भी। एक दम चलचित्र सा वर्णन, लगा एक एक पल आपके साथ हूं, बस मुझे तो बाइक पर बहुत डर लगता है।
बहुत अच्छे यात्रा गाइड हो आप!
आपके साथ और जगह घूमने का लोभ संवरन नहीं कर पा रहा हूं।
आपने लेख के शुरू में जो चेतावनी जारी की है,वह आज के रफ़्तार-पसंद युवाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.
जवाब देंहटाएंबहुत विस्तार में सचित्र ,पूरा ठोंक-बजा के आपने यात्रा का विवरण दिया है.घुमंतुओं के लिए बहुत मुफीद !
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जवाब देंहटाएंसंदीप जी ,
बहुत ही जबरदस्त रिपोर्टिंग ! आपके साथ हम भी मुफ्त में इस शानदार यात्रा का आनंद ले रहे हैं। आपके आभारी हैं।
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आपने इतनी सुन्दरता से तस्वीरें, मेप और बेनर के साथ यात्रा प्रस्तुत किया है जो प्रशंग्सनीय है! ऐसा लगा जैसे मैं दुबारा लदाख जाकर आयी आपके पोस्ट के माध्यम से! बहुत खूबसूरती से आपने विस्तारित रूप से यात्रा का वर्णन किया है और ये समझ में आया की आपका यात्रा शानदार रहा! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंये अंदाज बहुत अच्छा लगा! जानकारी और भी अछि
जवाब देंहटाएंआप भी सादर आमंत्रित हैं
एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का परिचय
ये मेरी पहली पोस्ट है
उम्मीद है पसंद आयेंगी
चित्र और भी जोड़े जा सकते थे. सुंदर विवरण.
जवाब देंहटाएंशुरु से आपके साथ चल रहे है आगे भी चलेंगे लगे रहो ---------
जवाब देंहटाएंSudhir Pandey
9926124801
भाई साहब ज़िंदा रहने के लिए कोई न कोई सनक (ओबसेशन )ज़रूरी है वरना सांस लेना भी मुश्किल काम है ।
जवाब देंहटाएंगिरतें हैं सहसवार ही मैदानें जंग में वो तिफ़्ल क्या, जो रेंग के घुटनों के बल चले .
सहसवार -घुड़सवार .
तिफ़्ल -जीवात्मा .
संदीप जी, सबसे पहले तो मै आपके साहस (और अगर बुरा न मानो तो दुस्साहस) को नमन करता हूँ. दुस्साहस इसलिए कि जो दर्रे, घाटियाँ, चट्टानें, बरसाती नाले सीधे चुनौती देते हैं आप उनसे टक्कर लेते हुए आगे बढ़ते हैं. इतनी सहजता से कि आपके लेख पढ़कर तो यही लग रहा था कि आप रोहतांग-लेह या लेह-श्रीनगर मार्ग पर नहीं बल्कि कनाट प्लेस की सड़क पर ड्राइव करते हुए यात्रा कर आये हों. न कोई शिकन न कोई भय. कभी स्वामी विवेकानंद की biography पढ़ते हुए जो रोमांच हुआ था, जो लालसा जगी थी वही भाव आपके लेखों को पढ़ कर आता है. आपका यात्रा वर्णन भी उतना ही उत्साहवर्धक है जितना आपका भ्रमण. यह सम्पूर्ण लेख पूरे दस्तावेज हैं.
जवाब देंहटाएंऔर बहुत कुछ जानने के लिए आपसे शीघ्र ही सीधा संपर्क करना चाहूँगा.
मै तो उस क्षेत्र में नहीं गया हूँ..बस अमृतसर ही लास्ट था ! पढ़ने के बाद नयी जान कारी प्राप्त हुयी ! हम दूर वालो को बाईक से सफ़र श्रेयस्कर नहीं होगा १ कार या ट्रेन ही बेहतर है ! बहुत सुन्दर जानकारी ! अगले पोस्ट का इंतज़ार रहेगा !
जवाब देंहटाएंभाई इतनी हिम्मत अब इस उम्र मे हम मे तो अब भी हे, ओर घुमने कि तमन्ना भी पुरी करते हे, रिस्क भी पुरा ऊठाते हे... लेकिन अब भारत मे यह सब करने म,ए डर लगता हे, एक नही कई कारण हे, बाकी मै आप की हिम्मत की दाद देता हुं, सिर्फ़ एक बाईक से इतना लम्बा सफ़र, ओर वो भी बिना सहुलियत के, लेकिन जब भी जाये तो पंचर लगाने का समान जरुर साथ मे होना चाहिये, ओर हवा भरने का एक पम्प या बेटरी से हवा भरने वाला पम्प, साथ मे कुछ जरुरी दवाये भी, चलिये आप की अगली यात्रा का भी मजा लेगे, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजाट देवता ..
जवाब देंहटाएंगिनीज बुक वालों से संपर्क करें क्या पता ये रिकॉर्ड आप के नाम हो जाए..
जय हो जाट देवता यात्रा जरी रहे ..हम भी आनंद में गोते लगते रहें.
जय सोमनाथ
यार जाट देवता , भाई कमाल करते हो । बाल बच्चेदार होकर इतना एडवेंचर करते रहते हो । शौक तो हमें भी बहुत रहा । रोहतांग तक अपनी कार से गए भी । लेकिन अब तो स्टीम सी निकल गई है । दुनियादारी में ऐसे फंसे कि सब छूट गया ।
जवाब देंहटाएंवैसे मेरा बड़ा मन है कि एक चक्कर मनाली से चाको टाबो होते हुए शिमला तक का टूर किया जाए ।
बहुत अच्छा सफ़र रहा है| सफ़र आप लोगों ने किया और उसके मजे हमने घर बैठे लिए| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंरोचक लेख है जी.. भ्रमण का पूरा आनंद उठाया हमने भी और अब इच्छा हो रही है कि हम भी यूँ खानाबदोश की तरह निकल जाएं ऐसी यात्रा पर... :)
जवाब देंहटाएंसुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार
आपने यात्रा के दौरान जो अनुभव किये उसके आधार जो जानकारी दी है बहुत से लोगों के लिए उपयोगी रहेगी.... सब विस्तार से समझा दिया और कुछ सुंदर सन्देश भी दे दिए..... शुभकामनायें आपकी आगे की यात्राओं के लिए....
जवाब देंहटाएं--------
डॉ मोनिका शर्मा
यार त्वाडी पोस्ट का बड़ी बेसब्री नाल इंतज़ार करते हन असी...बहुत ही बढ़िया और विस्तृत जानकारी...मनाली-लेह-श्रीनगर तो एक ड्रीम रूट है...बाकि सब बोनस...आपकी यात्रा संस्मरण का इंतज़ार रहेगा...
जवाब देंहटाएंभाई मेरे, इतनी मस्त और जोरदार पोस्ट लिखकर आखिर में टिप्पणी के लिये हाथ फैला लेना, यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं है। टिप्पणियों की संख्या पोस्ट की क्वालिटी और पोस्ट लिखने वाले की लोकप्रियता पर निर्भर करती है। अब आप खुद ही अंदाजा लगा लो कि आपको कितनी टिप्पणियां मिलेंगी।
जवाब देंहटाएंजब भी कोई टिप्पणी के लिये किसी के सामने हाथ फैलाता है तो भाई, मेरा जाट खून खदकने लगता है। रोजाना मेरा मेलबॉक्स ऐसी ‘भीखों’ से भरा रहता है। और मैं उन लोगों को कभी भी टिप्पणी नहीं करता। वो तो आप अपने हैं, इसलिये आपको यह सलाह दे रहा हूं, शायद आपको बुरी भी लगे।
मेरी इस सलाह को माने या ना मानें, आपकी मर्जी है। लेकिन एक काम जरूर कर दें। इसे पढकर सबसे पहले इस टिप्पणी को डिलीट कर दें। नहीं तो मेरे बाद आने वाली टिप्पणियां मेरी इस टिप्पणी से प्रेरित होंगी। मैं नहीं चाहता कि मेरी इस टिप्पणी की वजह से अच्छी-खासी पोस्ट का मामला खराब हो। एक अच्छी सी टिप्पणी मैं आपको बाद में भेज दूंगा।
धन्यवाद।
मित्र बड़े भाग्यशाली हो, मेरी पत्नी तो मुझे कहीं जाने ही नहीं देती बाईक पर.... :(
जवाब देंहटाएंजबकि बाईक पर चलने का आनन्द ही कुछ और होता है..
Abhee to maine aapki yatra ka antim bhag hee padha hai par kafi jandar yatra warnan hai sath me aapne ant men jo tips diye hain we aap jaise any nau jawanon ke liye khase madadgar sabit honge. Hum bhee kafee ghhumakkad hain, par umar dar hain.
जवाब देंहटाएंmere blog par aakar tippani karne ke liye dhnyawad.
housale buland rakhiye aise hee aur dheere dheere poora bharat bhraman kare aur hume bhee apne anubhav batae .
जवाब देंहटाएंshubhkamnae.
majedaar
जवाब देंहटाएंभाई, इतने दिन की इस साहसी यात्रा में कुल तीन हजार का खर्चा!
जवाब देंहटाएंइतना तो मैंने सोचा भी नहीं था।
बहुत खूब।
beautiful pics
जवाब देंहटाएंsomeone is waiting at home
पूरी यात्रा का रोमांच और फिर काम की जानकारी-पढ़कर ही धन्य हो गये. जाना तो खैर दूर की बात है, लेकिन आनन्द तो उठा ही लिया भरपूर.
जवाब देंहटाएंयात्रा का विवरण बहुत शानदार था . लेख पढकर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद .
his is definitely exciting road trip.
जवाब देंहटाएंआज के आखिरी वाली जानकारी बहुत अच्छी लगी जाट भाई,
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई आपको,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आप बहुत साहसी हैं संदीप जी!
जवाब देंहटाएंयात्रा संस्मरण बहुत बढ़िया है आपका!
प्रयाग राज से वाराणसी तक की पैदल यात्रा वृत्तांत प्रतीक्षित है .अग्रिम बधाई हौसले के लिए .
जवाब देंहटाएंबढ़िया तथा उपयोगी विवरण दिया है ....शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबाईक पर इतना लंबा सफर!..क्या बात है!
जवाब देंहटाएं@ पहले दिन सवा चार सौ किलोमीटर बाइक चलाने के बाद भी, रात में माता के दर्शन किये,
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धक यात्रा-वर्णन |
ये भी एक संयोग रहा आते व जाते दोनों बार हम बारिश में भीग गये|
संदीप जी आपकी यात्रा-कथाएं पढना एक अद्भुत अनुभव रहा । छायाचित्रों द्वारा हिमालय के नयनाभिराम दृश्यों का आनन्द भी मिला इसके लिये तथा आपके साहसी अभियान के लिये आपका शत्-शत् अभिनन्दन । आगे भी यह शफलता के साथ सम्पन्न होता रहे ।
जवाब देंहटाएंआते जाते दोनों समय बारिश ने अपनी शुभकामनाएं दे दीं आपको. इस रोमांचक यात्रा की पूर्णता के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंआपका ये ब्लॉग एक गाइड के सामान है.
जवाब देंहटाएंशुभ यात्रा !जाँ बाज़ी सलामत रहे .शुक्रिया मिलनसारी का .
जवाब देंहटाएंजितनी रोमांचक यात्रा कर लेते हैं,उतना ही रोमांच अपनी लेखनी में भी भर लेते हैं.अपने अनुभवों के अनुसार स्पेयर पार्ट्स रखना,पेट्रोल के एवरेज का हिसाब बताना,दूरियों का उल्लेख, भ्रमण के लिए उत्सुक आप जैसे अन्य जांबाज पाठकों के लिए बहुत उपयोगी रहेगा.विभिन्न ब्लाग्स में भ्रमण के लिए भी समय निकाल लेते हैं.हम तो आपको जीवट-यायावर कहेंगे.
जवाब देंहटाएंकमाल की साहसपूर्ण यात्रा...बहुत रोचक रिपोर्टिंग...
जवाब देंहटाएंआपके दिलचस्प यात्रा-विवरण ने यात्रा-अनुभव से इस तरह जोड़ा गोया मैंने स्वयं यात्रा की हो.
जवाब देंहटाएंसचमुच यात्राएं बहुत कुछ सिखाती हैं.
आपकी भावी यात्राओं के लिए हार्दिक शुभकामनाएं...
पूरी यात्रा का रोमांच और फिर काम की जानकारी,के लिए आभार
जवाब देंहटाएंऔर भैया ! चाँद तारों.. अदृश्य लोकों में घूमना
जवाब देंहटाएंचाहो । वो भी बिना बाइक । मुफ़्त में । फ़ोकट में
तब मेरे पास आना । वहाँ की बङी बङी हस्तियों
से मुलाकात भी करना ।
कौन किसी के घर जाता है ,
जवाब देंहटाएंये प्यार ही है ,जो खींच लाता है .
रोचक जानकारी ..... हमारी तो यात्रा बैठे बिठाये हो गयी
जवाब देंहटाएंHappy Environmental Day !
sandeep ji aapne toh accha safar karaya mere blog par bhi aaye mere blog par aane ke liye ye rahi link-www.samratbundelkhand.blogspot.com
जवाब देंहटाएंLovely write up , loved those signboards
जवाब देंहटाएंआनंददायक रहा आपका यात्रा वृत्तांत और मेरे ब्लाग पर शुभकामनाएं तथा टिप्पणियाँ देने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंaaj phli baar apke blog pr aaya hun , achha laga, kafi kuchh janne ko mila ,
जवाब देंहटाएंab aana jana laga rahega,
abhaar uprokt post hetu....
आपके साथ हम भी इस यात्रा में शामिल हैं मजा आरहा है न….
जवाब देंहटाएंHi Sandeepji
जवाब देंहटाएंVery interesting, informative, long journey in bike
excellent write ups and photos
thanks for sharing
भाई संदीप, मजा आ गया सारी लेखमाला पढ़कर।
जवाब देंहटाएंआपको और आपके सभी साथियों को बधाई।
विशेष मलिक हँसता क्यों नहीं है यार? सबसे युवा लग रहा है, युवा तो चुलबुले होते हैं, इसलिये ऐसा कहा।
ओवर आल में मस्त यात्रा पढ़वाने के लिये शुक्रिया।
जाट देवता जी आप के दर्शन पहले हो जाते तो लेह तक अपन भी चलते मोटर साईकिल से!! वैसे एक यात्रा आप के साथ भी "ड्यू" है
जवाब देंहटाएंअरे भैया ,ये इतनी आग किस लिए ???
जवाब देंहटाएंहम तो वैसे ही जले जा रहे हैं तुम्हे इंतनी सुंदर जगहों पर यात्रा करके देखकर .....
bhai bahot maja aaya agli bar kahi jao to muje bhi sath le jana me bhi bike pe gumneka shokh rakhta hu par mere dost sab darpok hai so pls call next tour. call me on 09825011798 & 99o9957549.
जवाब देंहटाएंbhai bahot maja aaya aap sabhi dost bahot himmat wale ho. agli bar hame yad karna tour pe jane se pahele bike pe. mere sare dost sale darpok hai. me nahi darta. pls muje call karna. 09825011798 @ 09909957549. me mitesh panchal from gujarat.
जवाब देंहटाएंJay ho jaat devtaa ki bhai aap ke yatra me majaa aa gaya uupar wale ka ssth rahega to main bhee kabhi is yatraa ka aanand prapt karoonga, jaihind
जवाब देंहटाएंSalaam India
जवाब देंहटाएंHimte Marda Madade Khuda
जवाब देंहटाएंBake hi Aaapke Housle ko Salaam hai.
Mai bhi Jaaunga es track pe.
bhai jat !! maza aagya ..
जवाब देंहटाएंji to mera bhi kar rya se jan ka ..
par kimme to kaam ka takaja..
tham service wale sahi mauj kar rahe so.
apne to yaar bhi isse hi hai.. salo ka zi na karda kadde bhi jan ka .. aur bike pe to kade 20km bhi na jate.
sach main bhai aisa lagya jaise main bhi aapke saath himalya ghum aaya.
bhaut bhaut dhanyawad . blog likhne ke liye . aur lekh ka intzar rehega bhai .. ram ram..
जाट देवता जी क्या आप बाइक से नेपाल घुमानेकी योजना बनाकर मुझे उसमे शामिल कर सकते है?
जवाब देंहटाएंसचिन ग्वाडे जी नेपाल बाइक यात्रा में आप भी अपनी बाइक सहित शामिल हो सकते है।
हटाएंधन्यवाद . संदीप जी .... आप का जवाब पा कर मै धन्य हो गया ... बहोत ख़ुशी हूही, ये जानकर की मै नेपाल की यात्रा में अपनी बाइक लेकर शामिल हो सकता हु . बस अब ये बताईये की आप कब लेकर जाते है मुझे ... बड़ी बेसब्री से इंतजार रहेगा आप की इस यात्रा का... आप के जवाब का इंतजार रहेगा..
हटाएंवास्तव में हिम्मत का ही काम था यह। साधारण इंसान के बस की बात नहीं है यह की अमरनाथ और वैष्णो देवी यात्रा ढाई दिन में कर ले और वो भी लगातार मोटर साइकिल यात्रा करते रहने के साथ साथ। मैंने तो एक ही सिटिंग में सारी यात्रा पूरी की ….अब जम कर सोऊंगा।
जवाब देंहटाएंVery niceee...ma b nikal rha hu apne ek fnd k sath ..ladakh..apki post bhut kaam aayegii..sept me first week .sandeep ambala se......2016 sept
जवाब देंहटाएंuske bad main ak yatra leh walisolo ki .aapani pahli yatra ka anubhav kam aaya .aaj puri yatra dilse padhi .yade taja ho gai.
जवाब देंहटाएंjai ho barphani babaki.