लेह बाइक यात्रा-
ट्रक ड्राइवर हमारी ही उम्र का एक मस्त इन्सान रहा। जिस अनाम जगह हम रुके थे, वहाँ से तंगलंग ला (दर्रा) नजर आ रहा था। टैंट वाले ने हमें बताया कि तंगलंग ला ऊंचाई में बारालाचा ला (पहाड़ी लोग दर्रे को ला भी कहते है) से भी ऊंचा है, किन्तु यहाँ बर्फ़ बारालाचा दर्रे के मुकाबले 10% भी नहीं है। ऐसा होने की वजह तंगलंगला दर्रा में चलने वाली तेज हवाये है, जिससे यहाँ बर्फ़ ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाती हैं। हम ऐसी जगह पर थे, जहाँ से हमें 20-25 किलोमीटर तक का मार्ग ऊपर जाता हुआ दिखाई दे रहा था। ट्रक वाले ने भी जमकर ट्रक भगाया, यहाँ से चलते ही जबरदस्त धूल मिली, क्योंकि रास्ते में कार्य चल रहा था। किसी तरह धूल पार की, तो आ गई चढाई, जिस पर आसानी से ट्रक का पीछा नहीं किया जा रहा था। ट्रक लगभग खाली ही था, ट्रक में मात्र दो टन आटा ही था। वो मोडों पर भी स्पीड में मोड रहा था, जिससे हमें डर लग रहा था, कि तभी एक मोड पर चार ट्रक लाइन में मैट्रो की तरह जाते हुए मिले, ये चारों वजन से लदे हुए थे, जिससे इनकी स्पीड भी कम थी। हमारी बाइक तो बराबर में से आगे निकल गयी, पर हमारे साथ वाला ट्रक पीछे रह गया। हमने इन्हें कहा, कि कोई जल्दी नहीं है, आराम से आओ।
सामने ही हम लोग रुके हुए थे,
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ये चढाई ज्यादा खडी नहीं थी, मार्ग काफ़ी घुमा कर बढिया बनाया हुआ है। जब हम तंगलंगला के टॉप पर पहुँचे, तब ही बर्फ़ नजर आयी। मुश्किल से 500 मीटर में ही बर्फ़ थी, टैंट वाले के कहे अनुसार, हवा बडी तेज व ठंडी थी। ये दर्रा सड़क पर ऊंचाई में तीसरे स्थान पर आता है , कुछ दूरी के बाद मस्त चौड़ा रोड आ गया, साथ में ढलान भी, यहाँ किसी को भी फोटो खींचना ध्यान नहीं रहा, क्योंकि सब फ़ासले पर चल रहे थे। अंधेरा होने से पहले उपशी पहुँचने की जल्दी थी। तंगलंग ला टाप से उपशी तक मस्त सडक है, यहाँ से एक नदी सडक के साथ-साथ चलती है, तब नदी का नाम नहीं पता था, उपशी जाकर पता किया तो उत्तर मिला, "सिंधु नदी", बड़ी खुशी हुई सुनकर। इसी नदी के किनारे पर, लेह शहर में, हर साल जून में सिंधु-महोत्सव मनाया जाता है।
अँधेरा होने से ठीक पहले तीनों बाइक उपशी आ गयी थी। यहाँ रात में रुकने का अच्छा प्रबंध है, हमें एक कमरा बिना तलाश किए मिल गया। हुआ य़ू कि, हम बाइक के पास खडे बात कर रहे थे, कि तभी वहाँ काम कर रहे बिहार के दो युवक हमारे हीरो से बोले, आप लेह जा रहे हो, उसने कहा हाँ, लेकिन आज रात यही रुकना है। वे बोले अगर आप को बुरा ना लगे तो, जहाँ हमने कमरा लिया है, वहाँ एक कमरा खाली है। हीरो ने कमरा देखा, भरतपुर के महल से कई गुणा बढिया था। किराया तय हुआ 250 रुपये रोज, छ बिस्तर, छ रजाई, इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं आई। ट्रक वाले यात्री भी एक घंटे की देरी से पहुँच गये। देरी का कारण बताया कि रास्ते में किसी की एक क्वालिस गाडी, जिसमें चार सवारी थी, उपशी से 40 किलोमीटर पहले खराब हो गयी थी। उन्हें भी ट्रक में बैठा लिया गया था। उनसे किराया लिया 200 रुपये प्रति सवारी, हमने किराया पूछा तो तो ट्रक ड्राईवर बोला नहीं भाई जी, "आपको किराये के लिये थोडे ही बैठाया था"। हम फिर भी तीन बंदों के तीन सौ रुपये उसको दे आये।
ढिल्लू महाराज की तबीयत भी ट्रक के अंदर इंजन की गर्मी पा कर सुधर गयी। यहाँ उपशी में मजा आ गया, यहाँ का मौसम गर्म था, ठण्ड छूमंतर हो गयी थी। कल की रात और आज की रात में जमीन आसमान का अंतर था। आज सबने जी-भर, पेट-भर कर खाया। आज अलार्म नहीं लगाया, क्योंकि सुबह उठने की कोई जल्दी नहीं थी। कल का कार्यक्रम लेह से ऊपर खर्दुन्गला टॉप (दुनिया की सबसे ऊंची सडक) का था। जहाँ जाने के लिये लेह के डी.सी. दफ़्तर से सुबह 10 बजे इजाजत मिलती है। सुबह आराम से उठे, आज सुबह उपशी के चौक पर फोटो सैसन का कार्य हुआ। ठीक 8 बजे लेह की ओर धावा बोल दिया। 50 किलोमीटर की दूरी तय करने में मात्र एक घंटा का समय लगा। उपशी से लेह जाते समय, लेह के चौक से उल्टे हाथ की ओर जम्मू तथा सीधे हाथ की ओर दुनिया की सबसे ऊंची सडक व लेह के डी.सी. आफ़िस की ओर मार्ग जाता है। हम डी.सी. आफ़िस पहुँचे, खार्दूगला व पैंन्गोंग लेक जाने की लिखित आज्ञा ली। यहाँ पहचान पत्र की फोटो कापी की भी जरुरत पडती है।
आज्ञा लेते समय कई लोगों ने डराया कि "वहाँ पर आक्सीजन कम है, सर दर्द होगा, उल्टी आ सकती है", सुनकर एक बार तो लगा ढिल्लू के साथ फिर कैसे होगा? पर हम सभी के बुलंद-पहाड जैसे हौसलों के चलते, हम निकल पड़े दुनिया की सबसे ऊँची मंजिल की ओर। डी.सी. आफ़िस से 200 मीटर चलते ही उल्टे हाथ की ओर एक गुमनाम सा मार्ग खर्दुन्गला की ओर जाने के लिये मिला।
अब तक हमने पार किया है, रोहतांग 13050 फुट, बारालाचा ला 16500 फुट, तंगलंग ला 17582 फुट आज बारी है, खर्दूंगला 18380 फुट और कल जायेंगे चांग ला 17586 फुट।
साँप की तरह बलखाती हुई सड़क पर यहाँ से जो चढाई शुरु होती है, वो सीधी 40 किलोमीटर के बाद खर्दुन्गला टॉप (दुनिया की सबसे ऊँची सड़क) पर जाकर समाप्त होती है, पूरे रास्ते जहाँ सुनसान नंगे-गंजे, मटमैले रंग के पहाड़ के सिवाय कुछ भी नहीं था। इसी मार्ग के मध्य में एक आर्मी चेक पोस्ट पर डी.सी. आफ़िस से ली गयी इजाजत की फोटो काफ़ी देना पड़ती है। प्रकृति की लीला भी गजब-अपरम्पार है, जैसे जैसे ऊँचाई बढती जाती है, बर्फ की मात्रा भी बढती जाती है। चारों ओर बर्फ ही बर्फ का खूबसूरत नजारा था ।
हवा इतनी ठंडी थी, कि हाथ-पैर की अंगुलियाँ सुन्न पड़ने लगी थी, दस्ताने तो थे, पर इस ठण्ड में किस काम के, हेलमेट पर भी बर्फ जम चुकी थी, लेकिन सबके मन में बहुत ही जोश था, जैसे एवरेस्ट फतह करने जा रहे हो। हम छ भटकती आत्माएं दुनिया की सबसे ऊँची सडक पर जाये और बर्फ़ ना पडे, ऐसा असंभव कैसे हो सकता था। खर्दुन्गला टॉप अभी 15 किलोमीटर दूर था, कि हमारी प्यारी दोस्त बर्फ़बारी हाजिर हो गयी, धीरे-धीरे हमारा स्वागत करते हुए, हमे डराते हुए, मानो कह रही हो कि भाग जाओ नहीं तो फिर फंस जाओगे। लेकिन हम कहाँ मानने वाले थे, परन्तु संतोष तिडके व ढिल्लू महाराज की बाइक बर्फ़ की पहली फुआर के साथ ही वापस लेह की ओर फ़ुर हो गयी थी। वैसे ये ठीक ही रहा नहीं तो, दुबारा बीमार होने में कितनी देर होती?
आखिरकार, हम जीत ही गये और दुनिया की सबसे ऊंची सडक पर बर्फ को झेलते (15 किलोमीटर तक झेली) हुए पहुँच ही गए। अब ऊपर टॉप पर पहुँचने पर ऐसा लगा जैसे हिमालय की चोटी पर आ गए हों। ठण्ड से हमारे हाथों की अंगुलियाँ जाम हो रही थी, यहाँ हमारे साथ वे दोनों बन्दे नैनीताल वाले जिनका ढक्कन सरचू के पास खो गया था। याद आये, साथ-साथ यहाँ टॉप तक आये। मुश्किल से 15-20 मिनट टाप पर रुके, क्योकि बर्फ तो रुक नहीं रही थी, इसलिए हमने फोटो सैसन किया।
ये मार्ग यहाँ से आगे दुनिया के सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित लड़ाई का मैदान सियाचिन ग्लेसियर, व अति सुन्दर नुब्रा घाटी (यहाँ दो कूबड़ वाला ऊँठ पाया जाता है) की ओर भी चला जाता है नीचे फोटो में दूरी की सारी जानकारी है। 15-20 मिनट जी भर के यादगार खूबसूरत न भुला पाने वाले लम्हें दिल व आँखों में समा कर नीचे लेह उतरने के लिए बाइक की तरफ बढ़ने लगे।
हम सब बर्फ़बारी का स्वाद(सहन करते हुए)लेते हुए नीचे लेह शहर की ओर आ गए बर्फ 15 किलोमीटर से ज्यादा दूरी में नहीं थी। आगे का सारा मार्ग बिल्कुल सूखा पड़ा हुआ था। जब हम नीचे लेह आये तो, अपने मोबाइल से ढिल्लू जी को फोन कर तलाश करने लगे, तो पता चला कि, वो स्टेडियम में डेरा जमाये हुए थे। शाम के चार बज चुके थे, सब सही सलामत वापस उपशी वाले कमरे पर आ गए, क्योंकि कल हमको पेंगोंग लेक जाना था, ये वही लेक है, जहाँ हिंदी फिल्म थ्री इडियट की आखिरी सीन की शूटिंग हुई थी।
उपशी तिराहे पर ये वाला बोर्ड है,
संतोष तिडके का स्टाइल,
महेश जोशी का स्टाइल,
विशेष मलिक का स्टाइल,
प्रवीण का स्टाइल,
एक फोटो और हीरो का,
लेह की पहचान,
सामने से लिया गया,
लेह सिटी में ही,
तिडके का स्टाइल, जेब में हाथ, हीरो बनने की तैयारी,
मलिक, सिन्धु महोत्सव स्थल पर,
जाट देवता भी महोत्सव स्थल पर हाजिर है,
लेह सिटी में एक बोर्ड चौराहे से पहले,
उसी जगह,
अब ढिल्लू महाराज एकदम फिट है,
ढिल्लू महाराज का ड्राईवर,
इस बाइक UK 04 h 9700 वालों के पास मेरे फोटो है, उनके मेरे पास, अगर कोई इन्हें जानता हो तो मुझसे मिलवा देना
खर्दुन्गला टॉप का फोटो,
इनाम में मिली पानी की बोतल,
अरे दोस्तों मेरे फोटो किसी तरह मुझ तक भिजवा दो,
देख लो ऊंचाई
ठण्ड की कोई कमी न थी,
टॉप का एक और फोटो,
टॉप से लेह की और का फोटो, ये जो लाइन सी दिख रही है, सड़क है
टॉप से सिर्फ बर्फ नजर आती है,
वापस आते समय आर्मी वालों का बोर्ड,
अब मिला सफाई का समय, देख लो ढिल्लू महाराज एकदम ठीक है,
अगले लेख में पेंगोंग जाते हुए चांग ला की बर्फ़बारी में फिर फ़ंसे ढिल्लू महाराज व पेंगोंग lake की दुखभरी+सुखभरी यात्रा का इंतज़ार करे, जिसमें हमारे हीरो साथी ने जाट देवता को धोखा दे दिया।
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लेह वाली इस बाइक यात्रा के जिस लेख को पढ़ना चाहते है नीचे उसी लिंक पर क्लिक करे।
भाग-01-दिल्ली से चड़ीगढ़, मन्ड़ी, कुल्लू होते मनाली तक।
भाग-02-मनाली, रोहतांग दर्रा पार करके बारालाचा ला/दर्रा तक
भाग-03-बारालाचा पार कर, सरचू, गाटा लूप, होते हुए पाँग से आगे तक।
भाग-04-तंगलंगला दर्रा, उपशी होते हुए, लेह में दुनिया की सबसे ऊँची सड़क तक।
भाग-05-चाँग ला/दर्रा होते हुए, पैंन्गोंग तुसू लेक/झील तक।
भाग-06-चुम्बक वाली पहाड़ी व पत्थर साहिब गुरुद्धारा होते हुए।
भाग-07-फ़ोतूला टॉप की जलेबी बैंड़ वाली चढ़ाई व कारगिल होते हुए द्रास तक।
भाग-08-जोजिला पास/दर्रा से बालटाल होकर अमरनाथ यात्रा करते हुए।
भाग-09-श्रीनगर की ड़लझील व जवाहर सुरंग पार करते हुए।
भाग-10-पत्नी टॉप व वैष्णौ देवी दर्शन करते हुए।
भाग-11-कटरा से दिल्ली तक व इस यात्रा के लिये महत्वपूर्ण जानकारी।
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वाह ! वाह !! वाह !!! यह सब मेरे लिए एक स्वप्न की तरह दिख रहा है --मै तो जा नही सकती --आपके द्वारा देख रही हु टिल्लू उस्ताद अब फिट लगते है ? अगली किस्त का बेसब्री से इन्तजार है ! यह तो स्वर्ग है ?
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर यात्रा वृतांत| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर यात्रा वृतांत| आपकी जितनी तारीफ़ की जाय कम है ।
जवाब देंहटाएंइस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं
बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत| आपकी जितनी तारीफ़ की जाय कम है ।
जवाब देंहटाएंइस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं
बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत| आपकी जितनी तारीफ़ की जाय कम है ।
जवाब देंहटाएंइस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं
बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत| आपकी जितनी तारीफ़ की जाय कम है ।
जवाब देंहटाएंइस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं
जबरदस्त विवरण ! उम्दा चित्र । पढ़कर ठण्ड के कारण ठिठुर रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंbeautiful pics
जवाब देंहटाएंlooks you are enjoying lot
I am santosh,in this toor member .thanks for best wishes...maharastra...09970242570.......
जवाब देंहटाएंबहुत सही मजा आ रहा है पढ़े जा रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंkay mast sama thaa maja aagaya daresay ko dakh ka
जवाब देंहटाएंAmazing kash me bhi hota
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