लेह बाइक यात्रा-
अभी तक आप मेरे साथ घूम चुके हो, दिल्ली से मनाली, रोहतांग दर्रा(13050), बार्रालाचा दर्रा(16500), सरचू, पाँग, तंगलंगला दर्रा(17582), उपशी, लेह, खर्दूंगला दर्रा(18380), अब बारी है, चाँगला दर्रा(17586)
आज पाँचवे दिन सुबह आराम से उठे, सब नहा धो, मेकप-सेकप कर, आज की मंजिल पेंन्गोंग सो (लद्दाखी लोग झील/लेक को सो के नाम से पुकारते है) की ओर चल दिये। उपशी से 15 किलोमीटर चलते ही, लेह से 35 किलोमीटर पहले, कारु नामक जगह आती है। यहाँ से दाये/सीधे हाथ की ओर एक रास्ता शक्ति नाम की जगह पहुँच जाता है, कारु से यहाँ तक ठीक-ठाक 15 फुट का मार्ग है, भीड के नाम पर कभी-कभार ही एक-आध इन्सान व गाडी नजर आ जाती थी।
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शक्ति से आगे चलते ही एक Y मोड आ गया, इस वाई मोड पर कोई बोर्ड भी नहीं था, अब क्या करते, करने लगे इंतजार कि कोई आयेगा और रास्ता बतायेगा कि हमें किधर जाना है, पेंन्गोंग सो की ओर जाती हुई एक सूमो गाडी आयी, उसके ड्राईवर से आगे का रास्ता पता किया। शक्ति से आगे 3-4 किलोमीटर तक सडक में एक इतना बडा घुमावदार मोड था, जहाँ से कई किलोमीटर दूर तक की गाडियाँ नजर आ रही थी, जिस पर बाइक या कोई भी गाडी 80-100 तक की रफ़्तार से भगाई जा सकती है, हमने भी भगाई, इस मार्ग में आने वाली सबसे ऊँची जगह चांग ला दर्रा (17586 फ़ुट) अभी 20-22 किलोमीटर की दूरी पर था।
हम अपनी चाल से चले जा रहे थे, कि आज हल्की-हल्की बूंदा-बांदी शुरु हो गयी। 7-8 किलोमीटर हल्की-हल्की बूंदा-बांदी में आराम से कट गये। इसके बाद घनघोर कोहरा आ गया। इस कोहरे में हमको हेलमेट से शीशे हटा कर बाइक चलानी पड रही थी, कार वाले तो हमसे भी ज्यादा परेशान थे, एक सूमो वाला हमसे बोला कि "आप आराम-आराम से चलो मैं आपके पीछे-पीछे आऊंगा, क्योंकि यहाँ मुझे कुछ भी नजर नहीं आ रहा है"। ये तो शुक्र रहा कि कोहरा 3-4 किलोमीटर के बाद कुछ कम हो गया था। लेकिन वो तीन चार किलोमीटर कितनी मुश्किल से काटे गये, ये हम ही जानते है।
अब चांगला दर्रा केवल 12 किलोमीटर की दूरी पर था, एक तो कोहरे की ठंड और ऊपर से रही-सही कसर हमारी दोस्त कम दुश्मन ज्यादा बर्फ़ रानी ने स्नोफाल शुरु करके पूरी कर दी। अभी तक हम सभी बर्फ़बारी में बडी हिम्मत व मजबूती से चले जा रहे थे। लेकिन बर्फ़बारी इतनी ज्यादा हो गई कि हमें चांगला दर्रा से पाँच किलोमीटर पहले बाइक छोड कर एक पहाड की शरण लेनी पडी, लेकिन ढिल्लू महाराज ने अपनी बाइक आज फिर वापस भगा लेने में ही भलाई समझी। सबने इन्हें रोकने की बहुत कोशिश पर ये नहीं माने।
चांग ला में निर्माण कार्य हो रहा था,
अब बची दो बाइक व चार बंदे हम कुछ देर इंतजार करने के बाद अपनी-अपनी बाइक को किसी तरह धकेलते से हुए से पैरों का सहारा सा देते हुए, दो मोड पर तो बाइक बन्द भी हो गई, किसी तरह चांग ला तक पहुँच ही गये। यहाँ से आगे अब उतराई ही उतराई दिखाई दे रही थी। बर्फ़बारी रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
हम दो सिरफ़िरे, सनकी, दीवाने, मतवाले जाट तो टाप पर आ गये थे, लेकिन हमारे दूसरी बाइक वालों जिस पर एक उतराखण्ड का पहाडी, दूसरा दिल्ली का नौजवान था, दोनों की टाए-टाए फिस हो गयी, उनका कहीं कोई पता नहीं था। हमने अपनी बाइक सडक के किनारे कुछ इस तरह लगा दी, जिससे कि कोई भी वहाँ से गुजरे तो उसकी नजर बाइक पर पडे बिना ना रहे।
ठण्ड में बर्फ हमारे कपड़ो पर भी जम गयी थी,
हेलमेट उतारने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी,
बर्फ़ को रुकती ना देख, हम सामने ही एक मजदूरों के कैम्प में जा घुसे, वे सभी रजाईयों में घुसे हुए थे। हमने उनसे कहा कि "अगर आप को कोई परेशानी ना हो तो हम यहाँ 10-15 मिनट रुक जाये"। वे गरीब तुरन्त बोले, आ-जाओ ऐसी बर्फ़बारी में तो कोई नालायक भी मना नहीं करेगा, और उन्होंने हमें एक रजाई ओढने को भी दी, बडी राहत मिली उस रजाई में, उनमें से एक ने कश्मीरी नमकीन दूध (कहवा) बना कर दिया। नमकीन दूध के साथ में एक अजीब सी पापड जैसी नर्म सा कुछ खाने को दिया। हमने उसका पापड का नाम पूछा तो कहा कि ये रोटी है। यहाँ इतनी ऊँचाई पर साधारण रोटी ठन्डी होने पर नहीं खायी जा सकती है, और ये कई घंटे बाद भी खाई जा सकती है। खा पी कर जब हम चलने लगे तो, हमने उन्हे पैसे देने चाहे, लेकिन उन्होंने नहीं लिए। इन सबका फोटो भी साथ में है।
कुछ देर बाद, जब हम बाहर आये, तो बर्फ़बारी तो बन्द हो गयी थी, लेकिन कोहरा आ धमका था। टाप पर आये हमें आधा घंटा हो गया था, लेकिन हमारे पल्सर वालों का कहीं पता नहीं था, कि वो कहाँ पर है। एक तो यहाँ पर मोबाइल भी काम नहीं करते है, दूसरे मौसम भी खराब, ढूढते भी तो कैसे? अब क्या करते आगे दो कारणों से नहीं जा सकते थे, पहला कारण आगे जाने की इजाजत वाले पेपर भी पल्सर वालों के पास ही थे, दूसरा बडा कारण खुद पल्सर वाले बन गये थे, उनको छोडकर जा नहीं सकते थे। हमारे पास सिर्फ़ एक ही रास्ता था, कि हम पहले पल्सर वालों को तलाश करे।
इनकी तलाश में हम बाइक पर 3 किलोमीटर तक वापस आये तो देखा कि इनकी बाइक सडक के किनारे खडी हुई है, जिस पर धूल की जगह बर्फ़ जमी हुई थी। हम सोच में पड गये, कि अब ये कहाँ गये होंगे, इनको कहाँ ढूढें। बाइक की छानबीन की तो उसमें भी कोई ऐसा निशान नहीं था, जिससे कोई सबूत मिल सकता था। वहाँ ठन्ड में इंतजार करना मूर्खता थी, हमारे पास वापस आने के अलावा कोई रास्ता नहीं था, और हम दोनों वापस उस समय दुखी मन से शक्ति व कारु होते हुए उपशी वाले कमरे पर आ गये। कमरे पर भी उनका कोई अता-पता नहीं था। यहाँ पर संतोष तिडके व गजानन्द उर्फ़ ढिल्लू ही मौजूद थे। दोनों रजाई में घुसे सो रहे थे। हम भी रजाई में घुस गये।
हमारी बाइक की हालत धूल, मिट्टी, बर्फ़ और कीचड से काफ़ी बुरी हो गई थी, इसलिए आज बाइक व अपनी भी धुलाई की,
टोपी वाला बंदा तमिलनाडु से जम्मू तक ट्रेन में बाइक लाया था, जम्मू से हमारी तरह चला कर लाया, सिन्धु नदी किनारे का फोटो
सिन्धु नदी के पानी में घुस कर एक फोटो,
सुबह के 8 बजे सब के सब कमरे से निकले थे, शाम के 5 बजने वाले थे, कि तभी मेरे मोबाइल पर एक काल आयी, वो काल हमारे पल्सर वालों के बारे में ही थी, अजी उनकी ही थी। मैंने हैल्लो-वैल्लो नहीं किया सीधा कहा "अरे कहाँ हो, किस हालत में हो", तो उन्होंने कहा कि एकदम मस्त। इतना सुनना था कि उस समय जो मन में आया वो जमकर सुनाया। कमरे पर आकर उन्होंने बताया कि तुम लोग आगे थे, ठन्ड से ज्यादा परेशान होकर हमने एक सूमो गाडी को हाथ दिया और उन्होंने हमें अपने साथ ही बैठा लिया और बाइक वही छोड दी थी। हम उनके साथ ही पेंन्गोंग झील तक गये। बहुत मस्त रहा उनका पेंन्गोंग झील तक का सफ़र खैर जो हुआ-सो हुआ अब ये जो फोटो खींच-खांच कर लाये थे। उन फोटो को देख कर ही हम खुश हो लिये। आप भी देखो और खुश हो लो।
झील में बतख भी थी,
पानी कितना साफ़ है,
झिडाया मर गया था, सुसरे का, घना राजी हो रा हगा
ये बन्दे चंडीगढ़ के थे,
हो ले राजी,
क्या झील है,
मस्त नजारा झील का,
चांग ला में बर्फ खेल रहा, हमें छोड़ते समय शर्म नी आई,
चांग ला में फौजी भाई का भी एक फोटो खीच लिया,
बोर्ड का भी ले लिया, हमारे वाला बोर्ड नी दिखा के,
पेंन्गोंग झील की लम्बाई 100 किलोमीटर से भी ज्यादा है, जिसमें से भारत में केवल 20-25 किलोमीटर ही है। बाकि 75-80 किलोमीटर चीन में आती है। इस झील के बारे में कहा जाता है, कि यह रंग बदलती है। सूर्य की किरणों के बदलने के साथ इस झील का रंगीन पानी भी बदलता रहता है। दुनिया में इतनी ऊँचाई पर, इतनी लम्बाई की झील शायद ही कोई और हो? यह विश्व की सबसे ऊंचाई पर स्थित है।
चाँगला से पेंन्गोंग झील की यात्रा का मुझे नहीं मालूम इसलिए नहीं लिखूँगा। बस अपनी आगे की यात्रा पत्थर साहिब, कारगिल, द्रास, बालटाल, अमरनाथ गुफ़ा, डलझील, जवाहर सुरंग, बटोट, पत्नी टाप, उधमपुर वैष्णों देवी और घर दिल्ली तक का विवरण जरुर लिखूगाँ।
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भाग-01-दिल्ली से चड़ीगढ़, मन्ड़ी, कुल्लू होते मनाली तक।
भाग-02-मनाली, रोहतांग दर्रा पार करके बारालाचा ला/दर्रा तक
भाग-03-बारालाचा पार कर, सरचू, गाटा लूप, होते हुए पाँग से आगे तक।
भाग-04-तंगलंगला दर्रा, उपशी होते हुए, लेह में दुनिया की सबसे ऊँची सड़क तक।
भाग-05-चाँग ला/दर्रा होते हुए, पैंन्गोंग तुसू लेक/झील तक।
भाग-06-चुम्बक वाली पहाड़ी व पत्थर साहिब गुरुद्धारा होते हुए।
भाग-07-फ़ोतूला टॉप की जलेबी बैंड़ वाली चढ़ाई व कारगिल होते हुए द्रास तक।
भाग-08-जोजिला पास/दर्रा से बालटाल होकर अमरनाथ यात्रा करते हुए।
भाग-09-श्रीनगर की ड़लझील व जवाहर सुरंग पार करते हुए।
भाग-10-पत्नी टॉप व वैष्णौ देवी दर्शन करते हुए।
भाग-11-कटरा से दिल्ली तक व इस यात्रा के लिये महत्वपूर्ण जानकारी।
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जात देवता आप तो महान हो.
जवाब देंहटाएंJAT devta
जवाब देंहटाएंनि:शब्द हूँ,
जवाब देंहटाएंक्या टिप्पणी कर सकता हूँ?
सैल्यूट ही बजा सकता हूँ, आपकी हिम्मत के आगे
कहते हैं विपरित में आकर्षण होता है, यही आकर्षण मुझे आपके ब्लॉग की तरफ आकर्षित करता है। ऐसी यात्रायें कौन नहीं करना चाहेगा। लेकिन अभी तो आपको पढकर ही खुश हो रहे हैं।
फटाफट लिखते रहिये, हम पढते रहेंगे।
प्रणाम
जीवन चलने का नाम,
जवाब देंहटाएंचलते रहो सुबह शाम।
भाईसहब हमें भी ले चलते ..अकेले ही बिना बताये चले गए .... आपकी पोस्ट पढकर काम चला रहा हूँ लेकिन अबकी बार ले चलना
जवाब देंहटाएंजीवन चलने का नाम,
जवाब देंहटाएंचलते रहो सुबह शाम।
एक बार मैंने भी भारत भ्रमण की योजना बनाई थी लेकिन बस योजना बन कर ही रह गयी. आप घूम सके इसके लिये बधाई तहे दिल से...
जवाब देंहटाएंचांगला दर्रे की सैर करवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंbadhiya yatravratt ke liye badhayee Pawar ji.
जवाब देंहटाएंgreat journey
जवाब देंहटाएंlike the pics
तरकेश्वर गिरी जी
जवाब देंहटाएंअन्तर सोहिल.जी
नीरज जाट जी.
तरुण भारतीय जी
मदन शर्मा.जी
भारतीय नागरिक जी
Patali-The-Village जी
cm प्रसाद जी
Mitesh Shah aka sm जी
आप सभी का धन्यवाद।
jaat devta ki jai. manali se leh aur leh se srinagar ek dream route hai. pura ka pura byora atyant rochak laga. photos aur photos per aapke comments srahniya hain.
जवाब देंहटाएंजीते रहो जाट देवता ! मानना पडेगा की इतनी खतरनाक जगह से सकुशल लोट आऐ-- वाकई में बहुत हिम्मत है आपमें --जल्दी और लिखे --सहन नही होता ?पत्थर साहेब के बारे में जानने की उत्सुकता है ?
जवाब देंहटाएंटिल्लू जी को थोड़ी हिम्मत उधार क्यों नही दे देते ?हमेशा पीछे रह जाते है ? यह तो बेइंसाफी है --
जवाब देंहटाएंबाप रे बाप !
जवाब देंहटाएंवीर पिता का परम वीर पुत्र एवम मित्र.
जितना परिश्रम यात्रा करने में
उससे बस थोड़ी ही कम
यह यात्रा हमें कराने में ---
धन्यवाद---
पर हमें भी धन्यवाद दो--
क्योंकि आज के बाद
कल दुबारा यह यात्रा करूँगा मैं
gud hai g,,,,,,,kbi aage ka plan bnao,,,,,,i m waiting,,,,,
जवाब देंहटाएंजाट देवता जी आपकी वीरता को सलाम । आपका प्रशंशक हूं पढता रहता हूं कमेन्ट इसलिये नही किया अबसे पहले क्योंकि हिन्दी लिखना यूनीकोड में अभी अभी सीखा हूं । भारत भ्रमण बाइक से करने की इच्छा में आपका सहयोग करने को तैयार रहूंगा जी जब चाहो याद कर लियो
जवाब देंहटाएं