लेह बाइक यात्रा-
दूसरा दिन तो बीत गया। दिन तो मजेदार था, किन्तु आज की रात हमारी ज़िंदगी की सबसे बुरी रात बन गयी। नाम की भरतपुर सिटी कुल मिलाकर 8 टैन्ट थे। पक्के मकान के नाम पर हमें ढूंढने पर भी कुछ ना मिल सका, सडक व पत्थर के सिवा। एक टैंन्ट में पन्द्रह-बीस लोग आसानी से सो सकते है। एक बंदे का किराया 100 रुपये था। पहाड पर चारों ओर बर्फ़ ही बर्फ़ थी, टैन्ट से 30-40 मीटर की दूरी पर ही तो थी। बडे मजे से खाना खाया, नमकीन चावल बडे स्वादिष्ट जो बने थे।
इस यात्रा को शुरु से पढने के लिए यहाँ क्लिक करे
रात में 11 बजे के बाद हमारे ढिल्लू महाराज उर्फ़ गजानन्द जी को, सडक पर भरे पानी में से जूते पहन कर, बर्फ़ीले पानी में से निकलने का नतीजा मिल गया, तबीयत हो गई खराब । रात में 2 बजे के बाद ढिल्लू माहराज ने टैन्ट के बाहर ही उल्टियां कर दी। रात में 2-3 घंटे हल्की-हल्की बारिश होती रही, जिससे टैंन्ट ने जबाब दे दिया व टपकना शुरु हो गया। रजाई तो मोटी थी, पर टैंट के टपकने से भीग कर 5 किलो की रजाई 10 किलो की हो गयी, जिससे हिल भी नहीं रही थी।
हम लोग ज्यादा उंचाई पर थे ,जिससे सांस लेने में भी दिक्कत आ रही थी। आक्सीजन की कमी की समस्या बहुत ज्यादा थी। ऊंचे पहाडों पर दिन में गाडी को, रात में हमारी बाडी को, आक्सीजन की कमी ने खूब सताया। नींद-नांद तो किसी को ठीक-ठाक ना आयी थी। किसी तरह टपकते टैंट, गीली रजाई में रात काटी, दिन निकला, तो किसी कैद से भागने की जो खुशी एक चोर को होती होगी। उससे भी कहीं ज्यादा खुशी हमें हुई थी। जब हम टैन्ट से बाहर निकले तो हमारी खुशी गायब हो गई क्योंकि हमारे ढिल्लू महाराज उर्फ़ गजानन्द जी के रात के किये कारनामे ने सबकी हालत खराब कर दी। सबने जमकर कोसा (सबसे ज्यादा टैंट वाले ने)। हम चुपचाप वहाँ से खिसक लिए।
यहां से अपने तय समय ठीक ६ बजे हम सरचू की ओर चल दिये। अभी 15 किलोमीटर ही गये थे कि सबसे आगे जा रहे संतोष तिडके ने एकदम अपनी बाईक रोक दी। सब ने पूछा क्या हुआ, जबाब मिला हमारे ढिल्लू महाराज उर्फ़ गजानन्द जी ने रात के कारनामे(बीमार की मजबूरी थी) करने के लिये संतोष तिडके का मोबाईल ले लिया था, मोबाईल में टार्च थी, उसका प्रयोग किया था और मोबाईल टैन्ट में ही तकिया के नीचे ही छोड आये है। तय हुआ कि संतोष तिडके का मोबाईल है, अत: वही जाये । संतोष तिडके का 30 किलोमीटर आना-जाना बेकार गया, टैन्ट वाले ने मोबाइल गायब कर दिया था।
उस मोबाइल में 2 सिम थे, एक तिडके का, दूसरा जाट देवता का, खैर जो खोना था, वो खो गया। खोने का गम क्या करना पर क्या करे ये दिल है कि माना ही नहीं, मोबाइल याद आता रहा, ये गनीमत रही कि मेरा प्रीपेड वाला सिम खोया था, पोस्टपेड वाला सिम मेरे पास मेरे मोबाइल में था। (जम्मू और कश्मीर में प्रीपेड मोबाइल कश्मीर से बाहर के काम नहीं करते है, प्रीपेड मोबाइल का म.पी.थ्री प्लेयर बनकर रह जाता है। वैसे भी दारचा से उपशी तक मोबाइल नेटवर्क नहीं है।
जहां सब लोग संतोष तिडके के इंतजार में रुके थे, वहां से सरचू तक एकदम सीधी सडक थी, बस एक जगह बोर्ड के फोटो के लिये रुके, नहीं तो नाक की सीध में साधारण ढलान थी, 60-70 की रफ़्तार से भागे चले गये। यहाँ सडक के दोनों और बडा मैदान था, जो कि कुदरती बना हुआ है। सीधे सरचू पहुंच कर ही खाना पीना किया। सरचू ही हिमाचल व कश्मीर का बोर्डर है। सरचू में भी टैन्ट मिल जाते है। कुछ दूर जाते ही एक तेल का ट्रक एक करवट पलटा हुआ था, लेकिन साथ-साथ चल रहे नदी के पानी में नहीं गिरा था, ट्रक वाले की किस्मत ठीक ही कहूंगा, अगर ट्रक ने एक पल्टी और लगायी होती तो, ना ट्रक का, ना तेल का और ना ही उसमें सवार लोगों का पता चल पाता, क्योंकि नदी का पानी गहरा व तेज रफ़्तार का था।
नदी के पुल पार का रास्ता भी बढिया था। पुल पार करने पर बाइक 60-70 भगाई कि तभी एक और बाइक(बुलेट) पर नैनीताल से आ रहे दो बन्दों ने रुकने का इशारा किया। हम रुक गये, तो वे बोले कि हमारी 5-5 लीटर की कैन का एक ढक्क्न कहीं गिर गया है अगर आपको कहीं दिखाई दिया हो, तो बता दो। हमने कहा, हां, ढक्क्न जैसा ही कुछ पुल के पास में नजर आया था, तो वे बहुत खुश हुए (बाद में ये दोनों हमारे साथ ही दुनिया की सबसे उंची सडक खार्दुन्गला पास तक हमारे साथ गये इनके फोटो खार्दुन्गला के अगले लेख में)। पुल के पास ही इन्हे इनका ढक्कन मिल गया था।
रास्ता इतना बढिया था कि 50-60 की रफ़्तार पर पहाडी बलखाते, नागिन जैसे लहराते मार्गो पर झूमते हुए कब 50 किलोमीटर पार हो गये पता ही नहीं चला। फिर से अचानक सीधी सडक गायब, और तलाशने पर पता चला, कि अब तो चार-चार कुतुबमीनार एक साथ जोड दो व जो उंचाई आये उस पर सीधा चढ जाओ, बस कुछ ऐसा ही नजारा है, दे दनादन 20-22 बैंड चढाई के थे। बाइक में अगर जान व दिमाग होता, तो हमें छोड कर भाग जाती। आप समझ ही गये होंगे कि कैसी चढाई होगी। जब हमारी बाइक ने ये चढाई पार करवा दी, तो हमारा फ़र्ज था, कि कुछ देर बाइक को आराम करने देते, लेकिन हम थे, कि चले ही जा रहे थे । टाँप तक आकर हम लापरवाह हो गये थे हल्की-हल्की बर्फ़बारी भी हो रही थी। एक हल्के से मोड पर, यहां टाँप पर हमारी बाइक ने हमे सडक पर पटक दिया, स्पीड तो 25 की ही थी ,पर बर्फ़ के कारण फिसल गये। बर्फ़ पर बाइक 20-25 फ़ुट तक रिपटती चली गयी..............
बाइक से गिरने से मेरे सीधे पैर के घुटने पर चोट आयी और एक पक्की निशानी घुटने पर बन गयी। आप जब मिलो देख लेना, बाइक उठाई, कपडे झाडे, चोट देखी और आगे की यात्रा पर चल पडे। गिरने उठने में 3-4 मिनट बर्बाद हुए।
दोपहर में एक जगह खाना खाया। जगह का नाम पाँग था। यहाँ भी रूकने के लिये सिर्फ़ टैट ही थे। समय २ बजे के आस-पास जब यहाँ से चलने लगे तो दिल्ली से चलने वाली बस भी आ गयी। हमारे ढिल्लू माहराज को अभी भी बुखार था, सोचा कि इन्हे बस में बैठा दे, बस में घुसते ही जो नजारा था हम तुरन्त बस से बाहर हो लिये। बस में बैठने की तो छोडो, आने जाने के रास्ते में भी खडे होने की जगह नही थी, विदेशी लोग भी बीच में ही बैठे हुए थे। यहाँ पर एक बंदे को प्रेशर लगा, जब वह निपट कर आया, तो बोला, आज जो इस सरकारी नल के पानी से नहा लेगा उसे 500 रुपये नकद इनाम मिलेगा। हमने पानी को चेक किया तो पाया कि यह पानी गोमुख, मणिमहेश, अमरनाथ, हेमकुंठ साहिब के जैसे मिजाज का है जो लोग इन स्थानों पर जा चुके है, उन्हे इस पानी का अंदाजा हो गया होगा। मैं इन जगहों पर स्नान कर चुका हूँ, वो भी ताजे कुदरती पानी में ।
फिर से चल पडे, चलते ही 3 किलोमीटर की चढाई, और इसके बाद ऐसा मस्त रास्ता कि नई दिल्ली के रास्ते भी शरमा जाये, लगभग ४० किलोमीटर जी भर कर 70-80 की रफ़तार से भागे चले गये। इतना बडा मैदान कि हवाई अडडा बना लो, स्टेडियम बना लो, एकदम एकसार मैदान। एक घंटे में एक जगह आ पहुँचे, नाम याद नहीं। हम यही रात को ठहरने की बात कर रहे थे, कि एक ट्रक ड्राईवर(हिमाचल का था) हमारी बात सुन कर बोला भाई जी "आपके पास अभी टाइम है, आप उपशी जा सकते हो, वहाँ आपके मोबाइल भी काम करेंगें (BSNL & AIRTEL थे 5/7/2010 तक)। उपशी यहाँ से सिर्फ़ 120 किलोमीटर ही तो है। मै भी अकेला हूँ, अगर आप अपना बीमार साथी मेरे साथ भेज दो तो मैं उसको उपशी छोड दूंगा। हमें बात जंच गयी,
बीमार(ढिल्लू महाराज उर्फ़ गजानन्द जी) के साथ बाकि के दो बंदे भी ट्रक में सवार हो गये। अब तीनों बाइक पर सब अकेले थे। इस ट्रक ड्राईवर ने हमारे सामने मदिरा के 4 पैक लगाये थे। हिम्मत तो नहीं हो रही थी, पर क्या करते उस समय यही ठीक लगा था। यहाँ उस ड्राइवर ने अपना ट्रक खाना खाते हुए भी स्टार्ट रखा था, हमने कारण पूछा तो बताया कि यहाँ आक्सीजन की कमी है, दुबारा स्टार्ट करने में बडी मुश्किल होती है, इसलिये। उस ड्राइवर ने कुछ ऐसे ट्रक भगाया कि.................
बोर्ड के साथ ही सही
मेरा भी खीचोमै भी हूँ
मैं इस चददर को ना उतारू, चाहे जो हो जाये
एक फोटो मैदान में
बर्फ आनी चहिये
सरचू में एक और बोर्ड , सीमा समाप्त
पांग से पहले का
कंगला जल आ गए है
भर लो बजरपुर, बना लो मकान
खान है ये तो
मंदिर से लगे है, ये तो
तुम रुको मैं ट्रक ले कर आता हूँ, फ्री का बजरपुर जो है
ले आ भाई हम रुक गए, खीच ले फोटो
उस ड्राइवर ने क्या किया, अगली रात कहाँ बीती, आगे का हाल अगले भाग में आयेगा
इस यात्रा को आगे पढने के लिये यहाँ क्लिक करे
लेह वाली इस बाइक यात्रा के जिस लेख को पढ़ना चाहते है नीचे उसी लिंक पर क्लिक करे।
भाग-01-दिल्ली से चड़ीगढ़, मन्ड़ी, कुल्लू होते मनाली तक।
भाग-02-मनाली, रोहतांग दर्रा पार करके बारालाचा ला/दर्रा तक
भाग-03-बारालाचा पार कर, सरचू, गाटा लूप, होते हुए पाँग से आगे तक।
भाग-04-तंगलंगला दर्रा, उपशी होते हुए, लेह में दुनिया की सबसे ऊँची सड़क तक।
भाग-05-चाँग ला/दर्रा होते हुए, पैंन्गोंग तुसू लेक/झील तक।
भाग-06-चुम्बक वाली पहाड़ी व पत्थर साहिब गुरुद्धारा होते हुए।
भाग-07-फ़ोतूला टॉप की जलेबी बैंड़ वाली चढ़ाई व कारगिल होते हुए द्रास तक।
भाग-08-जोजिला पास/दर्रा से बालटाल होकर अमरनाथ यात्रा करते हुए।
भाग-09-श्रीनगर की ड़लझील व जवाहर सुरंग पार करते हुए।
भाग-10-पत्नी टॉप व वैष्णौ देवी दर्शन करते हुए।
भाग-11-कटरा से दिल्ली तक व इस यात्रा के लिये महत्वपूर्ण जानकारी।
.
.
.
.
बडी हिम्मत हे तुम लोगो मे या कूछ ओर, अरे बिना जाकेट के इतनी सर्दी मे वो भी बाईक पर, ओर बिना अन्य सुबिधाओ के, ना होटल का पता, ओर इन टेंटॊ मे भी पानी टपक रहा हो, गीले जुते.... राम राम भगवान बचाये इन आज के छोरो को, चलो भगवान की दया से सही सलामत घर तो पहुच गये, लेकिन ऎसी सर्दी बहुत खतरनाक होती हे, इस लिये अगली बार जाओ ऎसी जगह तो पहले गर्म कपडो का पुरा इंतजाम कर के जाओ.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर फ़ोटू, सुंदर विवरणं रोंगटे खडे करने वाला, तुम सब को धन्यवाद, अब अगली पोस्ट की इंतजार..
संदीप जी, रोगटे खड़े करने वाले द्रश्य है --पहाड़ पर बारिश वेसे ही जान ले लेती है ऊपर से टेंट में ठंडी और पानी का जो मिला जुला संगम हुआ -- उसे एक भुक्त भोगी ही बता सकता है !
जवाब देंहटाएंआपके साहस की जितनी तारीफ करू कम है..गीली रजाई को वो लोग सुखाते कहाँ होगे ?
टिल्लू जी का क्या हुआ अगले अंक में बताए --
आपके साथ बद्रीनाथ घूम चुकी हु - ईश्वर ने चाह तो बदरीनाथ दुबारा जाउंगी ... अगली कड़ी का बेसब्री से इन्तजार है ..
थारे जितनी हिम्मत तो सै कोनी मेरे म्है, बस थारा ब्लॉग पढकै और फोटो देखकै जी राजी करन लाग रहा सूं।
जवाब देंहटाएंजै राम जी की
आगली कडी का इंतजार सै
जवाब देंहटाएंसंदीप जी,यह अतुल का फोन न. है वह आपसे मिलने को बहुत उत्सुक है |
जवाब देंहटाएंयह वही अतुल है जो नीरज जाट के साथ 'अल्मोड़ा ' की यात्रा पर साथ था | कृपया आप उसे से बात जरुर करले बहुत अच्छा लड़का है !
09813040862 धन्यवाद !
इसे तो पढ़ कर ही ठण्ड से झुर झुरी आ रही है । बहुत रोमांचक यात्रा।
जवाब देंहटाएंभाई सन्दीप, अतुल को फोन करो तो पहले अन्तर सोहिल से भी पूछ लेना उसके बारे में। अन्तर सोहिल वही आपके पडोस में चावडी बाजार में काम करते हैं। वैसे धनोए जी का कहना सही है कि अच्छा लडका है लेकिन मेरा कहना है कि किसी भी धेल्ले का नहीं है।
जवाब देंहटाएंयात्रा मस्त चल रही है। तीन भागों में आज सरचू पहुंचे हैं। अगली बार टंगलंगला पहुंच जाने की उम्मीद है।
अभी तो मैच देख रहा हूं। चार कटवे जा चुके हैं। छह और बाकी हैं। अरे ये क्या, उमर अकमल चौके-छक्के मार रहा है। इसकी ये हिम्मत?
रोमांचित करने वाला वाला है यात्रा का विवरण और चित्र दोनों...... आगे के विवरण का इंतजार रहेगा..... सुखद यात्रा की शुभकामनायें....
जवाब देंहटाएंआपके साहस की जितनी तारीफ करू कम है..
जवाब देंहटाएंबहुत रोमांचक यात्रा।
इंडिया सेमीफाइनल जीत गयी है बहुत बधाई हो आपको
यात्रा का मजा ही निराला होता है।
जवाब देंहटाएंदुनाली
रोमांचित करने वाला यात्रा विवरण
जवाब देंहटाएंभाई जाट देवता जी राम राम
जवाब देंहटाएंअगली बार जब बाइक से घूमने जाओ सूचना पट पर २ महीने पहले लिख देना।
मेरी भी बाइक से घूमने की बडी तमन्ना है।
बड़े ज़बरदस्त फोटो हैं..... आपको शुभकामनायें.....
जवाब देंहटाएंShandaar!!
जवाब देंहटाएंkuch yadeyn hain mere paas bhee vahan kee ghumte raheyn ..likhteyn rahe ....
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपढ़ते हुए अगले भाग पर जा रहे हैं, बस में इतनी भीड़ क्या बसें कम चलती हैं उधर, तो अपन ही एक नई बस चला देते हैं।
जवाब देंहटाएंi am santosh tidake toor mamber in leh toor ..thanks for yours best wishes...
जवाब देंहटाएं