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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017

Ross island, Port Blair रास / रॉस द्वीप पोर्ट ब्लेयर की यात्रा



अंडमान व निकोबार की इस यात्रा में अभी तक आपने पोर्टब्लेयर का चिडिया टापू, डिगलीपुर में अंडमान की सबसे ऊँची चोटी सैडल पीक, अंग्रेजों की क्रूरता की निशानी सेल्यूलर जेल, हैवलाक द्वीप के सुन्दर तट और खूबसूरत नील द्वीप भी देखा। इस यात्रा को शुरु से पढना हो तो यहाँ माऊस से चटका लगाकर  सम्पूर्ण यात्रा वृतांत का आनन्द ले। इस लेख की यात्रा दिनांक 28-06-2014 को की गयी थी
रोस द्वीप, पोर्ट ब्लेयर ROSS ISLAND, PORT BLAIR,
रोस द्वीप कैसे पहुँचे
नील द्वीप से पोर्टब्लेयर आने वाला समुन्द्री जहाज हमें लेकर पोर्टब्लेयर की उसी फोनिक्स जेट्टी (Phonix Bay) पर पहुँचा। जहाँ से हम हैवलाक जाने के लिये फैरी में बैठे थे। रास द्वीप जाने के लिये सेलूलर जेल के आगे से होकर जाना पडता है। रास द्वीप सेलुलर जेल के ठीक सामने है। एक आटो वाले से अबरडीन जेट्टी की बात की। आटो वाला हमें अबरडीन जेट्टी छोड आया। अबरडीन जेट्टी से रास द्वीप तक 800 मी की समुन्द्र यात्रा नाव द्वारा की जाती है। यहाँ अबरडीन जेट्टी से जो नाव रास जेट्टी जाती है। उन पर यात्रा करने के लिये सभी यात्रियों को एक फार्म में अपनी जानकारी भरनी होती है। जेट्टी पर निजी व सरकारी दो तरह की नाव चलती है। जिस दिन हम रास द्वीप गये थे। उस दिन सरकारी बोट नहीं चल रही थी। एक-एक घंटे के अंतराल पर नाव चलती है। दो घंटे रास द्वीप में घूमने के लिये समय दिया जाता है। वापसी में उसी नाव से अबरडीन जेट्टी आना होता है।

अबरडीन जेट्टी से रास जेट्टी की नाव यात्रा
अबरडीन जेट्टी व रास जेट्टी में 800 मीटर का फासला है। इस दूरी को तय करने में नाव 15-20 मिनट लगा देती है। छोटी सी नाव में 40-40 लोग भरकर चलते है। बहुत डर लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि नाव समुन्द्र में डूब जायेगी। एक तरफ दस बन्दे ज्यादा होते ही नाव उधर झुक जा रही थी। यात्रियों ने हल्ला मचाया तो नाव वाला दो-दो बन्दों को एक साइड बैठा रहा था। नाव चलने से पहले हमें लाइफ जैकेट भी पहना दी गयी। लाइफ जैकेट इससे पहले हमने अंडमान यात्रा में चूने की गुफा जाते समय स्पीड बोट की यात्रा में भी पहनी थी।
जापानी बंकर
रोस द्वीप बहुत ज्यादा लम्बा चौडा नहीं है। रास की अधिकतम लम्बाई एक किमी व चौडाई आधा किमी ही है। रास जेट्टी से रास द्वीप पर आते ही टिकट लेकर प्रवेश दिया जाता है। टिकट की कीमत केवल 10 रु थी। रास दीप पहुँचते ही सबसे पहले एक जापानी बंकर दिखाई देता है। इस द्वीप पर इस प्रकार के कुल 13 बंकर बनाये गये है। सभी बंकर जापान के अंडमान पर तीन साल कब्जे के दौरान सुरक्षा के लिये बनाये गये थे। बंकर काफी मजबूत है। ये बंकर उस समय की सुरक्षा की दृष्टि से इतने मजबूत थे कि रास द्वीप की ओर बढने वाले किसी भी जहाज को इनसे पार पाना टेडी खीर ही साबित होता था। इस यात्रा में कार्बनकोब बीच की यात्रा में आपको कुछ जापानी बंकर दिखाये गये थे। कार्बनकोव बीच वाले बंकर रास द्वीप के बंकर से ज्यादा मजबूत है। इन बंकरों का साइज भी उन बंकरों के मुकाबले छोटा है। इन बंकरों का निर्माण रास द्वीप की इमारत तोडकर उसके मलबे से किया गया है।
जापानी ने बिना लडाये लडे कब्जा किया
23 मार्च 1942 को रास द्वीप पर जापानी सेना ने कब्जा कर लिया था। अंग्रेज इतने डरपोक निकले कि उन्होंने जवाबी कार्यवाही में एक भी गोली चलाये बिना, इस द्वीप को जापानी सेना के लिये छोड दिया था। जापान पर अमेरिका के दो शहरों हिरोशिमा व नागासाकी पर परमाणु बम गिराने के कारण जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध में 09 अक्टूबर 1945 को हार मान ली। यदि अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम से हमला नहीं किया होता तो भारत अंग्रेजों से तभी आजाद हो गया होता। आज अंग्रेजी संस्था कांग्रेस के कारण भारत की जो दुर्दशा है वो ना होती। भारत में भी चीन की तरह सैनिक राज होता। जापान की आकस्मिक हार के कारण अंडमान पर फिर से अंग्रेजों का कब्जा हो गया। इस बार अंग्रेजों ने इस द्वीप पर अपना कार्यालय नहीं बनाया। यहाँ की इमारतों से कीमती सामान निकाल कर अबरडीन, पोर्टब्लेयर ले गये।
रास द्वीप पर गतिविधियाँ
रास द्वीप पर लगे बहुत सारे सूचना बोर्ड से यहाँ के इतिहास के बारे में ढेर सारी जानकारी हाथ लगी। इस लेख को पूर्ण करने में उन सभी बोर्ड का बहुत योगदान है। रास द्वीप का इतिहास यह है कि एक अंग्रेज जल सर्वेक्षक डेनियल रास के नाम पर इस द्वीप का नाम पडा। रास द्वीप पर उपलब्ध सुख सुविधा के कारण इसे “पेरिस आफ इस्ट” कहा जाने लगा था। सन 1789 में ब्लेयर ने रास द्वीप पर पहली बार कदम रखा था। उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि उनका यह कदम काला पानी की सजा के नाम से बदनाम हो जायेगा। अंगेजों के शासन काल में इस द्वीप पर खेल-कूद की लगभग सभी तरह की सुविधा उपलब्ध थी। यहाँ टेनिस कोर्ट, तैराकी के लिये तरणताल, गोल्फ जैसे खेल खेलने वाले खिलाडी अपना जौहर दिखाते थे। रास द्वीप की दैनिक जीवन शैली के लिये यहाँ चर्च व क्लब आदि भी बनाये गये थे।
छापा खाना Printing press
अंग्रेजों के अधिकतर कार्य पढाई लिखाई वाले होते थे। उन्होंने अपने लिये यहाँ एक छपाई खाना (प्रेस) भी लगाई हुई थी। यहाँ लगाई प्रेस में सरकारी स्टेशनरी की छपाई होती थी। जिस समय अंग्रेजों का यहाँ शासन था उस दौर में भारत में पढाई लिखाई को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था। भारत की अधिकांश जनता अनपढ थी। उसके बावजूद भारत की अधिकांश जनता खुशहाल थी। आज भारत की अधिकांश जनता पढी लिखी है। खुशहाली के मामले में तुलना की जाये तो आज की जनता उतनी खुशहाल नहीं है। पहले दो सौ साल अंग्रेजों ने भारत को लूटा। अंग्रेज चले गये तो अंग्रेजों की बनाई राजनीतिक संस्था ने इस देश को खोखला कर दिया।
बेकरी (Bekri)
अंग्रेजों ने पाश्चात्य खान-पान का स्वाद लेने के लिये Ross island में एक बेकरी भी स्थापित की थी। वायपर द्वीप की जेल (सेलूलर जेल बनने से पहले) के कैदी यहाँ की बेकरी के लिये लकडी की मशीन से बारीक मैदा पीसकर तैयार करते थे। यहाँ पर अंग्रेजों के लिये प्रतिदिन केक, ब्रेड जैसे अन्य विदेशी ब्यंजन प्रतिदिन बनाये जाते थे।
जीना यहाँ, मरना यहाँ तो लाश जाये कहाँ? कब्रिस्तान (Cemetery)
यहाँ पर कार्यरत अंग्रेज अधिकारी व सैनिक या उनके परिवार के सदस्य जो किसी भी कारण से मौत का शिकार होते थे। उन्हे दफनाने के लिये रास द्वीप पर ही एक कब्रिस्तान (Cemetery) भी बनाया गया था। यहाँ मरने वाले सभी अंग्रेजी लोग लोग रास द्वीप पर ही दफनाये जाते थे। हमने यहाँ के कब्रिस्तान में बहुत सारी कब्र देखी थी। कुछ कब्र अच्छी हालत में थी तो कुछ कब्र बहुत बुरी हालत में थी। ईसाई व मुस्लिम धर्म में लाश को दफनाने की परम्परा चली आ रही है। दफनाने के पीछे भी एक कहानी बताते है कि कयामत के दिन सभी मुर्दे जी उठेंगे। मुर्दे तभी जी सकते है जब वो सही सलामत बचे रहेंगे। जमीन में दफनाने के कुछ वर्षों बाद सभी मुर्दे गल जाते है। सिर्फ उनकी हड्डी ही कुछ सालों तक बची रहती होंगी।
सनातन धर्म अपने लोगों को मृत्यु के उपरांत अग्नि के हवाले कर भस्म कर देता है। इस धरती पर जन्मा हर जीव एक दूसरे का भोजन बनता रहा है। इंसान ही ऐसा जीव है जो मरने के बाद भी इस धरती को नुक्सान पहुँचाता आ रहा है। जलने वाला लकडी जलाकर प्रदूषण फैलाता है। तो दफनाने वाले कब्र के नाम जमीन पर कब्जा करते है। जिन धर्मों में लोग जलाये जाते है वहाँ गैस से जलाने का प्रबंध होना चाहिए ताकि प्रदूषण न हो। जहाँ पचास साल पुरानी कब्रे हो, वहाँ सब कुछ उखाड कर कब्रिस्तान को दुबारा उपयोग कर लेना चाहिए। यदि आज का दौर चलता रहा तो कुछ सौ सालों बाद अधिकतर इलाकों में कब्रिस्तान ही दिखाई दिया करेंगे।
भूकम्प का डर
रास द्वीप अपने वैभव के कारण पोर्ट ब्लेयर में सबसे उत्तम स्थान रखता था। एक भूकम्प  के बाद यह द्वीप भूतिया द्वीप में बदलकर रह गया। 26 जून 1941 को यहाँ एक शक्तिशाली भूकम्प आया था। वह भूकम्प इतना भयंकर था कि उसमें इस द्वीप पर एक दरार पड गयी थी। दरार के कारण यह द्वीप दो टुकडे में बँटने जैसा हो गया था। उस भूकम्प के बाद अंग्रेज अफसर यहाँ निवास करने से बचने लगे थे। उन्हे डर लगने लगा था कि यह द्वीप कभी भी समुन्द्र में डूब जायेगा।
सुनामी का कहर
26 दिसम्बर 2004 को इन्डोनेशिया के तट पर आयी भयंकर सुनामी (Tsunami) से पोर्टब्लेयर को इसी रास द्वीप ने बचा लिया। यदि रास द्वीप इस जगह नहीं न होता तो पोर्टब्लेयर में बहुत नुक्सान होना तय था। इस द्वीप को देखते हुए जब हम इसके पूर्व दिशा में पहुँचे तो देखा कि एक पहाडी जैसा होने के कारण इसने सुनामी के प्रकोप को सहन कर लिया। यह द्वीप समुन्द्र तल से लगभग 20-25 मीटर ऊँचा है। सुनामी की लहरे इसके पूर्वी छोर से आकर सीधा टकरायी थी। पूर्वी छोर पर सीधी खडी टक्कर है जिस कारण यह द्वीप खुद तो तहस-नहस होने से बचा ही, साथ ही इसने अबरडीन आदि इलाके को बर्बाद होने से बचा लिया था।
जब हम इस द्वीप पर घूम रहे थे तो यहाँ नारियल के लगभग 50 फीट लम्बे पेड पर एक बन्दा चढा हुआ था। नीचे एक महिला उस पेड पर बंधी रस्सी से नारियल तोडे रही थी। ऊपर से खटाखट नारियल नीचे गिरते जा रहे थे। हमें सबसे ज्यादा आश्चर्य इस बात पर था कि वो आदमी इतने लम्बे नारियल के पेड की चोटी तक पहुँचा कैसे? नारियल हवा से व उस बन्दे के वजन से हिल रहा था। यदि उसकी जगह हमारे जैसा कोई बन्दा ऊपर चढा होता तो उसकी पैंट पेड हिलने से गीली होनी तय थी। यदि नीचे खडे किसी बन्दे पर सू-सू की बून्दे गिरती तो नीचे खडा बन्दा समझता कि बारिश इसी पेड के नीचे कैसे हो रही है?
नौ सेना के हवाले
18 अप्रैल 1979 को रास द्वीप नौ सेना के हवाले कर दिया गया। अब यह नौ सेना के कब्जे में है। यहाँ सभी तरह की गतिविधि पर नौ सेना का नियत्रंण है। शाम 5 बजे के उपरांत यहाँ ठहरना मना है। सेना ने अपने काम के लिये यहाँ एक कार्यालय बनाया हुआ है। एक पुराने मन्दिर का ढाँचा भी यहाँ बचा हुआ है। हो सकता है कि जब अग्रेजों ने यहाँ चर्च बनाय़ी होगी, उसी समय यहाँ काम करने वाले हिन्दुओं के लिये मन्दिर भी बनवाया गया हो। आज यहाँ न चर्च बचा है ना मन्दिर बचा है। दोनों अपनी दुर्दशा पर आँसू बहा रहे है।
छोटा सा संग्रहालय व पेडों की विशालकाय जड
यहाँ एक छोटा सा संग्रहालय भी है। जो केवल एक कमरे में ही है। हम उस संग्रहालय को देखकर जैसे ही बाहर निकले तो बारिश शुरु हो गयी। बारिश हल्की होने तक हमें वहाँ एक तीन शैड में रुकना पडा। जैसे ही बारिश हल्की हुई। हम जेट्टी की ओर तेजी से भागे। दोपहर के दो बजे हमारी बोट अबरडीन जेट्टी जायेगी। बोट का समय होता देख, बहुत सारे यात्री जेट्टी छूटने के डर से बारिश में भी जेट्टी की ओर भागे चले आये।
इस द्वीप पर पेडों की विशाल जड देखकर मुझे अंकोरवाट के मन्दिर की याद आ रही थी। इस द्वीप की इमारतों के खन्डरों पर कब्जा जमा चुकी भयंकर जडे देखकर इस द्वीप को भूतहा कहना गलत भी नहीं है। यदि किसी बन्दे की आँख बन्द कर, यहाँ लाया जाये और यहाँ रात में उसे खुला छोड दिया जाये तो यहाँ की स्थिति देखकर उस बन्दे का बुरा हाल होना तय समझो।
चलो दोस्तों, हमारी बोट अपनी क्षमता से अधिक सवारी लादकर अबरडीन जेट्टी सेलूलर जेल की ओर चल पडी है। अभी बारिश जारी है। समुन्द्र में यात्रा करते हुए बारिश देखने का यह पहला अनुभव है। समुन्द्र के ऊपर बारिश बहुत अच्छी लग रही थी। समुन्द्र एकदम शांत खडा बारिश में स्नान करता प्रतीत हो रहा था। अब हम समुन्द्री संग्रहालय देखने जायेंगे। आज हमारा होटल भी उसी संग्रहालय के ठीक पास में है। एक आटो वाला आ गया है चलो दोस्तों हम तो चले NAVAL MARINE MUSEUM, SAMUDRIKA संग्रहालय देखने। आप हमारे साथ चल रहे है तो आपको अगले लेख में समुन्द्री संग्रहालय की सैर कराते है। (क्रमश: Continue journey)






























6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-02-2017) को
    "उजड़े चमन को सजा लीजिए" (चर्चा अंक-2595)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. न जलाना ठीक हैं गाड़ना तो क्या होना चाहिए

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