BIKE YATRA WITH WIFE-03
पेंचर वाली
बाइक मोड पर ही थोडा गडबड करती थी अन्यथा बाइक आसानी से 40 की गति से दौडी जा रही थी। सीधी सडक पर
बाइक चलाने में कोई समस्या नहीं आयी। जहाँ सडक खराब आती थी वही बाइक ज्यादा धीमे
निकालनी पडती थी। ट्यूब कटने की चिन्ता नहीं थी। उसके बारे में तो सोच ही लिया था
कि नई डलवानी ही पडेगी।
इस यात्रा के तीनों लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से हरिदवार व ऋषिकेश यात्रा।
02- उत्तरकाशी से यमुनौत्री मन्दिर तक
03- कैम्पटी फ़ॉल, मसूरी देहरादून दिल्ली तक
इस यात्रा के तीनों लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से हरिदवार व ऋषिकेश यात्रा।
02- उत्तरकाशी से यमुनौत्री मन्दिर तक
03- कैम्पटी फ़ॉल, मसूरी देहरादून दिल्ली तक
बडकोट
तिराहे से उल्टे हाथ नहीं मुडे। उल्टे हाथ उत्तरकाशी पहुँच जाते। तिराहे से दो
किमी आगे आबादी है। अंधेरा होते-होते बडकोट पहुँच गये। बडकोट में सभी प्रकार की
सुविधा मिल जाती है। बडकोट थाने से आगे एक मोड पर पेंचर की दुकान मिली। दुकान वाले
को कहा, टयूब बदल दो। वह बोला पेंचर चैक कर लेता हूँ। अरे भाई इसमें टयूब बची होगी
तभी तो चैक करोगे। जब पहिया खोला गया तो टयूब में सिर्फ़ एक इन्च का एक ही कट
निकला। इतना चलने के बाद सिर्फ़ एक ही कट मिलना आश्चर्य से कम नहीं था।
पेंचर
लगवाने के बाद रात्रि विश्राम के लिये एक ठिकाना तलाश किया। जहाँ 150-150 रु में दो कमरे व खाना तय हुआ। आज के
समय यह कमरा व खाना 400 का जाकर मिलेगा। पेइंग गेस्ट सुविधा
का लाभ पहली बार लिया था। रात को जल्दी सो गये। सुबह उजाला होते ही चलने की आदत
अनुसार आज दोपहर से पहले मसूरी पहुँचना था। यमुना नदी हमारे साथ-साथ बह रही थी।
यमुना नदी में गंगा नदी के मुकाबले कम पानी होता है। कारण गंगा की बहुत सारी सहायक
नदियाँ है जबकि यमुना की सिर्फ़ एक या दो सहायक नदियाँ है। यह भी पौंटा साहिब के
पास आकर मिलती है।
बडकोट से
बिना कुछ खाये चले थे। दो घन्टे चलने के बाद एक बाजार मिला। यहाँ पर पवांर भोजनालय
देखकर नाश्ते के लिये रुक गये। उत्तरकाशी जिले में पवांर गोत्र (उपनाम) वाले काफ़ी
लोग रहते है। इस दुकान पर मैंने तीन बार भोजन किया हुआ है। जब हर की दून गये थे तो
तब भी यही भोजन किया था। यहाँ अच्छा खासा बाजार है। हर की दून यात्रा के समय इसकी
सडक के चौडीकरण का कार्य चल रहा था। अब तक कार्य पूर्ण हो गया होगा।
इस मार्ग पर
रात्रि को रहने के बहुत कम ठिकाने मिलते है। जहाँ यह भोजनालय है वहाँ पुलिस का
बैरियर भी है जहाँ रात्रि 8 बजे के बाद वाहन आगे लेकर नहीं जा सकते है।
बडकोट से धरांसू बैन्ड के बीच भी एक बैरियर है। ऋषिकेश में बद्रीनाथ मार्ग पर
लक्ष्मण झूले के थोडा आगे ही बैरियर है। गंगौत्री मार्ग पर पहाड शुरु होते ही
बैरियर है। यह बैरियर प्रथा उत्तराखण्ड में ही मिलती है। हिमाचल में पूरी रात वाहन
चलते है। वहाँ ऐसा कोई बैरियर दिखायी नहीं दिया।
भोजन करने
के बाद मसूरी की ओर चल दिये। यमुनौत्री से चलते समय यमुना ब्रिज नाम बोर्ड दिखायी
देता रहता है। लेकिन मसूरी जाने के लिये यमुना ब्रिज पार नहीं करना होता है। यह
सीधी सडक विकास नगर, हर्बटपुर होते हुए सहारनपुर या पौंटा साहिब जाती है। हमें
मसूरी जाना था जिसके लिये उल्टे हाथ पहाड पर चढना होता है। दे दना-दन 25 किमी के करीब चढाई आती है। जिस पर चलते हुए
जोरदार चढाई पर गाडी चलाते हुए ऐसा लगता है कि हम आसमान की ओर जा रहे है।
मसूरी से
करीब 15 किमी पहले कैम्पटी फ़ॉल नामक झरना आता है।
गर्मी का मौसम था। कैम्पटी फ़ॉल में नहाने के लिये सडक से करीब 200 मीटर नीचे उतरना होता है। बाइक सडक किनारे खडी कर स्नान करने पहुँच गये। 200
मीटर की दूरी सीढियों से उतरनी होती है। अब यहाँ रोपवे/ ट्राली बन
चुकी है। मौसम भले ही गर्मी का रहा हो लेकिन कैम्पटी झरने के पानी में काफ़ी ठन्डक
थी।
करीब आधे
घन्टे नहाने के बाद वापिस चलने की तैयारी थी। अंग्रेज औरतों को नहाने में कोई
दिक्कत नहीं होती। आदमियों की तरह निक्कर पहनकर मर्दों के साथ पानी में कूद पडती
है। लेकिन भारतीय औरते ऐसा नहीं कर पाती है। इसमें सबसे बडी रुकावट अधिकांश भारतीय
मर्दों की मानसिक हालत है। अपुन भी उससे अछूते नहीं है। इसलिये भारतीय नारियों के
स्नान करने के लिये पहनने वाले कपडे किराये पर मिलते है।
कुछ लोग इन
कपडों को पहनकर स्नान करते है। जबकि कुछ को दूसरे के पहने हुए कपडों में स्नान
करना नागवार गुजरता है। अपनी मैडम भी दूसरे के कपडे पहन कर नहाने को तैयार ना हुई।
मैडम अपने कपडों में ही नहाय़ी। जो बन्दे/बन्दी अपने कपडे पहनकर स्नान करते है।
उनको कपडे बदलने के लिये कुछ शुल्क लेकर कपडे बदलने का स्थान मिलता है। उस यात्रा
में कपडे बदलने का किराया शायद 5 रु
प्रति मानव था।
नहाधोकर
उन्ही सीढियों से चढते हुए सडक पर आ गये। अब तक कैम्पटी फ़ॉल में मैंने 5-6 बार स्नान किया है। बहते पानी में गिरती
धार के नीचे घुसना जानलेवा हो सकता है। कुछ वर्ष पहले दिल्ली की एक लडकी जिसकी
उम्र मात्र 19 वर्ष थी गिरती धार में स्नान कर रही थी। पानी
के साथ पत्थर का कोई टुकडा भी आ गया था जो उस लडकी के सिर में जा बैठा। लडकी का
राम नाम वही सत्य हो गया था। उसके बाद से भी कई हादसे हुए होंगे। जिनका मुझे पता
नहीं है।
एक बार फ़िर
अपनी बाइक पर सवार होकर मसूरी के लिये चल दिये। यहाँ से मसूरी पहुँचने में मुश्किल
से आधा घन्टा लगता है। मसूरी पहुँचते ही सडक की चढाई समाप्त हो जाती है। यदि मौसम
साफ़ हो तो मसूरी से दिखायी देती दून घाटी के नजारे बहुत अच्छे दिखते है। देहरादून
तक अधिकतर ढलान मिलती रहती है जिससे बाइक बन्द कर चलायी गयी। गर्मी का सीजन होने
से मसूरी में काफ़ी भीड रहती है। उसके उल्टे ठन्ड के दिनों में यहाँ सन्नाटा पसरा
होता है।
देहरादून से
पहले शिवमन्दिर नामक जगह आती है। यहाँ आइसक्रीम कम्पनियां अपने थोक दाम पर
आइसक्रीम विक्रय करती थी। आजकल पता नहीं। आइसक्रीम काऊंटर लगा है या बन्द किया हुआ
है। हमने आइसक्रीम खाई और ढलान का लाभ उठाते हुए बाइक बिना स्टार्ट किये देहरादून
के लिये चल दिये।
देहरादून
आने के बाद घन्टा घर से पल्टन बाजार वाली सडक से होकर निकले। इस सडक पर दून शहर का
सबसे अच्छा बाजार है। यहाँ लेडिज शूट की एक दुकान पर रुक गये। सन 2005 में एक सूट का दाम 2200 रु सुनकर आँखे आश्चर्यचकित हो गयी। यह दाम आज कुछ ठीक-ठाक सा लगता है। एक
आम परिवार इतने महंगे सूट आज भी खरीद पाने में असमर्थ है। यह देहरादून पहुँचने के
बाद हम सीधे मौसी के भण्डारी बाग स्थित घर पहुँच गये। दोपहर का भोजन मौसी के यहाँ
किया।
मौसी के
यहाँ एक घन्टा रुकने के बाद दोपहर के करीब दो बजे दिल्ली के लिये प्रस्थान कर
दिया। देहरादून के पास सहस्रधारा नाम जगह देखने का इरादा था। लेकिन नितिन की मैडम
अब तक की यात्रा से पक चुकी थी। इसलिये अब दिल्ली के अलावा कही जाने को तैयार नहीं
हुई। आखिरकार तय हुआ कि चलो दिल्ली चलते है। उत्तरकाशी से चलते समय भाई ने कहा था
कि बाइक देहरादून ही छोड देना। अगले सप्ताह उसे देहरादून कुछ सरकारी काम से आना
है। वह बाइक उत्तरकाशी ले जायेगा। देहरादून से दिल्ली की बाकि यात्रा बस से करनी
थी। देहरादून से दिल्ली पहुँचने में मुश्किल से 6 घन्टे ही तो लगते है। देहरादून से लोनी डिपो वाली बस में बैठकर लोनी
बार्ड़र पहुँच गये। लोनी बार्ड़र पहुँचने में अंधेरा हो चुका था। नितिन हमसे एक
घन्टा पहले घर आ चुका था। (यात्रा समाप्त)
पर्वतीय प्रदेशों में रास्ते भी अच्छे और रास्तों पर लिखे स्लोगन भी अच्छे लगते हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छी यात्रा से रुबरु करवाया, अब माँ नंदा देवी वाली यात्रा की प्रतीक्षा रहेगी।
मनोरम यात्रा वर्णन...
जवाब देंहटाएंसुन्दर वर्णन
जवाब देंहटाएंसुन्दर वर्णन
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