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मंगलवार, 28 जनवरी 2014

dal LAKE SIKARA RIDE श्रीनगर की ड़ल झील में शिकारा सैर

श्रीनगर सपरिवार यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से श्रीनगर तक की हवाई यात्रा का वर्णन।
02- श्रीनगर की ड़ल झील में हाऊस बोट में विश्राम किया गया।
03- श्रीनगर के पर्वत पर शंकराचार्य मन्दिर (तख्त ए सुलेमान) 
04- श्रीनगर का चश्माशाही जल धारा बगीचा
05- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-निशात बाग
06- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-शालीमार बाग
07- श्रीनगर हजरतबल दरगाह (पैगम्बर मोहम्मद का एक बाल सुरक्षित है।)
08- श्रीनगर की ड़ल झील में शिकारा राइड़ /सैर
09- अवन्तीपोरा स्थित अवन्ती स्वामी मन्दिर के अवशेष
10- मट्टन- मार्तण्ड़ सूर्य मन्दिर  व ग्रीन टनल
11- पहलगाम की सुन्दर घाटी
12- कश्मीर घाटी में बर्फ़ीली वादियों में चलने वाली ट्रेन की यात्रा, (11 किमी लम्बी सुरंग)
13- श्रीनगर से दिल्ली हवाई यात्रा के साथ यह यात्रा समाप्त

SRINGAR FAMILY TOUR- 08
आज दिनांक 02-01-2014 को मौसम अच्छा है धूप भी निकली हुई है इसलिये शिकारा राइड़ करने की इच्छा हो रही है। अभी दिन के तीन बजने वाले है। मैंने कार वाले को कहा कि खीर भवानी चलो तो उसने कहा कि खीर भवानी लोकल में नहीं आता है। आज पूरे दिन कुल मिलाकर चालीस किमी भी कार नहीं चली होगी। इस तरह देखा जाये तो श्रीनगर लोकल घूमने के लिये कार का पूरे दिन का चार्ज लेना सरासर लूट है। मैंने एक ऑटो वाले से खीर भवानी आने-जाने के लिये बात की थी उसने केवल 500 रु किराया बताया। मैंने ऑटो वाले का फ़ोन नम्बर ले लिया है। अप्रैल में दुबारा श्रीनगर (गुलमर्ग) जाना है तब उसी ऑटो में सवार होकर खीर भवानी भी देखा जायेगा। 



ड़ल झील के आखिरी किनारे से खीर भवानी मन्दिर केवल 20-25 किमी ही रह जाता है। मुझे कार वाले से ज्यादा अपने आप पर गुस्सा आया था। जब उसने कहा कि यह लोकल में नहीं आता है तो मैंने सोचा कि अपनी ही गलती है जो मैंने कार करते समय ही तय नहीं किया कि लोकल में कहाँ-कहाँ घूमाया जायेगा? जो दोस्त मेरा लेख पढ रहे है, वे मेरी बात का ध्यान रखे कि यदि वे श्रीनगर जा रहे है तो पहले ही लोकल में घूमाने वाले स्थान की सूची अपने हाथ में लिखित में ले ले। अगर सस्ता वाहन देखे तो ऑटो सबसे अच्छा रहेगा। ठन्ड़ के कारण यहाँ के ऑटो कार की तरह पैक किये हुए होते है। वैसे भी श्रीनगर लोकल में शंकराचार्य मन्दिर, चश्माशाही बाग, शालीमार बाग, निशात बाग, परी महल जैसे सभी दर्शनीय स्थल डल झील के एक किनारे पर ही है। इनकी ड़ल गेट से दूरी ज्यादा से ज्यादा 10 किमी भी नहीं होगी।
कार वाला पुराने शहर में अपने किसी काम से गया। जिसके बाद वह हमें लेकर सीधा ड़ल गेट की ओर चला आया। ड़ल गेट पर आते ही सबसे पहले शिकारा राइड़/सैर करने की योजना थी। कार से उतरते ही अपने हाऊस बोट से सम्बंधित शिकारा मई फ़ेयर की तलाश करने लगे। ड़ल झील में हम लगातार कई दिन ठहरे थे, जिस कारण सड़क से हाऊसबोट तक आने-जाने में मुफ़्त शिकारा सैर करने का मौका लगता था।
ड़ल झील में शिकारा सैर करने का मेरा पहला अनुभव सन 2007 में हुआ था। उस यात्रा में हमने शाम के समय शिकारा यात्रा आरम्भ की थी। रात के अंधेरे में दो घन्टे से ज्यादा समय तक शिकारा राइड़ की गयी थी। ड़ल झील 5 मील लम्बी है जबकि इसकी चौड़ाई 2.5 मील बतायी जाती है। ड़ल झील का इलाका गगरीबल, लोकुट, डल, बोड़ जल और नागिन में विभाजित है। ड़ल झील में दो द्वीप रुपा लेंक और सोना लेंक भी है शायद इनमें से किसी पर नेहरु पार्क भी बनाया गया होगा। इस झील में नौका विहार सबसे ज्यादा मशहूर है जिसके कारण यहाँ सुबह से रात तक रौनक लगी रहती है। इस यात्रा में तो ज्यादा लम्बी नौका यात्रा नहीं हो पायी थी। लेकिन पहले मैंने लम्बी नौका यात्रा की हुई है जिसमें सैकडों हाऊसबोट के अलावा तैरते बाजार और तैरते वेजीटेबल गार्ड़न भी देखे गये थे।
नौका सैर व वाहन सैर करते हुए सड़क किनारे सरपत के ऊँचे झाड़ की कतार के साथ, ड़ल में पानी के फ़व्वारे मन मोह लेते है। दिन के समय सूर्य की रोशनी से झील के अलग-अलग रुप दिखाई देते है। शाम को अंधेरा होने के उपराँत हाऊसबोटों की रंगीन रोशनियाँ का प्रतिबिंब ड़ल झील में शिकारा राइड़ करते सैलानियों का उत्साह कई गुणा कर देता है। हम तो डल गेट के शिकारा स्टैन्ड़ 7 के सामने ठहरे थे जबकि ड़ल झील के अलावा श्रीनगर में नागिन लेक व झेलम नदी में खड़े हाऊसबोटों में भी ठहरा जा सकता है। नागिन लेक के हाऊसबोट में अधिकतर विदेशी सैलानी ठहरते है। जबकि झेलम नदी वाले हाऊस बोट अपेक्षाकृत छोटे व किराये में सस्ते होते है।
हाऊसबोट में रहने का लाभ यही है कि हाऊसबोट में रहने के दौरान सैलानियों को जब भी सड़क पर आना-जाना होता है तो हाऊसबोट से जुड़े हुए शिकारे से मुफ़्त शिकारा राइड़ करने का मौका मिलता-रहता है। शिकारे में घूमते हुए तैरती दुकानों का बाजार भी मिलता है जिसमें केसर, आभूषण, फ़ूल, फ़ल, कश्मीरी शॉल आदि बेचने वालों के साथ शिकारे वाले फ़ोटोग्राफ़र भी मिलते रहते है। आजकल लगभग सभी के पास कैमरा होने के कारण ये फ़ोटो वाले अपने पास रखे कश्मीरी कपडों से फ़ोटो खिचवाने के लिये कहते है। सामान बेचने वाले हाऊसबोट के साथ ड़ल झील में नौकायन करते समय भी तंग करने आते है। इस कारण शिकारा राइड़ करने के रोमांच में रुकावट उत्पन्न होती है।
ठन्ड़ के कारण मुश्किल से 300 मीटर तक ही जा पाये थे। हमारी नौका सूर्य के विपरीत दिशा में चल रही थी जिससे सूर्य की किरणे हम तक नहीं पहुँच पा रही थी। इसलिये नौकायन करते हुए हमें ठन्ड़ लगने लगी। ठन्ड़ देखते हुए फ़ैसला हुआ कि शिकारा राइड़ समाप्त कर पैदल भ्रमण किया जाये। मैंने शिकारे वाले से कहा हमें सड़क किनारे छोड़ दो, हमें ठन्ड़ के कारण शिकारा राइड़ में परेशानी हो रही है। शिकारा वाला बोला कि आपकी शिकारा राइड़ दुबारा नहीं होगी। हाऊसबोट मालिक से यह मत कहना कि मैंने घूमाया नहीं। ठीक है, हो गयी शिकारा राइड़, हमें ठन्ड़ में मरना नहीं है। हम किनारे पर उतर गये।
किनारे पर उतरने के बाद शिकारा वाला बोला, कम्बल ओढ लो। उसके कम्बल ले लो कहते ही उस पर गुस्सा आ गया। जब मैंने तुमसे कहा था कि ठन्ड़ लग रही है तब तो तुमने कहा था कि ठन्ड़ है तो लगेगी। अब हम नाव से उतर कर बाहर आ गये है तो अब तुम कह रहे हो कि कम्बल ले लो। पहले नहीं बता सकते थे। अब हमें नहीं घूमना। अब तुम कम्बल बताओ या अंगीठी। बच्चों को व खुद को ठन्ड़ में सताने से अच्छा है कि पैदल चलकर शरीर गर्म किया जाये। वैसे भी शिकारा राइड़ बहुत कर चुके है। रहे तुम्हारे इस राइड़ के पैसे तो वह हाऊसबोट मालिक को हिसाब के साथ पूरे दे दिये जायेंगे। शिकारा राइड़ के 700 चार्ज लिया गया। यदि हम केवल आधा घन्टा घूमते तो 250 रुपये देने होते। इसके अलावा एक घन्टा शिकारा राइड़ का चार्ज 400 रु है। यह जानकारी ड़ल झील किनारे लगे बोर्ड पर लिखी हुई मिल जाती है।
शिकारा राइड़ के बाद हम पैदल ही घूमने लगे। बच्चों को भूख लगी थी। इसलिये खाने की दुकान तलाश करते हुए आगे चल दिये। आगे चलने पर एक दो दुकान दिखायी दी जिसमें चावल रोटी वाला भोजन तैयार था लेकिन बच्चे पिज्जा व केक खाना चाहते थे। केक की दुकान ड़ल गेट की तरफ़ देखी थी, हम ड़ल गेट पहुँच गये। यहाँ से जम्मू की ओर थोड़ी दूर चलते ही यह दुकान आती है। इस दुकान के थोड़ा सा आगे ही काका रेस्टोरेंट नामक दुकान थी जिसमें गर्मागर्म छोले-भटूरे देखकर मैड़म जी अड़ गयी कि बिना खाये वापिस नहीं जायेंगे। गृहमन्त्री का आदेश कैसे टाला जा सकता था? काऊंटर पर जाकर दाम पता किये। दो भटूरे की प्लेट के चालीस रुपये बताये गये। हम चार थे चार प्लेट बोल दी गयी। कुछ देर में ही गर्मागर्म छोले-भटूरे हमारी मेज पर पहुँच गये थे।
छोले-भटूरे खाने के बाद हाऊसबोट की ओर चल दिये। मैंने मैड़म से कहा, बच्चों को केक खिलाना है लेकिन पहले हम केक वाली दुकान से आगे चुपचाप निकलेंगे। देखते है बच्चे ध्यान रखेंगे कि नहीं। जैसे ही केक वाली दुकान आने वाली हुई तो बच्चों ने पहले ही चिल्ला कर बता दिया कि वो रही केक वाली दुकान। लो जी कर लो बात, मैं तो सोच रहा था कि बच्चे केक वाली दुकान निकलने के बाद याद दिलायेंगे। लेकिन ये बच्चे भी हमारी तरह पक्के शैतान है एक बार किसी को देख लिया तो उसे भूलेंगे नहीं।
केक वाली दुकान में पहुँच गये। बच्चों ने दुकान में घुसते ही चाकलेट वाले केक की ओर इशारा कर दिया। दोनों बच्चों को चाकलेट चाले केक का एक-एक पीस दिलवा दिया। दुकान वाले ने यह कहा कि यही खाओगे या पैक करा दूँ। अरे भाई दे दो, अगर दो-चार मिनट देर करोगे तो दोनों बच्चे तुम्हारे शोकेस के अन्दर घुस जायेंगे। दोनों बच्चे अपने-अपने केक लेकर खाने लग गये। मैंने अपने लिये कुछ अलग मिष्टान देखा। दुकान वाले से पूछा कि आपके यहाँ का कुछ विशेष हो तो बताओ।
दुकान वाले ने कहा कि हमारे यहाँ शहद और अखरोट से बनी मिठाई है। हम दोनों ने अपने लिये एक-एक पीस अखरोट वाली मिठाई का ले लिया। अखरोट व शहद से बनी मिठाई का स्वाद बड़ा मस्त था। यह मिठाई मैंने पहली बार खायी थी। भविष्य में जब भी श्रीनगर जाना होगा यह मिठाई दुबारा अवश्य खायी जायेगी। जब सबने अपने-अपने पीस खा लिये तो दुकान वाले से हिसाब किताब किया गया। हम चारों ने एक-एक पीस खाया केक पीस व अखरोट वाली मिठाई के एक पीस की कीमत 30 रु थी। दुकान वाले को 120 रु देने के बाद हम हाऊस बोट की ओर चल दिये। शिकारा स्टैन्ड़ पहुँचते ही शिकारा मिल गया, इसलिये उसका इन्तजार नहीं करना पड़ा। शिकारे में बैठकर अपने हाऊसबोट पहुँच गये।

अगले लेख में पहलगाम जाते समय आने वाले 1100 वर्ष पुराने अवन्तीपोरा मन्दिर का भ्रमण कराया जायेगा। (यात्रा अभी जारी है।)





















6 टिप्‍पणियां:

  1. अखरोट शहद वाली एक किलो ले कर आ जाते ....पैसे ले ले ते यार !!

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  2. शिकारे में घूमना किसे पसंद नहीं आएगा --जब गर्मियों में नैनीताल में बोटिंग कर रहे थे तो बहुत ठंडी लग रही थी तो ये तो ठंडी का मौसम है --यहाँ तो कुल्फी जमना ही है --- चित्र दिलकश है --
    एक बात और बताओ -- हाउसबोट में सुबह के नित कार्य कैसे करते होगे ---क्या शैली है पानी में तैरते घरो के संदर्भ में ---इस बात पर भी थोड़ी रौशनी हो जाये ---

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  3. बच्चों और श्रीमतीजी की बातें तो माननी ही होंगी।

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  4. बहुत बढिया लेख व फोटो,अच्छी जानकारी दी आपने.

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