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शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

Awantipora-Avanti Swamin temple अवन्तीपोरा मन्दिर अवशेष

श्रीनगर सपरिवार यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से श्रीनगर तक की हवाई यात्रा का वर्णन।
02- श्रीनगर की ड़ल झील में हाऊस बोट में विश्राम किया गया।
03- श्रीनगर के पर्वत पर शंकराचार्य मन्दिर (तख्त ए सुलेमान) 
04- श्रीनगर का चश्माशाही जल धारा बगीचा
05- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-निशात बाग
06- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-शालीमार बाग
07- श्रीनगर हजरतबल दरगाह (पैगम्बर मोहम्मद का एक बाल सुरक्षित है।)
08- श्रीनगर की ड़ल झील में शिकारा राइड़ /सैर
09- अवन्तीपोरा स्थित अवन्ती स्वामी मन्दिर के अवशेष
10- मट्टन- मार्तण्ड़ सूर्य मन्दिर  व ग्रीन टनल
11- पहलगाम की सुन्दर घाटी
12- कश्मीर घाटी में बर्फ़ीली वादियों में चलने वाली ट्रेन की यात्रा, (11 किमी लम्बी सुरंग)
13- श्रीनगर से दिल्ली हवाई यात्रा के साथ यह यात्रा समाप्त

SRINGAR FAMILY TOUR- 09
आज दिनांक 02-01-2014 को पूरा दिन श्रीनगर शहर के बाग देखने के बाद अंधेरा होने से पहले ही हाऊसबोट पहुँच गये थे। शिकारा राइड़ हमने ठन्ड़ के कारण बीच में ही छोड़ दी थी। हाऊसबोट पहुँचते ही बच्चों ने टीवी चालू कर दिया। हाऊसबोट में काम करने वाले मुददसर को कहा कि कमरा गर्म करने के लिये हीटर कितनी देर में चलाया जायेगा? मुददसर बोला बस अभी चालू कर देता हूँ। हाऊसबोट में शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक कमरा गर्म करने के लिये गैस से चलने वाला हीटर चलाया जाता है। हाऊसबोट के सभी कमरों में घरेलू गैस से चलने वाले हीटर रखे हुए थे। गैस सिलेन्ड़र हाऊसबोट के बाहर फ़टटे के किनारे पर लोहे की जंजीर से बान्धे हुए थे। अरे मुददसर, सिलेन्ड़र को जंजीर से क्यों बान्धा हुआ है? क्या यहाँ भी चोरी हो जाती है? उसने कहा, जी सरजी, रात को कोई नाव से आयेगा तो हमें पता भी नहीं लगेगा। ऐसा पहले कई लोगों के साथ हो चुका है।


हाऊसबोट के सभी कमरों में अटैच बाथरुम होता है जिसमें 24 घन्टे गर्म पानी उपलब्ध रहता है। यह पानी किसी एक जगह गर्म होता है। जहाँ से पाइप के जरिये कमरों के अटैच वाशरुम तक पहुँचता है। कल रात को मुद्दसर खाने में 2 सब्जी चावल व रोटी लेकर आया था। आज रात्रि भोजन के लिये जब उसने कहा तो उसे बता दिया कि आज सिर्फ़ एक ही सब्जी व केवल रोटी बनाना। मुददसर बोला सर जी आज आपको मटर पनीर खिलाया जायेगा। ठीक है दो घन्टे बाद खाना ले आना। बिस्तर गर्म करने हेतू नीचे वाले कम्बल के अन्दर बिजली से चलने वाले हीटर पहले ही चला दिये गये थे। हम अपने बिस्तर पर आराम करने लगे। गर्मागर्म बिस्तर में घुसने के बाद कश्मीर की ठन्ड़ छू मन्तर हो जाती थी।
टीवी पर सन्नी देओल की सिंह साहिब दी ग्रेट फ़िल्म आ रही थी। मैंने कई महीनों बाद टीवी पर कोई फ़िल्म देखी। सिनेमा हॉल में तो शायद 14-15 साल से कोई फ़िल्म नहीं देखी है। ऐसा नहीं है कि फ़िल्मे देखने का शौक नहीं है। मुझे सिर्फ़ कामेड़ी वाली फ़िल्में ही अच्छी लगती है। मेरे कम्प्यूटर व लेपटॉप में 100-125 फ़िल्म में अधिकतर कामेड़ी वाली फ़िल्में है। टीवी पर कपिल शर्मा का शो जरुर देखता हूँ। एक बार बोम्बे फ़िल्मसिटी मे जाकर इस शो के दर्शक में शामिल भी होना चाहता हूँ। फ़िल्म में सन्नी का नेताजी वाला सीन चल ही रहा था कि मुद्दसर रात का भोजन लेकर आ गया। तीन घन्टे पहले ही छोले-भटूरे खाये थे, चलो अब मटर पनीर खाया जाये। मटर पनीर बढिया बने थे। भोजन कुल मिलाकर अच्छा कहा जायेगा। अपने जैसे पंजाबी भोजन वाला स्वाद यहाँ कश्मीर के भोजन में नहीं मिल पाता है।
खाना खाने के बाद फ़िर से बाकि फ़िल्म देखी गयी। अन्त में हर फ़िल्म की तरह इसके क्लाइमेक्स में भी कुछ उल्टी-पुल्टी बात दिखायी गयी, जो कोई इन्सान कर ही नहीं सकता। फ़िल्म देखने के बाद सोने की तैयारी होने लगी। चलिये अब सोते है, टीवी व लाइट बन्द कर दी गयी है। सोने से पहले दोनों बच्चों को सू-सू जरुर करा दिया गया। कही पता लगे कि गलती से बिजली वाले कम्बल में ही सू-सू ना हो जाये। वैसे तो कम्बल में करेन्ट की सम्भावना नहीं है फ़िर भी सावधानी सबसे बड़ी बात है।
सुबह उठने के मामले में अपनी आदत बड़ी खराब है कैसे भी हालत हो? उजाला होते ही आँख खुल ही जाती है। आज पहलगाम जाना तय था इसलिये 7 बजते ही सबको उठा दिया गया ताकि सुबह 8 बजे तक सभी तैयार हो सके। मुददसर को सुबह 8 बजे नाश्ता देने के लिये रात में ही कह दिया था। आज नाश्ते में उपमा मिलने वाला है। उपमा खाये काफ़ी समय हो गया है। पिछली बार का जहाँ तक याद है, मैंने उपमा शायद विशाखापटनम में नारायण जी के घर या नान्देड़ में कुरुन्दा गाँव में कैलाश राव देशमुख के घर खाया था। बीते साल फ़रवरी माह में 5000 से ज्यादा किमी की लम्बी यात्रा की गयी थी। जिसके बारे में आपको बीते वर्ष के लेख में बताया जा चुका है।
हाऊसबोट में नहाने के लिये बाथटब रखा होता है जिसमें बैठकर या खड़े होकर ही नहाया जा सकता है। नहाने में तो ज्यादा दिक्कत नहीं आती है। असली समस्या तो पोटी करते समय ही आती है। आजकल अधिकतर हाऊसबोट व होटलों में अंग्रेजी स्टाइल कुर्सी की तरह बैठने वाली सीट लगायी जाती है जिसमें पोटी करते हुए बन्दा इस तरह बैठ जाता है जैसे वह किसी स्टूल या कुर्सी पर विराजमान है। वैसे इस तरह की सीट पर कोई खास दिक्कत नहीं होती है लेकिन वहाँ की जोरदार ठन्ड़ में कपड़े उतार कर अपना पिछवाड़ा कड़कड़ाती ठन्ड़ में जब सीट से स्पर्श (touch) करता है तो ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने हमारे बदन को बर्फ़ की सिल्ली पर बैठा दिया हो। अगर गर्म पानी ना मिले तो वहाँ के हालात में नहाना-धोना सम्भव नहीं हो पायेगा। गर्म पानी में नहाते समय बाहर की ठन्ड़ का अहसास नहीं हो पा रहा था।
नहा धोकर कमरे से बाहर आये। आज दिनांक 03-01-2014 का कार्यक्रम शुरु हो चुका है। हम नहा कर तैयार हो चुके थे। कपड़े पहनने के बाद फ़िर से अपने कम्बल में घुस गये। कुछ देर बाद मुददसर बोला, सर जी उपमा तैयार है। हम तो कब से तैयार है? चलो, बच्चे और हम तो काफ़ी देर से उपमा की बाट देख रहे थे। खाने की मेज पर पहुँचने से पहले बच्चों को जूते पहना दिये गये। कल सुबह पवित्र के पैर के पन्जे में ठन्ड़ से दर्द होना शुरु हो गया था। इसलिये आज बच्चों को पहले ही जूते पहना दिये गये। उपमा बढिया बना था। जितना उपमा हमारे लिये लाया गया था, हमने उसमें से एक चम्मच भी नहीं छोड़ा।
उपमा खाने के बाद हाऊसबोट से बाहर आकर शिकारे की प्रतीक्षा करने लगे। हमारा वह शिकारा जो हमारे हाऊसबोट से जुड़ा हुआ है। उसमें हमें कोई किराया नहीं देना पड़ता है। यदि हम किसी दूसरे शिकारे से सड़क पर आये या जाये तो वह 20-30 रु प्रति चक्कर ले लेगा। मुद्दसर ने शिकारा वाले को फ़ोन कर दिया था थोड़ी देर बाद हमारा शिकारा आ गया। अपने शिकारे में बैठकर हम सड़क पर आ गये। सड़क पर आते समय मैंने ध्यान दिया था कि हाऊसबोट के आसपास ड़लझील का पानी जमकर बर्फ़ में बदलना शुरु हो गया है। रात को तापमान माइनस 3 या 4 तक जरुर पहुँच गया होगा। जिससे झील का पानी जमने लगता है।
सड़क पर आते ही हमारी कार खड़ी मिली। पवित्र को कुछ ज्यादा ही जल्दी रहती है इसलिये जब वह कार में घुसने के लिये तेजी से भागा तो कार के सामने पहुँच कर रुकना चाहा तो जूते स्लिप कर गये। स्लिप करते ही पवित्र सीधा कार के नीचे आधा घुस गया। पवित्र को कार के नीचे से निकाल कर एक थप्पड़ इनाम दिया गया, क्यों ज्यादा जल्दी रहती है? नीचे कौन सी खिड़की लगी है? कार में बैठते ही मणिका बोली, अंकल हीटर चला दो। कार में हीटर चलते ही राहत मिली। झील की ठन्ड़ में नाव से सड़क किनारे पहुँचने के बाद कार में हीटर चलने के बाद ही लग ही नहीं रहा था कि बाहर इतनी ठन्ड़ होगी।
हमारी कार पहलगाम की ओर चल पड़ी। आज हम अनन्तनाग होकर पहलगाम जायेंगे। अनन्तनाग से पहले अवन्तीपोरा में अवन्तीस्वामी का एक मन्दिर आता है। डल गेट से कोई 8-9 किमी आगे जाने के बाद बाइपास आता है यहाँ से सीधे हाथ गुलमर्ग जाने के लिये बाइपास मार्ग है। यदि किसी को जम्मू से सीधे गुलमर्ग जाना हो तो उसे श्रीनगर जाने की आवश्यकता नहीं है इसी बाइपास से होते हुए गुलमर्ग निकल जायेंगे। यही बाइपास बड़गाम जिले में स्थित श्रीनगर हवाई अड़ड़े के करीब से होकर निकलता है। इस बाइपास से श्रीनगर रेलवे स्टेशन भी पहुँचा जाता है।
जम्मू-श्रीनगर हाइवे के दोनों ओर बर्फ़ ही बर्फ़ दिखायी दे रही थी। बीच में 2-3 बार फ़ोटो लेने लायक जगह दिखायी दी तो कार रुकवायी, फ़ोटो लिया और आगे बढ गये। अपनी गाड़ी से घूमने में सबसे बड़ा लाभ यही होता है, जब जहाँ मन किया रुके, मन की करने के बाद आगे निकल लिये। सरकारी/सार्वजनिक वाहन सस्ता तो पड़ता है लेकिन उसमें मन मरजी नहीं घूमा जा सकता। जम्मू की ओर बढते समय मैंने पाया कि सन 2010 में जब हम बाइक से मनाली से लेह होकर वापसी में यहाँ से होकर जम्मू गये थे। आज वह सड़क काफ़ी चौड़ी बनायी जा रही है।
मैंने कार चालक से कहा। यह सड़क कहाँ तक चौड़ी बनायी जा रही है? उसने बताया कि यह सड़क उधमपुर के करीब से ही 6 लेन की बनायी जा रही है। इस सड़क के बनने के उपराँत जम्मू से श्रीनगर की दूरी लगभग 45-50 किमी कम हो जायेगी। ऐसा कैसे? इस नेशनल हाइवे के बनाने में मार्ग को इतना सीधा रखने की कोशिश की गयी है जिससे एक बस 100 की गति से भी दौड़ायी जायेगी तो उसे कोई दिक्कत नहीं आने वाली। इसका मतलब तो मार्ग सीधा तभी हो पायेगा, जब इसमें बहुत सारी सुरंगों का निर्माण किया जाये।
काजीकुन्ड़ से उधमपुर तक कई सुरंगों का निर्माण कार्य प्रगति पर है। अधिकतर सुरंगे बन चुकी है। आने वाले दो-तीन साल में यह राजमार्ग बनकर तैयार हो जायेगा। ठीक है तब तो अपना एक और बाइक यात्रा करने का प्लान तैयार हो जायेगा, क्योंकि तब तक रोहतांग वाली सुरंग भी बन जायेगी। अबकी बार जम्मू से जाकर रोहतांग से वापसी की जायेगी। हो सका तो मनाली ना आकर, कुन्जुम पास पार कर, रामपुर शिमला वाले मार्ग से वापसी होगी। देखते है भविष्य में क्या छिपा है?
आधे घन्टे बाद हमारी कार अवन्तीपोरा मन्दिर के सामने पहुँच चुकी थी। कार से अपना कैमरा ले लिया। कार चालक ने कहा कि मैं सामने उस दुकान के पास खड़ा हो जाऊँगा। सड़क से मन्दिर परिसर में दाखिल हुए। गेट के उल्टे हाथ टिकट काऊन्टर बना है यहाँ से टिकट लेकर आगे बढे। परिसर में एक सरदार जी खड़े थे। यह सरदार जी यहाँ के ही रहने वाले है और इस मन्दिर में गाइड़ का कार्य करते हुए 25 साल बिता चुके है। वैसे तो मैं किसी गाइड़-वाइड़ के चक्कर में नहीं पड़ता। लेकिन जब सरदार जी बोले, आप कुछ देना या मत देना। मैं आपसे माँगूगा नहीं, तो सोचा कि चलो देखते है सरदार जी अपनी बात पर कितना कायम रहते है?
सरदार जी ने मन्दिर के बारे में विस्तार से बताना शुरु कर दिया। उन्होंने हमें बहुत कुछ बताया। उसमें से मेरे काम की यही बात निकली थी कि इस मन्दिर को हजार साल पहले हिन्दू राजा ने बनवाया था। उस समय यहाँ सिर्फ़ हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग निवास किया करते थे। इस जगह को पहले अवन्तीपुर कहा जाता था। आज इसे अवन्तीपोरा कहा जाने लगा है। यह मन्दिर वर्तमान में पुलवामा जिले में आता है। झेलम नदी इस मन्दिर के नजदीक ही है। हो सकता है कि इस मन्दिर को बनाते समय झेलम इसके सामने बहती होगी। यह मन्दिर वैकुन्ठ धाम वासी विष्णु को समर्पित है। मन्दिर परिसर में चारों ओर बर्फ़ बिखरी हुई थी। अवन्तीपोरा मन्दिर को हिन्दू राजा अवन्ती वर्मन ने 855-883 में बनवाया था। उसने यह जगह अपनी राजधानी के रुप में चुनी थी।
यह मन्दिर उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मन्दिर जैसा ही था। कई सौ वर्ष पहले यहाँ आये जबरदस्त भूकम्प के कारण यह मन्दिर धवस्त हो गया। भूकम्प इतना भयंकर था कि यह मन्दिर अपने मलबे में ही दबकर गायब हो गया। इस मन्दिर को कई सौ साल बाद किसी निर्माण कार्य के कारण खोज निकाला गया। इस मन्दिर को बनाने में जिस तरह के सलेटी पत्थर का उपयोग किया गया है। वह देखने में ही कच्चा लगता है सलेटी पत्थर ज्यादा मजबूत नहीं होता है। इसमें पत्थर को सांचे की तरह एक दूसरे में फ़साया गया था। जब कभी यह मन्दिर बना होगा, बहुत ही भव्य रहा होगा।
मन्दिर देख लिया। यह देख आश्चर्य हुआ कि इतने विनाश के बाद भी मन्दिर में काफ़ी शिलाचित्र सुरक्षित बचे हुए है। उन चित्रों को देखने से ही साफ़ पता लग जाता है कि यह किसका है? सरदार जी ने हमारे बहुत सारे फ़ोटो लिये। चलो सरदार जी को कुछ इनाम दिया जाये। हाँ जी सरदार जी आपको क्या दिया जाये? जो आपकी इच्छा? मेरी इच्छा तो नहीं देने की है। जैसे आपकी इच्छा। मैं चलने लगा। सरदार जी चुप। अन्त में मैंने सरदार जी को 50 रु का करारा नोट देकर कहा। ठीक है सरदार जी। सरदार जी बोले, मैंने पहले ही कहा था जो आपकी इच्छा। अच्छा सरदार जी चलते है। आप तो यहाँ हमेशा रहते ही हो। बाइक यात्रा में आपसे पुन: मुलाकात होगी। सरदार बोले वाहे गुरु आपकी हर यात्रा सफ़ल करे। मैंने सरदार जी को कहा, सरदार जी वाहे गुरु कहाँ मिलेंगे? सरदार जी मुस्कुरा दिये। सरदार जी जानते है और मैं भी, कि वाहे गुरु या अन्य कोई भगवान, अल्ला आदि नहीं मिलने वाले। यह सब धर्म स्थल तो धर्म के ठेकेदारों के बनाये मालिक है जबकि असली शक्ति तो एक ही है जिसके बारे में कोई इन्सान नहीं जानता? बाहर आते ही अपनी कार में बैठकर पहलगाम की ओर चल दिये।

अगले लेख में पहलगाम जाते समय आने वाली ग्रीन टनल (पेड़ों की सुरंग) व मटन स्थित मार्तन्ड़ सूर्य मन्दिर का भ्रमण कराया जायेगा। (यात्रा अभी जारी है।)















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4 टिप्‍पणियां:

  1. आपके माध्यम से काश्मीर की विस्तृत घुमाई हो रही है।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुती इस यात्रा लेख की,कश्मीर पर पहले हिन्दू राजा का अधिकार था व मन्दिर की जानकारी के लिए आभार,ओर अगली बाईक यात्रा कब शुरू करेगे

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