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गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

Sangla-Rakcham-Powari-Kharo Bridge सांगला-रकछम-पोवारी-खारो पुल तक

किन्नौर व लाहौल-स्पीति की बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये है।
11- सतलुज व स्पीति के संगम (काजिंग) से नाको गाँव की झील तल
12- नाको गाँव की झील देखकर खतरनाक मलिंग नाला पार कर खरदांगपो तक
13- खरदांगपो से सुमडो (कौरिक बार्ड़र) के पास ममी वाले गियु गाँव तक (चीन की सीमा सिर्फ़ दो किमी) 
14- गियु में लामा की 500 वर्ष पुरानी ममी देखकर टाबो की मोनेस्ट्री तक
15- ताबो मोनेस्ट्री जो 1000 वर्ष पहले बनायी गयी थी।
16- ताबो से धनकर मोनेस्ट्री पहुँचने में कुदरत के एक से एक नजारे
17- धनकर गोम्पा (मठ) से काजा
18- की गोम्पा (मठ) व सड़क से जुड़ा दुनिया का सबसे ऊँचा किब्बर गाँव (अब नहीं रहा)
20- कुन्जुम दर्रे के पास (12 km) स्थित चन्द्रताल की बाइक व ट्रेकिंग यात्रा
21- चन्द्रताल मोड बातल से ग्रामफ़ू होकर रोहतांग दर्रे तक
22- रोहतांग दर्रे पर वेद व्यास कुन्ड़ जहां से व्यास नदी का आरम्भ होता है।
23- मनाली का वशिष्ट मन्दिर व गर्म पानी का स्रोत

KINNAUR, LAHUL SPITI, BIKE TRIP-09             SANDEEP PANWAR


सांगला से सुबह 5 बजे उठकर आज उस यात्रा की तैयारी करने लगे जिसके बारे में कहा गया है कि यह यात्रा दुनिया की सबसे खतरनाक सड़क पर होने वाली है। होटल के कमरे में गर्म पानी उपलब्ध था जिसका भरपूर लाभ उठाया गया। अगर इस कमरे में गर्म पानी ना होता तो शायद हममें से कोई ना नहाता? शाम को हुई, हल्की-फ़ुल्की बारिश से सुबह के समय भी गुलाबी ठन्ड़क महसूस हो रही थी। राकेश अपने आप को शायद बहुत ज्यादा बड़ा बाइक चालक मान रहा था कारण यह कि मुझे बाइक चलाने के लिये देने को तैयार नहीं था। मैंने कहा कि आज सुबह से ही बाइक मैं चलाऊँगा तो भाई बोला जाट भाई इस बाइक पर आपका हाथ नहीं बैठा हुआ है सड़क कितनी खतरनाक है? यह तो आप कल देख ही चुके हो। मैं समझ गया कि राकेश मुझ पर विश्वास नहीं कर पा रहा है कि मैं किसी को पीछे बैठा कर भी बाइक चला सकता हूँ। ड़र के आगे जीत है। जो डर गया, सो मर गया।




अपुन की अभी तक आदत रही है साथ जाने वाले बन्दों से जितना हो सके, उतना विवाद से बचना चाहिए। यह अलग बात है कि उस यात्रा के बाद भले ही उस बन्दे के साथ दुबारा यात्रा पर जाने का विचार भी ना किया जाये। सुबह ठन्ड़ तो थी लेकिन इतनी भी ज्यादा नहीं कि हालत खराब हो? नहा धोकर कमरे से अपना सामान उठाया और नीचे सड़क पर खड़ी अपनी बाइक के पास जा पहुँचे। मेरे रकसैक में अब तक वजन नहीं था मेरे बैग में सिर्फ़ दो मैट ही थे जिसका कुल वजन मात्रा आधा किलो ही होगा। आज मेरे बैग में कम से कम 4-5 किलो सेब समाये हुए थे। टैन्ट आज भी मनु की बाइक पर टाँग दिया था। रात की बारिश के कारण बाइक अभी भी गीली थी। कपड़े से बाइक को साफ़ करना पड़ा। सांगला से करछम तक जोरदार ढलान है जिस कारण बाइक स्टार्ट करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। बाइक पर बैठे, पैरों से हल्का सा धक्का दिया और बाइक ढलान की दिशा में लुढकना शुरु हो गयी।

हमारी बाइक में आधी टंकी से भी ज्यादा पैट्रोल था। सांगला में सुबह सवेरे पैट्रोल पम्प चालू था। पहाडों में इतनी सुबह पट्रोल पम्प खुला देखकर आश्चर्य हुआ। पहाड़ में बाइक पर यात्रा करते समय अपना नियम रहता है कि बाइक की टंकी हमेशा फ़ुल कराते चलते रहो। यहाँ भी टंकी फ़ुल करा ली गयी। अगला पैट्रोल पम्प कहाँ मिलेगा? हमें ज्यादा जानकारी लेने की जरुरत नहीं पडेगी। पम्प के सामने भी काफ़ी ढलान थी बाइक को धक्का लगाया और करछम के लिये चल दिये। पीछे बैठने के कारण ठण्ड का पता नहीं लग रहा था। राकेश सामने से आने वाली ठन्ड़ी हवाये रोके हुए था। मेरे हाथ में कैमरा तैयार था जहाँ भी अच्छा सीन आयेगा। फ़ोटो लिये बिना माना नहीं जायेगा।

वैसे तो करछम तक ही ढलान थी लेकिन बीच-बीच में ऐसी जगह भी आयी थी जहाँ पर बाइक को स्टार्ट करने की जरुरत आन पड़ती थी। बास्पा गाँव तक आते-आते दिन का काफ़ी उजाला हो गया था। एक जगह जाकर सड़क काफ़ी दूरी तक सीधी दिखायी देती है। मैंने पीछे मुड़कर मनु को देखना चाहा, लेकिन मनु कही दिखायी नहीं दिया। राकेश को बोलकार बाइक रुकवायी, मनु का पता नही है कि कहाँ गया? एक मोड़ पर रुककर हम मनु की प्रतीक्षा करने लगे। नंगी आँखों से मनु की बाइक दिख नहीं रही थी मैंने कैमरे का जूम करके सड़क पर दूर तक देख लिया, लेकिन मनु नजर नहीं आया। मनु ने आने में कई मिनट लगा दिये। तब तक हम नीचे खाई में पानी की पाइप लाईन से बिजली बनाने का जुगाड़ देख रहे थे।

मनु के आने के बाद कुछ देर तक रुककर नीचे के नजारे देखते रहे। आगे जाने पर खाई के दूसरी तरफ़ वाले पहाड़ पर किसी गाँव में जाती हुई सड़क दिख रही थी। हम काफ़ी ऊँचाई पर थे जिससे दूसरी तरफ़ की सड़क साफ़ दिखायी दे रही थी। ऊपर जाती सड़क सर्पीले साँप की तरह बलखाती हुई ऊपर किसी जगह जा रही होगी। मैंने राकेश से कहा, सामने वाले पहाड़ के ऊपर चले। राकेश बोला मैं कई महीने पहले यहाँ आया था ना, तब मैं इसी बाइक को लेकर ऊपर तक गया था। यह सड़क सामने वाले पहाड़ की चोटी तक नहीं ले जाती है। अगर चोटी तक सड़क नहीं जाती है तो फ़िर हम भी वहाँ नहीं जायेंगे। अगर सामने वाली सड़क उस पहाड़ की चोटी तक लेकर जाती तो वहाँ से लिये गये फ़ोटो बहुत लाजवाब होते?

पैट्रोल खर्च किये बिना बाइक चलाने का अलग अनुभव होता है। राकेश वाली बुलेट की एवरेज मात्र २५ किमी प्रति लीटर थी। जबकि मनु की बाइक 5-55 की औसत दे रही थी। बुलेट भले ही ज्यादा पैट्रोल पी रही थी लेकिन बुलेट जिस धड़ाके से पहाड़ पर चढती थी उसे देख एवरेज की बात करने का मन ही नहीं करता था। मुझे याद है कि आज जिस सड़क पर हम मजे से बिना स्टार्ट किये बाइक भगाये जा रहे है कल इसी सड़क पर मनु की बाइक दम तोड़ने वाली थी। मनु की बाइक मात्र 100cc की है यदि गलती से मनु की बाइक पर भी दो बन्दे होते तो उस बाइक का राम नाम सत्य था। घुमक्कड़ बन्दे को कम से कम 125cc की बाइक तो लेनी ही चाहिए। लेकिन मनु को प्रति दिन भी लम्बी दूरी में बाइक चलानी होती है इसलिये मनु ने हल्की बाइक ली थी ताकि दैनिक जीवन में पैट्रोल बचाया जा सके। मैं अपनी बाइक को दैनिक जीवन में उपयोग करता ही नहीं हूँ।

चलते-चलते या कहे कि लुढकते-लुढकते मलबे वाली उस जगह पहुँच गये जहाँ पर मलबे ने सड़क ही समाप्त कर दी है अब उस सड़क के खुलने की सम्भावना भी नहीं है। यहाँ पर नदी पार करने के लिये बनाया पुल पार करने का अलग ही रोमांच है। पुल नदी के तल के बेहद ही निकट होकर बनाया गया है। मनु बार-बार पीछे रह जाता था। मनु को फ़ोटो लेने के लिये बाइक रोकनी पड़ती थी जबकि हमें पल झपकने के लिये ही फ़ोटो के लिये रुकना होता था। मौका लगते ही अपने साथ लाये व जेब में बाहर ही रखे गये सेब, यहाँ रुककर खा लिये गये। सेब खाने के बाद मलबे के फ़ोटो लिये और आगे बढ चले। मनु की बाइक का जोश यहाँ ढीला हो गया था। इस पुल से करछम पहुँचने में ज्यादा देर नहीं लगती है। कुछ मिनटों बाद हम करछम पहुँच चुके थे।

करछम बान्ध से रिकांगपियो की दूरी लगभग 22-23 किमी है। बान्ध के आसपास की सड़क बहुत बढिया बनायी गयी है। बेकार सड़क पर चलते-चलते घन्टे भर से ज्यादा हो गया था। जब शानदार सड़क मिली तो बाइक भगाने में अच्छा लगा। यहाँ भी सांगला जाने वाली सड़क की तरह सड़क पर गिरे भारी मलबे ने सड़क ही समाप्त की हुई है। किन्नर कैलाश यात्रा में आते-जाते समय बस से यह खतरनाक जगह पार की थी। उस दिन बस में बैठा हुआ सोच रहा था कि इस जगह को बाइक से कब पार करेंगे? आज सिर्फ़ एक माह बाद हम बाइक से यह जगह पार कर रहे थे। मलबे वाली जगह पार करने के बाद राकेश चाय की दुकान देखते ही बोला, जाट भाई कुछ खाकर चलेंगे।
       
यहाँ रुककर मनु व राकेश ने चाय व बिस्कुट का काम तमाम किया। वे दोनों अपना पेट भर रहे थे तो मैं कहाँ पीछे रहने वाला था? मैंने अपने बैग से दो सेब निकाल लिये। जब तक वे दोनों चाय सटक कर बाहर आये, तब तक मैंने एक सेब इस धरा से गायब कर दिया। दूसरा सेब मेरे हाथ में देखकर उन दोनों ने भी अपने सेब निकाल कर खाने शुरु कर दिये। इतने सारे सेब हमारे पास थे। हम बात कर रहे थे कि जितना हो सकेगा, दिन में भोजन नहीं करेंगे। भोजन केवल रात को ही किया जायेगा। इस तरह सेबों का वजन कम हो जायेगा।

सेब खाने के बाद आगे चल दिये। अभी कुछ दूर ही गये थे कि सेना के एक कैम्प के आगे सड़क पर भयंकर कीचड़ मिली। यहाँ की कीचड़ देखकर लग रहा था कि ऊपर से आये पानी के कारण यह कीचड़ बनी होगी। यहाँ से 2-3 किमी जाते ही शांगटांग पुल भी आ गया। इस पुल से ही सीधे हाथ सतलुज किनारे वाला मार्ग तंगलिंग तक जाता है। जिसकी इस पुल से 2 किमी की दूरी है। तंगलिंग गाँव ही किन्नर कैलाश यात्रा का आधार स्थल है लेकिन उस गाँव में आपको किसी प्रकार की रहने या खाने की सुविधा नहीं मिलेगी? हम शांगटाग का पुल पार कर सतलुज के उल्टे हाथ वाले किनारे पर चलते रहे। दो किमी बाद पोवारी नामक जगह आती है। यहाँ से तंगलिंग गाँव दिखायी देता है। पोवारी से तंगलिंग को जोड़ने वाला रज्जू मार्ग अब ठीक कर दिया गया था।

पोवारी से आगे बढ़ने पर एक तिराहा आता है यहाँ से एक मार्ग ऊपर रिकांगपियो के लिये जाता है। रिकांगपियों में भी पैट्रोल पम्प है लेकिन हमें तो सतलुज के साथ-साथ चलना था जबकि रिकांगपियो जाने के लिये ऊपर वाले मार्ग पर अलग दिशा में जाना पड़ता है। पोवारी से लेकर खारो पुल तक सड़क की हालत बेहद बुरी हालत में खराब मिली। खराब सड़क पर पीछे बैठने का पहला अनुभव था इस कारण मैं पहले ही सचेत था कि राकेश बाइक दौड़ाते हुए किसी हल्के-फ़ुल्के गड़ड़े में गलती से भी बाइक निकालेगा तो मेरा हालत मजेदार होगी। बाइक चालक कब व कैसे गड़ड़े से बाइक निकालने वाला है? अब तक डेढ लाख 1,50,000 किमी बाइक चलाकर इतना अनुभव तो मिल ही गया है। जब जब कोई खड़ड़ा बाइक के सामने होता तब-तब बाइक पर उछल जाते थे। मैंने तो इससे भी ज्यादा बुरी सड़कों व विपरीत हालात में इन पर बाइक चलायी है रोमांच अनुभव कराना है तो फ़िर इन मार्गों से ड़रना कैसा?

अभी तक हम शांगटांग पुल पार करने के बाद से ही सतलुज के उल्टे हाथ चलते आ रहे थे। इस रोड़ पर एक गजब बात देखी कि जब भी सड़क सतलुज के किनारे उल्टे हाथ चलती थी तब सड़क की दुर्गति सामने आती थी लेकिन जब सड़क सीधे हाथ होती थी तो अधिकतर सड़क बढिया हालत में हमारे सामने होती थी। हमें दो पुल एक साथ दिखायी देने लगे। नजदीक जाकर पता लगा कि पहले वाला पुल बड़ा व नया बनाया जा रहा है जबकि दूसरा पुल पुराना व संकरा पुल है। इस जगह का नाम खारो है। यहाँ खारो पुल के नाम से बोर्ड लगा हुआ है।

बड़ा व नया पुल अब तक शुरु भी कर दिया गया होगा। पुल के बीच में बाइक आते ही मैंने राकेश को कहा रुक जा महाराज। पुल के अन्दर बाइक के फ़ोटो लेकर आगे जायेंगे। इस पुल का फ़र्श लोहे के जाल पर लकड़ी के बड़े-बड़े फ़टटे ड़ाल कर बनाया गया है। हर फ़टटे के बीच कम से कम चार इन्च की खाली जगह रखी गयी है। मैंने फ़ोटो लेने के लिये अपने कैमरे के लैंस का ढक्कन/कैप उतारा ही था कि लैंस की कैप मेरे हाथों से छिटक कर नीचे गिर गयी। कैप सीधे नीचे सतलुज के पानी के अन्दर जाते देख मेरे होश उड़ गये। लगातार दूसरे दिन कैमरे के लैंस की कैप मुझसे दूर जाना चाहती थी। राकेश बोला जाट भाई क्या कर रहे हो? मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ। जब कैप पकड़ में नहीं आयी तो क्या करुँ? राकेश बोला मैंने पहले ही कहा था कि कैप को किसी धागे से बान्ध लो? लगता है कि अब कैप बान्धनी ही पडेगी।


इस खारो पुल के सामने एक बोर्ड लगा हुआ था जिस पर लिखा था कि आप इस समय विश्व के सबसे दुर्गम मार्ग पर यात्रा कर रहे है। अरे, दुर्गम मार्ग यहाँ से शुरु होता है। इसका मतलब हम अब तक आसान मार्ग से होकर आ रहे थे। (यात्रा अभी जारी है।)




















5 टिप्‍पणियां:

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