पेज

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

Batal (Chander taal) to Rohtaang Pass बातल (चन्द्रताल मोड़) से रोहतांग दर्रा

किन्नौर व लाहौल-स्पीति की बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये है।
11- सतलुज व स्पीति के संगम (काजिंग) से नाको गाँव की झील तल
12- नाको गाँव की झील देखकर खतरनाक मलिंग नाला पार कर खरदांगपो तक
13- खरदांगपो से सुमडो (कौरिक बार्ड़र) के पास ममी वाले गियु गाँव तक (चीन की सीमा सिर्फ़ दो किमी) 
14- गियु में लामा की 500 वर्ष पुरानी ममी देखकर टाबो की मोनेस्ट्री तक
15- ताबो मोनेस्ट्री जो 1000 वर्ष पहले बनायी गयी थी।
16- ताबो से धनकर मोनेस्ट्री पहुँचने में कुदरत के एक से एक नजारे
17- धनकर गोम्पा (मठ) से काजा
18- की गोम्पा (मठ) व सड़क से जुड़ा दुनिया का सबसे ऊँचा किब्बर गाँव (अब नहीं रहा)
20- कुन्जुम दर्रे के पास (12 km) स्थित चन्द्रताल की बाइक व ट्रेकिंग यात्रा
21- चन्द्रताल मोड बातल से ग्रामफ़ू होकर रोहतांग दर्रे तक
22- रोहतांग दर्रे पर वेद व्यास कुन्ड़ जहां से व्यास नदी का आरम्भ होता है।
23- मनाली का वशिष्ट मन्दिर व गर्म पानी का स्रोत


KINNAUR, LAHUL SPITI, BIKE TRIP-21                                       SANDEEP PANWAR

बातल से आज सुबह जो यात्रा शुरु हो रही है उसके बारे में हमने नहीं सोचा था कि इतना दुर्गम मार्ग हमें मिल सकता है कि सड़क की जगह पत्थरों से होकर निकलना पडेगा। कांगड़ी ढाबे वाले ने बताया था कि आप अभी तक जितना आसान मार्ग देखते हुए आये हो, रोहतांग की ओर ग्रामफ़ू तक 50 किमी उससे भी कई गुणा कठिन मार्ग आयेगा? बातल समुन्द्रतल से 3960 मीटर ऊँचाई पर है हमें ग्रामफ़ू की ओर जाना है वहाँ तक लगातार ढलान मिलने वाली है। खराब सड़क है लेकिन उतराई है यही एक बात अच्छी थी। बीच में कुछ चढाई भी आयेगी। ग्रामफ़ू समुन्द्रतल से 3320 मीटर ऊंचाई पर है। रोहतांग 3978 मीटर है। कल शाम को हम चन्द्रताल से चले थे जिसकी ऊँचाई समुन्द्रतल से 4250 मीटर के आसपास है।



सुबह बातल में फ़ोटो लेते समय वहाँ लगे दो सूचना फ़लक पर नजर गयी। जिन पर दो पर्वतारोही की मृत्यु के बारे में बताया गया है। पहले फ़ोटो में जिस पर्वतारोही का विवरण है वह एक महिला थी जो महिलाओं के दल को लेकर वर्जिन पीक गयी थी। उन्होंने सफ़लता से वर्जिन पीक फ़तेह कर ली थी। वापसी में बातल के सामने चन्द्रा नदी में मिलने वाले करछा नाले को पार करते समय सुजाया नाममहिला पर्वतारोही की मौत हो गयी थी। सुजाया गुहा 26 अगस्त 1970 को यहाँ करछा नाला पार करते समय मृत्यु को प्राप्त हुई। उहोंने २१ अगस्त को वर्जिन चोटी फ़तेह की थी। वर्जिन चोटी 6136 मीटर /20130 फ़ुट बतायी गयी है।

इसी करछा नाले ने ना जाने कितनी जाने ले होंगी। हाँ सेना के एक दल ने कुल्लू पोमोरी नाम चोटी पर विजय प्राप्त की थी। समुन्द्रतल से 21500 फ़ुट ऊँची चोटी को सफ़लता से पूरा कर वापसी लौटते समय सेना के दल से प्रेम लाल करछा नाला पार करते समय इस नाले की चपेट आ गये। प्रेम लाल की मौत भी इस नाले में 25 जुलाई सन 1996 को हुई थी। करछा नाला क्या बला है? पर्वतारोहियों की कब्र के रुप में कुख्यात यह नाला आज इतना भयंकर नहीं है। पहले बर्फ़ भी खूब होती थी। जिसका पानी बनकर इन नालों में तेज बहाव से बहता था। तेज बहाव के कारण व ठन्ड़ से पर्वतारोहियों की मौत होती थी। उस समय साधन भी कम होते थे।

पर्वतारोहियों से समबन्धित सूचना फ़लकों को देखने के बाद कांगड़ी ढाबे वाले के पास आये। सुबह के 6 बजने वाले थे। उसने हम लोगों के लिये पराँठे बनाने शुरु कर दिये। मैंने अपने हिस्से के 2 परांठे खाये और दोनों साथियों का इन्तजार करने लगा। हमेशा भूख से बैचैन रहने वाला राकेश पहली बार नाश्ते को मना करता दिखा। उसकी यह बात हजम नहीं हुई। हाजमौला लेना चाहता था लेकिन उस समय हाजमौला हमारे पास नहीं थी। यहाँ मैंने पराँठों के साथ दूध का गिलास लिया था। जिसका हिसाब मैंने अलग से चुकाया था।

कांगड़ी ढाबे वाले से मैंने कहा कि आपने अपने ढाबे का नाम कांगड़ी क्यों रखा है? उसने बताया कि वह कांगड़ा के पालमपुर के पास का रहने वाला है। यहाँ सीजन के 4 महीने ढाबा लगाता है। ढाबे का सामान कहाँ छोडते हो? उसने कहा कि ढाबे का सामान ट्रक में भरकर लोसर छोड आते है। यहाँ छोड़ने में कुछ रिस्क है? वहाँ अपना जानकार रहता है उसके पास सुरक्षित रहता है।

ढाबे वाले से उसका मोबाइल नम्बर भी लिया था। जिसके बारे में उसने बताया कि यह नम्बर पालमपुर में ही रहता है। सर्दियों में वह भेड़ चराने का काम करता है। जब सभी ने भोजन, चाय-पानी जो कुछ करना था कर लिया तो वहाँ से चलने की तैयारी करने लगे। अपना सामान लेकर बाइक के पास पहुँचे तो देखा कि बाइक की सीट पर तो बर्फ़ जमी हुई थी। हमने सोचा कि हाथ से झाड़ने से बर्फ़ हट जायेगी, लेकिन वह तो ऐसी जमी थी कि बाइक की चाबी से खुरचकर बर्फ़ हटानी पड़ी। वहाँ रात को तापमान कम से कम -2/3 डिग्री पहुँचा होगा, तभी इतनी सख्त बर्फ़ बाइक की सीट पर जमी हुई थी। कपडा लेकर सीट को काफ़ी देर तक रगड़ना पड़ा।

आज की यात्रा भी कच्ची सडक पर ही होने वाली थी। लोसर से आगे सड़क नहीं बनी थी। यहाँ इतनी बर्फ़ पड़ती है कि यदि हर साल सड़क बनाने में करोडों रुपये बर्बाद किये भी जाये तो चार महीने में सड़क बनकर तैयार होगी तब तक फ़िर से बर्फ़ गिरना शुरु हो जायेगी। इतनी बर्फ़ में तारकोल की सड़क कहाँ बचेगी? बातल से चलने के बाद से ही ढलान मिलता रहा जिससे बाइकों को ज्यादा जोर लगाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। बर्फ़ के इलाकों में सीमेंटिड़ सड़क ही एकमात्र उपाय है। जोजिला दर्रे में मैंने देखा है कि वहाँ पर सीमेंटिड़ सड़क बनायी गयी है।

पत्थरों वाले मार्ग से बाइक पर बैठकर ऐसा अनुभव हो रहा था कि लक्ष्मण झूले की तरह झूलते जा रहे थे। कई बार तो बाइक से आधा-आधा फ़ुट से भी ज्यादा उछल जाते थे। राकेश की बुलेट के लेगगार्ड़ के नट वोल्ट ढील हो गये थे। लेगगार्ड़ के नट वोल्ट ढीले होकर निकल गये। इसका पता तब चला जब लेगगार्ड़ टन-टन कर बजने लगा। बाइक रोककर देखा कि आखिर आवाज कहाँ से कहाँ रही है? मेरे पास एक छोटी सी रस्सी थी जिसे लेगगार्ड़ से बान्धकर उसकी आवाज बन्द की। बान्धने के बाद लेगगार्ड़ की आवाज बहुत कम रह गयी थी। कल खराब रास्ते पर बाइक काफ़ी तेज भगायी थी हो सकता है कि लेगगार्ड़ के नट वोल्ट तभी ढीले हुए होंगे।

सुबह से चलते हुए काफ़ी देर हो गयी थी। हम ऊँचे पहाडों के बीच नदी किनारे चल रहे थे जहाँ तक सूरज की धूप पहुँचने में समय लगता है। एक जगह जाकर धूप मिली। धूप शरीर पर लगते ही गर्मी का अहसास हुआ। दो-तीन मिनट रुककर धूप का स्वाद लिया। आगे चलते-चलते धूप का इन्तजार रहता था कि फ़िर कब मिलेगी? लगभग १० किमी जाने के बाद धूप लगातार मिलती रही। लगातार धूप मिलते रहने से ठन्ड़ का प्रकोप कम हो गया था।

सड़क के बारे में तो बता ही चुका हूँ कि यहाँ सड़क नहीं है। जिधर ट्रक निकलते थे उधर ही सड़क बन जाती थी। कई बार तो हमारे सामने ऐसा मार्ग आया कि वहाँ पर मुझे बाइक से उतरना पड़ा। राकेश को अकेले ही 30-40 मीटर तक बाइक निकालनी पड़ी। हमें कई बार तो 6-7 इन्च से भी ज्यादा पानी से होकर बाइक निकालनी पड़ी। एक दो जगह यह सोचना भी पड़ा कि पानी के नीचे कोई बड़ा गड़ड़ा है या नहीं। हमें चलते हुए एक घन्टा हो गया था लेकिन अभी तक हमें आगे व पीछे से कोई वाहन या कोई इन्सान दिखाई नहीं दिया।

छतडू नामक जगह पर पहली दुकान (ढाबा) मिली। यहाँ हिमाचल सरकार का एक रेस्ट हाऊस भी बना हुआ है। दुकान पुल के नजदीक है जबकि रेस्ट हाऊस आधा किमी पहले मिला था। मनु हमसे आगे निकल गया था। रेस्ट हाऊस के पास मनु रुका हुआ था। राकेश को चाय की इच्छा थी इसलिये हम वहाँ नहीं रुके। मनु वहाँ बैठा हुआ सेब खा रहा था। सेब तो हमें भी खाने है लेकिन आगे दुकान पर रुकेंगे। आगे छतडू का ढाबा आ गया। ढाबे को पुल के ठीक पहले बनाया गया है। राकेश ने यहाँ पर शायद चाय पी थी। ढाबे से आगे चलते ही पुल आया। यहाँ दो पुल बने हुए है। पहले पुराना पुल आता है हम उस पुल से निकल गये। नया पुल उसके साथ वाला है हम समझे कि एक पुल जाने के लिये है व दूसरा पुल आने के लिये बनाया गया है।

एक जगह सड़क पर पानी की नदी बह रही थी जिसे पार करना बहुत मुश्किल था। हमारी इस यात्रा में दिल्ली के राजेश सहरावत अपनी वैगन आर कार लेकर आना चाहते थे। उनकी वैगन आर कार यहाँ से आगे किसी भी सूरत में नहीं जाने वाली थी। यहाँ एक मोड़ है ऊपर से एक झरना आकर मार्ग पर गिरता है। अभी सितम्बर माह का अंतिम सप्ताह चल रहा है। इस झरने को जुलाई अगस्त में पार करना जो बहुत बड़ी आफ़त हो जाता होगा। बड़ी गाडियाँ तो फ़िर भी इसे पार कर जाती होंगी। जीप, बाइक वालों के साथ काफ़ी समस्या आती होगी।

यहाँ इस झरने वाली जगह मैं बाइक से उतर गया। काफ़ी उबड़-खाबड़ छोटे-बड़े पत्थर थे जिनसे बाइक को निकालना आसान कार्य नहीं था। साच पास पार करते समय इस तरह कई खतरे पार किये थे। राकेश बाइक लेकर निकल पड़ा। कई बार अटकने-झटकने के बाद राकेश इस झरने से पार हो सका। मनु मेरे पास खड़ा राकेश की बाइक की वीडियो बना रहा था। अब मनु की बारी थी। मनु का कैमरा लेकर मैंने उसके फ़ोटो लेने शुरु किये। मनु राकेश के मुकाबले आसानी से यह झरना पार कर गया। मनु की बाइक हल्की थी शायद इस कारण मनु को कम समस्या आयी।

झरने से आगे निकलने के बाद एक जगह ट्रक लाइन लगाकर खड़े थे उनके पीछे डीजल तेल की एक धार कच्ची सड़क पर दिखाई दे रही थी जो उनमें से किसी ट्रक से निकलने तेल के कारण बनी थी। जब हम उन ट्रकों को पार कर रहे थे तो ट्रक वाले एक ट्रक की फ़टी हुई टंकी से तेल निकालने में लगे हुए थे। हम ट्रक मिलने वाली जगह से एक किमी दूरी तक डीजल की बनी लाईन देखते हुए गये। हम यह सोच रहे थे कि आखिर ट्रक की टंकी फ़ुटी कैसे? हमें डेढ किमी बाद एक मोड मिला। वहाँ पहाड़ से आये मलबे के कारण काफ़ी ऊँची स्पीड़ ब्रेकर बन गयी थी इसी ब्रेकर से होकर ट्रक को भी निकलना पड़ा था। यही ट्रक की टंकी में कोई पैना पत्थर टकरा गया। ट्रक की टंकी फ़टने से उसका काफ़ी डीजल बर्बाद हो गया था।

ट्रक वाली बात की पीछे छोड़कर आगे बढे तो चढाई शुरु हो गयी। यहाँ हमें कुल्लू से काजा जाने वाली बस मिली थी। मैंने बस चालक को रुकने का इशारा किया तो वह रुक गया। उसने बताया कि वह 6 घन्टे में कुल्लू से यहां तक पहुँच पाया है। सुबह 4/5 बजे कुल्लू से चलने का समय बताया था। इस बस को काजा पहुँचने में रात हो जाती है। एक दूसरी बस काजा से सुबह इसी समय चलती है जो रात होने तक कुल्लू पहुँचा देती है। यदि कोई हमारी तरह बाइक से नहीं जाना चाहता है तो उसके लिये यह सबसे अच्छा साधन रहेगा। इस रुट पर केवल चार महीने ही बस चलती है। नवम्बर से जून तक बर्फ़ के कारण कुन्जुम दर्रे को पार करना नामुमकिन है। काजा जाने का दूसरा मार्ग रिकांगपियो/ रामपुर/ शिमला/ होकर है जो वर्ष भर खुला रहता है। यदि उस मार्ग पर बर्फ़बारी भी हो जाते तो भी दो-चार दिन में वह मार्ग खोल दिये जाने की सम्भावना होती है।

कई लूप चढकर ऊपर आये तो देखा कि रोहतांग दिखाई देने लगा है। अब सडक भी आ गयी थी। जल्द ही ग्रामफ़ू भी आ गया। ग्रामफ़ू में उस मोड़ के सामने बनी चाय की दुकान "सोनम ढाबा" से राकेश ने चाय बनवायी। यहाँ इस तिराहे से स्पीति व लाहौल घाटी जाने का मार्ग अलग-अलग होता है। जब हम रोहतांग से आते है तो सीधे हाथ स्पीति घाटी आयेगी। उल्टे हाथ लाहौल घाटी आती है। लाहौल घाटी आगे चलकर पांगी वैली से जुड़ जाती है। ग्रामफ़ू तक चन्द्रा नदी का साथ बना रहता है।

सबने अपना हिसाब पहली रात को चुकता किया था। यहाँ सबका खर्चा अपना-अपना था। इस तिराहे से मनु को पहले जाने दिया। वैसे भी यहाँ से आगे मनु के मिलने की सम्भावना नहीं थी। लेकिन उम्मीद थी कि रोहतांग की चढाई में मनु फ़िर पकड़ में आ जायेगा। रोहतांग पहुँचने में कई किमी खराब सड़क मिली। जैसे ही खराब सड़क आती थी, मैं तुरन्त स्लिपिंग बैग को नीचे लगा लिया करता था। अगर स्लिपिंग बैग का सहारा नहीं होता तो मैं भी नीरज कुमार की तरह रोआ-पीटी करता हुआ मिलता। पिछवाडे के नीचे स्लिपिंग बैग लगा कर खड़ड़े वाली सड़क का पता नहीं लगा। रोहतांग आ गया था।

अगले लेख में रोहतांग से मनाली की यात्रा करायी जायेगी। रोहतांग स्थित महर्षि व्यास गुफ़ा/मन्दिर दिखाया जायेगा। (यात्रा जारी है)

हमारा रात्रि ठिकाना





बातल पुल

छतडू पुल



वही से आये है



झरने वाली सड़क



ग्रामफ़ू तिराहे की दुकान

रोहतांग से लाहौल स्पीति का नजारा 

बिन बर्फ़ का रोहतांग

रोहतांग दर्रा टॉप

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढियां पोस्ट पढ कर मजा आया.
    राकेश जी कुछ ज्यादा ही चाय पीते है??
    रोंहताग बिना बर्फ के अजीब सा लग रहा है.

    जवाब देंहटाएं
  2. तुम लोगों का तो सम्मान किया जाना चाहिये भाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. आनंद आ गया। मानो पुन: घूम लिया हूँ।
    बाटल के पास मैं भी मुसीबत में फँस गया था, रात नौ बजे जैसे-तैसे ग्राम्फू पहुँच कर जान में जान आई।

    जवाब देंहटाएं
  4. ऐसे खतरनाक झरने ही मौत का कारण बनते है --आप सभी को सत -सत नमन --

    जवाब देंहटाएं

Thank you for giving time to read post comment on Jat Devta Ka Safar.
Your comments are the real source of motivation. If you arer require any further information about any place or this post please,
feel free to contact me by mail/phone or comment.