करेरी-कांगड़ा-धर्मशाला यात्रा के लिंक नीचे दिये है।
01- आओ करेरी झील धर्मशाला देखने चले।
02- धर्मशाला से करेरी गाँव की ट्रेकिंग भयंकर बारिश के बीच।
03- करेरी गाँव के शानदार नजारे, और भूत बंगला
04- धर्मशाला की ड़ल लेक।
05- धर्मशाला के चाय बागान के बीच यादगार घुमक्कड़ी।
06- कुनाल पत्थरी माता मन्दिर, शक्ति पीठ माता के 52 पीठ में से एक।
07- नगरकोट कांगड़ा का मजबूत दुर्ग / किला
08- मैक्लोड़गंज के भागसूनाग स्विमिंग पुल के ठन्ड़े पानी में स्नान Back to Delhi
01- आओ करेरी झील धर्मशाला देखने चले।
02- धर्मशाला से करेरी गाँव की ट्रेकिंग भयंकर बारिश के बीच।
03- करेरी गाँव के शानदार नजारे, और भूत बंगला
04- धर्मशाला की ड़ल लेक।
06- कुनाल पत्थरी माता मन्दिर, शक्ति पीठ माता के 52 पीठ में से एक।
07- नगरकोट कांगड़ा का मजबूत दुर्ग / किला
08- मैक्लोड़गंज के भागसूनाग स्विमिंग पुल के ठन्ड़े पानी में स्नान Back to Delhi
KARERI-KANGRA-DHARAMSHALA-07
धर्मशाला स्थित राकेश के कमरे से अपना
सभी सामान लेकर मैक्लोडगंज जाने के लिये तैयार हो गये। आज का अन्तिम कार्यक्रम भागसूनाग
स्विमिंग पुल में जमकर नहाना था। कमरे से बाहर निकलते ही हल्की-हल्की बून्दाबान्दी
शुरु हो गयी। हमने भी सोचा कि आज इन्द्र देवता कितना भी जोर लगा ले, हम नहाये बिना
मानने वाले नहीं है। भागसू नाग जाने से पहले हमने अपना सभी सामान उसी भोजनालय में
रख दिया जहाँ हमने दो बार खाना खाया था। धर्मशाला से बस में बैठकर मैक्लोड़गंज
पहुँचे।
धर्मशाला से मैक्लोड़गंज जाते समय
एक जगह आती है जहाँ पर अंग्रेजों की सैकड़ों कब्र बनी हुई है इनमें से कुछ कब्र तो
सामूहिक भी है, राकेश ने बताया कि यहाँ 19 वी सदी के आरम्भ में आये शक्तिशाली भूकम्प
में बहुत सारे अंग्रेज मारे गये थे। इस कब्रगाह में अधिकतर कब्र उन्ही अंग्रेजों
की बनायी गयी है। इन कब्रों के साथ ही एक गिरजाघर भी बनाया गया है। बारिश के कारण चलती
गाड़ी से यहाँ का फ़ोटो नहीं ले पाया।
मैक्लोड़गंज में जिस बस स्टैन्ड़ में
हमारी बस पहुँची। उसे देखने से ही पता लगता है कि इसे बने हुए ज्यादा समय नहीं हुआ
है। बस से उतर कर बस अड़्ड़े के अन्दर से ही ऊपर सड़क पर जाने के लिये सीढियाँ बनी हुई
है हम उन्ही सीढियों से होकर सड़क पर पहुँच गये। अगर हम अपने वाहन से जायेंगे तो भागसूनाग
तक पहुँच सकते है। बस मैक्लोडगंज में छोड़ती है भागसू नाग उससे दो किमी आगे रह जाता
है। हमारे पास समय की कमी थी इसलिये हमने मैक्लोड़गंज से भागसूनाग आने-जाने के लिये
150 रुपये में एक टैक्सी किराये पर ले ली।
बस अड़्ड़े से कुछ आगे जाते ही एक
मोड़ आता है इसी मोड़ से टैक्सियाँ मिल जाती है। इन टैक्सी वालों का एक बन्दा कुर्सी
ड़ालकर वही मोड़ किनारे बैठा रहता है। टैक्सी चालक हमें लेकर भागसू नाग की ओर चल
दिया। हमने आने-जाने के लिये टैक्सी की थी जिसमें 30 मिनट भागसूनाग नहाने या घूमने के लिये
बताये गये थे। चालक से कहा कि यदि हम आधा घन्टा ज्यादा रुकना चाहे तो कितने रु
ज्यादा देंने होंगे? उसने कहा कि आधे घन्टे के 50 रु चार्ज
लिया जाता है। यदि हम 200 रुपये देते तो हम पूरे एक घन्टा
वहाँ स्नान कर सकते थे। थोड़ी ही देर में टैक्सी चालक ने हमें भागसूनाग पहुँचा दिया
था।
टैक्सी चालक को बता दिया कि हम आधे
घन्टे में ही आ जायेंगे। उसने बताया कि वह इस पर्किंग में इस कोने पर खड़ा मिल
जायेगा। उसकी कार का नम्बर व मोबाइल नोट कर लिया गया। हम स्नान करने चल दिये। कुछ
दुकानों को पार करते ही भागसू नाग का स्विमिंग पुल दिखायी दिया। कुछ वर्ष पहले मैं
अपनी प्यारी नीली परी पर विशेष मलिक (अजय भाई Special Malik कहते है) के साथ यहाँ तक आ
चुका था इसलिये यहाँ देखकर सब पुराना याद आ गया। इतने सालों में कुछ दुकाने ज्यादा
बनी हुई दिखायी दी। एक बात दोनों यात्रा में बराबर थी कि उस दिन भी बारिश हो रही
थी आज अभी बारिश हो रही है।
हल्की-हल्की बारिश चालू थी इसलिये
छतरी खोलकर चल रहे थे। सबसे पहले भागसूनाग स्विमिंग पुल के कुछ फ़ोटू लिये। यहाँ का
ठन्ड़ा पानी देखकर कोई भी उसमें घुसने को तैयार नहीं हो रहा था। आखिरकार शुरुआत तो
करनी ही थी। मनु का दोस्त सबसे पहले पानी में जा घुसा उसके बाद पानी का दीवाना
राकेश पानी में कूद गया। मैं और मनु फ़ोटो ले रहे थे इसलिये इनके बाद में मैंने
अपना कैमरा मनु को दिया और मैं भी पानी में कूद गया। पानी काफ़ी ठन्ड़ा था लेकिन
मणिमहेश, गंगौत्री, हेमकुन्ठ साहिब जितना ठन्ड़ा तो क्या उसका 10% ठन्ड़ा भी नहीं
था। उन स्थलों पर नहाने में हिम्मत जुटानी पड़ती है जबकि यहाँ नहाने के लिये लोग
उतावले हुए जा रहे थे। सबसे आखिर में मनु के नहाने की बारी आयी।
बारिश से सामान ना भीगे इसलिये सामान
छतरी के नीचे रख दिया गया था। नहाकर सभी तैयार हो गये। समय देखा तो अभी 5-6 मिनट बाकि थे।
अपना-अपना गीला सामान लेकर वापिस चल दिये। वापिस आते समय एक दुकान पर कपडों की सेल
देखकर रुक गये। मैंने यहाँ से 5 टी-शर्ट खरीदी, जल्दबाजी में
अधिकतर टी-शर्ट बड़े साइज की ले ली गयी थी। समय कम होने के कारण, मनु व राकेश ने
यहाँ कुछ नहीं खरीदा। सभी कार में जाकर बैठ गये थे उनके बाद में मैं भी पहुँच गया।
मेरे बैठते ही कार मैक्लोड़गंज के लिये चल दी।
वापसी की यात्रा में एक मोड़ पर सड़क
किनारे एक बकरी बैठी हुई दिखायी दी। यह बकरी टैक्सी चालक की थी उसने उस बकरी को
सड़क किनारे बैठी देख, अपने घर फ़ोन लगाकर बताया कि बकरी सड़क पर बैठी हुई है। हमने
कहा तुम्हारा घर कहाँ है? उसने बताया कि जहाँ बकरी बैठी हुई है मेरा घर उस मोड़ से
थोड़ा सा नीचे जाने पर आता है। घरवाले बकरी को नीचे तलाशेंगे इसलिये मैंने उन्हे
बताया है कि बकरी ऊपर है, उसे नीचे ले जाओ। कार से उतर कर राकेश सबके लिये
आइसक्रीम ले आया। आइसक्रीम खाते हुए बस में बैठने के लिये चल दिये।
मैक्लोड़गंज में विदेशी लोगों की
काफ़ी भरमार रहती है। शनिवार-रविवार को यहाँ सीजन रहता है अत: इन दो दिनों में यहाँ
नहीं आना चाहिए। हमने मैक्लोड़गंज बस अड़ड़े पहुँचकर धर्मशाला या कांगड़ा जाने वाली बस
के बारे में पता किया। पता लगा कि बस आधा घन्टा बाद जायेगी। हमारे पास इतना समय
नहीं था कि वहाँ खड़े-खड़े आधा घन्टा खराब करे। हमें 7 बजे धर्मशाला से हिमाचल रोड़वेज की बस में
बैठकर दिल्ली के लिये निकलना था बस के टिकट राकेश ने अपने मोबाइल से कल कमरे ही
बुक कर दिये थे। मैक्लोड़गंज बस अड़डे के बाहर से दूसरी गाडियाँ मिलने की उम्मीद में
बाहर आ गये। बस अडड़े के बाहर आकर नीचे जाने वाली छोटी गाडियाँ देखने लगे कि तभी एक
सूमों वाला धर्मशाला जाने के लिये आ गया। सूमो में बैठकर धर्मशाला जाने के लिये चल
दिये।
कुछ मिनटों में ही सूमो वाले ने
हमें धर्मशाला पहुँचा दिया। समय देखा अभी काफ़ी समय था हम भोजनालय में पहुँचे। खाना
हम पहले ही खा चुके थे इसलिये अपना-अपना सामान उठाकर बस अड़ड़े की ओर चलने लगे। यहाँ
आते समय जिस लेन्टर के नीचे बारिश के चक्कर में रुकना पड़ा था वापसी में उसी जगह से
होकर नीचे बने धर्मशाला के बस अड़ड़े पहुँच गये। बस काफ़ी घूमकर आती है जबकि पैदल
यात्री सीढियों से शार्ट कट लगाकर जल्दी से पहुँच जाते है।
7 बजने में अभी 10
मिनट बाकि थे। हम सोच रहे थे कि हमारी बस अपने स्थान पर खड़ी मिलेगी
लेकिन वहाँ कोई बस नहीं थी। पूछताछ केन्द्र से पता किया उन्होंने बताया कि दिल्ली
वाली बस अभी नहीं आयी है। हमारी बस मैक्लोड़गंज से आरम्भ होती है। धर्मशाला से
सवारियाँ लेकर कांगड़ा होते हुए दिल्ली जाती है। कुछ देर बाद दिल्ली जाने वाली
वातानुकूलित बस आई और अपनी सवारियाँ लेकर चली गयी। हमारी बस इसके कुछ मिनट बाद आ
गयी।
दिल्ली जाने वाली बस में सवार होकर
हम धर्मशाला को अलविदा बोलकर चल दिये। दिल्ली जाते समय खिड़की वाली सीट ना मिल सकी।
अबकी बार खिड़की वाली सीट पर राकेश के बैठने की बारी थी। दिल्ली से धर्मशाला आते
समय खिड़की पर अपुन बैठे थे। मनु व उसके दोस्त को टिकट के हिसाब से जो खिड़की सीट
मिली थी वह बारिश के कारण टपक रहे पानी से गीली हो चुकी थी। पानी का टपकना जारी था
इसलिये मनु को अपनी सीट पर राकेश के पास भेज दिया। जबकि मैं उस टपकने वाली सीट को
छोड़कर सबसे पीछे वाली सीट पर जा बैठा।
सबसे आखिरी वाली लम्बी सीट में
किनारे की दोनों सीट भरी हुई थी। मैंने उन दोनों से पूछा कि कहाँ जाओगे? उनमें से
एक ने दिल्ली व दूसरे ने चन्ड़ीगढ़ जाने का बोला। कांगड़ा पहुँचते-पहुँचते अंधेरा
होने लगा था। कांगड़ा से हमारे आगे वाली दो सीट पहले से बुकिंग थी लेकिन वे दोनों
सवारी नहीं आयी, सीट खाली पड़ी थी। मन किया कि उस पर जाकर बैठ जाऊ। आखिरकार बस चलने
की प्रतीक्षा होने लगी। जब बस चलने लगी तो तीन-चार सवारियाँ बस में चढ़ गयी। वे
दोनों खाली सीटे भर गयी। उनमें से एक सवारी हमारे पास बैठ गयी।
राकेश ने कई बार बोला, जाट भाई,
आगे आ जाओ, मैंने कहा नहीं, मैं यही ठीक सही हूँ। मुझे तो बस में नीन्द आयेगी
नहीं। तुम पूरी रात सोते हुए जाओगे। खिड़की वाली सीट खाली होने से पहले मेरे लिये
बस यात्रा बोरिंग होती जा रही थी। पहाड़ी मार्ग में यात्रा करते समय रात करीब 9 बजे एक जगह आयी थी
वहाँ कोई मन्दिर था जिसमें काफ़ी रौनक थी बस चालक ने कुछ पल बस वहाँ रोकी और उस
मन्दिर की ओर अपनी मुन्ड़ी नतमस्तक वाली मुद्रा में कर बस आगे बढ़ा ली। अम्ब के
आसपास जाकर बस चालक ने भोजन कराने के लिये बस एक ढाबे पर रोकी थी। जिसे भूख थी
उसने भोजन करा कर हमारी बस फ़िर अपनी मंजिल की ओर दौडने लगी।
मेरे साथ सीधे हाथ जो बन्दा बैठा,
उसने भले ही खिड़की वाली सीट कब्जायी हो लेकिन वह फ़ोन पर अपनी माशूका से जो खतरनाक
बाते कर रहा था उसे सुनकर मैं भौचक्का था। उसकी बाते सुनता हुआ मेरा घन्टा भर
आसानी से बीत गया था। उसकी बातों से स्पष्ट हो रहा था कि उसकी माशूका किसी कम्पनी
में कार्य करती है उस समय उसकी माशूका अपने मालिक के साथ लुधियाना की यात्रा पर
गयी हुई थी। उस लड़के को पूरा यकीन था कि उसकी माशूका अपने मालिक के साथ मौज-मस्ती करने
गयी है। कमाऊ माशूका रखेगा तो ऐसा तो झेलना ही पडेगा। लालच बुरी बला है।
मैं किसी की निजी बातों में दखल
नहीं देता हूँ। इसी बात पर अमल करते हुए मैंने उसे भी कुछ नहीं कहा। मैं उसकी
बातों का कोई जवाब या सलाह दिये बिना उसके बस से उतरने की प्रतीक्षा कर रहा था।
आखिरकार चन्ड़ीगढ़ आते ही वह बस से उतर गया। उसके उतरते ही मुझे अपनी मन पसन्द खिड़की
वाली सीट मिल गयी। बस में सोना किसे था? बस में नीन्द आती ही कहाँ है? दिल्ली का
वजीराबाद पुल वाला फ़्लाईओवर आते ही मैंने चालक से बोलकर बस रुकवाई और बस से उतर
गया। वजीराबाद से मुझे घर जाने के लिये बाहरी मुदिका नामक बस मिल गयी। सुबह 6 बजे मैं घर पहुँच
चुका था। (यह यात्रा समाप्त हो चुकी है।)
बताओ दोस्तो- अगली यात्रा हिमाचल
की लाहुल-स्पीति वाली बाइक यात्रा या मध्यप्रदेश के ओरछा-खजुराहो-झांसी-ग्वालियर
की रेल-बस यात्रा के बारे में बताया जाये।
Sandeep Ji, Lahul Speeti wali Bike Yatra likhye. Jo maza paharo per hai wo kahin nahi. Thanks.
जवाब देंहटाएं1. (अजय भाई Special Malik कहते है) khol di na pole....
जवाब देंहटाएं2. मेरे साथ सीधे हाथ जो बन्दा बैठा, उसने भले ही खिड़की वाली सीट कब्जायी हो लेकिन वह फ़ोन पर अपनी माशूका से जो खतरनाक बाते कर रहा था उसे सुनकर मैं भौचक्का था। उसकी बाते सुनता हुआ मेरा घन्टा भर आसानी से बीत गया था। उसकी बातों से स्पष्ट हो रहा था कि उसकी माशूका किसी कम्पनी में कार्य करती है उस समय उसकी माशूका अपने मालिक के साथ लुधियाना की यात्रा पर गयी हुई थी। उस लड़के को पूरा यकीन था कि उसकी माशूका अपने मालिक के साथ मौज-मस्ती करने गयी है। कमाऊ माशूका रखेगा तो ऐसा तो झेलना ही पडेगा। लालच बुरी बला है। Bhai ji is subject mein aaj kal Ph.D kar rahe ho kya???
3. अगली यात्रा हिमाचल की लाहुल-स्पीति वाली बाइक यात्रा...
सुंदर चित्रों के साथ सुंदर यात्रा वर्णन। लाहूल स्पीती यात्रा वर्णन है ना अगली बार।
जवाब देंहटाएंअरे, आर्टीफिशियल बनादी गयी....पहले तो झरने से आती हुई प्राकृतिक झील थी ...
जवाब देंहटाएंइन सभी स्थानों का पौराणिक तथ्य व महत्त्व होता है ...वह भी दिग्दर्शित होना चाहिए ..अन्यथा यात्रा व जानकारी अधूरी है
जवाब देंहटाएंयाद आ गया, यहाँ गये हैं।
जवाब देंहटाएंमैं जब धर्मशाला गई थी तब भी बारिश बहुत हो रही थी। क़ार से मेक्डोलगंज जाते समय बाहर कुछ भी नहीं दिख रहा था। हम भागसूँ नांग मंदिर गए थे और ये स्विंगपुल हमने खाना खाते समय सामने से देखा इसके साईड वाले सामने रेस्टोरेंन्ट कि छत पर हम खाना खा रहे थे और ठंडी कि वजय से पानी में नहीं उतरे जबकि वहाँ खूब मस्ती चल रही थी
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