रात में कैमरे व मोबाइल
चार्ज कर लिये गये थे इसलिये अगले दिन इस बात की कोई समस्या नहीं थी कि किसी की बैट्री
की टैं बोल जायेंगी। सुबह 5 बजे मोबाइल के अलार्म
बजते ही हम दोनों उठकर औरंगाबाद जाने की तैयारी करने लगे। नहा-धोकर पौने 6 बजे हमने कमरा छोड़ दिया था। कमरा लेते समय कमरे
वाली ने हमसे 100 रुपये फ़ालतू जमा कराये थे
इसलिये सुबह उनको चाबी देते समय अपने 100 रुपये लेना हम नहीं
भूले। हम अभी मुख्य सड़क पर आकर बस अड़ड़े की ओर चल दिये। मुश्किल से आधे किमी ही गये
होंगे कि एक बस हमारी ओर आती हुई दिखायी दी। हमने हाथ का इशारा कर बस को रुकवा लिया।
इस बस से हम नाशिक पहुँच गये। नाशिक पहुँचकर हम औरंगाबाद जाने वाली बस में बैठ गये।
नाशिक से औरंगाबाद लगभग 150 किमी दूर है इसलिये
हम आराम से अपनी सीट पर पसरे हुए थे। बस बीच-बीचे में वहाँ के कई शहरों से होकर चलती
रही। हम अपनी सीट पर पड़े-पड़े उन्हे देखते रहे।
जब हमारी बस एक ऐसे
चौराहे पर पहुँची जहाँ से एक और मनमाड़ था एक और शिर्ड़ी दर्शाया गया था तो मुझे कई साल
पहले यहाँ की गयी अपनी यात्रा की याद हो आयी। मैंने बस में लगभग सबसे आगे वाली सीट
पर कब्जा जमाया हुआ था। जिस कारण सड़क पर सफ़र करने का आनन्द भी उठाया जा रहा था। इस
यात्रा में मैं अपनी मानचित्र maps वाली पुस्तक लेकर
नहीं गया था जिस कारण यह पता नहीं लग पा रहा था कि हम अभी कहाँ चल रहे है? हमारी बस
अपनी मंजिल की ओर बढ़ती जा रही थी कि एक जगह बसमें से एक सवारे उतरी और हमारी बस आगे
बढ़ी ही थी कि मेरी नजर सड़क किनारे एक बोर्ड़ पर पड़ी जहाँ लिखा हुआ था उस मन्दिर के बारे
में जहाँ हम अभी जा रहे थे। मैं यह सोच कर आराम से बैठा हुआ था औरंगाबाद तो अभी 27-28 किमी बचा हुआ है इसलिये सीट पर पसरे रहो। लेकिन
मन्दिर वाले बोर्ड़ को देखते ही मैंने बस चालक से कहा कि हमें तो घृष्नेश्वर ज्योतिर्लिंग
जाना है। हमें यही उतार दो। बस चालक ने कहा पहले क्यों नहीं बताया मैंने कहा हम यहाँ
के नहीं है इसलिये इस रुट की जानकारी हमें नहीं है हम तो औरंगाबाद जाकर यहाँ दूसरी
सड़क से आने वाले थे। लेकिन भला हो उस बोर्ड़ लगाने वाले का, जिसने उसे यहाँ लगवाया है।
बस से उतरने के बाद
हम अपना बैग लेकर तिराहे पर आ गये। तिराहे से मन्दिर 10-11 किमी दूर ही था। इसलिये वहाँ जाने के लिये सवारी
ढोने वाली मैजिक ऑटो जैसी गाड़ियाँ वहाँ खड़ी हुई थी। एक दो जीप भी वहाँ खड़ी हुई थी।
उनसे मन्दिर तक जाने के बारे में पता किया तो उन्होंने कहा कि हम सीट पूरी होने के
बाद ही जायेंगे। बीच वाली सीट पर उसने 4 सवारी बतायी थी जिसे
हम दोनों ने ड़बल किराया देकर अपने लिये सुरक्षित कर लिया था। मेरे मोबाइल का चार्जर
नाराज हो गया था इसलिये उसकी नाराजगी ठीक करने के लिये उसकी जगह दूसरा चार्जर ले लिया
गया। जो चार्जर नाराज था उसे बैग की तली में ठूस दिया गया। लगभग 15-20 मिनट बाद हमारी गाड़ी वहाँ से मन्दिर के लिये चल
पड़ी। यहाँ से मन्दिर तक सड़क की हालत कुल मिलाकर संतोषजनक ही कही जा सकती थी। बीचे-बीच
में दो-तीन स्थान पर बड़े-बड़े खड़ड़े भी आये थे लेकिन उन्हें टेड़े-मेड़े चलकर पार कर लिया
गया था।
जब उस गाड़ी वाले ने
हमें एक जगह उतार कर कहा कि यहाँ से आगे मन्दिर तक जाने के लिये आपको लोकल ऑटो में
बैठना पड़ेगा। हम मन्दिर तक जाने वाले लोकल ऑटो में बैठ गये, जिसने हमसे एक किमी दूरी
के लिये 5-5
रुपये वसूल किये। जब ऑटो वाले
ने हमें बताया कि वो देखो सामने मन्दिर का रास्ता। ओटो वाले को भाड़ा देने के बाद हम
मन्दिर की ओर चल दिये। मन्दिर के पास जाते ही दुकाने देखकर पता लगने लगा कि अब मन्दिर
आने वाला है। यहाँ इस मन्दिर की हालत देखकर नहीं लगता है कि यहाँ भारत एक 12 jyotirlimga में से एक मन्दिर है। आखिरकार मन्दिर में जाने से
पहले हमें अपना सामान जूते चप्पल बाहर ही छोड़नी थी इसलिये हमने एक सामान वाली औरत के
पास गये। वह औरत हमसे अपना फ़ूल खरीदने के लिये कहनी लगी। हमने उसे कहा कि हम फ़ूल नहीं
खरीद रहे है हम केवल सामान रखने आये है। उस औरत ने कहा कि बैग में पैसे मत रखना। बाकि
सामान आप यहाँ इस कोने में छोड़ दो। विशाल ने उससे एक फ़ूलों की छोटी सी टोकरी भी ले
ही ली।
क्या गजब की सड़क है। |
विशाल फ़ूलों की टोकरी
जिसमें धतूरा, बेल पत्र, जैसे कई अन्य सामान शामिल थे। मुझे इन वस्तुओं की आवश्यकता
कभी नहीं पड़ी। इसका सबसे बड़ा कारण है मेरी पारिवारिक पृष्टभूमि आर्यसमाज से संबधित
रही है जिसमें मूर्ति पूजा के नाम पर हो रहा अंधविश्वास सबसे पहले बताया जाता है। मन्दिर
में घुसने से पहले हमारी तलाशी लेने की खानापूर्ति भी कर ली गयी। इसके बाद मन्दिर की
चारदीवारी के भीतर दाखिल हुए। पहले तो हमने पूरा मन्दिर देखा। उसके बाद ज्यादा भीड़
ना होने के कारण वहाँ लाईन जैसी कोई समस्या तो नहीं थी। फ़िर भी 5-7 लोग हमसे आगे खड़े हुए थे। भीड़ ना होने के कारण हमें
भी अन्दर जाने की कोई जल्दी नहीं मची थी। मन्दिर के मुख्य भवन के अन्दर वाले दरवाजे
पर एक युवक पहरा दे रहा था, मैंने सोचा कि यह लोगों को लाइन मॆं लगाने के लिये लगाया
गया होगा, लेकिन जब हम इस मन्दिर के गर्भ गृह में घुसने लगे तो वहाँ मौजूद एक सेवक
ने कहा कि आप पुरुष लोग शरीर के ऊपर का भाग कपड़े पहन कर अन्दर नहीं जा सकते हो। अरे
यहाँ शिव के मन्दिर में ऐसी क्या गड़बड़ है जो यहाँ पर दक्षिण भारत के मन्दिर वाली परम्परा
बनायी गयी है। हमने अपनी-अपनी टीशर्ट उतार कर मन्दिर के दरवाजे के बाहर एक झरोखे में
रख दी।
ये मेरा भारत है। |
अन्दर जाकर देखा कि
वहाँ पर कुछ भक्त अपनी भक्तन सहित पूजा-पाठ कराने में लगे पड़े थे। चूंकि यहाँ पर अन्य
मन्दिरों जैसी भीड़ की मारामारी नहीं थी इसलिये हम वहाँ काफ़ी देर खड़े रहे, हमें किसी
ने बाहर जाने के लिये नहीं कहा। यहाँ हमसे किसी ने भीख नहीं माँगी, इतना अच्छा वातावरण
देखकर मेरे मन ने कहा जाट देवता चल कुछ निकाल कर चढ़ा दे। देख यहाँ भिखारी नहीं है।
सिर्फ़ पुजारी है जो अपनी पूजा करने में व्यस्त है। मैं तो फ़िर भी जल्दी ही बाहर चला
आया उसके बाद मैंने अपनी टीशर्ट उठायी और पहन ली। विशाल के लिये सुनहरा मौका था। उसने
अपने कंठस्थ याद किये हुए महामृत्यंजय मन्त्र का तहाँ पर सही सदुपयोग कर लिया था। मत्र
कौन सा था इसके बारे विशाल ही सही बता सकता है। विशाल के बाहर आने के बाद हम मन्दिर
के बाहर चले आये। अब हमारी अगली मंजिल अंजता ऐलौरा AJANTA ALORA CAVE की गुफ़ाएँ देखने थी। मन्दिर से बाहर आते ही हम अजंता ऐलौरा देखने के लिये चल दिये। लेकिन वहाँ जाते ही हमारी उम्मीदों पर जोर का झटका धीरे से लगा। (क्रमश:)
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दी गयी सूची में दिये गये है।
बोम्बे से भीमाशंकर यात्रा विवरण
01. दिल्ली से दादर-नेरल तक ट्रेन यात्रा, उसके बाद खंड़स से सीढ़ी घाट होकर भीमाशंकर के लिये ट्रेकिंग।
02. खंड़स के आगे सीढ़ी घाट से भीमाशंकर के लिये घने जंगलों व नदियों के बीच से कठिन चढ़ाई शुरु।
03. भीमाशंकर ट्रेकिंग में सीढ़ीघाट का सबसे कठिन टुकड़े का चित्र सहित वर्णन।
01. दिल्ली से दादर-नेरल तक ट्रेन यात्रा, उसके बाद खंड़स से सीढ़ी घाट होकर भीमाशंकर के लिये ट्रेकिंग।
02. खंड़स के आगे सीढ़ी घाट से भीमाशंकर के लिये घने जंगलों व नदियों के बीच से कठिन चढ़ाई शुरु।
03. भीमाशंकर ट्रेकिंग में सीढ़ीघाट का सबसे कठिन टुकड़े का चित्र सहित वर्णन।
05. भीमाशंकर मन्दिर के सम्पूर्ण दर्शन।
नाशिक के त्रयम्बक में गोदावरी-अन्जनेरी पर्वत-त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग आदि क विवरण
06. नाशिक त्रयम्बक के पास अन्जनेरी पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान की ट्रेकिंग।
07. हनुमान गुफ़ा देखकर ट्रेकिंग करते हुए वापसी व त्रयम्बक शहर में आगमन।
08. त्रयम्बक शहर में गजानन संस्थान व पहाड़ पर राम तीर्थ दर्शन।
09. गुरु गोरखनाथ गुफ़ा व गंगा गोदावरी उदगम स्थल की ट्रेकिंग।
10. सन्त ज्ञानेश्वर भाई/गुरु का समाधी मन्दिर स्थल व गोदावरी मन्दिर।
11. नाशिक शहर के पास त्रयम्बक में मुख्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन
औरंगाबाद शहर के आसपास के स्थल।
12. घृष्शनेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन
13. अजंता-ऐलौरा गुफ़ा देखने की हसरत।
14. दौलताबाद किले में मैदानी भाग का भ्रमण।
15. दौलताबाद किले की पहाड़ी की जबरदस्त चढ़ाई।
16. दौलताबाद किले के शीर्ष से नाशिक होकर दिल्ली तक की यात्रा का समापन।
नाशिक के त्रयम्बक में गोदावरी-अन्जनेरी पर्वत-त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग आदि क विवरण
06. नाशिक त्रयम्बक के पास अन्जनेरी पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान की ट्रेकिंग।
07. हनुमान गुफ़ा देखकर ट्रेकिंग करते हुए वापसी व त्रयम्बक शहर में आगमन।
08. त्रयम्बक शहर में गजानन संस्थान व पहाड़ पर राम तीर्थ दर्शन।
09. गुरु गोरखनाथ गुफ़ा व गंगा गोदावरी उदगम स्थल की ट्रेकिंग।
10. सन्त ज्ञानेश्वर भाई/गुरु का समाधी मन्दिर स्थल व गोदावरी मन्दिर।
11. नाशिक शहर के पास त्रयम्बक में मुख्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन
औरंगाबाद शहर के आसपास के स्थल।
12. घृष्शनेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन
13. अजंता-ऐलौरा गुफ़ा देखने की हसरत।
14. दौलताबाद किले में मैदानी भाग का भ्रमण।
15. दौलताबाद किले की पहाड़ी की जबरदस्त चढ़ाई।
16. दौलताबाद किले के शीर्ष से नाशिक होकर दिल्ली तक की यात्रा का समापन।
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बहुत बढ़िया यात्रा चल रही हैं, मेरा भारत महान, हर हर महादेव...
जवाब देंहटाएंAll the best Sandeepji!-Sharad Tarde.
जवाब देंहटाएंयात्रा में आपके साथ है..
जवाब देंहटाएंमैं दिल्ली से महाराष्ट्र के तीनो जयोतिरलिग व शिरणी तक कैसे जाऊ और वापस आऊ वताओ पुना औरगाबाद नासिक व शिरडी कैसे जाऊ
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