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रविवार, 7 अप्रैल 2013

Ajanta-Ellora caves to Daultabad Fort अजन्ता ऐलौरा गुफ़ा से दौलताबाद किले तक।

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-13                                                                    SANDEEP PANWAR


घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर देखकर आगे चल दिये, यहाँ से बाहर आते ही हमें एक मकबरा जैसा भवन दिखाई दिया। चूंकि यह हमारे पैदल मार्ग के एकदम किनारे पर ही था इसलिये हमने इसे देखे बिना नहीं छोड़ा। इसके पास जाकर पता लगा कि यह मकबरा/समाधी महान मराठा योद्धा वीर छत्रपति शिवाजी के पिताजी शाह जी की है। जिस दिन हम वहाँ थे उससे कुछ दिन पहले से ही यह समाधी मरम्मत कार्य के लिये बन्द की हुई थी। यह देख कर थोड़ा सा आश्चर्य हुआ कि जहाँ यह समाधी बनी हुई है वहाँ पर पहली नजर में देखने पर ऐसा लगता है कि जैसे इस समाधी पर सालों से किसी संस्था का ध्यान नहीं दिया गया है। इस समाधी को बाहर से ही देख-दाख कर, हम दोनों पैदल ही आगे मुख्य सड़क की ओर बढ़ते रहे। सड़क पर पहुँचते ही हम उल्टे हाथ की ओर चलने लगे। सीधे हाथ की ओर से हम सुबह यहाँ आये थे।

  शिवाजी महाराज के बापू की समाधी।

थोड़ा सा आगे जाते ही हमें अजंता ऐलौरा गुफ़ा में से अजंता गुफ़ा दिखायी देने लगी। हमने यहाँ आते समय इन गुफ़ाओं को देखने के बारे में जरा सा भी विचार नहीं किया था इसलिये यहाँ जाने की मन में कोई लालसा भी नहीं झलक रही थी। लेकिन कहते है ना कि जैसा खाओगे अन्न वैसा हो जायेगा मन, भगवान (परमात्मा मूर्तियाँ नहीं) भी हर जीव को वैसा ही बना देता है जैसा उसका स्वभाव होता है। दूसरे की बात क्यों करे मेरी बात ही ले लो, चूंकि अपुन ठहरे फ़क्कड़ किस्म के घुमक्कड़, इसलिये ऊपर वाली बड़ी आत्मा ने अपने लिये नौकरी से लेकर छोकरी तक घर से बाहर तक सब कुछ ऐसा बन्दोबस्त किया हुआ है कि अपुन को कोई खास दिक्कत नहीं आती। आप सोच रहे होंगे कि जाट बीच में क्या बात घुसा बैठा है?


चलिये इस छोटी सी बात के बाद असली बात पर आते है जैसे ही हमने सड़क छोड़ कर गुफ़ाएँ देखने के लिये कदम बढ़ाया तो वहाँ मौजूद कुछ लोगों ने बताया कि यह गुफ़ा आज के दिन बन्द रहती है। जैसा कि मैंने ऊपर वाले पैरे में बताया था लगता है कि परमात्मा ने हमारी मन की बात जान ली थी इसलिये आज यह गुफ़ा बन्द कर दी गयी थी। चूंकि अजंता व ऐलौरा नाम की अलग-अलग दो गुफ़ाएँ जिनके बीच में लगभग 100 किमी से ज्यादा का फ़ासला भी है। मैं काफ़ी पहले यही सोचता था दोनों गुफ़ाएँ एक ही जगह बनी होगी। जब यह पक्का हो गया कि यहाँ आने वाले लोगों के कारण ही इस बात की व्यवस्था की गयी है कि दोनों गुफ़ाएँ एक ही दिन बन्द नहीं की जाती है। यदि कोई यहाँ आता है तो एक दिन एक गुफ़ा देख ले और दूसरे दिन दूसरी गुफ़ा देख ले। मैंने अभी तक दोनों में से कोई सी गुफ़ा नहीं देखी है।

अब इसमें चले आगे

गुफ़ा वाला कार्यक्रम की मना होने के बाद हमने वहा‘ रुककर समय गवाना उचित नहीं समझा। हम दोनों वहाँ से औरंगाबाद की ओर चल दिये। चूंकि अभी दोपहर का समय ही हुआ था इसलिये हमने दौलताबाद का किला देखने का कार्यक्रम बना ड़ाला। हमारी रेल तो रात की थी। इसलिये समय की हमारे पास कमी भी नहीं थी। जैसे ही हम सड़क पर आये तो एक जीप वाला औरंगाबाद-दौलताबाद-खुलताबाद की आवाज लगा रहा था। जीप अभी खाली ही थी इसलिये कुछ देर तक हम बाहर ही खड़े रहे। लेकिन जीप फ़ुल होने में ज्यादा समय नहीं लगा। सीट पर हमारे बैग रखे हुए थे इसलिये किसी के हमारी सीट पर बैठने की सम्भावना भी नहीं थी। कुछ देर में ही हम जीप में सवार होकर चल दिये। अभी कुछ ही किमी पार किये थे कि एक पुराने से किले की चारदीवारी जैसी दिखायी देने लगी। आगे जाने पर एक जगह एक बोर्ड़ देखा तो समझ आया कि यह खुलताबाद है। पहले उसको किसी अन्य नाम से बुलाया जाता था।
किले की चारदीवारी आरम्भ

जीप एक गाँव से होकर आगे बढ़ती रही, आगे जाने पर एक छोटे से दरवाजे के बीच से निकल कर आगे चलती रही। हम बीच वाली सीट ही बैठे थे इसलिये आगे क्या आ रहा है? या क्या हो रहा है? सब कुछ साफ़-साफ़ समझ में आ रहा था। जीप के अन्दर से ही हमें सीधे हाथ सड़क से बहुत दूर एक पहाड़ी के टीले जैसी जगह पर एक घर जैसा दिखायी दे रहा था। पहले तो हमने समझा कि वहाँ किसी का घर होगा। लेकिन जब जीप वाले ने हमें उस पहाड़ी के लगभग सीध में एक किमी की दूरी पर उतार दिया तो सब कुछ समझ में आ गया कि हम जिसे किसी का घर समझ रहे थे असलियत में वह दौलताबाद का अजेय माना जाने वाला दुर्ग है। जीप वाले को पचास रुपये किराये देने के बाद हम इस किले में फ़तह पाने के लिये चल दिये। आप सोच रहे होंगे कि मैंने यहाँ फ़तह शब्द क्यों कहा है? दोस्तों जरा इस किले के बारे में एक लाईन में बताता हूँ कि यह किला दो किमी लम्बाई का है सड़क से लेकर शीर्ष तक कई सौ फ़ुट की चढ़ाई इन दो किमी में चढ़नी पड़ती है। यहाँ देखने को इतनी बाते है कि मुझे दो लेख में इस किले को दिखाना पड़ रहा है। हम किले में घुसने जा रहे है। आप तैयार है। (क्रमश।)    
  
चित्र मे जो ऊँचा टीला है किला है।

 इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दी गयी सूची में दिये गये है।
बोम्बे से भीमाशंकर यात्रा विवरण
01. दिल्ली से दादर-नेरल तक ट्रेन यात्रा, उसके बाद खंड़स से सीढ़ी घाट होकर भीमाशंकर के लिये ट्रेकिंग।
02. खंड़स के आगे सीढ़ी घाट से भीमाशंकर के लिये घने जंगलों व नदियों के बीच से कठिन चढ़ाई शुरु।
03. भीमाशंकर ट्रेकिंग में सीढ़ीघाट का सबसे कठिन टुकड़े का चित्र सहित वर्णन।
05. भीमाशंकर मन्दिर के सम्पूर्ण दर्शन।
नाशिक के त्रयम्बक में गोदावरी-अन्जनेरी पर्वत-त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग आदि क विवरण
06. नाशिक त्रयम्बक के पास अन्जनेरी पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान की ट्रेकिंग।
07. हनुमान गुफ़ा देखकर ट्रेकिंग करते हुए वापसी व त्रयम्बक शहर में आगमन। 
08. त्रयम्बक शहर में गजानन संस्थान व पहाड़ पर राम तीर्थ दर्शन।
09. गुरु गोरखनाथ गुफ़ा व गंगा गोदावरी उदगम स्थल की ट्रेकिंग।
10. सन्त ज्ञानेश्वर भाई/गुरु का समाधी मन्दिर स्थल व गोदावरी मन्दिर।
11. नाशिक शहर के पास त्रयम्बक में मुख्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन
औरंगाबाद शहर के आसपास के स्थल।
12. घृष्शनेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन
13. अजंता-ऐलौरा गुफ़ा देखने की हसरत।
14. दौलताबाद किले में मैदानी भाग का भ्रमण।
15. दौलताबाद किले की पहाड़ी की जबरदस्त चढ़ाई।
16. दौलताबाद किले के शीर्ष से नाशिक होकर दिल्ली तक की यात्रा का समापन।
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2 टिप्‍पणियां:

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