गोवा यात्रा-13
ट्रेन से उतरने के बाद हम जिस कस्बे नुमा गाँव में खड़े थे वहाँ से एक जीप लायक कच्ची सड़क दूधसागर झरने की ओर गयी थी। हमें बताया गया था कि हमें शुरु के तीन किमी ही इसी जीपेबल रोड़/सड़क पर चलना होगा उसके बाद हमें सड़क छोड़ कर वन में बनी पगड़डी पर चलते हुए वन में घुस जाना है। ट्रेकिंग शुरु करने से पहले ग्रुप लीड़र ने सबको कहा कि जिन लोगों को नारियल तेल व डिटॉल आदि खरीदना है, यही से खरीद ले। दूधसागर तक कोई गाँव, घर, दुकान आदि कुछ नहीं मिलेगा। हमें कुछ लोगों ने बताया था कि गोवा के जंगलों में अंदरुनी भागे में जाकर एक विशेष प्रकार का मच्छर जैसा जीव पाया जाता है, जिसे स्थानीय लोग कीट-कीट कहकर बुलाते है। इस जीव की खासियत यह है कि जब यह मच्छर की तरह काटता है तो शरीर में खुजली होने लगती है जो कई घन्टे तक बनी रहती है। जब अधिकतर लोग, नारियल तेल व डिटॉल खरीद चुके तो उन्होंने कहा कि संदीप जी क्या आप नहीं लगाओगे। मैंने कहा कि पहले तो इन जीवों को झेल कर देखना है कि इनके काटने से कैसा मजा आता है? अगर ज्यादा तंग हुए तो विचार किया जायेगा।
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दूधसागर के लिये ट्रेकिंग यहाँ से शुरु होती है। |
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आधा किमी चलने के बाद एक नदी पार करनी पडती है। |
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नदी पार करते ही महावीर नेशनल पार्क की सीमा आरम्भ हो जाती है। |
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इसका नाखून देख लो। |
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किसका कितना दाम चुकाना पडता है। |
बाजार से खरीदारी करने के बाद सभी वहाँ से दूधसागर कैम्प के लिये चल दिये। चलते ही सड़क के दोनों और बहुत ही शानदार हरियाली दिखायी दे रही थी। इसे पार करने के बाद थोड़ा आगे बढे ही थे कि एक नदी के बहाव ने हमारा मार्ग अवरुद्ध कर दिया था। नदी में पानी तो ज्यादा नहीं था लेकिन जिसने जूते पहने हो उसके लिये तो आधा फ़ुट पानी का बहाव भी बहुत होता है, मैंने झट अपने जूते उतार कर बैग में रख लिये, बैग से चप्पल निकाल कर पहन ली। अनिल ने यही बाजार से अपने लिये चप्पल खरीदी थी। कमल के पास चप्पल थी लेकिन वो भी टूट गयी थी इसलिये कमल ने अनिल के जूते पहने हुए थे। कमल ने अपने लिये मसाला इसी बाजार से ले लिया था। जैसे ही महावीर पार्क के अन्दर प्रवेश किया तो थोडी देर बाद ही एक जगह प्रवेश मार्ग पर बैरियर लगा हुआ था वहाँ पर सबकी टिकट ली गयी थी। टिकट के पैसे पहले से ही कैम्प वालों ने ग्रुप लीडर को दिये हुए थे। जहाँ हम टिकट ले रहे थे। वहाँ एक लम्बे नाखून वाला मानव बैठा हुआ था। जिसका फ़ोटू मैंने लगाया हुआ है।
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पहले मैंने भी साइकिल से ही गोवा देखने का कार्यक्रम बनाया हुआ था। |
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नजदीक ही। |
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यहाँ से हम कच्ची सड़क छोड़ कर उल्टे हाथ वाले कच्चे मार्ग पर हो जाते है। |
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इसी पर चलते जाना है। |
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एक जगह रुककर बाकि साथियों का इन्तजार किया जा रहा है। |
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जंगल में एक नहर पार करते हुए। |
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पानी रोककर ऊपर वाले नहर से ले जाया गया है। |
टिकट लेकर हम आगे बढ चले, लगभग दो किमी चलने के बाद हमें नदी पार करने से पहले एक बोर्ड दिखायी दिया वहाँ से हमें यह जीप वाली सड़क छोड़कर कच्ची पगड़डी पर चलते हुए आगे बढ़ना था। हम इस बोर्ड पर निशान लगाकर आगे चलते रहे। आगे जाकर एक जगह निशानों ने थोड़ा सा असंमजस में ड़ाला था लेकिन जल्द ही उसकी भूल भूलैया से निकल गये। हमने सोचा कि हमारी तरह बाकि भी यहाँ अटक जायेंगे इसलिये हम उनके लिये निशान बनाकर आगे बढते रहे। यहाँ हमने कुछ पल विश्राम/आराम भी किया था। आगे जाने पर जंगलों के बीच एक साफ़ पानी की नहर को उस पर डाले गये ड़न्डों से होकर पार करना पड़ा था। इससे आगे बढ़ते ही नदी पर एक छोटा सा कच्चा बाँधनुमा स्थल आ गया था जहाँ पानी रोकर यह नहर निकाली गयी थी। यहाँ से आगे निशानों को देखते हुए आगे बढ़ते रहे। आगे चलकर एक बार फ़िर उसी नदी के किनारे आ पहुँचे जिसे ट्रेकिंग शुरु करते ही पार करना पडा था। दोपहर के सवा बारह बज चुके थे, इसलिये मैंने और अनिल ने अपने साथ लाये गये लंच को निकाल उसका लुत्फ़ उठाना शुरु कर दिया। जैसे-जैसे बाकि साथी आते रहे, हमें देख कर वे भी अपना लंच निकाल कर खाते रहे।
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नदी किनारे लंच/दोपहर क भोजन करते हुए। |
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कुदरत का एक नायाब नमूना। बताओ क्या दिख रहा है? |
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अब आयेगा, मजा। |
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जाट का पता नहीं कहाँ चढ़ बैठे? |
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पहले नहा ले फ़िर बाकि बाते होंगी। |
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आ जाओ। |
लंच करने के बाद एक बार फ़िर आगे की ओर बढ चले। यह ट्रेक इस नदी व जीप वाली सड़क के आसपास ही बनाया गया था। मेरे जैसे बन्दों के लिये तो यह आसान सा ट्रेक था। लेकिन मैं यहाँ साफ़ करना चाहता हूँ कि जो लोग थोडी आसान सी व सुविधा युक्त ट्रेकिंग करना चाहते है उनके लिये यह स्वर्ग समान है। अत: इस प्रकार के ट्रेक करने का मौका छोडना नहीं चाहिए। आगे जाने पर एक बार फ़िर इसी नदी से सामना हो गया था, समय देखा तो दो बजे थे। सुबह से नहाये नहीं थे तेज चलने के कारण सबसे आगे थे अत: इसका लाभ नदी में आधे घन्टे नहाकर उठाया गया। हम नहाकर पूरी तरह तैयार भी नहीं हुअ थे कि बाकि साथी आते दिखाये दिये। हमने पहले ही बोला हुआ था कि यहाँ नदी पार करने के चक्कर में कई लोग पानी में फ़िसलकर जरुर गिर जायेंगे। हुआ भी ऐसा ही वहाँ तीन लोग पानी में फ़िसलकर गिरे थे। पानी की गहराई कही भी घुटने से ज्यादा नहीं थी। नहाकर फ़िर आगे चल दिये। घन्टा भर चलने के बाद एक बार कुछ कदम जीप वाली सड़क पर चलना पड़ा था उसके बाद फ़िर से सड़क छोड पगड़न्डियों पर चलना पड़ा। आधा किमी जाने के बाद एक बार फ़िर इसी नदी को पार करना पड़ा। जब इसी नदी को पार कर रहे थे तो वहाँ पर हमें अगले कैम्प के लीडर मिल गये, उन्होंने हमारा स्वागत किया और कैम्प के बारे में बताया। अब कैम्प मुश्किल से आधा किमी भी नहीं बचा था।
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इसी के नीचे से जाना है। |
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कुकुरमुत्ते। |
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घुस जा भाई फ़िर से घनघोर जंगल में। |
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आज के कैम्प का बोर्ड आ गया है। |
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भाई वाह जंगल में मंगल,,,दुधसागर की प्रतीक्षा रहेगी, धन्यवाद, वन्देमातरम...
जवाब देंहटाएंमज़ेदार यात्रा संस्मरण।
जवाब देंहटाएंगोवा तो कई बार गए लेकिन दूधसागर जाने का मौका नहीं मिला।
वाह..सुन्दर दृश्य..
जवाब देंहटाएंट्रैकिंग का अपना ही मज़ा है.
जवाब देंहटाएंमच्छरों की बात से याद आया, कई बार किसी पेड़-पौधे को छूने से भी शरीर में भयंकर खुजली (लाल निशान सहित भी) भी हो सकती है. इसका सिंपल इलाज है कि साधारण नमक को किसी भी तेल (सरसों इत्यादि) में मिलाकर पेस्ट सा बना ले और खुजली/लाल निशान वाली जगह धीरे-धीरे मलें, देखते ही देखते त्वचा ठीक होने लग जाती है :)
काजल जी, आपका इलाज भी मौका लगते ही जरुर आजमाया जायेगा।
हटाएंवैसे खून चूसने वाले जौंक पर नमक आजमाकर देखा है तुरन्त छुटकारा दिलाता है।
Bahut Badhiya.....
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