समुन्द्र किनारे वाली दो दिन की ट्रेकिंग तो कल ही समाप्त हो गयी थी। अब आज हमारी गोवा के घने जंगलों में ट्रेकिंग आरम्भ होने वाली थी। गोवा के जंगल समुन्द्र से काफ़ी दूर थे, वहाँ तक पहुँचने के लिये हमें भारतीय रेल में सवार होकर उन तक पहुँचना था। हम सुबह-सुबह ठीक साढ़े छ: बजे तैयार हो गये थे। सबने सुबह का नाश्ता करने के बाद, दोपहर के लिये पराँठे भी पैक कर लिये थे। हमारे कैम्प से नजदीकी रेलवे स्टेशन कनसोलिम था। हमॆं कैम्प से वहाँ तक पहुँचने में मात्र बीस मिनट ही लगे होंगे। हमें इस स्टेशन से लोकल सवारी रेलगाड़ी में बैठकर कुलेम स्टेशन तक जाना था। जहाँ से आगे की यात्रा गोवा के जंगलों से होकर आगे बढ़नी थी। हमारी ट्रेन अपने समय से बीस मिनट देरी से हमें लेने के लिये आयी थी। जैसे ही ट्रेन आयी, वैसे ही हम सभी एक डिब्बे में जाकर बैठ गये। यहाँ सुबह का समय होने के कारण रेल में ज्यादा मारामारी नहीं मची थी। जिस कारण डिब्बा लगभग खाली ही पड़ा हुआ था।
Cansaulim Station |
स्टेशन पर धुन्ध |
दूसरी ओर भी यही हाल |
गोवा
में सुबह के समय धुन्ध देखकर हमें दिल्ली की याद हो आयी। यहाँ दिल्ली जैसी धुन्ध
तो नहीं थी, लेकिन
फ़िर भी इतनी धुन्ध तो थी ही कि जिसमें दौ सौ मीटर से ज्यादा देखना मुमकिन नहीं हो
पा रहा था। जैसे-जैसे हमारी ट्रेन आगे बढ़ती रही, वैसे ही इस
धुन्ध से छुटकारा भी मिलता गया। चूंकि हम सवारी गाड़ी में सवार थे अत: हमने इस रुट
का हर स्टेशन देखा था। इस रुट पर अगर हम गोवा एक्सप्रेस से यहाँ तक आते तो तब सभी
स्टेशनों को देखना सम्भव नहीं था। वैसे मैंने इस रुट के लगभग सभी स्टेशन के फ़ोटो
लिये है। कोई एक आध दूसरी तरफ़ होने के कारण छूट गया होगा तो मैं कह नहीं सकता।
बीच यात्रा का फ़ोटो |
माजोडडे स्टेशन |
HOME |
यहाँ पर कई स्टेशन के नाम भी बड़े अजीब से थे जिनका उच्चारण भी आसान नहीं था। यहाँ के लोगों की जुबान पर तो ये नाम रटॆ पड़े होंगे, इसलिये उन्हें कोई दिक्कट नहीं हुई होगी। जब हमारी गाड़ी मड़गाँव स्टेशन पर आयी तो ऐसा लगा जैसे यह स्टेशन अपना जाना पहचाना हो। आखिर हो भी क्यों ना? मैं यहाँ पर सन 2009 में भी आ चुका था। पूरे दस मिनट इस स्टेशन पर टहलता रहा था। उसके बाद मैं रेल में बैठकर केरल की ओर चला गया था। दोस्तों दिल्ली से तिरुवन्नतरम जाते समय राजधानी यहाँ दस मिनट रुकती है। बस मैं तभी यहाँ आया था। यहाँ के स्टेशन पर बनी हुई मोनो रेल मुझे अच्छी तरह याद थी। इसके बारे में मैंने इस यात्रा में स्थानीय लोगों से पूछा भी था कि यह यहाँ क्या बना हुआ है? जब गोवा के लोगों ने बताया कि यह यहाँ के मोनों रेल के अवशेष बचे हुए है। बताया गया कि एक हादसे में मोनों रेल का पूरा डिब्बा धड़ाम से नीचे आ गिरा था उस हादसे के बाद यह रेल बन्द कर दी गयी थी। उसके बाद उसकी तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया गया था।
मडगाँव |
जिस स्टेशन पर हमें कूदना था। वह भी घन्टे भर में आ पहुँचा था। रेल में यात्रा करते हुए गोवा की शानदार यात्रा में दिल खुश हो रहा था कि अचानक से यात्रा समाप्त होनी की आकाशवाणी हुई तो मन थोड़ा उदास हो गया, लेकिन जैसे ही गोवा के जंगल में ट्रेकिंग वाली बात पर ध्यान गया तो दिल बगीचा-बगीच हो गया था। जिस जंगल को हम अभी तक ट्रेन में बैठकर देखते आ रहे थे। कुछ देर बाद हम उसी जंगल में से पैदल भटकते हुए जायेंगे। रेल के रुकते ही हम भी बाहर निकल आये थे। सबसे पहले तो एक बार सब एकत्र हुए। गिनती कर आगे बढे। यहाँ इस स्टेशन से बाहर जाने के लिये हमें ओवर ब्रिज का प्रयोग करना पड़ा था। स्टेशन से बाहर आते ही हम यहाँ की बस्ती में पहुँच चुके थे। वहाँ पर हमें जीप वाले दूधसागर-दूधसागर की आवाज लगाते हुए दिखायी दे रहे थे। पता करने पर मालूम हुआ कि दूध सागर यहाँ से मात्र 15 किमी की जीप चलने लायक सड़क पर है।
लोकल रेल का अंतिम स्थल |
यह नक्शा सड़क मार्ग का है। |
गोवा यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे क्रमवार दिये गये है। आप अपनी पसन्द वाले लिंक पर जाकर देख सकते है।
.
.
.
.
बहुत सुन्दर चित्र ..शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंजाने पहचाने चित्र..
जवाब देंहटाएं