गोवा यात्रा-23 समाप्त
आज गोवा यात्रा का यह आखिरी लेख है। गोवा के मशहूर दो विशाल चर्च/गिरजाघर देखने के बाद हम करमाली स्टेशन के लिये चल दिये। इन चर्च से करमाली स्टेशन मुश्किल से डेढ़ किमी की दूरी पर ही होगा। हमने गोवा में चलने वाली सवारी बाइक से स्टेशन चलने की सोच कर दो-एक बाइक वाले से बात की। लेकिन वे प्रति बाइक 50 रु से कम लेने को तैयार नहीं थे। हम तीन बन्दे थे इस हिसाब से 150 रु बन रहे थे। लेकिन मैं ठहरा महाकंजूस 1.5 किमी के 150 रु कैसे दे देता? हम तीनों वहाँ से पैदल ही करमाली रेलवे स्टेशन की ओर चल दिये। मुश्किल से आधा घन्टा भी नहीं लगा होगा कि हम स्टेशन पहुँच गये थे। यहाँ पर एक बात बतानी ठीक रहेगी कि यदि कोई करमाली स्टेशन से पणजी की तरफ़ आना-जाना करना चाहता है तो उसे करमाली स्टेशन से दिल्ली की ओर 200 सौ मीटर दूरी पर स्थित फ़्लाईओवर की ओर आना चाहिए। इस फ़्लाईओवर के ऊपर से पणजी जाने के लिये थोडी-थोडी देर में बस आती रहती है। यहाँ से पणजी की दूरी 12 किमी है, पणजी का किराया भी दस रुपये लगता है।
|
अब चले अपने घर |
|
इतने कमल खिले है कि इन्हें गिनने में महीनों लग जायेंगे। |
|
करमाली से अगला टेशन |
|
यहाँ हमारी लेल नहीं लुकी थी। |
|
सुन्दर |
इस करमाली स्टेशन पहुँचने के बाद समय देखा तो 11 ही बजे थे। हमारी ट्रेन आने में अभी एक घन्टा बाकि था। यह समय मैंने और अनिल ने स्टेशन के ठीक सामने एक विशाल तालाब में कमल के हजारों लाखों फ़ूल देखने में बिता दिया था। जबकि अपना साथी कमल तो अपने उठाऊ यन्त्र पर ईमेल व फ़ेसबुक की बीमारी में उलझा हुआ था। कमल यहाँ के वेटिंग रुम में बैठा हुआ था, हमारे थैले भी उसके पास ही रखे हुए थे। इसी बीच दो तीन रेल वहाँ से आयी और चली गयी। हम उन ट्रेन को ललचाई नजरों से देखते कि कही हमारी रेल तो समय से पहले नहीं आ गयी है। ऐसा आज तक नहीं हुआ है तो अब कैसा हो सकता था। हमारी ट्रेन अपने समय से बीस मिनट देरी से वहाँ पहुँची थी। हम तो ट्रेन में घुसने के लिये कुलबुला रहे थे कि आज तो आराम से सोते हुए जायेंगे। गोवा आते समय तो साधारण डिब्बे में मुश्किल से बिना सोये हुए यहाँ तक आये थे। हमारी सीट तीन थी जबकि अन्य तीन सीटों पर बोम्बे तक कोई नहीं आया था। वा री किस्मत जब देती है छप्पर फ़ाड़ के और जब लेती है कलेजा फ़ाड़ के लेती है।
|
यह इस रुट का बड़ा स्टेशन है। |
|
यहाँ भी बिना रुके चलती रही। |
|
बस भाई अब तु मुड़ जा |
|
अन्जनी स्टेशन |
|
गोवा बोम्बे हाई वे |
|
एक छोटा सा गाँव |
|
मोबाइल का गजब फ़ोटो है। जो दिखना था वो एकदम साफ़ दिखायी दे रहा है। |
गोवा से चलते ही हमारी ट्रेन कोंकण रेलवे की सुरंगों से होकर निकलनी शुरु हो गयी थी। थोडी-थोड़ी देर में सुरंग आती थी। इस रुट पर लगभग 80 सुरंग आती है। ज्यादातर तो छोटी ही है, लेकिन इनमें से लगभग 10 सुरंगे बहुत लम्बाई की है। एक सुरंग तो पूरे 8-9 किमी लम्बाई की है। जिसे भारत की सबसे लम्बी सुरंग होने का गौरव भी प्राप्त है। यह गौरव बहुत जल्द जम्मू से श्रीनगर जाने वाली रेलवे लाईन पर बन चुकी 11 किमी की सुरंग लेने को तैयार है। जैसे ही जम्मू बनिहाल-काजीकुंड रुट शुरु हुआ, वैसे ही यह सुरंग लम्बाई में दूसरे स्थान पर पहुँच जायेगी। मैंने पहले भी सन 2009 के दिसम्बर में दिल्ली से त्रिवेन्द्रम तक की यात्रा इसी कोंकण रुट पर राजधानी ट्रेन से की थी। अब यह मत सोचना कि कंजूस जाट और राजधानी ट्रेन में यात्रा? अरे भाई चार साल में सरकार कहती है कि तुम 39 यात्रा अपने खर्चे से करते हो तो 40 वी यात्रा सरकारी खर्चे से कर लिया करो। सरकारी यात्रा को L.T.C. कहा जाता है। जो जो सरकारी मुलाजिम (किस्मत वाले निठ्ठले) होंगे, वो इसका फ़ायदा चार साल में एक बार जरुर उठाते होंगे। हम गोवा सम्पर्क क्रांति रेल से यह यात्रा कर रहे थे। यह ट्रेन बोम्बे के बाहर के बाहर से वसई रोड़ स्टेशन से होकर जाती है। यहाँ अपनी मुँह बोली बुआ रहती है, जब मैंने उन्हें एक घन्टे में पहुँचने के बारे में फ़ोन पर बताया तो बुआ भतीजे से मिलने के लिये दौड़ी चली आयी। चूंकि हमारी ट्रेन वसई में 5 मिनट ही रुकती है इसलिये फ़ोटो लेने में ही समय कब बीत गया पता ही नहीं लगा। दर्शन बुआ के बडे-बडे दर्शन कर दिल खुश हो गया। जब ट्रेन चलने लगी तो बुआ के साथ आयी मिन्नी ने अपने साथ लाई एक बड़ी सी पन्नी हमें पकड़ा दी। उसमें खाने पीने का ढ़ेर सारा सामान था। वैसे जब आप यह लेख देख रहे होंगे मैं फ़िर से दिल्ली से विशाखापटनम होते बोम्बे की यात्रा पर रहूँगा।
|
दो मोटे-मोटे, बुआ भतीजे |
|
सुबह का समय है |
|
भवानी मन्डी स्टेशन के बीचों बीच राजस्थान व मध्यप्रदेश की सीमा सामने वाले बोर्ड पर मिलती है। |
|
ट्रेन में सब कुछ बिकता है। |
|
हमारी ट्रेन अपनी मंजिल की ओर बढ़ते हुए। |
यह ट्रेन यात्रा एक यादगार यात्रा बन गयी थी। सुबह बुआ का दिया हुआ बर्फ़ी, लडडू, नमकीन आदि ढ़ेर सारा सामान खा पीकर फ़ुल हो गये थे, हमें शाम तक कुछ और खाने की आवश्यकता ही नहीं हुई थी। ्हमारे केबिन की सभी 6 सीट दिल्ली तक भी नहीं भर पायी थी। इस कारण हम आराम से खुल्ले फ़ैल कर लेटे हुए आये थे। इसे कहते है किस्मत? गोवा आते समय क्या पापड़ बेलने पड़े थे और उसके उल्ट अब सीट मिल गयी थी तो बाकि सीट भी खाली थी। कोटा आते-आते मौसम में कुछ गर्मी आनी शुरु हो गयी थी। अभी तो हम गोवा की सदाबहार आबो हवा से दिल्ली की ओर आ रहे थे। गोवा आते ही दिल्ली फ़ोन किया था तो घरवाली ने बताया था कि यहाँ तो तापमान मात्र 1 ड़िग्री तक आ गया है। इसलिये जैसे-जैसे हम दिल्ली की ओर पहुँचते जा रहे थे हम दिल्ली की ठन्ड़ की चिंता में खोये जा रहे थे। मथुरा आने से पहले हमारी ट्रेन काफ़ी देर तक बिना वजह रुकी रही थी। इसलिये समय पर चल रही ट्रेन को देरी हो रही थी। मथुरा में ट्रेन कुछ देर रुक कर फ़िर दिल्ली की ओर अपनी तूफ़ानी रफ़्तार से चल पड़ी थी।
|
कोटा |
|
सरसों के फ़ूल |
|
वाह |
|
चल भाई दिल्ली का बारापुला फ़्लाईओवर आ गया है। यानि निजामुद्धीन पहुँच गये है। |
ट्रेन के स्टेशन पर रुकते ही हम घर जाने के लिये चले ही थे कि एक टिकट चैकर ने अनिल को पकड़ लिया। अब टिकट तो मेरे मोबाइल में था। मोबाइल बन्द था। टीटी को बताया कि क्यों हमारा टैम खराब करे सै इतनी दूर तै यू ही बेटिकट ना आये, हा इब जान कोनी देता? वो भी माने ना। टीटी ने सोचा कि ये झूठ बोले रहे है। आखिरकार उसको मोबाइल ओन कर टिकट दिखाया गया। तब जाकर उसे तसल्ली हुई। हमारे चक्कर में उसने अन्य लोगों की तलाशी भी नहीं ली।
इस यात्रा का कुल खर्च यूथ हॉस्टल में 3000+ट्रेन टिकट 900+ अन्य खर्चा 600 जिसमें रेल का खाना पीना भी शामिल है।=4500/ तो कैसी रही।
बहुत अच्छे फोटो हैं......
जवाब देंहटाएंवाह, पूरे पश्चिमी भारत के दर्शन करा दिये।
जवाब देंहटाएंबुआ-बहनों का प्रेम तो ऐसा ही होता है। भाई-भतीजों की आवाज पे एक पैर पर दौडी आती हैं और आजकल के भतीजे???
जवाब देंहटाएंदर्शन जी पूरे 4 घंटे दिल्ली में रूकी थी लेकिन संदीप, नीरज, अतुल किसी के पास समय नहीं था उनसे मिलने का :(
प्रणाम
सही कह रहे हो अंतर अब अगली बार तुम्हे बोलूगी देखती हूँ ये भतीजा आता है या नहीं हा हा हा हा हा
हटाएंवैसे तो मैंने भी दिल्ली का पानी पी लिया है, फिर भी आजमाईयेगा जरूर शायद थोडा असर अभी हरियाणा का भी बाकी हो :)
हटाएंआपका टिप्पणी में ये अपनत्व देखकर ही निहाल हो गया
प्रणाम स्वीकार करें
जय हो भाई, हम तो पढने में भी हाँफ़ रहे हैं और उम निकल लिये एक और टूर पर। शुभ यात्रा, अच्छे से लौटकर फ़िर से एक अच्छी सी यात्रा पढ़वाना। इंतज़ार कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया यात्रा का समापन .इस तरह हुआ की आज खुद तुम्हारे साथ ही मेरे घर में यह पोस्ट पढ़ी .....वाह क्या कहने ..
जवाब देंहटाएंkanjoos jat devta
जवाब देंहटाएं