दोनों गिरजाघर सड़क के दोनों ओर बने हुए है। पहले वाला चर्च लाल रंग का था, देखने में भी किसी किले जैसा लग रहा था। किले को देखकर बाहर निकलते ही सड़क पार दूसरी ओर सफ़ेद रंग की एक विशाल इमारत दिखायी दे रही थी। अगर सड़क किनारे वाले बोर्ड़ पर लिखा ना होता कि यह एक चर्च है तो मैं भी इसे चर्च ना मानता। दूर से देखने में यह कोई बंग्ला होने का आभास देता था। दूसरे चर्च के बाहर एक बहुत बड़ा मैदान था। मैदान में शानदार बगीचा था। हमारे पास ज्यादा समय नहीं था। इसलिये हम इन बगीचे में नहीं घुसे थे। हमारा निशाना सामने दिखाई दे रहे चर्च व संग्रहालय थे। हमने पहले तो संग्रहालय देखने का का इरादा किया, जैसे ही हम टिकट लेने के लिये लाईन की ओर बढ़े तो देखा कि वहाँ तो बहुत लम्बी लाइन लगी थी। पहले लाइन में लगकर समय खराब होता, उसके बाद अन्दर जाकर संग्रहालय देखने में भी आधा घन्टा लगना तय था।
नाम इस बोर्ड़ से पढ़ लेना। |
सड़क के इस पार से उस पार का फ़ोटो |
शानदार बगीचा |
क्या समाँ बाँधा है। |
इसके बारे में यहाँ पढ़ ले। |
संग्रहालय का प्रवेश मार्ग |
सुरक्षा का भी इन्तजाम है। |
बगीचे में पेड़ |
इतनी लम्बी लाइन देखकर हमने संग्रहालय देखने का इरादा ही छोड़ दिया था। इसलिये इस चर्च के विशाल आँगन को हमने तसल्ली से देख लिया था। इस संग्रहालय के पीछे ही एक अन्य चर्च बना हुआ था। पहले तो हमने यहाँ का बगीचा देखा, उसके बाद इस चर्च को भी देखना शुरु किया। यहाँ देशी-विदेशी दोनों तरह के लोग काफ़ी संख्या में आये हुए थे। गोवा में कभी पुर्तगाली सम्राज्य हुआ करता था उसकी बदौलत ही यहाँ गोवा में इतने बड़े-बडे किले जैसे चर्च बनाये गये है। पुराने समय में बड़ी-बड़ी फ़ैक्ट्रियाँ भी इसी चर्च जैसी दिखने वाली इमारत में हुआ करती थी। इसलिये मैं पहली बार इन्हें बीयर की फ़ैक्ट्री समझ बैठा था। समय साढ़े दस बज गये थे, ठीक बारह बजे की ट्रेन थी, इसलिये हम यहाँ ज्यादा समय नहीं देना चाह रहे थे। वैसे भी जितना हमारे देखने लायक था वो हमने देख ही लिया था। भारत में इसाई समुदाय जनसंख्या में भले ही बहुत कम हो लेकिन जमीन के मामले में पहले नम्बर पर है जितनी जमीन गिरजाघर के पास मिलेगी उतनी तो किसी अन्य धर्म के पास नहीं होगी\
देखने में सुन्दर है |
चले अन्दर |
मदर मेरी |
अन्दर नहीं जाना है। |
गोवा यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे क्रमवार दिये गये है। आप अपनी पसन्द वाले लिंक पर जाकर देख सकते है।
भाग-14-दूधसागर झरना के आधार के दर्शन।
भाग-15-दूधसागर झरने वाली रेलवे लाईन पर, सुरंगों से होते हुए ट्रेकिंग।
भाग-16-दूधसागर झरने से करनजोल तक जंगलों के मध्य ट्रेकिंग।
भाग-17-करनजोल कैम्प से अन्तिम कैम्प तक की जंगलों के मध्य ट्रेकिंग।
भाग-18-प्राचीन कुआँ स्थल और हाईवे के नजारे।
भाग-19-बारा भूमि का सैकड़ों साल पुराना मन्दिर।
भाग-20-ताम्बड़ी सुरला में भोले नाथ का 13 वी सदी का मन्दिर।
भाग-21-गोवा का किले जैसा चर्च/गिरजाघर
भाग-22-गोवा का सफ़ेद चर्च और संग्रहालय
भाग-23-गोवा करमाली स्टेशन से दिल्ली तक की ट्रेन यात्रा। .
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पुनः घूमने जैसा लग रहा है..
जवाब देंहटाएंवाह ... खूब सैर कारवाई महाराज ... जय हो !
जवाब देंहटाएंबुद्धिमान बनना है तो चुइंगम चबाओ प्यारे - ब्लॉग बुलेटिनआज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-02-2013) के चर्चा मंच-११५२ (बदहाल लोकतन्त्रः जिम्मेदार कौन) पर भी होगी!
सूचनार्थ.. सादर!