हम मड़गाँव स्टेशन से बाहर निकलकर, ऊपरगामी पैदल पुल के ठीक सामने सीधी वाली सड़क नुमा गली से आगे तीन सौ मीटर आने वाले चौक तक चलने लगे, वहाँ से हमें यहाँ के मुख्य बस अड़डा जाने के लिये छोटी-छोटी बसे मिल जायेंगी जिसमें हम सभी का मुश्किल से बीस रुपये किराया ही लगेगा। जैसा कि आप सब जानते ही है कि मैं ठहरा कंजूसों का बाप, अत: मैं तो बस से जाने में राजी था लेकिन कमल के चेहरे से लग रहा था कि वह खुश नहीं है। कुछ देर में ही हम वहाँ पहुँच गये थे जहाँ से हमें वो बस मिलनी थी जिसमें बैठकर हम उस बस अड़ड़े तक पहुँचने वाले थे जहाँ से हमें पुन: एक और बस बदल कर पणजी के लिये प्रस्थान करना था।
इस यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे। इस यात्रा का इससे पहला भाग यहाँ से देखे।
Margao Railways station |
Ayyappa devottee |
Margao railway station to Bus stop |
हमें वहाँ खड़े हुए मुश्किल से तीन-चार मिनट ही हुए होंगे कि एक मिनी बस वहाँ आ धमकी, उसमें कुछ ज्यादा ही भीड दिखायी दे रही थी, जिस कारण हमने वह बस छोड देने में ही अपनी भलाई समझी। इसके बाद अगली बस भी तीन-चार मिनट बाद ही आ गयी थी। हम उसमें सवार हो गये, यहाँ इन छोटी-छोटी मिनी बसों में अन्दर आकर देखा कि इन बसों में सीधा खड़ा होना बहुत मुश्किल है कारण इन बसों की छत बहुत नीची थी। यहाँ आकर एक नई बात पता लगा कि यदि किसी सवारी के बाद बड़ा बैग रहता है तो उसे अपना बैग चालक के पास रखना होता है। इस कारण हमने भी अपने-अपने बैग चालक के पास ही रख दिये थे। बस में मुझे सीधे खड़े होने में समस्या आ रही थी जबकि मेरी लम्बाई साधारण है मेरी लम्बाई मात्र पाँच फ़ुट आठ ईंच है। जिस कारण मुझे लगा कि यहाँ की बसे मात्र साढ़े फ़ुट ऊँची है। किसी तरह हम पणजी जाने वाली बस तक पहुँचे थे। बस में हमें जबरदस्त गर्मी लग रही थी। बस से बाहर आकर जान में जान आयी जो गोवा की गर्मी से बदहाल हो चुकी थी।
Margao Bus Stand |
Margao to Panji |
Building |
मडगाँव वाले बस अड़डे आने पर एक नयी बात का पता लगा कि यहाँ पर कुछ स्थानों के बीच एक विशेष प्रकार की तेज गति वाली बस सेवा, एक स्थान से दूसरे स्थान के लिये चलती है जिससे यात्रा करने के लिये बस में घुसने से पहले ही बस स्टॉफ़ से टिकट लेना पड़ता है। यहाँ बस में ही हमारी मुलाकात गुड़गाँव से आये तीन जवानों के साथ हुई, तीन जवान यहाँ पर नया साल मनाने आये थे। जिसमें से छोटे वाले दो पहली बार आये थे जबकि बडे वाला यहाँ नये साल पर लगातार छ: साल से आता रहा है। उसी ने हमें बताया था कि यहाँ की बसों में तेज गति वाली बस सेवा के लिये पहले ही टिकट लेना होता है जिसके लिये लम्बी लाईन में लगना होता है। हमारी टिकट के लिये भी गुड़गाँव वाला लम्बा छोरा उस लम्बी लाईन में लगा हुआ था उसे पणजी जाने के लिये अपने टिकट तो लेने ही थे साथ ही हमारे टिकट भी ले लिये थे।
From running bus |
Beautiful field |
Under railways |
टिकट लेते ही हम एक बस की खिड़की वाली सीटों पर जमकर बैठ गये थे। छ:-सात मिनट में ही बस पूरी भर गयी थी। यहाँ इन विशेष बसों में यात्रा करने के लिये लोगों की लम्बी लाईने लगती है, जिस कारण ये बसे बहुत जल्द भर जाती है। मड़गाँव से पणजी जाने में यह बसे मुश्किल से एक घन्टा लेती है, कारण यह बस बीच में कही नहीं रुकती है। यदि लोकल बसों में यही यात्रा की जाये तो दो घन्टे का समय लगना तय है। टिकट लेने वाली लम्बी लाईन देखकर एक बार विचार आया कि कोई जीप आदि देख ली जाये क्योंकि हम छ: बन्दे हो चुके थे लेकिन जब जीप वाले ने बताया कि पणजी जाने के पूरे 1200 रुपये लेगा तो अपनी तो खिसक ली। बस में एक बन्दे का किराया मात्र 30 रुपये लग रहा था और जीप में एक बन्दे का किराया 200 रुपये हो जाता। आज की पोस्ट के कई फ़ोटो इसी बस में चलते समय लिये गये है।
Bridge |
Railway Bridge |
बस अड़डे के बाहर सड़क पर शानदार फ़ूलों वाले पौधे लगाये गये थे जिससे वहाँ बहुत अच्छा लग रह रहा था। बस से चलते समय मड़गाँव से लेकर पणजी तक कुल 35 किमी दूरी तय करते समय समय कब कटा पता ही नहीं लग पाया था। बस से यात्रा के समय बीच बीच में एक से बढ़कर एक नजारे तो थे ही साथ ही इमारते, नदियाँ समुन्द्र जैसी प्राकृतिक चीजे देखकर मन प्रसन्न हो गया था। इस सुपरफ़ास्ट बस ने हमें जल्द ही पणजी बस स्थानक पर उतार दिया था। यहाँ आते ही गुड़गाँव वाले तीनों जवान हमसे जुदा हो गये। उनका आज का कार्यक्रम किसी बीच पर रात में नाच कूद कर नया साल मनाने का था। जबकि हमारा कार्यक्रम तो यूथ हॉस्टल में पहले से ही तय हो चुका था। पणजी बस अड़डे से मैं तो बस से मीरमार स्थिर अपने कैम्प तक जाना चाहता था लेकिन कमल भाई ऑटो से जाने पर जोर दे रहे थे पणजी स्थित बस अडडे से मीरमार बीच मुश्किल से तीन-साढ़े तीन किमी ही होगा। जिसके लिये तीन पहिया वाले ने सौ रुपये वसूल कर लिये थे।
On road |
Church |
जैसे ही बख्तरबन्द ऑटो, यहाँ के ऑटो दिल्ली की तरह खुल्ले नहीं थे बल्कि फ़ौज की बख्तरबन्द गाड़ियों की बन्द थे जिसमें पीछे बैठने वाली सवारी बन्द हो जाती थी। ऑटो जैसे हमें लेकर चला तो कमल ने ऑटो चालक से कहा कि जैसे ही कोई बीयर वाली दुकान आये तो वहाँ रुककर चलना मुझे बीयर लेनी है, ऑटो चालक भी पक्का घाघ था उसने भी कमल को कोई मौका नहीं दिया कि कमल कही रुक कर बीयर खरीद सके। ऑटो वाला समुन्द्र किनारे चलता हुआ मीरमार स्थित यूथ हॉस्टल के गेट पर लेकर हमें पहुँच गया था, जहाँ उसको सौ रुपये देकर रवाना किया, इसके बाद यहाँ के यूथ हॉस्टल में अपनी आमद कराने का पता किया तो मालूम हुआ कि हमें यहाँ से थोड़ा सा पहले ही मुख्य सड़क पर पार्क के बराबर में टैन्ट वाली जगह पर रिपार्ट करना था। यहाँ जाते समय कमल को बीयर की दुकान दिख गयी जिसका उसने भरपूर लाभ उठाया था। हम तीनों ने गोवा के कैम्प में प्रवेश किया.................
अगले लेख में आपको बताया जायेगा कि हमने गोवा कैम्प में अपनी आमद दर्ज कराने के बाद कैसी-कैसी मौज मस्ती की थी।
भाग-13-दूधसागर झरने की ओर जंगलों से होकर ट्रेकिंग।
भाग-14-दूधसागर झरना के आधार के दर्शन।
भाग-15-दूधसागर झरने वाली रेलवे लाईन पर, सुरंगों से होते हुए ट्रेकिंग।
भाग-16-दूधसागर झरने से करनजोल तक जंगलों के मध्य ट्रेकिंग।
भाग-17-करनजोल कैम्प से अन्तिम कैम्प तक की जंगलों के मध्य ट्रेकिंग।
भाग-18-प्राचीन कुआँ स्थल और हाईवे के नजारे।
भाग-19-बारा भूमि का सैकड़ों साल पुराना मन्दिर।
भाग-20-ताम्बड़ी सुरला में भोले नाथ का 13 वी सदी का मन्दिर।
भाग-21-गोवा का किले जैसा चर्च/गिरजाघर
भाग-22-गोवा का सफ़ेद चर्च और संग्रहालय
भाग-23-गोवा करमाली स्टेशन से दिल्ली तक की ट्रेन यात्रा। .
गोवा यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे क्रमवार दिये गये है। आप अपनी पसन्द वाले लिंक पर जाकर देख सकते है।
भाग-14-दूधसागर झरना के आधार के दर्शन।
भाग-15-दूधसागर झरने वाली रेलवे लाईन पर, सुरंगों से होते हुए ट्रेकिंग।
भाग-16-दूधसागर झरने से करनजोल तक जंगलों के मध्य ट्रेकिंग।
भाग-17-करनजोल कैम्प से अन्तिम कैम्प तक की जंगलों के मध्य ट्रेकिंग।
भाग-18-प्राचीन कुआँ स्थल और हाईवे के नजारे।
भाग-19-बारा भूमि का सैकड़ों साल पुराना मन्दिर।
भाग-20-ताम्बड़ी सुरला में भोले नाथ का 13 वी सदी का मन्दिर।
भाग-21-गोवा का किले जैसा चर्च/गिरजाघर
भाग-22-गोवा का सफ़ेद चर्च और संग्रहालय
भाग-23-गोवा करमाली स्टेशन से दिल्ली तक की ट्रेन यात्रा। .
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बहुत बढ़िया आदरणीय मित्रवर ||
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ||
हमारा पूरा समय सागर की लहरों की आवाज़ सुनने में निकल गया।
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी लहरों के साथ उछल-कूद करने में भी समय कब निकल जाता है पता ही नहीं चल पाता।
हटाएंबढि़या प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंउधर के अयप्पे हमारे यहां के काँवड़ियों से ही होते हैं
जवाब देंहटाएंहाँ काजल जी ये भी कावड़ियों की तरह जत्थे में चलते है।
हटाएंसंदीप भाई....आप वास्कोडिगामा भी उतरकर पणजी जा सकते थे....यहाँ से पणजी थोड़ा पास हैं और मडगाव से वास्कोडिगामा के बीच समुंद्र के किनारे रेल के चलने का बड़ा ही शानदार नज़ारा दिखाई देता हैं...|
जवाब देंहटाएंजाते समय हमे सुबह के अँधेरा होने कारण हमे दूध सागर झरना नहीं दिखाई दिया था ....पर वापिसी में जरुर देखा था...
हाँ रितेश भाई वस्को के मुकाबले मडगाँव आठ किमी ज्यादा दूर है, वैसे पणजी के सबसे नजदीक मात्र बारह किमी करमाली स्टेशन है जहाँ से हम वापसी में गोवा जन सम्पर्क क्रांति रेल से बैठकर आये थे।
हटाएंजबरदस्त नज़ारे. रेलवे का पूल का फोटो सही खीचा है चलती बस में और बहुत सुन्दर है . कमल जी ने कितनी बोतल बीयर पी है उसके बारे में बताते रहना. चार साल हो गए है बीयर कि एक बूँद भी मेरे मुह में गयी है. एक ज़माने में ५ से ६ बोतल तो ऐसे ही उड़ा लिया करता था. अब कमल जी कितनी उडाते है वह भी बताना ताकि हम भी नशे में गोवा का लुफ्त उठा सके.
जवाब देंहटाएंएक दिन में कितने पहर होते है समझ जाओ बस कुछ ऐसा ही मुकाबला चालू था। सभी फ़ोटो मोबाइल से लिये गये है।
हटाएंबहुत खूब, लगे रहो..वन्देमातरम..
जवाब देंहटाएंI have never been there. The photographs are very good. Loved the bridge. Thanks for sharing :)
जवाब देंहटाएंआरती जी आप भी पक्की घुमक्कड़ हो, एक ना एक दिन यहाँ पहुँच ही जाओगी। अगर समय का तालमेल बैठ जाये तो आप भी ऐसे ही किसी कैम्प में जाना, यादगार रहेगा।
हटाएंदिलचस्प चित्रमय वृत्तांत .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .
जवाब देंहटाएंsandeep ji esha lagta hai ki satg sath hi ghum liye sundar vartant.
जवाब देंहटाएंWaakai me har ek najara jabardast hai
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