रामदेवरा बाबा के यहाँ से जब चले तो शाम का समय हो रहा था। उस समय बीकानेर के लिये कैसी भी मतलब सवारी गाड़ी या तेजगति वाली एक्सप्रेस गाडी भी नहीं मिलने वाली थी। इस कारण हमने बीकानेर जाने के लिये बस से आगे की यात्रा करने की ठान ली। वहाँ से बीकानेर 150 किमी से ज्यादा दूरी पर है। यहाँ आते समय जिस बस अड़डे पर उतरे थे, हम वहीं पहुँच गये, वहाँ जाकर मालूम हुआ कि इस समय यहाँ से बीकानेर की बस मिलनी मुश्किल है अगर आपको बीकानेर जाने वाली बस पकड़नी है तो आपको लगभग एक किमी आगे हाईवे पर जाना होगा। हाईवे से होकर जानेवाली बसे जैसलमेर/पोखरण से सीधी बीकानेर चली जाती है। हम सीधे पैदल ही हाईवे पहुँच गये थे। जैसे ही हम हाईवे पर पहुँचे तो देखा कि तभी एक बस वहाँ आ गयी थी। हम तुरन्त उस बस में सवार हो गये।
बस में चढ़ने के बाद हमने यह पता किया था कि बस बीकानेर जायेगी या कही और, जब परिचालक ने बताया कि यह बस फ़लौदी तक ही जायेगी, लेकिन आपको चिंता करने की जरुरत नहीं है क्योंकि जब यह बस फ़लौदी पहुँचेगी तो इस बस की सवारी लेकर बीकानेर वाली बस आगे जायेगी। परिचालक ने हमसे दोनों के 82 रुपये रामदेवरा से फ़लौदी तक के टिकट के दाम ले लिये थे। जब हमने कहा कि क्या हमेशा इस बस की सवारी लेकर ही बीकानेर वाली बस बीकानेर जाती है। कंडक्टर ने कहा नहीं ऐसा नहीं है। मैं बीकनेर जाने वाली बस के परिचालक से मोबाइल पर बात कर लेता हूँ ताकि किसी कारण से यदि हमारी बस शाम छ: बजे तक फ़लौदी ना पहुँच पायी तो वह हमारा इन्तजार कर लेगा। बस का परिचालक अच्छा इन्सान था तभी तो उसने हमारे लिये फ़लौदी से बीकानेर जाने वाली बस दस मिनट की देरी से रवाना होने दी थी।
फ़लौदी वाली बस में बैठने के तुरन्त बाद हमारी बस हमे लकर बीकानेर की ओर चल पड़ी थी। हमने परिचालक से टिकट के लिये कहा तो उसने कहा कि आगे जाकर बस से नीचे जाकर सड़क किनारे बने हुए टिकट काऊंटर से आपको टिकट लेकर आना होगा। ऐसा हुआ भी दो-तीन किमी आगे जाने के बाद हमारी बस एक जगह रुक गयी, बस की जिस सवारी के पास टिकट नहीं वे सभी बस से नीचे उतर कर टिकट लेने लेने के लिये टिकट खिड़की पर पहुँच गयी, हम सबसे आखिरी में खड़े हुए थे। यह माजरा मेरे लिये एकदम नया था, बस चलने से पहले तो कई बार टिकट बनवाया था लेकिन बस चलने के बाद टिकट घर से पहली बार टिकट बनवाया था। फ़लौदी से बीकानेर तक का एक आदमी का टिकट मात्र एक सौ उन्नीस रुपये ही था।
यहाँ से बीकानेर तक का बस का सफ़र लगभग मस्त रहा था अत: बस यात्रा में कोई खास घटना नहीं घटित हुई थी जिसका वर्णन यहाँ किया जाना जरुरी है। मेरी मन्दपसंद आगे वाली सीट इस बस यात्रा में मुझे नहीं मिल पायी थी। रात को लगभग नौ बजे हम बीकानेर के बस अड़डे पर पहुँच चुकी थी। हम बस से उतर कर बाहर सड़क पर आये बाहर आते ही कमल भाई बोले जाटदेवता रात में कहाँ रुकना है? अभी यह बात पूरी हुई भी नहीं थी कि सड़क पार करते ही हमें शिव-शक्ति नाम का गेस्ट हाऊस दिखाई दे गया। हमने आँखों ही आँखोम में एक दूसरे को देखा और हाँ में मुंडी हिला दी, जिसके बाद हम सीधे उस गेस्ट हाऊस के काऊंटर पर पहुँच गये। वहाँ पहुँचकर मात्र तीन सौ रुपये में दूसरी मंजिल का कमरा नम्बर 203 हमने बुक कर लिया, बुक करने से पहले हमने एक बार कमरा देखना उचित समझा था ताकि एक बार होटल वाले को पैसे दे दिये तो बाद में वापिस करने में तंग करेगा। जिस दिन हम वहाँ ठहरे थे उस दिन की तारीख 07.04.2012 थी।
उसी होटल में उनका अपना भोजनालय भी था जो होटल के अलावा बाहरी बन्दों के लिये भी खुला हुआ था। यह अलग बात थी कि भोजनालय रात के दस बजे तक ही खुलता था जिस कारण हमने अपना सामान फ़टाफ़ट कमरे में रख खाना खाने नीचे आ गये थे। रात का खाना खाकर वापिस कमरे में आये दिन भर की गर्मी से बुरा हाल हो गया था अत: रात को सोने से पहले नहाना उचित समझा। जिस कारण सोने से पहले तसल्ली से नहा धोकर सोने के लिये पलंग पर विराजमान हुए थे। नहाने के बाद ऐसी लग ही नहीं रहा था कि कुछ देर पहले हम गर्मी से परेशान थे। रात को कब नींद आयी पता ही नहीं लगा।
सुबह सोकर उठे तो समय देखा अरे सुबह के छ: बज गये है। कमल भाई को उठाया गया इसके बाद हम सीधे नीचे आये वहाँ होटल के सामने ही एक नाई का काफ़ी बड़ा व अच्छा सैलून था जिसमें हम दोनों ने अपनी दाढ़ी बनवायी थी, कमल भाई ने तो अपने बालों की छटनी भी करवायी थी। बीकानेर में कमल भाई के कई जानने वाले थे। सुबह उनका मिलने का समय नौ बजे का था जिस कारण हम तय समय तक नहा-धोकर तैयार हो गये थे। आज हमारी मंजिल थी चूहों वाला दुनिया भर में प्रसिद्ध मन्दिर जिसे करणी माता के मन्दिर के नाम से जाना जाता है। हमें लेने के लिये होटल कारोबार से जुड़े एक नवयुवक जो बीकानेर के ही रहने वाले थे हमें लेने के लिये होटल की कार सहित हमारे पास आ गये थे। जहाँ से हम सीधे माता करणी के मन्दिर की ओर चल पड़े। यह मन्दिर बीकानेर से 31 किमी दूरी पर है।
कार से बीकानेर के नजदीक दशनोक स्थित चूहों वाले करणी माता के मन्दिर तक पहुँचने में मुश्किल से आधा घन्टा लगा होगा। मार्ग के सुन्दर नजारे मन को लुभा रहे थे। बीकानेर से अजमेर जाने के लिये इसी मार्ग से होकर जाना होता है। दशनोक से पहले एक रेलवे फ़ाटक आता है। वैसे दशनोक का अपना रेलवे स्टेशन भी है अगर कोई चाहता है तो रेल से भी यहाँ तक पहुँच सकता है। रेलवे स्टेशन से मन्दिर आधा किमी दूर भी नहीं है।
मन्दिर से बाहर ही वाहन पार्क करने के लिये पार्किंग बनी हुई है हमने कार वहीं छोड दी इसके साथ ही हमने अपने जूते चप्पल आदि भी कार में ही छोड दिये थे ताकि मन्दिर में प्रवेश करते समय जूते चप्पल रखने की जगह तलाश ना करना पड़े। मन्दिर के बाहर काफ़ी बड़ा मैदान नुमा चौक है जहाँ खास अवसर पर हजारों लोग एक साथ एकत्र हो सकते है। आगे की कहानी तस्वीरों की जुबानी आप देख ही सकते है। मन्दिर में लंगर आदि की भी व्यवस्था की गयी है। हमारी लंगर की कोई इच्छा नहीं थी। अगर कोई पहले से सूचित करे तो लंगर की सुविधा प्राप्त हो जाती है।
मन्दिर में अन्दर प्रवेश करते ही हमें वे चूहे दिखायी देने लगे थे जिसे देखने के लिये हम यहाँ पर आये थे। मुख्य दरवाजे से अन्दर जाते ही एक छोटी सी लाइन में लगना पड़ा। इस लाइन में लगते समय हमने देखा था कि वहाँ हजारों की संख्या में काले रंग वाले चूहे भरे पड़े है। चूहों के मन में इन्सानों का डर बिल्कुल भी नहीं था। चूहे हमारे पैरों के बीच में से होकर आर-पार जा रहे थे। लाइन में चलते हुए हमें बार-बार बताया जा रहा था कि पैरों को उठाकर मत चलिये पैरों को फ़र्श पर घसीटते हुए चलो ऐसा इसलिये कहा गया था कि पैर उठाकर चलने से पैर के नीचे किसी चूहे के कुचले जाने की सम्भावना बढ़ जाती है।
लाईन में लगकर सबसे पहले माता की मूर्ति के दर्शन किये उसके बाद वही मन्दिर में एक किनारे बैठकर चूहों के कारनामे देखने लगे। वैसे वहाँ चूहों की दुर्गंध चारों और फ़ैली हुई थी। मन्दिर के फ़र्श के नीचे चारों और सुराख बनाये गये थे जिसमें चूहे आसानी से छुप सकते थे। यह तो पता नहीं चल पाया कि उन सुराख के नीचे कितने बड़े ठिकाने है? एक जगह चूहों के पीने के लिये दूध से भरी परात रखी हुई थी इसमें कई सारे चूहे दूध पीने में लगे पड़े थे। मैं उनके एकदम नजदीक तक पहुँच गया था लेकिन चूहे मुझे देख जरा सा भी ट्स से मस नहीं हुए थे। चूहे मन्दिर के चारों और फ़ैले पड़े थे।
कुछ देर वहाँ बैठने के बाद हम वहाँ से दूसरे बरामदे में दाखिल हो गये वहाँ हमने देखा कि एक कोने में काफ़ी लोग जमा होकर कुछ देखना चाह रहे थे। पहले तो हमारी समझ में कुछ नहीं आया लेकिन एक आदमी से पता करने पर मालूम हुआ कि वहाँ पर इस मन्दिर का एकमात्र भाग्यशाली सफ़ेद चूहा रहता है। यह सारे लोग उसी के दर्शन करने के लिये जुटे हुए है। आखिर उस सफ़ेद चूहे को देखने से ऐसा क्या खास हो जाता है यह जानने के लिये हम भी वही पहुँच गये। वहाँ जाकर एक लड़के ने बताया कि मेरा परिवार यहाँ दो घन्टे से सफ़ेद चूहे के दर्शन करने के लिये खड़ा है। एक दो से और पता किया तो उन्होंने भी कुछ ऐसा ही जवाब दिया था। हम आपस में बाते कर ही रहे थे कि तभी वहाँ शोर मच गया कि वो देखो सफ़ेद चूहा, सफ़ेद चूहा। लोग चिल्ला रहे थे लेकिन हमें सफ़ेर चूहा नहीं दिख रहा था कि तभी एक आदमी ने बताया कि वो सफ़ेद चूहा उस दरवाजे पर चढ़कर बैठा हुआ है। तब जाकर सफ़ेद हमें भी चूहा दिख गया। इसके बाद हम वहाँ से वापिस बीकानेर के लिये चल पड़े।
बीकानेर पहुँचकर हमने वहाँ किला देखने का निश्चय किया था तो दोस्तों बीकानेर का किला अगले लेख में आपको भी दिखाया जायेगा।
- जोधपुर-यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे जोधपुर शहर आगमन
- जैसलमेर यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे जैसलमेर का किला (दुर्ग)
- बीकानेर यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे दशनोक वाला करणी माता का चूहों वाला मन्दिर
राजस्थान यात्रा-
बीकानेर- 1 दशनोक स्थित करणीमाता का चूहे वाला मन्दिर
बीकानेर- 2 जूनागढ़ किला
बीकानेर- 4 हेरिटेज होटल महाराजा गंगा सिंह पैलेस व राज विलास पैलेस
बीकानेर- 5 राजनिवास के संग्रहालय में भ्रमण
बीकानेर- 6 राजनिवास का वह भाग जिसे होटल बना दिया गया है।
बीकानेर- 7 एक शानदार सुन्दर व विशाल रिजार्ट
बीकानेर- 8 कुछ अन्य शानदार होटलबीकानेर- 5 राजनिवास के संग्रहालय में भ्रमण
बीकानेर- 6 राजनिवास का वह भाग जिसे होटल बना दिया गया है।
बीकानेर- 7 एक शानदार सुन्दर व विशाल रिजार्ट
बीकानेर- 9 रायसर रेत के टीलों पर एक रंगीन सुहानी मदहोश नशीली शाम दिल्ली वापसी
किस्मत वाले हो, सफ़ेद चूहा देख पाए।
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जवाब देंहटाएंराजस्थान का यह ताजमहल हमने भी देखा है परिक्रमा पथ में चूहों से जान बचानी मुश्किल होती है साथ साथ वह भी परिक्रमा करते हैं .करणी जी की .
जय हो करनी माता की...
जवाब देंहटाएंजाट भाई राम-राम ! इस मंदिर के बारे में काफी पहले मैंने किसी टी,वी चेनल पर प्रोग्राम देखा था ,पर इसके पीछे की कहानी क्या है ,,यह नही पता ,,आपने भी खुलासा नही किया ! बहरहाल मंदिर के दर्शन कराने के लिए ....
जवाब देंहटाएंआभार !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-12-2012) के चर्चा मंच-१०८८ (आइए कुछ बातें करें!) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
बड़ा ही सुन्दर और विस्तृत वर्णन
जवाब देंहटाएंविस्तृत रिपोर्ट मंदिर की .... आभार
जवाब देंहटाएंभाई, राजस्थान की सडकें....
जवाब देंहटाएंआनन्द आता है इन पर राइडिंग करने में। चिकनी और दूर दूर तक खाली। लेकिन रेत बहुत तंग करती है। सडक से नीचे नहीं उतर सकते।
और आखिर में रेलवे लाइन भी दिखा दी।
देखते हैं कि कब योग बनता है इन चूहों को देखने का।
जवाब देंहटाएंसंदीप भाई खांसी के लिए देशी औषध है शहद के साथ सितोप्लादी चूर्ण एक चम्मच शहद एक चम्मच चूर्ण मिलाकर गर्म दूध के साथ दिन में दो बार कमसे कम .शहद अदरक पीस कर उसका अर्क चाटें .
अंग्रेजी दवाओं में azithromyisin 500 mg -one OD
बोले तो वंस ए दे फार थ्री डेज़ .
संदीप भाई ....
जवाब देंहटाएंमाता करणी चूहों वाला के मंदिर में आपका लेख पढ़कर अच्छा लगा....| यह भी अजब हैं की चूहों यहाँ पर पूरी तरह मनमानी करने के लिए स्वतन्त्र हैं.....| बड़े भाग्य शाली हो सफ़ेद सफ़ेद चूहे के दर्शन हो गए | चित्रों से काफी हद तक मंदिर के दर्शन हुए....
धन्यावाद....
भाग्यशाली तो ऐसे ही होते हैं
जवाब देंहटाएंस्नान करके सो गए. मुझे त्रम्बकेश्वर की यात्रा याद आ गयी. चूहों वाला मंदिर मैंने काफी बार टी वी पर देखा है.आज आपकी पोस्ट पर भी देख लिया . धन्य है जाट
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