आज के इस लेख से पहले लेख के आखिरी में मैंने कहा था कि यह यात्रा यही समाप्त होती है, अगली यात्रा में पहाड, समुन्द्र या रेगिस्तान की किसी यात्रा पर आपको ले चलूँगा। बताईये कहाँ जाना चाहेंगे, पहाड की बाइक यात्रा, गुजरात या राजस्थान की ट्रेन यात्रा, अभी कोई सी भी यात्रा नहीं लिखी है। जिसके बारे में कहोगे वही लिख दी जायेगी। दोस्तों अपने प्रिय साथी पाठक व ब्लॉगर संजय अनेजा व वाणभट्ट जी ने कहा था कि बर्फ़ तो बहुत देख ली है अब एक आध यात्रा रेत की भी होनी ही चाहिए तो अपने प्रिय पाठकों की इच्छा का सम्मान करते हुए मैं राजस्थान में इसी साल के अप्रैल में की गयी अपनी जोधपुर यात्रा, मेहरानगढ किला, कायलाना उद्यान, रावण की ससुराल, या उनकी पत्नी मन्दोदरी का मायका-मन्डौर, राजा का वर्तमान निवास, जैसलमेर दुर्ग, रेत के विशाल टीले, सैंकडों साल पुराना जैन मन्दिर, रामदेवरा, पोखरण, बीकानेर किला, हजारों काले व एकमात्र सफ़ेद चूहे वाला करणी माता का विश्व प्रसिद्ध मन्दिर, सैम रेत के टीले sam dunes पर एक सुहानी रंगीन शाम विदेशी मेहमानों के साथ बितायी गयी थी। यह यात्रा इतनी शानदार रही थी कि मन करता है इसे फ़िर से कर डालूँ।
इसके अलावा हम दोनों ने कई सारे बेहतरीन होटल का निरीक्षण भी किया था, जिसमें सब होटल एक से बढकर एक थे, जिनमें पाँच सितारा भी शामिल थे। इनका भ्रमण भी कराया जायेगा। अत: दिल थाम कर बेसब्री से इन्तजार करिये और ऊपर वाले असली देवता से दुआ कीजिए कि जाट देवता जल्दी से जल्दी इस यात्रा के लेख लिख डाले नहीं तो आपको पता ही है कि लिखने के मामले में अपनी स्पीड का कोई भरोसा नहीं है कि कब अगला लेख लिख डाले। और अब तक अगले लेख के लिये तरसा डाले क्यों कुछ गलत तो नहीं कह दिया। तो दोस्तों आपको ज्यादा तंग ना करते हुए आपको इस यात्रा के बारे में बता ही देता हूँ कि इस यात्रा की शुरु हुई कैसे? अपने एक नवजवान (मेरे से छोटे है इसलिये नवजवान लिखा है, अन्यथा नहीं लिखता) धुरन्धर ब्लॉगर है जिनको फ़ोटो देखकर तो आप जान ही गये होंगे कि और जो नहीं जानते है उनके ज्ञान की वृद्धि के लिये बता देता हूँ कि अपने यह दोस्त शुद्ध हिन्दूवादी है दोगले हिन्दू नहीं। दोगला हिन्दू मैं उन लोगों को मानता हूँ जो अपने हिन्दू धर्म की सरेआम खिल्ली-उपहास उडाता है या उनका साथ देता है और हिन्दू धर्म के दुश्मनों विशेषकर कटुवों की हिमायत-तरफ़दारी की बात करता रहता है। इस प्रकार के लोगों को जो हिन्दू धर्म की बैंड बजाते है और कटुवों की हिमायत करते है आजकल ऐसे घटिया लोगों को धर्मनिरपेक्ष कहा जाने लगा है। जबकि इस शब्द का असली अर्थ तो यही है कि किसी भी धर्म का किसी भी सूरत में पक्ष ना लिया जाये।
मैं अपने इन दोस्त के बारे में और ज्यादा क्या कहूँ, कभी-कभी ज्यादा बढाई भी गलत रुप धारण कर लेती है, अत: आपको इनके बारे मॆं ज्यादा जानना हो तो इनका ब्लॉग जरुर देख ले इनके ब्लॉग पर यहाँ क्लिक करके पहुँचा जा सकता है। पिछले वर्ष रोहतक के पास बहादुरगढ से आगे एक ब्लॉगर मिलन हुआ था। जिसमें रात को हास्य कवि सम्मेलन भी हुआ था। मेरी इनसे पहली मुलाकार यही हुई थी। तभी कमल भाई ने कहा था कि जाट देवता कभी राजस्थान का कार्यक्रम बनाओ तो बता देना मैं भी साथ चलूँगा। अपुन को घुमक्कड जाति के प्राणी हमेशा से ही महान लगते आये है। घुमक्कड की सबसे बडी पहचान यह होती है कि उसमें आलस नहीं होता है, जिसमें आलस हुआ व घुमक्कड नहीं हुआ। जब इन्होंने मेरे साथ बाहर घूमने के लिये कहा तो सबसे पहले मैंने यही कहा कि भाई मेरे साथ जाने के लिये सबसे पहली परेशानी सुबह जल्दी चलने की रहेगी। जब इन्होंने कहा कि तुम जब जिस समय कहोगे मैं तैयार रहूँगा। यह जवाब सुनकर मैंने कमल सिंह उर्फ़ नारद जी को अपने साथ चलने की हाँ बोल दी थी।
सबसे पहले हमने बाइक से जाने की योजना बनायी क्योंकि अपने नारद जी भी बाइक चलाने के शौकीन है, इनके पास भी बजाज की पल्सर बाईक उस समय थी आज का पता नहीं, ना मैंने पता किया। यात्रा से पहले इनकी बाइक में कुछ पंगा हो गया था जिस कारण बाइक का कार्यक्रम अचानक बदल कर रेल से जाना पडा। दो दिन पहले रेल के टिकट भी आरक्षित नहीं करवाये जा सके थे। हमने साधारण टिकट लेकर जनरल डिब्बे से यात्रा करने की ठान ली। हम दोनों तय समय पर रात ठीक आठ बजे, पुरानी दिल्ली स्टेशन पर मिल गये थे। जहाँ से रात को नौ बजे एक सीधी रेल जोधपुर जाती है। यह रेल दिल्ली से रात को चलकर सुबह-सुबह जोधपुर पहुँच जाती है। दोनो ने जनरल डिब्बे का टिकट लेकर आगे वाले जनरल डिब्बे में बैठने के लिये सही जगह तलाश कर वहाँ पसर गये। दिल्ली से चलते समय तक तो डिब्बे में ज्यादा मारामारी नहीं थी। जैसे-जैसे ट्रेन आगे बढती रही, डिब्बे में भीड बढती रही। आखिरकार जब सीट पर बैठने की क्षमता समाप्त हो गयी तो नयी सवारियाँ डिब्बे मॆं फ़र्श पर बैठनी शुरु हो गयी।
बीच में जयपुर या किसी अन्य स्टेशन पर पहुँचने के बाद ज्यादातर सवारियाँ डिब्बे से उतर गयी थी। अब रात अपने पूरे शबाब पर थी। जिस कारण नींद की झपकी सभी को आ रही थी। सुबह चार बजे तक तो सफ़र आराम से बैठकर चलता रहा, चार बजे के बाद लेटने की जगह मिल गयी थी जिस कारण दो सवा दो घन्टे शरीर को आराम मिल गया था। जोधपुर आने से पहले ही उजाला हो गया था जिससे चलती रेल से बाहर देखने का मजा आ रहा था। बाहर हरियाली दूर-दूर तक नहीं दिख रही थी। जहाँ तक नजर जाती सूखे झाड ही दिखायी देते थे। जैसे ही स्टेशन पर हमारी ट्रेन रुकी तो हम भी सभी यात्रियों की तरह अपना-अपना थैला उठाकर बाहर निकल आये। स्टेशन पर उतरते ही सबसे पहले जोधपुर वाले बोर्ड के नीचे खडे होकर फ़ोटो खिंचवाये गये। उसके बाद स्टेशन से बाहर निकल आये। स्टेशन से बाहर आकर देखा कि यहाँ पुरानी छोटी रेलवे लाईन का इंजन दिखाने के लिये लगाया गया है।
स्टेशन के बाहर ही सीधे हाथ की ओर खाने-पीने बहुत सी दुकाने थी। सबसे पहले यह पता किया कि खाने की ऐसी कौन सी वस्तु है जो दिल्ली में नहीं मिलती है। तब एक दुकान से मठठी की तरह, लेकिन उससे कही बडी व मीठी और कडक चीज का स्वाद लिया जो सच में गजब था। पहले तो एक-एक ही ली थी कि कहीं खायी ही ना जाये। बाद में स्वाद जबरदस्त लगने के कारण एक-एक और खायी गयी। हल्का-फ़ुल्का खाने-पीने के बाद हम दोनों दुकानदार से किले का मार्ग व वहाँ जाने के लिये बस, टैम्पों आदि कहाँ से मिलते है, आदि के बारे में पता कर उसी ओर चल दिये। स्टेशन से किले जाने के लिये सामने ही एक चौडी सडक सीधी नाक की सीध में जाती दिखायी देती है जिस पर लगभग दो-तीन सौ मीटर चलते ही यह सडक समाप्त हो जाती है जहाँ यह सडक समाप्त होती है ठीक वहीं सामने, एक किले जैसा कुछ दिखाई देता है नजदीक जाने पर लगा कि यह ठाकुर राजरणछोड जी का मन्दिर है। हम मन्दिर में अन्दर नहीं गये। उस समय वहाँ साफ़-सफ़ाई चल रही थी। हम बाहर सडक पर मन्दिर वाली साइड में ही खडे हो गये, क्योंकि उसी तरफ़ से हमें किले यानि मेहरानगढ दुर्ग जाने के लिये बस मिलने वाली थी। थोडी देर में ही एक बस वहाँ आयी जिसमें सवार होकर हम दुर्ग की ओर चल दिये। बस जोधपुर हाईकोर्ट के आगे से होती हुई आगे बढती हुई, उस जगह जा पहुँची जहाँ से बाकि का आधा किमी का सफ़र हमें आटो या पैदल करना था। अपना साथी कमल सिंह नारद बोला कि चलो आटो से चलते है मैंने कहा नहीं पहले गन्ने की जूस पियेंगे उसके बाद पैदल चलकर अपना जूस निकालेंगे। जिस ओर बस ने उतारा था उस ओर पैदल चलते ही थोडी देर बाद सडक किनारे एक बोर्ड पर अपनी नजर गयी जिस पर लिखा था नागौरी दरवाजा।
अब इस नागौरी दरवाजे से आगे जोधपुर दुर्ग ज्यादा दूर तो नहीं बचा था लेकिन चढाई पर जरुर था, जिस कारण पसीना निकलवा गया था जिसके बारे में अगले लेख में बताया जायेगा।
राजस्थान यात्रा-
भाग 1-जोधपुर शहर आगमन
भाग 2-जोधपुर का मेहरानगढ़ दुर्ग
भाग 3-जोधपुर कायलाना झील व होटल लेक व्यू
भाग 4-जोधपुर- मन्डौर- महापंडित लंकाधीश रावण की ससुराल
- जोधपुर-यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे जोधपुर शहर आगमन
- जैसलमेर यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे जैसलमेर का किला (दुर्ग)
- बीकानेर यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे दशनोक वाला करणी माता का चूहों वाला मन्दिर
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बढ़िया वर्णन |
जवाब देंहटाएंआभार देवता ||
राजस्थान इस प्रकार के दर्शनीय स्थानों से भरा हुआ है।
जवाब देंहटाएंसंदीप जी जोधपुर तो मेरा पसंदीदा नगर हैं और राजस्थान की शान हैं. कभी जब पढ़ा करते थे तब जोधपुर गए थे. थोड़ी सी यादे अभी बाकी हैं. जोधपुर की सैर कराने के लिए धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंजाट देवता जी आप नेपाल घुमनेकी योजना बनाईये , हम भी शामिल हो जायेंगे .बाईक ले जा सकते है ...
जवाब देंहटाएंसचिन जी अगले साल मार्च के आखिर में या अप्रैल के शुरु में बाइक से नेपाल जाने की सोच रहा हूँ। अगर आप भी काफ़िले में शामिल होंगे तो अच्छा लगेगा। अभी तक बुढाना के मनु प्रकाश त्यागी, जयपुर के विधान चन्द्र उर्फ़ गप्पू ने नेपाल जाने की इच्छा जतायी है।
जवाब देंहटाएंतैयार चाहे चीन चलो
हटाएं:)
हटाएंये हुई न बात!!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 6/11/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रहा ..आज का प्रोग्राम ..अब जल्दी जोधपुर का किला दिखाओ ....बचपन में जब 6 टी पढती थी तब स्कूल से ट्रिप गई थी ..जयपुर ,उदयपुर और जोध पुर ..जोधपुर के किले में वो चीज याद है जहा बहुत बड़ा सूरज बना है बस ! और कुछ याद नहीं ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...फरमाइश करने का मज़ा भी तब है जब उसे मान लिया जाए...हमेशा की तरह उम्मीद आपने यहाँ भी कायम कर दी...एक रोमांचक यात्रा की...
जवाब देंहटाएंलगता है आपने मिर्च के बड़े बड़े पकौड़े और जलेबी नहीं खाए . :)
जवाब देंहटाएंइतनी रोचक यात्रा के लिए धन्यवाद ...अब इन्तजार है जोधपुर के किले का ..देखिये कब बारी आती है ...
जवाब देंहटाएंमजा आयेगा पढ़ने में। फ़रमाइश भी पूरी हुई और ऐसे दो मित्रों की यात्रा के बारे में पढ़ने को मिलेगा जिनसे मुलाकात भी हो चुकी है।
जवाब देंहटाएंसंदीप भाई फर्श पर बैठकर मैंने जनरल डिब्बे में बहुत बार सफर किया है . एक बार तो लगेज के डिब्बे में आप ही ले गए थे . नयी ऊंचाइया छू ली थी . जोधपुर के स्टेशन के सामने वाला इंजिन का फोट बहुत आकर्षक है .
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