इस यात्रा का पहला भाग यहाँ से पढे।
मैंने कार मंशा देवी पार्किंग में सही जगह देख खडी कर दी थी, जिसके बाद सामने ही दिखाई दे रहे टिकटघर से चार टिकट लेकर, हम सब ऊडन खटोले की ओर बढ चले। बच्चों के टिकट लेने की आवश्यकता ही नहीं पडी थी, क्योंकि ज्यादा छोटे बच्चों का टिकट ही नहीं लगता था। यहाँ इस मन्दिर में मैं पहले भी आ चुका था जबकि परिवार के अन्य सदस्य पहली बार ही यहाँ पर आये थे। मैंने यहाँ की पहली यात्रा पैदल की थी। आज दूसरी यात्रा उडन खडोले से की जा रही थी। उडन खटोले से उडते हुए पहाड पर चढना भी अलग ही रोमांच का अनुभव करा रहा था। जब उडन खटोला काफ़ी ऊँचाई पर पहुँच गया तो वहाँ से नीचे झाँक कर देखा तो एक बार को तो साँस, जहाँ थी वही अटक गयी सी महसूस हुई, लेकिन जल्द ही साँसों पर काबू पा लिया गया। मेरे नीचे देखने के बाद सबने नीचे देखा और शुरु में डरते-डरते बाद में सामान्य होकर रोमांच का जी-भर कर आनन्द उठाया। उडन खटोले से तीन किमी का सफ़र सिर्फ़ तीन मिनट में सिमट कर रह गया था। पैदल चढते हुए इस यात्रा को एक घन्टा लग जाता है सुना है कि आजकल पैदल मार्ग पर कुछ बाइक वाले भी मिलते है जो यात्रियों से कुछ शुल्क लेकर मन्दिर तक यात्रा भी करवा देते है।
दो रत्न
जैसे ही उडन खटोले का सफ़र पूरा हुआ तो वहाँ से बाहर आने के बाद सीधे चंडी देवी मन्दिर की ओर प्रस्थान कर दिया गया। दो-चार मिनट में ही हम मुख्य मन्दिर तक पहुँच गये। मन्दिर में चंडी माँ की मूर्ति के दर्शन किये, इस यात्रा के लिये मैं दिल्ली से ही 11 नारियल साथ लेकर चला था ताकि मार्ग में हमें नारियल तलाश ना करना पडे। घर से ही कार की डिक्की में मैंने मीठे पताशे/बताशे का एक बीस किलो का टोकरा भी भरवा कर ले लिया था, पताशे को पूरो टोकरा इसलिये लिया था कि जहाँ भी मन्दिर आयेगा तो प्रसाद बाँटने में कोई अडचन नहीं आयेगी। चंडी देवी मन्दिर में देवी दशन कर व नारियल पताशे चढा कर हम बाहर आ गये। बाहर आते ही हमारा इरादा अन्जनी माता के जाने का था। हनुमान जी की माता अन्जनी माँ का मन्दिर चंडी माता के मन्दिर से ज्यादा दूरी पर नहीं है यह मन्दिर मुश्किल से आधा किमी फ़ासले पर भी नहीं है। जल्दी ही हम वहाँ भी पहुँच गये। माता अन्जना देवी मन्दिर में प्रवेश कर दर्शन किया व प्रसाद चढाया। इसके बाद हम ऊडन खटोले की ओर चले आये, जहाँ से उडन खटोले में सवार होकर वापिस उसी जगह उतर गये जहाँ हमारी कार खडी थी। एक बार फ़िर कार में सवार होकर आगे की ओर चल पडे।
इन मन्दिरों के दर्शन करने के उपरांत हमारा लक्ष्य नीलकंठ महादेव मन्दिर था। थोडी देर बाद ही गंगा पार करते हुए हम मुख्य सडक पर आ गये जहाँ से अब हम नीलकंठ महादेव मन्दिर की ओर जा रहे थे। इस यात्रा से पहले पैदल व बाइक से तो मैंने कई बार नीलकंठ महादेव मन्दिर के दर्शन किये है लेकिन कार से यहाँ पहली बार जाना हो रहा था। हरिद्धार से ऋषिकेश जाते समय सात-आठ किमी पहले सीधे हाथ एक मार्ग बैराज की ओर जाता है, जहाँ से कार या बडी गाडी नीलकंठ मन्दिर की ओर जाती है। यह मार्ग, उस मार्ग से काफ़ी लम्बा पडता है जो मार्ग राम झूला या लक्ष्मण झूला से होते हुए नीलकंठ मन्दिर तक जाता है। बैराज से पहले एक ढाबे पर रुक कर पनीर वाले ब्रैड-पकौडे खाये गये, वह ढाबे वाला बडा लुटेरा था उसने हमारे से उन पनीर वाले ब्रेड के 300 रु वसूल कर लिये थे। यहाँ पनीर वाला ब्रैड खाना सच में काफ़ी मंहगा सौदा लगा था। खा पीकर हमारी कार हमें लादकर फ़िर से नीलकंठ मन्दिर की और दौड पडी।
लगभग दस किमी चलने के बाद हमारी कार उस जगह के सामने पहुँच गयी जहाँ से नीलकंठ महादेव मन्दिर के लिये पैदल मार्ग राम झूले से सीधा पहाड में चढता जाता है। चूंकि मैं पहली बार इस सडक मार्ग से आया था अत: मुझे थोडा आश्चर्य सा हुआ था कि अरे मैं अभी तक राम झूले तक ही पहुँचा हूँ। जबकि मैं सोच रहा था कि मन्दिर अब नजदीक ही होगा। यहाँ से लगभग डेढ-दो किमी चलने के बाद लक्ष्मण झूला भी दिखायी देने लगा। यह सडक लक्ष्मण झूले के ठीक ऊपर से होती हुई चलती रहती है। जिन यात्रियों को लक्ष्मण झूले से जीप में बैठना होता है, वे इसी पुल से सडक पर पहुँच जाते है, फ़िर वहाँ से जीप में बैठ नीलकंठ महादेव मन्दिर पहुँच जाते है। यह मार्ग एक नदी के साथ-साथ आगे बढता रहता है। यहाँ से नीलकंठ महादेव मन्दिर लगभग 25-26 किमी दूर रह जाता है। इस मार्ग पर आगे चलकर एक छोटा सा झरना सीधे हाथ पर दिखायी देता है, गर्मियों में काफ़ी लोग वहाँ स्नान करते हुए दिखाई दे जायेंगे। नीलकंठ मन्दिर से मात्र 4-5 किमी पहले हमें यह सडक छोडनी पडती है क्योंकि यह सडक आगे बढती हुई लैंसडाऊन पौडी वाले मार्ग पर मिल जाती है, वह सडक यहाँ से लगभग 80 किमी के आसपास रह जाती है। जब मन्दिर सीधे हाथ जाने सडक पर मात्र दो किमी दूर रह जाता है तो नगर पालिका के पार्किंग वाले हर वाहन से शुल्क वसूल करते हुए मिल जाते है यहाँ उन्होंने एक बैरियर भी बनाया हुआ है। उस समय तो इस सडक की हालत थोडी खस्ता थी आज पता नहीं उसमें सुधार हुआ है कि नहीं।
मन्दिर के पास मुश्किल से पचास मीटर दूर पहुँचने के बाद मैंने कार सडक किनारे रोक दी, जहाँ सबने गंगाजल के पैंकिंग में मिलने वाले गिलास नुमा गंगाजल को एक दुकान से खरीदकर मन्दिर में शिव की पिंडी पर गंगाजल अर्पण किया था। शाम होने को जा रही थी। पहले सोचा कि यही एक कमरा लेकर रात बितायी जाये लेकिन वहाँ मोबाइल का नेटवर्क ना होने के कारण वहाँ रुकने का कार्यक्रम बदल दिया गया। हम एक बार फ़िर से अपनी कार में सवार होकर ऋषिकेश की ओर रवाना हो गये। बैराज तक पहुँचने से पहले ही अंधेरा होने लगा था जिससे आगे की यात्रा, हमें कार की हैड लाईट जलाकर करनी पडी। ऋषिकेश पहुँचकर एक दो जगह रात रुकने के लिये कमरे तलाश किये। लेकिन गौशाला के पास जाकर कमरे की बात बन सकी। चार बैड वाला एक बडा सा सुन्दर सा कमरा हमें मात्र तीन सौ रुपये में मिल गया था। जहाँ हम रुके थे वह होटल नहीं था किसी ने अपने घर की ऊपरी मंजिल पर बने हुए कमरे में पलंग डालकर पेईंग-गेस्ट का रुप दे दिया था। यह घर गौशाला के ठीक बराबर वाली गली के किनारे वाला था। नीचे मुख्य सडक की ओर मकान मालिक की दुकान थी। रात को नजदीक ही एक ढाबे से खाना लाकर खा लिया गया उसके बाद छत पर जाकर, रात में बाहर का शानदार नजारा देखा था। मुझे अच्छी तरह याद है कि रात के समय नरेन्द्र नगर में जलते हुए बल्ब ऐसे लग रहे थे, जैसे आकाश में तारे नजदीक आकर अटक गये हो। सुबह जल्दी उठकर आगे की यात्रा करनी थी अत: हम ज्यादा देर ना करते हुए जल्दी ही सो गये थे। अगले दिन हमें ऋषिकेश से चलकर चम्बा होते हुए, धनौल्टी वाले सुरकन्डा देवी मन्दिर में पैदल चलकर जाना था। वहाँ से मसूरी होते हुए रात में देहरादून मौसी के घर जाकर रुकने का पहले ही सोचा हुआ था।
सुबह छ: बजे उठकर सभी नहा धोकर सात बजे तक चलने को तैयार हो गये थे। यहाँ से हम लोग कार में सवार होकर नरेन्द्र नगर, चम्बा की ओर रवाना हो गये। नरेन्द्र नगर तक लगातार चढाई बनी रहती है लेकिन इसके बाद कभी चढाई कभी उतराई वाला अन्नत सिलसिला चलता रहता है। नरेन्द्र नगर से आगे चलकर मुख्य सडक पर ही एक देवी का मन्दिर आता है। नाम याद नहीं आ रहा है। बाइक पर की गयी कई यात्रा में मैं यहाँ कभी नहीं रुका था लेकिन आज हमारे पास काफ़ी समय था, जिस कारण हम थोडी देर मन्दिर में देवी दर्शन के लिये रुके, मन्दिर के पास ही एक दुकान थी जहाँ पर मेरे अलावा बाकि सदस्यों ने चाय-बिस्कुट का स्वाद लिया था। यहाँ इस मन्दिर तक हमने आधे से ज्यादा नारियल अपने भन्डार से खाली कर दिये थे। पताशे की टोकरी में से भी कई किलो पताशे कम हो चुके थे। हमारा सफ़र चलता रहा, लेकिन चम्बा से बीस किमी पहले अचानक कार के अगले पहिया से कुछ आवाज आनी शुरु हो गयी थी जिस कारण मुझे कार रोकर नीचे आना पडा था। पहिये को देख मेरे माथे में बल पड गये थे।
आप बता सकते है कि कार के अगले पहिये में क्या हुआ होगा? अंदाजा लगाईये नहीं तो एक दो दिन में मैं तो बात ही दूंगा। जिसका वर्णन अगले भाग में किया जायेगा।
बढिया यात्रा वृतांत ..
जवाब देंहटाएंपहिए के बारे में दो दिन बाद जानकारी लूंगी ..
उम्मीद है कि अधिक दिक्कत नहीं हुई होगी !!
बढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबधाइयाँ ।।
sandeep bhai acchi hai yatra , lekin ab uttarakhand aur himachal chhodkar kuch bhi likho thode dino ke liye . sab jagah delhi waale yahi likhte hai.
जवाब देंहटाएंपहिये के बारे मे शर्तिया कह सकता हूं कि उसमें पंक्चर नही हुआ था
जवाब देंहटाएंबदिया यात्रा सस्मरण उपयोगी जानकारियों सहित....आभार !!!
जवाब देंहटाएंबढिया यात्रा वृतांत .....
जवाब देंहटाएंसंदीप भाई
मेरे ब्लॉग पर स्वागत है
http://rajkumarchuhan.blogspot.इन
badiya, rishikesh se neelkanth koi paidal rasta bhi hai? safe ho magar
जवाब देंहटाएंरामझूला के नजदीक से पैदल मार्ग है चलता मार्ग है दुकान भी मिलती है खतरे वाली कोई बात नहीं है।
हटाएंसर आपकी यात्रा का वर्णन पढने मे बहुत आनन्द आया।
जवाब देंहटाएंdevi Mandir ka name kunjapuri h
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