यह लेख लिखने से पहले मैं सन 2005 के अगस्त माह में बाइक से की गयी बद्रीनाथ-माणा-फ़ूलों की घाटी-हेमकुंठ साहिब-केदारनाथ यात्रा लिखना चाह रहा था, लेकिन कहते है ना, कि चाहने से कुछ नहीं होता है वही होता है जो मंजूरे परमात्मा होता है। उसी परमात्मा ने अचानक से दिमाग की घन्टी बजायी कि अरे जाटदेवता 30 अक्टूबर आज है और तुम दूसरी यात्रा लिखने जा रहे हो। 30 अक्टूबर से याद आया कि सन 2008 में इसी दिन सुबह-सुबह मैं अपने परिवार सहित सबके नाम क्रमश: संतोष तोमर + संदीप पवाँर + रीना मलिक + मणिका आर्य + पवित्र आर्य .... लिख दिये गये है। सभी नाम इसलिये लिखे है क्योंकि इसी दिन हमारा कार्यक्रम दिल्ली से चलकर हरिद्वार पहुँचकर पवित्र के जन्म के बाल गंगा तट पर उतरवाने का बनाया गया था।
चलिये आपको ज्यादा असमंजस की स्थित में ना डालते हुए बताता हूँ कि पवित्र का जन्म सन 2008 में अप्रैल माह में हुआ था। पवित्र के जन्म के सिर के बाल 30 अकटूबर तक भी पहली बार कटवाये नहीं गये थे। पवित्र के जन्म के समय ही यह बोला गया था कि पवित्र के बाल हरिद्वार में गंगा तट पर कटवाये जायेंगे। इसलिये हमारे परिवार ने इस दिन यानि आज ही के दिन सुबह-सुबह ठीक छ: बजे मारुति आल्टो कार में सवार हो हरिद्वार के लिये प्रस्थान कर दिया था। दिल्ली से मुरादनगर तक तो मौसम एकदम सही-सलामत था लेकिन जैसे ही मुरादनगर से आगे गंग-नहर पार की, तो मन में विचार आया कि क्यों ना, इसी गंग-नहर के किनारे-किनारे बनी हुई बढिया सडक पर आगे की यात्रा जारी रखी जाये।
चलिये आपको ज्यादा असमंजस की स्थित में ना डालते हुए बताता हूँ कि पवित्र का जन्म सन 2008 में अप्रैल माह में हुआ था। पवित्र के जन्म के सिर के बाल 30 अकटूबर तक भी पहली बार कटवाये नहीं गये थे। पवित्र के जन्म के समय ही यह बोला गया था कि पवित्र के बाल हरिद्वार में गंगा तट पर कटवाये जायेंगे। इसलिये हमारे परिवार ने इस दिन यानि आज ही के दिन सुबह-सुबह ठीक छ: बजे मारुति आल्टो कार में सवार हो हरिद्वार के लिये प्रस्थान कर दिया था। दिल्ली से मुरादनगर तक तो मौसम एकदम सही-सलामत था लेकिन जैसे ही मुरादनगर से आगे गंग-नहर पार की, तो मन में विचार आया कि क्यों ना, इसी गंग-नहर के किनारे-किनारे बनी हुई बढिया सडक पर आगे की यात्रा जारी रखी जाये।
इस नहर से जाने का सबसे बडा फ़ायदा तो यह था कि इस पर बहुत कम वाहन चलते है जो भी चलते है उनमें से ज्यादातर कार व मोटर bike ही होती है। हमें नहर वाले मार्ग पर चलते हुए ज्यादा देर नहीं हुई थी कि आगे सडक पर कोहरा चारों ओर छाने लगा था। घडी में समय देखा तो सुबह के सात बजने वाले थे। इस समय नवम्बर शुरु होने से पहले ही कोहरा देख थोडा सा आश्चर्य तो अवश्य हुआ लेकिन उस आश्चर्य से ज्यादा परेशानी मुझे सडक पर दिखाई देने लगी थी। मैं स्वयं कार चला रहा था, जिससे मेरी जिम्मेदारी भी बढ रही थी। अगर कोई ड्राईवर साथ होता तो मैं तब भी सावधान रहता लेकिन अब मैं स्वयं कार चला रहा था तो तब भी मैं उतनी ही सावधानी से कार चला रहा था। कोहरे में कार की गति घटकर 20-25 किमी प्रति घन्टे पर आ गयी थी। यह कोहरा हमें खतौली तक लगातार मिलता रहा था। यह शुक्र जरुर रहा कि बीच-बीच में कहीं-कही थोडा बहुत कम-ज्यादा हो जाता था। नहर वाली सडक की स्थिति भी बीच-बीच में काफ़ी बुरी हालत में मिली थी जिस कारण मुझे वहाँ कार चलाते हुए गुस्सा आने लगा था। जैसे ही खतौली आते ही दिल्ली हरिद्वार वाली मुख्य सडक दिखायी तो मैंने अपनी कार तुरन्त हाईवे की ओर मोड दी थी।
हाईवे पर चलने के बाद मैंने महसूस किया था कि यहाँ पर नहर वाले मार्ग के मुकाबले कोहरा बहुत ही कम है। इसके दो कारण पहला कारण इस मार्ग के किनारे पानी नहीं था जहाँ पानी होता है वहाँ कोहरा कुछ ज्यादा ही पाया जाता है। मेरी इस बात का विश्वास करने के लिये आपको किसी सडक पर जाते हुए ध्यान देना कि जब भी किसी नदी पर कोई पुल आयेगा तो वहाँ पर आपको सर्दी में कोहरा जरुर दिखाई देगा। अब मुख्य सडक पर चलते हुए मैने कार की गति भी थोडी बढा दी थी। कार की गति इसलिये बढायी थी क्योंकि कोहरे में चलने से जितना समय खराब हुआ उसकी कुछ भरपाई तो करनी ही थी। मैं कार चलाता रहा जबकि पीछे की सीट पर जब मेरी नजर जाती तो मुझे माताजी व पत्नी सोती हुई दिखाई देती थी। उनको सोते देख मुझे थोडा सा गुस्सा भी आता था। लेकिन उनकी मन की स्थिति मैं समझ सकता था कि मैं तो कार चलाने में व्यस्त था लेकिन वे खाली बैठे-बैठे सोने के अलावा और क्या कर सकती थी।
जब मुजफ़्फ़रनगर बाई-पास आया तो मैंने अपनी कार बाई पास की ओर मोड दी ताकि इस शहर की भीड-भाड से बचता हुआ, मैं आगे की यात्रा जारी रख सकूं। मुझे उतराखण्ड राज्य की सीमा में घुसते ही गुरुकुल नारसन गाँव से बुआ लडकी भी लेनी थी। जब नारसन गाँव आया तो मैंने कार नारसन गाँव में अपनी बुआ के घर की मोड दी। बुआ से पहले से ही फ़ोन से बात हो गयी थी अत: हमें वहाँ ज्यादा समय नहीं लगा। हम वहाँ से बुआ की लडकी को लेकर आगे की ओर बढ चले। आप सोच रहे होंगे कि बुआ की लडकी का हमारे साथ क्या काम? हमारे यहाँ मुन्डन जैसे संस्कार में बुआ या बुआ की लडकी के हाथों इस प्रकार के शुभ कार्य कराये जाते है। हम रुडकी होते हुए सीधे हरिद्वार पहुँच गये। समय देखा तो दोपहर के एक बज रहे थे। हमने ज्यादा समय व्यर्थ ना करते हुए कार बाईपास की तरफ़ वाली पार्किंग में लगाकर सामने दिखाई दे रही हर-की-पौडी की ओर पैदल प्रस्थान कर दिया था। कार पार्किंग से हर की पैडी नजदीक ही है।
जैसे ही हम मुन्डन स्थल पर पहुँचे तो वहाँ हमारे पास एक छोटा बच्चा देख, कई नाई हमारे पीछे लग गये। वहाँ एक अच्छी बात यह लगी कि नाई भी क्षेत्र के हिसाब से आपस में बँटे हुए थे जिससे कि ज्यादा मारामारी नहीं मचती थी। मैंने उनसे पूछा कि मेरठ के इलाके के मुन्डन कौन करता है तो एक ने कहा कि सामने जो ताऊ बैठा है वह मेरठ से आये बच्चों के मुन्डन करता है। जब हम उस नाई के पास गये तो नाई बोला कहाँ से आये हो? हमने उसे अपना नाम व गाँव बताया तो उसने हमारे गाँव की कई घटनाये बतानी शुरु कर दी, उसकी बाते सुन थोडा अजीब लगा कि यह बन्दा कहाँ-कहाँ की जानकारी याद रखता होगा?
हमने मुन्डन कराने से पहले यह तय करना उचित समझा कि वह कितना दाम लेगा। हमने उससे पूछा तो वह बोला जो आपको देना हो दे देना। मैंने कहा कि मैं 21 रु दूँगा। उसने कहा कि 21 तो बहुत कम थोडा और बढा दो। मैने कहा ठीक है 21 से ज्यादा दूँगा। कितना ज्यादा वो मेरी मर्जी होगी, उसके बारे में ज्यादा चू-चपट मत करना। पहले मैं समझ रहा था, ये नाई बाल काटने में बच्चों को काफ़ी तंग करते होंगे लेकिन जब उस नाई ने पवित्र के बाल काटने शुरु किये तो उसने इतने प्यार से बाल उतारे कि हमें ऐसा लग ही नहीं रहा था कि किसी बच्चे के पहली बार बाल उतारे जा रहे है। नाई का हाथ पवित्र के सिर पर कुछ ऐसे चल रहा था जैसे सिर पर मक्खन लगा हो और उसे उतारा जा रहा हो। उस समय नन्हे पवित्र ने भी कमाल कर दिया था बाल उतरवाते समय जरा सी चू-चा तक ना की। जब सब बाल उतर गये तो बुआ की लडकी ने पवित्र के सभी बाल गंगा की घारा में प्रवाहित कर दिये थे। इसके बाद पवित्र को गंगा जी में पहला स्नान कराया गया था। पानी बेशक ठन्डा था लेकिन अपने बाप की तरह पवित्र भी ठन्डे पानी में नहाने में पक्का निकला। मैंने नाई को 51 रुपये दिये, जो उसने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिये, नहीं करता तो भी मैं कौन सा उसे इससे ज्यादा देने वाला था।
स्नान आदि के कार्य से निपटकर हम फ़िर से अपनी कार के पास पहुँच गये। सबको भूख लगी थी चलने से पहले सबने दोपहर का भोजन किया। भोजन के बाद चंडी देवी व हनुमान जी की माता अन्जनी देवी का मन्दिर देखने के लिये चल पडे। पार्किंग से कार लेकर थोडी दूर दिल्ली की ओर चलना पडा उसके बाद एक चौराहे से उल्टे हाथ मार्ग पर गंगा पुल पार करते हुए चंडी देवी मन्दिर की ओर चल पडे। थोडा आगे चलने पर देखा कि उडन खटोला वाला बोर्ड बता रहा था कि अभी इसी मार्ग कुछ दूर और जाना पडेगा। जब उडन खटोला वाला स्थान आ गया तो मैंने पार्किंग में अपनी कार खडी कर दी, जिसके बाद चार टिकट लेकर हम सब ऊडन खटोले की ओर बढ चले।
यहाँ से आगे का उडन खटोले का वर्णन व यहाँ से हम लोग नीलंकठ महादेव मन्दिर की ओर चले गये। जिसका वर्णन अगले भाग में किया जायेगा।
यह लेख जल्दबाजी में लिखने के कारण फ़ोटो स्कैन नहीं हो पाये है। जैसे ही स्कैन होंगे लगा दिये जायेंगे।
सुंदर विवरण ..
जवाब देंहटाएंयात्रा भ्रमण से अवगत कराने के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंयूनिक ब्लॉग---------जीमेल की नई सेवा
ये यात्रा भी बढ़िया रही
जवाब देंहटाएंपवित्र के मुंडन में आपने हमें भी शामिल किया... धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंjaise sir par makhan lagaa rahaa ho . sahi hai jaatdevta jee sahi hai.
जवाब देंहटाएं51 mein khush ho gayaa os samay . aaj 501 doge to bhi roegaa .
जवाब देंहटाएंbhai ji, mata ji aur bhabi ji ko dekhkar gussa kyo aaraha tha???
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