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रविवार, 12 फ़रवरी 2012

SATTAL or SAT TAL सात ताल की ओर


भीमताल, नौकुचियाताल, देखने के लिये यहाँ क्लिक करे।

भीमताल, नौकुचियाताल देखने के बाद आज सातताल देखने की बारी थी। वैसे तो सातताल व भीमताल में पहाडों के पैदल मार्ग से कोई खास दूरी नहीं है दूरी यानि 5-6 किमी ही है लेकिन फ़िर भी ज्यादातर अरे! ज्यादातर क्या लगभग सारे के सारे ही वाहनों में आराम करते हुए लम्बे मार्ग से भीमताल से सातताल देखने के लिये जाते है पूरे सीजन में मुश्किल से कोई 30-40 लोग ही पैदल मार्ग मार्ग का प्रयोग करते होंगे। जब मैंने पैदल मार्ग से जाने के बारे में ओशो आश्रम वालों से बताया तो उन्होंने कहा कि वैसे तो कोई समस्या नहीं है लेकिन आपको मार्ग में शायद ही कोई मिले, अगर आप मार्ग भटकते है तो आपको बताने वाला कोई नहीं मिलेगा। जब मैंने पूछा कि ऐसा क्यों? तो उन्होंने कहा कि उस मार्ग पर कोई गाँव नहीं पडता है जिस वजह से सडक बन जाने पर अब उस मार्ग से कभी-कभार ही कोई आवागमन करता है। मैंने उनसे अच्छी तरह मार्ग के बारे में समझ लिया ताकि मार्ग भटकने की कोई आशंका ही ना रहे।

भीमताल से चलने के बाद ऐसा दृश्य।



गलत मार्ग पर जाने पर यह फ़ोटो लिया गया था।


उनके बताये मार्ग पर मैं सुबह का खाना खाकर लगभग 9 बजे वहाँ से चल पडा। ओशो आश्रम के ठीक ऊपर से ही एक मार्ग आगे पहाडियों में चला गया था जिस पर मुझे चलते जाना था। जैसा कि उन्होंने बताया था कि आगे जाने पर कुछ घर आयेंगे जिसके बाद उल्टे हाथ पर एक पगडंडी आयेगी जिस पर मुझे जाना होगा। लेकिन यह क्या पगडन्डी आने से पहले ही यह सडक, जिस पर मैं जा रहा था दो मार्गों में विभाजित हो गयी। अब इसके बारे में तो उन्होंने मुझे बताया ही नहीं था कि आगे मार्ग दो हो जायेंगे। मैं बडा परेशान कि क्या करूँ? लेकिन जैसा उन्होंने कहा था कि पहाड से नीचे नहीं उतरना है पहले इस पहाड के सबसे ऊपर चढ जाना है उसके बाद ही नीचे उतरना है। चूंकि मार्ग उल्टे हाथ पहाड की ओर मुडा था जिस कारण मैं भी पहाड की ओर जाने वाले की ओर चल पडा कुछ दूर जाने पर देखा कि कुछ बकरियाँ पत्थरों पर चढकर पेड की पत्तियाँ खा रही थी। मैंने बकरियों का फ़ोटो लिया व आगे चलता रहा, जब मैं लगभग आधा किमी चला गया तो देखा कि यह मार्ग समाप्त हो गया है। मैंने सोचा हो सकता है कि कोई पगडन्डी होगी जिस पर चलकर इस पहाड को पार किया जा सकता है। लेकिन काफ़ी तलाश करने के बाद भी मुझे कोई पगडन्डी ना मिल सकी।

बीच मार्ग में शानदार पौधा।

पैदल मार्ग का नजारा।

मैं वापस उसी मोड की ओर चल पडा जहाँ से मार्ग एक की जगह दो हो गये थे। यहाँ से मैंने दूसरे सीधे वाले लेकिन छोटे से मार्ग पर चलना शुरु कर दिया। थोडी दूर जाने पर इस मार्ग पर एक लोहे का गेट बना हुआ था जिस पर किसी कम्पनी का बोर्ड लगा हुआ था पहली नजर से देखने पर तो यह एक सामान्य बोर्ड लगता था, लेकिन मार्ग अभी समाप्त नहीं हुआ था। मैं आगे चलता रहा थोडी दूर जाकर यह मार्ग भी समाप्त हो गया। जहाँ यह मार्ग समाप्त हुआ वहीं से एक पगडन्डी उल्टे हाथ ऊपर की ओर जाती हुई दिखाई दे रही थी। मैं इस पगडन्डी पर चलना शुरु करता उससे पहले ही मुझे सामने तितली लिखा हुआ दिखाई दिया। मैंने पहले जाकर तितली लिखी हुई जगह देखी तो पता चला कि वहाँ पर तितली का पूरा का पूरा बैंक बनाया हुआ है ना जाने कितनी तरह की तितली वहाँ पर रखी हुई थी। लेकिन इन तितलियों में एक गडबड थी कि यह सभी की सभी जीवित नहीं थी नकली भी नहीं थी। डिब्बों में बन्द तितलियाँ ममी बनाकर रखी हुई थी लेकिन हो सकता है कि वहाँ पर जीवित तितलियाँ भी रहीं हो लेकिन उस समय मुझे दिखाई नहीं दी थी।


घने चीड के पेडों के बीच पगडंडी।
पहाड के टॉप पर।

 इनको देखकर मैं अपनी पगडन्डी पर चल पडा। पगडन्डी भी कोई लम्बी चौडी नहीं थी मुश्किल से एक फ़ुट की ही थी। जैसे-जैसे यह पैदल मार्ग आगे बढ रहा था चीड के पेड का जंगल घना होता जा रहा था। इस पगडन्डी पर चलते हुए मुझे काफ़ी देर हो गयी थी लेकिन यह मार्ग भी पहाड के ऊपर चढता ही जा रहा था। कई मोड पार करने के बाद एक जगह फ़िर से दो पगडन्डी हो गयी थी। लेकिन यहाँ समस्या वाली बात नहीं थी। क्योंकि एक नीचे जा रही थी व दूसरी ऊपर जा रही थी। मुझे तो ऊपर की ओर ही जाना था क्योंकि अभी तक पहाड का शीर्ष छोर नहीं आया था। जब मैंने यहाँ से ऊपर चढना शुरु किया तो सच में पता चल गया कि इस मार्ग से कई दिनों से कोई नहीं आया था। अब पैदल मार्ग पर मार्ग कम मकडियों के जाले ज्यादा हो गये थे मकडियों के जालों ने पूरे मार्ग को ढक रखा था रही सही कसर झाडियों ने कर रखी थी जिस कारण मेरा ज्यादा ध्यान इनमें लगा हुआ था वैसे इस मार्ग पर अब जोरदार चढाई भी आ गयी थी लेकिन चढाई का मुझपर इन मकडियों के चक्कर में ज्यादा फ़र्क नहीं पडा था। थोडी देर बाद जब इन सब से छुटकारा मिला तो वाह क्या नजारा था? मैं इस पहाड के सबसे ऊपरी बिन्दु पर खडा हुआ था जहाँ से चारों ओर के नजारे बहुत ही खूबसूरत लग रहे थे। सातताल झील भी यहाँ से छोटी सी नन्ही सी लग रही थी। 
पहाड के टॉप से सातताल को देख लो।

चलो अब नीचे उतर चलूँ।

 मैंने थोडी देर बैठकर यहाँ विश्राम किया उसके बाद मैंने सामने दिखाई दे रही सातताल झील की ओर उतरना शुरु कर दिया था। मैं पहाड पर चढने के मुकाबले उतरने में हमेशा सावधानी बरतता हूँ। जिस कारण यहाँ भी उतराई पर सावधानी से उतरना शुरु कर दिया। लगभग आधा किमी तक तीखी ढलान थी उसके बाद मार्ग कुछ आसान हो गया था जैसे-जैसे मैं नीचे उतर रहा था झील नजदीक आती प्रतीत हो रही थी। मुझे सामने झील के उस पार कुछ मकान जैसे बने हुए दिखाई दे रहे थे। मैंने वहीं पहुँचने की ठान ली थी। अब यह मार्ग इस झील के ऊपर-ऊपर ही घूमना शुरु हो गया था। मैं भी बिना किसी परेशानी के चलता रहा। एक मोड पर मुझे पहाड में एक पेड की जड में सफ़ेद-सफ़ेद नजर आ रहा था, जब मैंने इसे पास जाकर ध्यान से देखा तो पाया कि यह तो सफ़ेद मकडी है, और मकडी एक दो नहीं सैकडों की सँख्या में थी। मैं यह नहीं जान पाया कि सारी मकडी एक जगह बैठकर धूप सेक रही थी या कोई कार्य कर रही थी। 
मार्ग में एक विशाल कैक्टस।

सफ़ेद मकडी का झुन्ड।

थोडा और आगे जाने पर यह पैदल मार्ग चक्कर काटता हुआ एक सडक में जा मिला। अब सडक तो मिल गयी लेकिन एक परेशानी आ गयी कि सामने सडक पार एक और झील दिखाई दे रही थी, मेरी समझ में यह नहीं आ रहा था कि किधर जाने पर ऊपर पहाड से दिखाई दे रहा नावों का झुंड मुझे नजर आयेगा। इसी उधेडबुन में अब मैं उल्टे हाथ की ओर चल पडा। यहाँ से आगे जाने पर उतराई उतरने पर एक जगह दो तीन घर दिखाई दिये। नजदीक जाने पर पाया कि वहाँ पर कोई आश्रम जैसा कुछ है बल्कि चर्च जैसा ज्यादा लग रहा था। यहाँ से आगे मार्ग नहीं था, अब फ़िर से मार्ग तलाशना पडा। यहाँ चर्च के पास से एक घर के पीछे बराबर से एक पगडन्डी नीचे उतर रही थी। इस पगडन्डी पर थोडी सी दूर जाते ही वही झील दिखाई दी जो अभी-अभी सडक से दिखाई दे रही थी। जब मैं इस झील के किनारे पहुँचा तो पाया कि वहाँ दो तीन परिवार बच्चों सहित अपना समय बिता रहे थे। मैं यह तो समझ गया था कि यह झील बडी वाली झील नहीं है लेकिन आखिर बडी वाली झील कहाँ गयी। कुछ कदम बढाने पर मुझे इन परिवार की कार नजर आयी और कुछ और आगे जाने पर एक बढिया सडक दिखाई देने लगी। एक घोडे वाले से पूछा तो पता चला कि सातताल अभी 200 मी दूर है।

सातताल के अगले भाग के लिये यहाँ क्लिक करे। 

भीमताल-सातताल-नौकुचियाताल-नैनीताल की यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01-दिल्ली से भीमताल की मुश्किल यात्रा।
भाग-02-भीमताल के ओशो प्रवचन केन्द्र में सेक्स की sex जानकारी।
भाग-03-ओशो की एक महत्वपूर्ण पुस्तक सम्भोग से समाधी तक के बारे में।
भाग-04-भीमताल झील की सैर।
भाग-05-नौकुचियाताल झील की पद यात्रा।
भाग-06-सातताल की ओर पहाड़ पार करते हुए ट्रेकिंग।

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ताल ही ताल।

21 टिप्‍पणियां:

  1. जाट देवता का सफ़र ....हम भी साथ हो लेते हैं इसी बहाने ....!

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  2. बड़ा मनोरम दृश्य वहाँ है, और चित्रों की प्रतीक्षा है।

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  3. एक बार फ़िर से मन प्रसन्न करने वाली पोस्ट। पहाड़ के शीर्ष पर खड़े होकर अहसास तो जबरदस्त हुआ होगा। मैं तो उसी अहसास को महसूस कर रहा हूँ।

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  4. man and the wild का एपिसोड चल रहा लगता है...सात ताल तो मै गया हूँ...नैनीताल से...पर आराम की सवारी से...मज़ा आया...

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  5. लाजवाब चित्र - लेकिन तितली नहीं दिखीं।

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  6. चित्र बहुत सुंदर तथा अच्छे कोण से खींचे गए
    मजा आ गया .
    विवरण छोटा लिखा हे लेकिन अच्छा लगा.
    सर्वेश वशिस्थ

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  7. चित्र बहुत सुंदर तथा अच्छे कोण से खींचे गए
    मजा आ गया .
    विवरण छोटा लिखा हे लेकिन अच्छा लगा.
    सर्वेश वशिस्थ

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  8. केवल राम जी जाट देवता आ तो रहे हैं आपसे मिलने ८० दिन बाद

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  9. बहुत सुंदर चित्र मज़ा आया जाट देवता

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  10. pahli baar pata chala ki makdi safed bhi hoti hai , maja aa gaya bahut sundar

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  11. क्या बात है दोश्त.सलामत रहे यह हौसला .

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  12. वाह क्या बात है जाँ बाज़ी और हौसले से ही तय होतें हैं सफ़र .सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ ,

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  13. अभी नीरज की मारवाड़ यात्रा के चित्र देख कर आ रहा हूं, यहां आ कर लगा कि अरे यहां तो अभी-अभी बरसात हो के हटी लगती है. सब कुछ ताज़ा ताज़ा हरा हरा :)

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  14. आपको पढते हुए ऐसा लगता है जैसे
    देवकी नंदन खत्री का 'चंद्रकांता' पढ़ रहे हों.
    फर्क इतना है कि उसमें चित्र नहीं होते,
    सब कुछ दिमाग की कल्पना में होता है पर
    आपकी प्रस्तुति में साक्षात सुन्दर चित्र भी मौजूद
    हैं.यादगार और संग्रहणीय है आपकी हर पोस्ट.

    हार्दिक आभार.
    होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ.

    देरी के लिए क्षमा,काफी समय से टायफाइड से ग्रस्त हूँ.

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  15. Satta ka bahut hi sundar manmohak chitran..
    drashya dekhkar man romanchit ho utha...

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