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हॉल में सभी अपना परिचय देते हुए।
राकेश जी के साथ अपुन का फ़ोटो
संजय भास्कर, केवल राम, जाट देवता,
सभी उपस्थित कविवर।
पंडाल में कहीं खाली जगह दिखाई दे रही हो तो बताये।
पंडाल में आखिरी छोर से लिया गया चित्र है।
जब बैठने के लिये जगह कम पड गयी तो जमीन पर बैठना पडा।
कवि मौदगिल सबका मनोरंजन करते हुए
इन्दु पुरी जी, संजय भास्कर जी, अलबेला खत्री जी,
ठन्ड का बचाव आग सेवन करते हुए।
विदाई के समय मैं भी उपस्थित हूँ, अब राजीव जी कैमरे के पीछे है।
भाटिया जी के साढू के घर पर एक फ़ोटो।
भाटिया जी के साढू के घर पर एक फ़ोटो।
तीन बजे तक लगभग सभी मिलन समारोह स्थल पर आ चुके थे जो दो चार लेट-लतीफ़ थे बस वहीं रह गये थे। जो पहले ही समय से आ गये थे उनमें खूब विचार विमर्श हुआ। जो देरी से आये उनको सिर्फ़ जरुरी विचार विमर्श से काम चलाना पडा था। ठीक एक बजे चाय के साथ पनीर वाले ब्रेड, बिस्कुट का प्रबन्ध किया गया था जिसका वहाँ उपस्थित बंधुओं ने पूरा लुत्फ़ उठाया था। इसके बाद अन्दर विशाल हॉल में सबका एक दूसरे से परिचय हुआ। सबने अपना परिचय स्वयं दिया था। नाम से हम सभी को जानते ही थे चेहरे से भी सभी को जाना-पहचाना, कईयों को तो मैं तो पहचान ही नहीं पाया था। जितनी महिला ब्लॉगर वहाँ आयी हुई थी उनमें सबसे अच्छी आदत मुझे ईन्दु पुरी जी की लगी। ईन्दु जी में अपनापन झलक ही नहीं रहा था बल्कि उनका व्यवहार माँ बहन सरीखा ही था। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि किसी महिला से मैं या कोई और पहली बार मिल रहा हूँ। जिस समय मैंने अपना परिचय दिया कि मैं हूँ जाट देवता तो उस समय ईन्दु जी के चेहरे की आश्चर्य जनक खुशी देखने लायक थी। यहाँ से पहले मैं संजय अनेजा जी, बाबा जी, संजय भास्कर जी, केवल राम जी, अन्तर सोहिल जी से मिल चुका था। लेकिन यहाँ एक बार फ़िर सबसे मिलकर बेहद खुशी हुई है। यहाँ एक गडबड हो गयी कि मैं राकेश कुमार जी को नहीं पहचान पाया जब राकेश जी ने कहा और भई जाट देवता क्या मौज हो रही है? तब दिमाग पर जोर डालकर याद आया कि अरे यह तो अपने जिले के ही रहने वाले राकेश कुमार जी है। इसके बाद तो मैं खुशी से राकेश जी के गले लग गया था।
राकेश जी के साथ अपुन का फ़ोटो
संजय भास्कर, केवल राम, जाट देवता,
मेल मिलाप के बाद बारी आयी शाम के खाने की, धूप का आनन्द लेने के बाद, तथा मेल मिलाप होने के बाद शाम 5-6 के बीच भोजन का प्रबन्ध किया गया था। सबने शाम का खाना खाया। यह पहले ही कह दिया गया था कि भोजन जरा ठीक-ठाक खा ले क्योंकि रात को कवि सम्मेलन समाप्त होने में एक भी बज सकता है। खाना खाकर सबने रजाईयाँ पकड ली और रजाईयों में घुस कर एक बार फ़िर से विचार-विमर्श करने में शामिल हो गये। ठन्ड में रजाई का बडा महत्व है, जो यहाँ पर भी सिद्ध हुआ। रात के 8 बजे कवि सम्मेलन का बुलावा आ गया था। जब हास्य कवि सम्मेलन शुरु हुआ तो उस समय तक वहाँ ज्यादा भीड नहीं थी लेकिन जैसे-जैस कार्यक्रम आगे बढा भीड व ठन्ड भी बढती रही। बहादुरगढ के लाला जी मुझे नाम याद नहीं आ रहा है लाला जी के शुभ हाथों से हास्य कवि सम्मेलन का दीप प्रज्वलित करा कर शुभ-आरम्भ कराया गया। इसके बाद वहाँ पर उपस्थित कवियों ने अपने जोरदार प्रस्तुतिकरण से ऐसा समां बाँधा कि वर्षों तक याद रहेगा। अलबेला खत्री, मोद्धगिल जी यहाँ पहले भी आ चुके थे जिस कारण यहाँ के श्रोता उन्हें जानते थे। और उनकी प्रत्येक बात पर जोरदार ठहाका भी लगाते थे। ठहाका लगाने वाले में तो हम भी पीछॆ नहीं थे, हाँ यह सच जरुर है कि मैं ताली बजाने में कंजूसी करता था, लेकिन हँसने में नहीं। धीरे-धीरे पूरा पंडाल भर चुका था जमीन पर भी गददे बिछाये गये, वो भी भर गये थे। कुर्सियाँ तो बहुत पहले ही भर गयी थी, जिससे कि बाद में आने वाले लेट-लतीफ़ों को खडे होकर कार्यक्रम देखने के लिये मजबूर होना पडा था। लगभग 600-700 से ज्यादा दर्शक वहाँ डटे हुए थे। जो खुल कर इस कवि सम्मेलन का आनन्द उठा रहे थे। अब कहते है हँसी तो ऊट-पटाँग बातों पर ही आती है लेकिन एक दो बार ऐसा पल भी आया जिससे कि वहाँ उपस्थित महिलाओं को शर्म के मारे मुँह पर कपडा रखना पडा था। आखिरी में बहादुरगढ के 81 वर्षीय लाला जी ने भी अपनी हाजिरजवाबी से महफ़िल में समां बाँध दिया था।
लाला जी हास्य कवि सम्मेलन का दीप प्रज्वलित करते हुए,सभी उपस्थित कविवर।
पंडाल में कहीं खाली जगह दिखाई दे रही हो तो बताये।
पंडाल में आखिरी छोर से लिया गया चित्र है।
जब बैठने के लिये जगह कम पड गयी तो जमीन पर बैठना पडा।
कवि मौदगिल सबका मनोरंजन करते हुए
रात को ठीक एक बजे यह शानदार हास्य कवि सम्मेलन समाप्त हुआ। एक बार फ़िर सब पंजाबी धर्मशाला की ओर आ गये। रात का भोजन तैयार था, सबको भूख व ठन्ड लगी हुई थी। सबने पेट भर खाना खाया। खा पी कर सबने एक बार फ़िर रजाई पकड ली थी। ईन्दु जी ने कहा कि आज की रात कोई नहीं सोयेगा, सब बाते करेंगे। मैं सबसे एक तरफ़ था सब बाते करने में व्यस्थ थे मुझे कब नींद आयी मुझे नहीं पता लेकिन सुबह जब आँख खुली तो समय देखा ठीक 7 बजे थे, रात को मैंने सोचा था कि सुबह 7:15 वाली रेलगाडी से घर की ओर आ जाऊँगा। लेकिन जब मैं स्टेशन पहुँचा तो ट्रेन खडी थी, टिकट लेने के लिये पहुँचा भी नहीं था कि ट्रेन चल पडी थी, अब क्या करता बिना टिकट यात्रा करने का ख्याल नहीं आता है अत: वापस सबके पास आ गया, देखा कि सभी आग सेकने में व्यस्थ थे। मैं भी उनमें शामिल हो गया था। आग सेकते-सेकते काफ़ी समय हो गया था। दूसरी ट्रेन 8:45 की थी मैंने जाने के लिये आज्ञा माँगी, तो पदम सिंह जी व भाटिया जी, तनेजा जी ने कहा कि सभी साथ ही चलेंगे दो कार है जाने वाले सिर्फ़ 5 ही है। सुबह चलने से पहले एक बार फ़िर अन्तर सोहिल जी ने सबको नाश्ता कराकर ही भेजा।
एक अन्य फ़ोटोइन्दु पुरी जी, संजय भास्कर जी, अलबेला खत्री जी,
ठन्ड का बचाव आग सेवन करते हुए।
जब साँपला से विदा होने का समय आया तो अन्तर सोहिल जी बहुत भावुक हो गये थे। उनकी आँखों में आँसू आ गये थे उनसे कुछ बोला भी नहीं जा रहा था। उन्हें देख विदाई का माहौल करूणामयी हो गया था। आखिरकार हम सब अन्तर सोहिल जी की आँखो में आँसू छोड कर अपने-अपने घर की ओर चल दिये। एक कार में भाटिया जी थे जिसे राजीव तनेजा जी चला रहे थे। दूसरी कार में ईन्दु जी आगे विराजमन थी जिसे पदम सिंह जी चला रहे थे। जाट देवता व केवल राम जी पीछे वाली सीट पर विराजमान थे। एक कार और थी जिसमें संजय भास्कर जी अलबेला खत्री जी, मौदगिल जी, एक साथी राणा जी के साथ रोहतक की ओर चले गये थे। पहले हम सब नांगलोई में मेट्रो-स्टेशन के पास राजीव तनेजा जी के लकडी के कारखाने पर थोडी देर रुके। यहाँ राजीव तनेजा वहीं रुक गये थे। अब राज भाटिया जी भी हमारी वाली गाडी में आ गये थे। भाटिया जी को उनके साढू जी के घर छोडने के बाद हमारा सफ़र आगे बढा। बुराडी चौंक पर केवल राम जी भी गाडी से उतर गये। अब जैसे-जैसे सफ़र मंजिल की ओर बढता जा रहा था मुसाफ़िर कम होते जा रहे थे। वजीराबाद पुल से यमुना नदी पार करते हुए जब हम लोनी मोड गोल चक्कर पर आये तो अब गाडी से उतरने की बारी जाट देवता की थी। यहाँ से मैं अपने घर की ओर आ गया। ईन्दु जी व पदम सिंह जी गाजियाबाद स्थित अपने निवास स्थान की ओर रवाना हो गये थे। अब देखते है कि अगला मिलन समारोह कहाँ होता है। ताकि एक बार फ़िर सब आपस में मिल सके। जितने भी भाई बंधु मिले उन सबको जाट देवता की राम-राम बहुत अच्छा लगा सबसे मिलकर, एक पल भी ऐसा नहीं लगा कि कोई पराया है, सब अपने ही तो थे।
विदाई के समय सभी उपस्थित है, मैं कैमरे के पीछे हूँ।विदाई के समय मैं भी उपस्थित हूँ, अब राजीव जी कैमरे के पीछे है।
भाटिया जी के साढू के घर पर एक फ़ोटो।
भाटिया जी के साढू के घर पर एक फ़ोटो।
बस जी इतना ही था जो मैं बता सकता था, लेकिन वहाँ पर आपस में ढेरों बातचीत हुई जिसे बताना व लिखना सम्भव नहीं है।
दोनों भाग बहुत ही दुरूस्त । अब लगी एक मुकम्मल रिपोर्ट । बहुत ही अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंआपके फोटॉग्राफ्स कार्यक्रम की भव्यता का बखान स्वयम ही कर रहे हैं. आयोजन को जीवंत कर दिया.बधाई.....
जवाब देंहटाएंघूम घूम कर कवि सम्मलेन के बढ़िया फोटो लिए हैं ।
जवाब देंहटाएंजीवंत वृतांत पढ़कर वहां न होने का ग़म पूरे एक साल सताएगा ।
लाला जी का नाम सेठ हरिकिशन है जो बहादुरगढ़ के अव्वल नंबर के टिम्बर मर्चेंट हैं ।
मेरे पिताजी और सेठ जी क्लासमेट थे बहादुरगढ़ के स्कूल में ।
बहुत मन था उनसे मिलने का लेकिन शायद ऐसा होना न था ।
दोनों भाग पढे, चित्र देखे। आभासी मुलाकात में ही मानो वहाँ उपस्थिति महसूस हो गयी। मिलन के ये दौर यूँ ही चलते रहें, बधाई हो!
जवाब देंहटाएंजाट भाई ,राम-राम!
जवाब देंहटाएंबस! ऐसे ही स्नेह बना रहे !
शुभ-कामनाये!
संजीव जाट के जलवे यहाँ भी देखे सक्रियता भी जीवन्तता भी .बधाई .इस ब्लोगर मीट की सभी को .
जवाब देंहटाएंवाह! आपकी रोचक शैली ने मन मोह लिया है जाट देवता जी.
जवाब देंहटाएंअब तो सच में पहचान गए हैं न.
लगता है कवि सम्मलेन का भी खूब धम्माल रहा,
पर हमें तो पहले ही लौटना था.
आपके फोटुओं से जाना तो आनन्द आ
गया है.
jaat devta ku RaM Ram ...
जवाब देंहटाएंEk Jeevant lekhan....
jai baba banaras..............
तस्वीरें कार्यक्रम की जीवंतता की कहानी आप कह रही हैं. बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंकवि सम्मेलन के फ़ोटो बताते हैं कि कार्यक्रम हिट रहा। अच्छी रिपोर्टिंग करते हो पडौसी भाई।
जवाब देंहटाएंवाह भाई! यह हुई ना विस्तृत रिपोर्ट... जाने के बाद के पलों की जानकारी और फोटो देखकर अपने जाने पर थोडा रंज अवश्य हुआ... क्या करें, घर पर एक प्रोग्राम के चलते जाना मज़बूरी जो था..
जवाब देंहटाएंआप सभी से मिलकर बहुत लुत्फ़ आया... सार्थक चर्चाएँ, सार्थक ब्लॉगर मिलन...
जय जय ब्लॉगिंग!
बढ़िया एवं रोचक विवरण...आपकी यादाश्त की दाद देनी पड़ेगी...:-)
जवाब देंहटाएंसंदीप जी दुःख तो बहुत है कि मैं वहाँ नहीं जा पाया
जवाब देंहटाएंलेकिन आपकी इस पोस्ट को पड़ने के बाद सारा दुःख समाप्त हो गया
लग ही नहीं रहा कि मैं वहाँ नहीं गया
बढ़िया एवं रोचक विवरण...आपकी यादाश्त की दाद देनी पड़ेगी...:-)
जवाब देंहटाएं@ देवता तो आखिर देवता है....राजीव जी
आपकी सचित्र रिपोर्ट देखकर तो साफ लगता है कि आयोजन काफी सफल रहा.....
जवाब देंहटाएंहम तो थोडा पहले ही चले गए थे मगर आप के इस सचित्र वर्णन से पुरे समारोह का आनंद बैठे बैठे मिल गया..
जवाब देंहटाएंजाट देवता जी आभार आप को
@राम राम भाई, सुंदर चित्रों से सजी रोचकता से परिपूर्ण रिर्पोट.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंये इंटरनेट की महिमा हैं संदीप भाई कि दूर बैठे अजनबी अपने हो जाते हैं. निश्चय ही भविष्य में ऐसे आयोजन और बढ़ेंगे.
जवाब देंहटाएंएक बात और कहना चाहता हूँ अन्यथा मत लीजियेगा मैं स्वयं एक जाट बाहुल्य क्षेत्र (शामली उ प्र ) का मूल निवासी हूँ, बहुत जाट देखे हैं पर आप जैसा साहित्यिक जाट कोई नहीं देखा.
बहुत उम्दा जाट देवता , वसे आपसे मिलकर भी प्रसन्नता हुई थी ,
जवाब देंहटाएंसादर
कमल
संदीप भाई राम राम,
जवाब देंहटाएंसांपला कवि सम्मलेन बहुत ही शानदार लगा | काश हम भी चले जाते तो आप सभी से भी मिल लेते |
raam raam swikar kare devta ji......
जवाब देंहटाएंkunwar ji,