इस यात्रा की शुरु से सैर करने के लिये यहाँ क्लिक करे।
भीमताल के ओशो कैम्प के प्रवचन हॉल में मुझे सिर्फ़ दो प्रवचन में बैठने का मौका मिला जिससे काफ़ी कुछ सीखने को मिला। यह मैं पहले ही बता चुका हूँ कि मेरी दिलचस्पी ओशो के प्रवचन में कम तथा वहाँ के ताल घूमने में ज्यादा थी। वैसे यहाँ का कैम्प इतनी प्यारी जगह बना हुआ है कि अगर कोई कैम्प में शामिल भी ना होना चाहे तो भी उसको वहाँ दो-चार दिन बिताने में कोई परेशानी नहीं है। ओशो कैम्प में एक बात अजीब लगी कि वहाँ पर परायी औरतों को माँ कहकर बुलाया/पुकारा जाता है। वैसे उस समय मैंने यह ध्यान नहीं दिया था लेकिन अब सोचता हूँ कि अपनी घरवाली को क्या कहकर पुकारा जाता होगा? किसी को मालूम हो तो बताने का कष्ट करे। मैं दिन में तो वहाँ ठहरता ही ना था, लेकिन अपने दोनों सहयात्री तो सिर्फ़ ओशो के नाम से ही आये थे। उन्होंने वहाँ के प्रवचन के बारे में जमकर लाभ/आनन्द उठाया था। वहाँ पर मेरे दूसरे प्रवचन के दौरान संचालक/स्वामी ने एक बार कहा कि अब सबको खुलकर रोना है, तो सचमुच वहाँ पर सभी लोग (जाट देवता को छोडकर) खुल कर रोने लगे थे। मैं उन्हें रोता देख हैरान हो रहा था कि आखिर यहाँ ऐसा क्या कमाल है? लेकिन थोडी देर बाद अगले प्रवचन में बारी आयी हसँने की तो सभी खुलकर हसँने लगे थे यहाँ सबको हसँता देख मैं भी उनमें मुस्कुराता हुआ शामिल हो गया था। ।
ओशो भक्त एक ऊँची जगह से भीमताल का अवलोकन करते हुए।
भीमताल का ओशो कैम्प जो एक घर भी है।
भीमताल के ओशो कैम्प के प्रवचन हॉल का नजारा है।
भीमताल के ओशो कैम्प के प्रवचन हॉल में अपुन भी मौजूद है।
भीमताल के ओशो कैम्प के प्रवचन हॉल में उडीसा से आये एक भक्त जो वहाँ पर एक महीने से ठहरे हुए थे।
भीमताल के ओशो कैम्प के प्रवचन हॉल में अन्तर सोहिल विश्राम करते हुए। 24 दिस्सम्बर को अपने गाँव साँपला में एक ब्लॉगर सम्मेलन करा रहे है।
यह बोर्ड क्या कहना चाहता है?
ओशो की विवादित पुस्तक से बडे काम का ज्ञान मिला है। काम का तभी है जब कोई माने तो।
भीमताल के ओशो कैम्प के प्रवचन हॉल में मुझे सिर्फ़ दो प्रवचन में बैठने का मौका मिला जिससे काफ़ी कुछ सीखने को मिला। यह मैं पहले ही बता चुका हूँ कि मेरी दिलचस्पी ओशो के प्रवचन में कम तथा वहाँ के ताल घूमने में ज्यादा थी। वैसे यहाँ का कैम्प इतनी प्यारी जगह बना हुआ है कि अगर कोई कैम्प में शामिल भी ना होना चाहे तो भी उसको वहाँ दो-चार दिन बिताने में कोई परेशानी नहीं है। ओशो कैम्प में एक बात अजीब लगी कि वहाँ पर परायी औरतों को माँ कहकर बुलाया/पुकारा जाता है। वैसे उस समय मैंने यह ध्यान नहीं दिया था लेकिन अब सोचता हूँ कि अपनी घरवाली को क्या कहकर पुकारा जाता होगा? किसी को मालूम हो तो बताने का कष्ट करे। मैं दिन में तो वहाँ ठहरता ही ना था, लेकिन अपने दोनों सहयात्री तो सिर्फ़ ओशो के नाम से ही आये थे। उन्होंने वहाँ के प्रवचन के बारे में जमकर लाभ/आनन्द उठाया था। वहाँ पर मेरे दूसरे प्रवचन के दौरान संचालक/स्वामी ने एक बार कहा कि अब सबको खुलकर रोना है, तो सचमुच वहाँ पर सभी लोग (जाट देवता को छोडकर) खुल कर रोने लगे थे। मैं उन्हें रोता देख हैरान हो रहा था कि आखिर यहाँ ऐसा क्या कमाल है? लेकिन थोडी देर बाद अगले प्रवचन में बारी आयी हसँने की तो सभी खुलकर हसँने लगे थे यहाँ सबको हसँता देख मैं भी उनमें मुस्कुराता हुआ शामिल हो गया था। ।
ओशो भक्त एक ऊँची जगह से भीमताल का अवलोकन करते हुए।
लेकिन अगले प्रवचन में जब बारी आयी अपने मन की भडास निकालने की तो उस समय माहौल कुछ तनावपूर्ण सा लगने लगा था। लगभग सभी ने वहाँ पर अपनी भडास जरुर निकाली होगी। थोडी देर बाद सबको बिल्कुल शांत लेटना था, तो वहाँ पर ऐसी शांति छा गयी थी कि बाहर के वन के पक्षियों की आवाज एकदम साफ़ सुनायी दे रही थी। कोई खुसर-फ़ुसर तक नहीं होती थी। वहाँ के स्वामी ने बताया भी था कि अगर किसी के पास गाऊन(सफ़ेद+महरुम) नहीं है तो उनके पास बिक्री के लिये उपलब्ध है जिसे इच्छा हो, वो ले सकता है। दो तीन ने तो लिया भी था। वहाँ पर दिल्ली पुलिस के डी.सी.पी भी अपने परिवार सहित प्रवचनों में भागीदारी कर रहे थे। दो-तीन छात्र भी थे। एक बन्दा जो कि उडीसा से आया हुआ था उससे बातचीत में पता लगा कि वो वहाँ पर तीन दिनों के लिये आया था और जब हम वहाँ पहुँचे तो उसे उस दिन पूरे 35 दिन हो गये थे। बताते है कि फ़िल्मों के हीरो विनोद खन्ना अपनी भरी जवानी में सब कुछ छोडकर ओशो के चेले बन गये थे। आखिर ओशो में ऐसा क्या है जो करोडो लोग उनके भक्त बन चुके है।
भीमताल का ओशो कैम्प जो एक घर भी है।
भीमताल के ओशो कैम्प के प्रवचन हॉल का नजारा है।
भीमताल के ओशो कैम्प के प्रवचन हॉल में अपुन भी मौजूद है।
भीमताल के ओशो कैम्प के प्रवचन हॉल में उडीसा से आये एक भक्त जो वहाँ पर एक महीने से ठहरे हुए थे।
भीमताल के ओशो कैम्प के प्रवचन हॉल में अन्तर सोहिल विश्राम करते हुए। 24 दिस्सम्बर को अपने गाँव साँपला में एक ब्लॉगर सम्मेलन करा रहे है।
यह बोर्ड क्या कहना चाहता है?
ओशो की विवादित पुस्तक से बडे काम का ज्ञान मिला है। काम का तभी है जब कोई माने तो।
क्या इन्सानों के लिये परिवार नियोजन केवल आर्थिक मामला है?, शायद नहीं। (नेट से लिया गया)
पुस्तक ‘ सम्भोग से समाधी की ओर’ में ओशो ने इस पक्ष की व्याख्या कुछ इस तरह की है।
पुस्तक ‘ सम्भोग से समाधी की ओर’ में ओशो ने इस पक्ष की व्याख्या कुछ इस तरह की है।
“भोजन तो जुटाया जा सकेगा क्योंकि अभी भोजन के बहुत से श्रोत हैं और आगे भी रहेगें लेकिन आदमी की भीड बढने के साथ क्या आदमी की आत्मा खो तो नहीं जायेगी? पहली बात ध्यान मे रखें कि जीवन एक अवकाश चाहता है। जंगल मे जानवर मुक्त है, मीलों के दायरे में घूमता है, अगर पचास बन्दरों को एक कमरे में बन्द कर दें तो उनका पागल होना शुरु हो जायेगा। प्रत्येक बन्दर को एक लिविग स्पेस चाहिये, खुली जगह चाहिये, जहां वह जी सके। बढती हुई भीड एक-एक व्यक्ति पर चारों तरफ़ से अनजाना दबाब डाल रही है, भले ही हम उन दबाबों को देख न पायें। अगर यह भीड बढती चली जाती है तो मनुष्य के विक्षिप्त (neurotic) हो जाने का डर है।”
हाँ, अलबत्ता, परिवार नियोजन का मामला धार्मिक अवश्य बन गया है। किसी एक पक्ष पर दोषारोपण करने से काम नहीं चलेगा। अलग-अलग पक्ष हैं और अलग-अलग तर्क-वितर्क हैं।
1-एक पक्ष कहता है कि परिवार नियोजन द्धारा अपने बच्चों की सँख्या कम करना धर्म के खिलाफ़ है क्योंकि बच्चे तो ऊपर वाले की देन हैं और खिलाने वाला भी ऊपर वाला है। देने वाला वह, करने वाला वह, कराने वाला वह, फ़िर हम क्यों उसके कार्य में रोक डालें?
2-दूसरा पक्ष यह कहता है कि परिवार नियोजन जैसा अभी चल रहा है उसमें हम देखते हैं कि हिन्दू ही उसका प्रयोग कर रहे हैं, और बाकी धर्म के लोग ईसाई, मुस्लिम इसका उपयोग कम ही कर रहे हैं तो हो सकता है कि आने वाले कल में इनकी सँख्या इतनी बढ जाये कि दूसरा पाकिस्तान माँग लें या पाकिस्तान या चीन जिनकी जनसँख्या अधिक है, वे ताकतवर हो जायें और हम पर हमला करने की चेष्टा करे।
धार्मिक पक्ष के पहले खंड को देखते हैं।
1- सब धर्मों के धर्म गुरूओं ने सब बातें ईश्वर पर थोप दीं हैं कि यह सब उसकी मर्जी है और ईश्वर कभी यह जानने नहीं आता कि उसकी मर्जी क्या है। ईश्वर की इच्छा पर हम अपनी इच्छा थोपते हैं। यह तो इन्सान की बुद्धिमता पर निर्भर है कि वह सुख से रहे या दुख से रहे। जब एक बाप अपने 2-3 बच्चों के बाद भी बच्चे पैदा कर रहा है तो वह उन्हें ऐसी दुनिया मे धक्का दे रहा है जहाँ वह सिर्फ़ गरीबी ही बांट सकेगा। आज हमको यह सोचना ही होगा कि जो हम कर रहे हैं, उससे हर आदमी को जीवन की सुविधा कभी नहीं मिल सकती। हमारे धर्म गुरु समझाते हैं कि यह ईश्वर का विरोध है। तो क्या इसका यह मतलब निकाला जाये कि ईश्वर चाहता है कि लोग दीन और फ़टेहाल रहें। लेकिन अगर यही ईश्वर की चाह है तो ऐसे ईश्वर को भी इंकार करना पडेगा। एक बात और अगर ऊपर वाला बच्चे पैदा कर रहा है तो बच्चों को रोकने की कल्पना कौन पैदा कर रहा है? अगर एक चिकित्सक के भीतर से ईश्वर बच्चे की जान को बचा रहा है तो चिकित्सक के भीतर से उन बच्चों को आने से रोक भी रहा है। अगर सभी कुछ उस ऊपर वाला का है तो यह परिवार नियोजन का ख्याल भी उस ऊपर वाला का ही है। परिवार नियोजन का सीधा सा अर्थ है कि पृथ्वी कितने लोगों को सुख दे सकती है। उससे ज्यादा लोगों को पृथ्वी पर खडे करना, अपने हाथों से नरक बनाना है। दूसरी बात कि ईश्वर कोई स्पाईवेयर नहीं है जो इन्सान की रतिक्रियाओं पर नजर रखे कि वह किसी साधनों का प्रयोग तो नही कर रहा।
यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि जो समाज जितना समृद्ध उसकी जनसँख्या उतनी ही कम है। अपने देश, मुस्लिम देशों और पश्चिम देशों मे यह अन्तर साफ़ दिख सकता है। बढती हुई जनसँख्या में सबसे बुरी मार बेचारे गरीब आदमी की हुई, वह इसलिये गरीब नहीं है क्योंकि उसकी आय के साधन कम है, बल्कि इसलिये कि उसकी बुद्धि को भ्रष्ट करने मे उसके तथाकथित धर्मगुरुओं का साथ मिला। एक समृद्ध मानव अपने सेक्स की उर्जा को दूसरे कामों मे लगा देता है- मसलन संगीत, साहित्य, खेल, लेखन आदि। लेकिन एक गरीब के पास सेक्स ही उसके मनोरजंन का साधन मात्र रह जाता है। भारत में अगर अधिक बच्चों का अनुपात देखें तो इस वर्ग मे अधिक मिलता है, और फ़िर वह हिन्दू हो या मुस्लिम, इससे फ़र्क नही पडता। मुस्लिमों में अधिक इसलिये भी है वह अपनी बुद्धि पर कम और अपने धर्मगुरुओं की बुद्धि पर ज्यादा निर्भर रहते हैं। हिन्दू समाज में वक्त के साथ उनके धर्मगुरुओं का प्रभाव कम होता गया जिसकी वजह से इन लोगों की पकड अब इतनी मजबूत नहीं दिखती।
यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि जो समाज जितना समृद्ध उसकी जनसँख्या उतनी ही कम है। अपने देश, मुस्लिम देशों और पश्चिम देशों मे यह अन्तर साफ़ दिख सकता है। बढती हुई जनसँख्या में सबसे बुरी मार बेचारे गरीब आदमी की हुई, वह इसलिये गरीब नहीं है क्योंकि उसकी आय के साधन कम है, बल्कि इसलिये कि उसकी बुद्धि को भ्रष्ट करने मे उसके तथाकथित धर्मगुरुओं का साथ मिला। एक समृद्ध मानव अपने सेक्स की उर्जा को दूसरे कामों मे लगा देता है- मसलन संगीत, साहित्य, खेल, लेखन आदि। लेकिन एक गरीब के पास सेक्स ही उसके मनोरजंन का साधन मात्र रह जाता है। भारत में अगर अधिक बच्चों का अनुपात देखें तो इस वर्ग मे अधिक मिलता है, और फ़िर वह हिन्दू हो या मुस्लिम, इससे फ़र्क नही पडता। मुस्लिमों में अधिक इसलिये भी है वह अपनी बुद्धि पर कम और अपने धर्मगुरुओं की बुद्धि पर ज्यादा निर्भर रहते हैं। हिन्दू समाज में वक्त के साथ उनके धर्मगुरुओं का प्रभाव कम होता गया जिसकी वजह से इन लोगों की पकड अब इतनी मजबूत नहीं दिखती।
2-जब हम दूसरे पक्ष के बारे में बात करें कि क्या परिवार नियोजन को किसी की स्वेच्छा पर छोडा जाना उचित है? यह तो ऐसा ही सवाल है जैसे कि हम हत्या को या डाके को स्वेच्छा पर छोड दें कि जिसे करनी हो करे। अत: परिवार नियोजन को अनिवार्य कर देना ही उचित है और जब हम इस जीवंत सवाल को अनिवार्य कर देगें तो यह हिन्दू, मुसलमान, ईसाई का सवाल नहीं रह जायेगा। आज के हालातों पर जरा नजर दौडायें तो इन सबके धर्मगुरु समझा रहे हैं कि तुम कम हो जाओगे या फ़लाने ज्यादा हो जायेगें और हकीकत यह है कि ये सब जो सोच रहे हैं, इनके सोचने की वजह से भी अनिवार्य परिवार नियोजन का विचार समाप्त हो रहा है। एक और सवाल कि ऐसा हो सकता है कि अगर मुस्लिमों की आबादी इतनी बढ जाये कि वह दूसरे पाकिस्तान की माँग करने लगें। आज के वैज्ञानिक युग में जनसंख्या का कम होना, शक्ति का कम होना नहीं है। बल्कि जिन मुल्कों की जनसंख्या जितनी अधिक है वह टैकनोलोजी दृष्टिकोण से उतने ही कमजोर है। क्योंकि इतनी बडी जनसंख्या के पालन पोषण मे इनकी अतिरिक्त सम्पति बचने वाली नही है। वह जमाना गया ,जब आदमी ताकतवर था, अब युग दिमाग और मशीन का है और मशीन उसी देश के पास हो सकेगी, जिस देश के पास संपन्नता होगी और संपन्नता उसी देश के अधिक पास होगी जिस देश के पास प्राकृतिक साधन ज्यादा और जनसँख्या कम होगी। दूसरी बात यह बात समझने जैसी है कि सँख्या कम होने से उतना बडा दुर्भाग्य नहीं टूटेगा, जितना बडा दुर्भाग्य सँख्या के बढ जाने से बिना किसी हमले के टूट जायेगा। आज के दौर में युद्ध इतना बडा खतरा नहीं है जितना कि जनसँख्या विस्फ़ोट का है।
आज हर धर्मावलंबी को यह निर्णय लेना है कि सवाल उनकी गिनती का है या देश का और अगर गिनती का है तो मुल्क का मर जाना निश्चित है और अगर यह साहसिक निर्णय देश का है तो किसी को तो लेना ही है। जो समाज इस निर्णय को लेगा, वह संपन्न हो जायेगा। मुसलमानों में उनके बच्चे ज्यादा स्वस्थ, अधिक शिक्षित होगें, ज्यादा अच्छी तरह जीवन निर्वाह करेगें। वे दूसरे समाजों और खासकर अपने ही समाज मे जिनकी संख्या कीडे-मकोडों की तरह है, उनको छोडकर आगे बढ जायेगें और इसका परिणाम यह भी होगा कि दूसरे समाजों और उनके ही समुदायों मे भी स्पर्धा पैदा होगी इस ख्याल से कि वे गलती कर रहे हैं।
यह सब तब ही संभव है जब हमारी सरकारें वोट-बैंक की राजनीति से परे हट कर परिवार नियोजन को स्वेच्छित नहीं, बल्कि अनिवार्य बनायेंगी ।
(इस लेख की मूल भावना ओशो रजनीश की पुस्तक ”सम्भोग से समाधी तक” से ली गई है। विवादों मे घिरी ऐसी पुस्तक जिसको आम लोगों ने हेय दृष्टि से ही देखा, लेकिन पढकर परखा नहीं , ज़ीवन के फ़लसफ़े को एक नया आयाम देती हुई यह पुस्तक, अगर न पढी हो तो पढें अवश्य।)
ओशो के बारे में बस इतना ही, अब ऒशो को पीछे छोड कर अब हम अगली पोस्ट में भीमताल के विस्तृत दर्शन करेंगे। आगे पढने के लिये यहाँ क्लिक करे।
भीमताल-सातताल-नौकुचियाताल-नैनीताल की यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01-दिल्ली से भीमताल की मुश्किल यात्रा।
भाग-02-भीमताल के ओशो प्रवचन केन्द्र में सेक्स की sex जानकारी।
भाग-03-ओशो की एक महत्वपूर्ण पुस्तक सम्भोग से समाधी तक के बारे में।
भाग-04-भीमताल झील की सैर।
भाग-05-नौकुचियाताल झील की पद यात्रा।
भाग-06-सातताल की ओर पहाड़ पार करते हुए ट्रेकिंग।
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ताल ही ताल।
ओशो के बारे में बस इतना ही, अब ऒशो को पीछे छोड कर अब हम अगली पोस्ट में भीमताल के विस्तृत दर्शन करेंगे। आगे पढने के लिये यहाँ क्लिक करे।
भीमताल-सातताल-नौकुचियाताल-नैनीताल की यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01-दिल्ली से भीमताल की मुश्किल यात्रा।
भाग-02-भीमताल के ओशो प्रवचन केन्द्र में सेक्स की sex जानकारी।
भाग-03-ओशो की एक महत्वपूर्ण पुस्तक सम्भोग से समाधी तक के बारे में।
भाग-04-भीमताल झील की सैर।
भाग-05-नौकुचियाताल झील की पद यात्रा।
भाग-06-सातताल की ओर पहाड़ पार करते हुए ट्रेकिंग।
भाग-08-नैनीताल का स्नो व्यू पॉइन्ट।
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ताल ही ताल।
आश्रम में महिलाएं नहीं है ?
जवाब देंहटाएंकाजल भाई,आप क्यूँ तलाश रहें हैं महिलाओं को
जवाब देंहटाएंजरा 'ओशो' के प्रवचनों पर तो ध्यान दिया होता.
बहुत मेहनत से प्रस्तुत किये हैं जी.
सब रोये बस आप नही
सब हंसें तो आप मुस्कुराये
भड़ास के बारे में आपने क्या किया जी.
काजल भाई महिलाएँ भी थी आप पहले फ़ोटो में देख सकते है ज्यादा नजदीकी फ़ोटो लेना मुझे उचित नहीं लगा, हो सकता था किसी को आपत्ति होती!
जवाब देंहटाएंराकेश जी वहाँ पर हो रही प्रत्येक घटना मेरे लिये किसी आश्चर्य से कम ही नहीं थी। जब तक मैं कुछ समझ पाता था वे आगे बढ जाते थे। भडास वाला वाक्या भी गजब था लगभग सभी ने अपने मन की भडास निकाली थी।
ज्ञान वर्धक पोस्ट, अब अंतर सोहिल के साथ मैं भी जाऊंगा ध्यान करने :)
जवाब देंहटाएंaapke lekh padhna har baar acha lagta hai
जवाब देंहटाएंमन में बद्ध भावों को गति दे देते हैं ओशो के तरीके।
जवाब देंहटाएंओशो का प्रमुख आश्रम पुणे में है । वहां लोग १५ दिन तक भी रह लेते हैं ।
जवाब देंहटाएंओशो की सोच क्रन्तिकारी थी जो धर्म , राजनीति , और सभी तरह के बंधनों से मुक्त थी । इसीलिए उसे दुत्कारा गया था । लेकिन सोच प्रेक्टिकल थी ।
ज़िब्रिश करने में बड़ा मज़ा आता है , बिकुल पागलों की तरह हरकत करना ।
फुर्सत के दो क्षण मिले, लो मन को बहलाय |
जवाब देंहटाएंघूमें चर्चा मंच पर, रविकर रहा बुलाय ||
शुक्रवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
osho ke pravachno ka ek thos aadhar yeh hai ki aakankshaon /ichchaao ka daman mat karo arthat khul ke jeeo us khulepan ke karan hi humare samaaj ne use bahut jyada manyta nahi di hai.kintu uske pravachno me kuch baaten bahut sahi hain.any way aapki post jankari bhari achchi lagi.
जवाब देंहटाएंसंदीप जी,
जवाब देंहटाएंबड़ा ही सुन्दर वर्णन भीमताल तथा ओशो केंद्र का. प्रवचन भी अच्छे लगे.
धन्यवाद,
संदीप जी
जवाब देंहटाएंओशो के उद्देश्य दुनिया को लाभ पहुचना हैं.
लेख के माध्यम से ओशो के बारे में काफी कुछ ज्ञान हुआ.
धन्यवाद
बेहतरीन आलेख ,बेहतरीन अनुशंशा .रजनीश इसलिए अलग हैं उन्होंने एक सामाजिक वर्जना को तोड़ा .सेक्स को स्पर्शय बनाया .बहुत अच्छा विश्लेषण किया है जात भैया ने .लठ्ठ गाड़ दिए भई आज तो ..
जवाब देंहटाएंज्ञान वर्धक पोस्ट!!!!
जवाब देंहटाएंललित भाई आप की जोडी तो जम जायेगी ऐसे शानदार कार्यक्रम में।
जवाब देंहटाएंदराल साहब, राजेश कुमारी जी, आपने बिल्कुल सही कहा है ओशो ने जो कहा वो सच है आज के जनता को गुमराह करने वाले कथित धर्म के ठेकेदार उनकी सच्ची बात नहीं मानते है।
मुकेश भालसे जी कभी आप भी किसी ओशो कैम्प में शामिल हुए हो?
वीरु जी आपने सही कहा कुछ बाते बिना लठ की मानी नहीं जाती है।
मुझे अब धार्मिक बातें अब कम समझ में आती हैं,हाँ फोटू धाँसू है !
जवाब देंहटाएंसबके रोने पर न रोले वाली बात और हंसने पर मुस्कुराने वाली बात मजेदार रही।
जवाब देंहटाएंअगली पोस्ट के तस्वीर और तफ़सील और रोचक होंगे, पक्की बात है।
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया और कुछ नई जानकारी दी ,शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंओशो से मेरा परिचय भी हो रहा है,जितना उन्हे जाना,सत्य के नज़दीक पाया.मेरे विचार से उन्होने इंसानी फ़ितरत को सही पहचाना है,हम दो चेहरों के साथ जी रहे हैं ,बस ओशो ने छुपे चेहरे को देखने की कला दी है,जो अधिकतर लोगों को रास नहीं आ रही है.यही कारण है समाज में इतनी भ्रांतिया है,इतनी विकृतियां है.मैं भी एक छोटे से प्रयास में लगी हूं उनके ऊपर गिराई गई कीचड को पोंछ सकूं..
जवाब देंहटाएंजाट भाई,राम-राम !
जवाब देंहटाएंमनोरंजक और ज्ञानवर्धक लेख .....
शुभकामनाएँ!
समाज मे धर्म के नाम पर भ्रांतियाँ फ़ैलाई गयी हैं जबकि वास्तव मे कोई भी धर्म गलत बात नही सिखाता सिर्फ़ कुछ स्वार्थ लोलुप इंसानो ने ये भ्रमजाल बनाया है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति है.... सुन्दर चित्रावली के साथ वैचारिक एक्सरसाईस भी...
जवाब देंहटाएंसादर आभार.
आश्चर्य आश्चर्य आश्चर्य
जवाब देंहटाएंशायद मन के विकारों से मुक्त हो कर अपेक्षाकृत अधिक सहजता से जीया जा सकता है .....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआप कृपया मुझे भीमताल में कुछ होटल के बारे में पता कर सकते हैं.आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है.
जवाब देंहटाएंध्यानचंद पर आपकी टिप्पणी से पहुंचा आपके साथ यात्रा पर...भीमताल की रये यात्रा शुरु की थी भारत के सबसे मोटे चीड़ के पेड़ को देखने के साथ.....आप साथ तो चले थे पर भाया हमें आश्म में फंसा कर खुद दो तीन तालों पर घुमने निकल जाते थे..उसका हिसाब कौन देगा//
जवाब देंहटाएंमाफी भाया....एशिया के सबसे मोटे चीड़ के....
जवाब देंहटाएंभाया कुछ तस्वीरें चोरी कर ली हैं
जवाब देंहटाएंब्लॉग में सब कुछ दूसरों के लिये ही होता है उसे चोरी नहीं कहते है। मान लो कोई अफ़्रीका मे रहने वाला ब्लॉगर आपके लेख आदि चोरी करता है आप उसका क्या बिगाड सकते हो, जो पसन्द आये ले लो।
जवाब देंहटाएंयोगेश जी भीमताल के आसपास कई होटल है, सस्ता भी, महंगा भी, आपको भीमताल से नौकुचियाताल जाते समय भी कई मिल जायेंगे। ओशो आश्रम के सामने भी एक नया होटल बना था, जो अब शुरु हो गया होगा।
जवाब देंहटाएंआपका पोस्ट मन को प्रभावित करने में सार्थक रहा । बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट 'खुशवंत सिंह' पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख।
जवाब देंहटाएंओशो ने जो जो कहा सो सो बेबाक कहा !
बहुत सुन्दरता से चित्रों के साथ यात्रा का वर्णन किया है आपने जो बहुत अच्छा लगा! भीमताल के बारे में शानदार प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंit is very difficult to cry
जवाब देंहटाएंnice pics.
खजुराहो का भी यही सन्देश है .जहां मंदिर के गर्भ गृह में सिर्फ शिव लिंग प्रतिष्ठित है और प्रवेश द्वार पर मैथुनी मुद्रा में भित्ति चित्र यानी निराकार शिव तक पहुंचना है तो पहले शरीर का अतिक्रमण करो ,भोग से शिव योग तक सम्भोग ही सीढ़ी है .
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक पोस्ट , अब तो ओसो आश्रम जाना ही पड़ेगा .
जवाब देंहटाएंओशो, महात्मा बुद्ध आदि का रास्ता सत्य
जवाब देंहटाएंकी ओर ले जाने वाला है, जबकि अधिकांश
धर्मों की बुनियाद डर, अज्ञान एवं असत्य
पर टिकी है।
सौ फीसद पक्का रास्ता है समाधि का बा -रास्ता सम्बोघ .राह पकड तू एक चला चल पा जाएगा मधु -शाला ,मधु बाला .,और हाला .....
जवाब देंहटाएंओशो जी की सोच, अपनी भावनाए प्रवचन के माध्यम से लोगों को ज्ञान देना था,....
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट के लिए काव्यान्जलि मे click करे
ओशो के आश्रम के बारें में बताने के लिए शुक्रिया.... काफी रोचक तरीके से लिखा है...
जवाब देंहटाएंoshoka bahut hi gyan bardak bat ko batakar gayen he, ya bat ham ko samajhana chahi he.
जवाब देंहटाएंओशो
जवाब देंहटाएंओशो
जवाब देंहटाएंमैं शिविर मैं शामिल होना चाहता हूँ , कृपया मार्गदर्शन करें I मैं नैनीताल मैं रहता हूँ
जवाब देंहटाएं