हर की दून बाइक यात्रा-
हर की दून से वापसी में आते समय हम उसी मोरी नामक जगह आ गये थे, जहाँ पर हमने जाते समय सांगवान को चाय पिलायी थी। इस जगह से एक मार्ग सांकुरी, तालुका, गंगाड, ओसला, सीमा होते हुए हर की दून की ओर जाता है। दूसरा मार्ग पुरोला, नौगाँव, नैनगाँव, यमुना पुल, विकासनगर, हर्बटपुर, की ओर जाता है, जहाँ से होते हुए हम यहाँ तक आये थे। अब बचा तीसरा मार्ग जो कि मोरी से त्यूनी की ओर जाता है मोरी से त्यूनी 30 किमी की दूरी पर है। वापसी में भी सांगवान ने पुन: यहाँ उसी दुकान पर चाय पी थी, जिस पर जाते समय चाय पी थी।
महावृक्ष तक जाने का मार्ग दिखाई दे रहा है।
पढ लो जी कुछ और जानना हो तो।
अब बात करते है उस पेड की जो कभी एशिया का सबसे ऊँचा पेड हुआ करता था। बताते है कि इस पेड के ज्यादा लम्बे होने में सबसे बडा कारण, इस पेड के तने पर टहनियाँ ना होना था, बस सबसे आखिरी में फ़ुनगी/चोटी पर कुछ पत्तियाँ का गुच्छा था। इस पेड की ऊँचाई 60.65 मीटर व चौडाई 2.70 मीटर थी। यह पेड टौंस वन प्रभाग के अधीन भासला वन क्षेत्र के देवता रेंज में आता है। पुरोला से 46 किमी दूर, त्यूनी से 20 किमी दूर आज की तारीख में यह पेड जीवित नहीं है, क्योंकि लगभग दिनांक 08-05-2007 को आये तूफ़ान में यह पेड टूट गया था। आज इसके अवशेष बहुत सम्भाल कर रखे हुए है। पूरा पेड काट कर सलीके से सजा कर वैज्ञानिक विधि से रखा हुआ है। फ़ोटो में आपने देख ही लिया होगा। इस पेड के तने में जमीन के पास कोई बीमारी लग गयी थी जिस कारण यह पेड खोखला हो गया था। इसके अवशेष देखने में ऐसे लगते है जैसे कि आज ही काट कर रखा हो।
अब तो अवशेष बाकि है।
देख लो अवशेष
हर की दून से वापसी में आते समय हम उसी मोरी नामक जगह आ गये थे, जहाँ पर हमने जाते समय सांगवान को चाय पिलायी थी। इस जगह से एक मार्ग सांकुरी, तालुका, गंगाड, ओसला, सीमा होते हुए हर की दून की ओर जाता है। दूसरा मार्ग पुरोला, नौगाँव, नैनगाँव, यमुना पुल, विकासनगर, हर्बटपुर, की ओर जाता है, जहाँ से होते हुए हम यहाँ तक आये थे। अब बचा तीसरा मार्ग जो कि मोरी से त्यूनी की ओर जाता है मोरी से त्यूनी 30 किमी की दूरी पर है। वापसी में भी सांगवान ने पुन: यहाँ उसी दुकान पर चाय पी थी, जिस पर जाते समय चाय पी थी।
महावृक्ष तक जाने का मार्ग दिखाई दे रहा है।
हमें जाना तो विकासनगर होते हुए ही था, लेकिन त्यूनी, चकराता, सहिया, कालसी होते हुए जाना था। इसके एक नहीं तीन कारण थे। पहला कारण मोरी से 9 किमी आगे त्यूनी की ओर एशिया का सबसे लम्बा चीड का पेड देखना था। दूसरा कारण एशिया/भारत का सबसे मोटा चीड का पेड भी देखना था। तीसरा कारण मैंने अभी तक मोरी होते हुए त्य़ूनी से चकराता तक का सफ़र नहीं किया था। जिस दुकान से चाय पी(सांगवान ने) थी उसी से एशिया का सबसे लम्बा चीड के पेड के बारे में कुछ स्थानीय जानकारी ली थी। यहाँ से आगे की सडक अच्छी हालत में थी। सारा मार्ग त्यूनी तक ढलान वाला था क्योंकि हम टौंस नदी के साथ-साथ ढलान पर चल रहे थे। जब हमने आठ किमी पार कर लिये तो अपनी बाइक (BIKE) की गति घटा कर साईकिल के बराबर कर दी थी क्योंकि हमें डर था कि कहीं तेज गति के चक्कर में वो पेड पीछे ना रह जाये। धीमे चलने का फ़ायदा भी हुआ, कुछ देर बाद ही वो जगह आ गयी जहाँ ये पेड है वहाँ पर सडक कोई दौ सौ मीटर तक एकदम समतल व सीधी बनी हुई है। सीधे हाथ पर नदी की ओर बहुत बडॆ क्षेत्र में किरोली नामक जगह पर चीड के पेडों का बाग सा है। उसी बाग में ये पेड भी था।
पढ लो जी कुछ और जानना हो तो।
अब बात करते है उस पेड की जो कभी एशिया का सबसे ऊँचा पेड हुआ करता था। बताते है कि इस पेड के ज्यादा लम्बे होने में सबसे बडा कारण, इस पेड के तने पर टहनियाँ ना होना था, बस सबसे आखिरी में फ़ुनगी/चोटी पर कुछ पत्तियाँ का गुच्छा था। इस पेड की ऊँचाई 60.65 मीटर व चौडाई 2.70 मीटर थी। यह पेड टौंस वन प्रभाग के अधीन भासला वन क्षेत्र के देवता रेंज में आता है। पुरोला से 46 किमी दूर, त्यूनी से 20 किमी दूर आज की तारीख में यह पेड जीवित नहीं है, क्योंकि लगभग दिनांक 08-05-2007 को आये तूफ़ान में यह पेड टूट गया था। आज इसके अवशेष बहुत सम्भाल कर रखे हुए है। पूरा पेड काट कर सलीके से सजा कर वैज्ञानिक विधि से रखा हुआ है। फ़ोटो में आपने देख ही लिया होगा। इस पेड के तने में जमीन के पास कोई बीमारी लग गयी थी जिस कारण यह पेड खोखला हो गया था। इसके अवशेष देखने में ऐसे लगते है जैसे कि आज ही काट कर रखा हो।
अब तो अवशेष बाकि है।
देख लो अवशेष
अब बात करता हूँ इस पेड पर चढने के बारे में- इस पर बहुत से लोगों ने चढने के असफ़ल प्रयास किये थे मगर कोई इस पर चढ नहीं पाता था। कहते है कि काफ़ी पहले स्थानीय गुज्जर जाति के एक समूह ने पहाडों से वापसी में यहाँ पर डेरा डाला हुआ था। वे सब इस पर चढने की असफ़ल कोशिश कर रहे थे कि तभी वहाँ के वन क्षेत्राधिकारी उधर से जा रहे थे, उन्होंने कहाँ कि जो इस पेड पर सफ़लता से चढकर उतर जायेगा उसे यहाँ इस मैदान की भूमि लीज पर दे दी जायेगी। प्रयास तो बहुतों ने किया लेकिन जब कोई सफ़ल नहीं हो पाया तो एक गुज्जर महिला यानि साहसी गुजरी ने इस पर चढने में सफ़लता पायी थी। बदकिस्मती से उतरते समय थक जाने के कारण हाथ फ़िसलने से वह महिला लगभग 30 मीटर की ऊँचाई से नीचे गिर गयी। इतनी ऊँचाई से गिरने से उसकी तत्काल ही मौत हो गयी थी। लेकिन शर्त अनुसार इस मैदान की आधी जमीन उसके बच्चों को दे दी गयी थी। आधी जमीन पर आज भी गुज्जरों का कब्जा है, आधी पर सरकार का कब्जा है।
एक सीधा साधा इन्सान फ़ोटो लेगा तो ऐसा ही आयेगा।
एक खिलाडी फ़ोटो लेगा तो ऐसा ही आयेगा।
एशिया/भारत का सबसे मोटा चीड का पेड भी देखना अगले भाग में................
हर की दून बाइक यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01-दिल्ली से विकासनगर होते हुए पुरोला तक।
भाग-02-मोरी-सांकुरी तालुका होते हुए गंगाड़ तक।
भाग-03-ओसला-सीमा होते हुए हर की दून तक।
भाग-04-हर की दून के शानदार नजारे। व भालू का ड़र।
भाग-05-हर की दून से मस्त व टाँग तुडाऊ वापसी।
भाग-06-एशिया के सबसे लम्बा चीड़ के पेड़ की समाधी।
भाग-07-एशिया का सबसे मोटा देवदार का पेड़।
भाग-08-चकराता, देहरादून होते हुए दिल्ली तक की बाइक यात्रा।
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हर की दून बाइक यात्रा-
एक खिलाडी फ़ोटो लेगा तो ऐसा ही आयेगा।
एशिया/भारत का सबसे मोटा चीड का पेड भी देखना अगले भाग में................
हर की दून बाइक यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01-दिल्ली से विकासनगर होते हुए पुरोला तक।
भाग-02-मोरी-सांकुरी तालुका होते हुए गंगाड़ तक।
भाग-03-ओसला-सीमा होते हुए हर की दून तक।
भाग-04-हर की दून के शानदार नजारे। व भालू का ड़र।
भाग-05-हर की दून से मस्त व टाँग तुडाऊ वापसी।
भाग-06-एशिया के सबसे लम्बा चीड़ के पेड़ की समाधी।
भाग-07-एशिया का सबसे मोटा देवदार का पेड़।
भाग-08-चकराता, देहरादून होते हुए दिल्ली तक की बाइक यात्रा।
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हर की दून बाइक यात्रा-
६० मी तो बहुत ही अधिक है।
जवाब देंहटाएंनयी जानकारी मिली! बहुत बढ़िया लगा!
जवाब देंहटाएंमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
लगा कि लंबे पद के दीदार होंगे पर टुकड़ों में दिखा !
जवाब देंहटाएंअनाड़ी वाली फोटो खिलाडी वाली से बढ़िया रही !
inki samadhi kyun banai, ye ped mar gaye hai kya, acha ak baat batao, tum itni sari jagah ke naam or kilometer sab likhte ho ye sab kya tumhe yaad rehte hai, agar ha, to memory tej karne ka tareeka mujhe bhi bata do
जवाब देंहटाएंपहली बार जानकारी मिली किसी पेड की समाधी के बारे में
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
प्रणाम स्वीकार करें
ye to zabardast hai
जवाब देंहटाएंअच्छी व् रोचक जानकारी मिली इस पोस्ट पर आकर ......
जवाब देंहटाएंएक नई जानकारी !
जवाब देंहटाएंआगामी सफ़र के लिए ...
शुभकामनायें|
हमेशा की तरह रोचक और अनूठी जानकारी मिली। सीधे-सादे और खिलाड़ी फ़ोटोग्राफ़र पर एक बात याद आ गई, किसी गाँव में एक ही हज्जाम था और बहुत अच्छा हज्जाम था। वो किसी को शागिर्द भी नहीं बनाता था कि कहीं कल को उसी का कोई कंपीटीटर न खड़ा हो जाये। उस गाँव में सभी बंदों के बाल बहुत करीने से कटे होते थे, सिवाय उसके। इसलिये जो गुण खुद में हो, उसे अपने तक सीमित न रखकर दूसरों में भी बाँटने से अपने को भी फ़ायदा पहुँचता है, सही बात है न दोस्त?
जवाब देंहटाएंजानकार बहुत अच्छा लगा की हिन्दुस्तान मैं पेड की तो इज्जत है
जवाब देंहटाएंसुदंर जानकारी के लिए आभार. गांव में हमारे आस पास भी चीड़ बहुत होता है. कभी कभी लापरवाही के चलते अगर इस जंगल में आग लग जाए तो इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता. चीड़ के जंगलों में सांय सांय की आवाज किसी को भी डरा सकती है.
जवाब देंहटाएंएक नई चीज़ दिखा दी आपने संदीप. आभार.
जवाब देंहटाएंमैं तो सोचे बैठा था कि पूरी 60 मीटर लम्बी समाधि होगी, लेकिन यहां तो महापेड के एक-एक अंग को काट-काटकर सजाकर रख दिया है। गलत बात है।
जवाब देंहटाएंगीता जी यह पेड सूख गया है। ज्यादतर जगह के नाम याद रह ही जाते है। अभी तक नाम आदि लिखने शुरु नहीं किया है।
जवाब देंहटाएंकाजल भाई, सही कह रहे हो जंगल की आग वो भी पहाडों की बहुत खतरनाक होती है।
नीरज भाई, एक-एक अंग को नहीं केवल एक ही तने को काटा है, जब पेड आंधी में टूट ही गया था तो फ़िर सुरक्षित रखने के लिये छोटे टुकडे ही सही रहें होंगे।
रोचक जानकारी मिली |
जवाब देंहटाएंतू खिलाडी मैं अनाड़ी.
जवाब देंहटाएंआपकी जानकारीपूर्ण प्रस्तुति से और
सुन्दर चित्रों से मन गदगद हो गया जी.
आभार.
रोचक जानकारी मिली|
जवाब देंहटाएंअत्यंत रोचक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंफोटो देख कर तो मन नहीं भर रहा.
जवाब देंहटाएंअदभूत उत्तराखंड सरकार ने चीर की समाधि बना के रखी है. ...
जवाब देंहटाएंअद्भुत!!
जवाब देंहटाएंसंदीप जी,..
जवाब देंहटाएंपेपर में कही पढा था,इस महाब्रक्ष के बारे में
किन्तु आपसे और अधिक जानने को मिला,.आभार
मेरे पोस्ट 'शब्द'में आपका इंतजार है,..
Really Amazing....
जवाब देंहटाएंKisi ped kee samadhi? Pahli baar pata chala!
जवाब देंहटाएंjat ke thath dekhne ko joh rahe the
जवाब देंहटाएंhum to baat..........
jai ho....
sadar
आपके यात्रा-वृतांत सहज और आकर्षक रहते हैं। आपने 'विद्रोही स्व-स्वर मे' प्रश्न किया है कि मै तारीखें और घटनाएँ कैसे याद रखता हूँ?उत्तर उसी ब्लाग मे पहले 1969 के घटनाक्रम मे है कि मै 'इतिहास' पसंद करता था और उसमे तिथियों को याद रखना ही होता है। 1963-64 के काल मे भी प्राचार्य द्वारा मुझसे ही इतिहास की पुस्तक पढ़वाने का उल्लेख कर चुका हूँ।
जवाब देंहटाएंसितारों से आगे जहां और भी हैं ....तेरे सामने इम्तिहान और भी हैं आप ऐसे ही नित नूतन कीर्तिमान बनाते रहें हम आतें रहें .गुनगुनाते रहें गीत गाते रहें .
जवाब देंहटाएंसच कहुंगा अभी मैंने आपका कोई ब्लॉग read नहीं किया लेकिन आपका परिचय ही बहुत खूबसूरत है..
जवाब देंहटाएंआभार
जवाब देंहटाएंWonderful place , nice to know about such place .Will try to visit at least once life time .
जवाब देंहटाएंnice info with photo...
जवाब देंहटाएंalso thanks for leaving a comment on my new post
Great info ! Loving the post.
जवाब देंहटाएंबहुत और रोचक जानकारी..शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंसामान्य ज्ञान बढ़ाया, धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत यात्रा वृतांत
जवाब देंहटाएंरोचक पोस्ट,...इसके अगली कड़ी के इंतजार में...
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट में इंतजार है....
बहुत रोचक जानकारी......संदीप जी
जवाब देंहटाएंbahut badiya jankari ...
जवाब देंहटाएंpahli bar suna eske bare me....thnx for information
जवाब देंहटाएंमै बहुत पहले इस पेड़ के बारे में सुना था अपने पिताजी से औऱ आपने तो विस्तार में ही बता दिया ह फोटो सहित
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अच्छी जानकारी दी