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मंगलवार, 29 नवंबर 2011

TALLEST TREE IN ASIA एशिया का सबसे लम्बा चीड महा वृक्ष/पेड

हर की दून बाइक यात्रा-
हर की दून से वापसी में आते समय हम उसी मोरी नामक जगह आ गये थे, जहाँ पर हमने जाते समय सांगवान को चाय पिलायी थी। इस जगह से एक मार्ग सांकुरी, तालुका, गंगाड, ओसला, सीमा होते हुए हर की दून की ओर जाता है। दूसरा मार्ग पुरोला, नौगाँव, नैनगाँव, यमुना पुल, विकासनगर, हर्बटपुर, की ओर जाता है, जहाँ से होते हुए हम यहाँ तक आये थे। अब बचा तीसरा मार्ग जो कि मोरी से त्यूनी की ओर जाता है मोरी से त्यूनी 30 किमी की दूरी पर है। वापसी में भी सांगवान ने पुन: यहाँ उसी दुकान पर चाय पी थी, जिस पर जाते समय चाय पी थी। 
महावृक्ष तक जाने का मार्ग दिखाई दे रहा है।

सोमवार, 21 नवंबर 2011

HAR KI DOON हर की दून, भाग 5

हर की दून बाइक यात्रा-
हर की दून से वापसी में कुछ दूर चलते ही एक मैदान नुमा ढलान आ जाती है जिस पर अपने जोडीदार को पता नहीं क्या ऊपाद सूझी कि वह अचानक से भागने लगा, मैं समझा था कि फ़िर से कोई जंगली जीव दिखाई दिया है, अत: मैं भी कुछ दूर तक उसके पीछे-पीछे भागा और उसको रुकने को कहा। मैंने उसे भागने का कारण पूछा, जब उसने अपने भागने का कारण बताया तो मैंने अपना सिर पकड लिया। आप सोच भी नहीं सकते कि सांगवान क्यों भागा था। चलो बताता हूँ सबसे पहले धर्मेन्द्र सांगवान की जोरदार बढाई करता हूँ कि बन्दा पहली बार किसी पैदल भ्रमण पर आया था और देखो कि पहली बार में ही कितने जबरदस्त व खतरनाक रोमांचक स्थल पर आना हुआ। यहाँ से पहले सांगवान केवल हरिद्धार व ऋषिकेश से आगे नहीं गया था। जब भाई ने कोई खास पहाडी यात्रा भी नहीं की तो उसे पता ही था कि पहाड पर कैसी-कैसी आफ़त आती है। वो तो शुक्र रहा कि पहले दिन मात्र 14 किमी पैदल चले थे, मैं तो उसी दिन हर की दून चला जाता यदि वहाँ रहने का पक्का प्रबंध होता। अब ये ठीक ही रहा सांगवान के हिसाब से कि हम पहले दिन मात्र 14 किमी चलने पर ही रुक गये थे यदि हम उसी दिन आगे चले जाते तो भाई का तो काम पहले दिन ही हो गया था। वैसे मैंने पहले पूछा भी था कि पैदल चलने का कुछ अभ्यास भी किया है कि नहीं, मुझे बताया कि मैं प्रतिदिन 7-8 किमी तो पैदल चल ही लेता हूँ, अत: मैं पूरी तरह आश्वस्त था कि हर की दून की पैदल यात्रा में हम दोनों को कोई समस्या नहीं आयेगी। दूसरे दिन की पैदल यात्रा में हमे ओसला/सीमा से हर की दून जाकर वापस ओसला तक तो आना ही था, अगर हम ओसला दिन 4 बजे तक भी आ जाते तो रात में ताल्लुका रुकने की सोच सकते थे।

यह झरना उसी जगह था जहाँ भालू नजर आया था।

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

HAR KI DOON हर की दून, भाग 4

हर की दून बाइक यात्रा-
भालू शब्द पर पिछला लेख अधूरा छोडा था, बात ही कुछ ऐसी थी कि जब हम हर की दून से कोई एक-दो किमी पहले ही होंगे तभी मुझे भालू के पाँव के ताजा निशान नजर आये, दिमाग में तुरन्त भारी उथल-पुथल मच गयी कि यार आज मारे गये भालू के हाथों, लेकिन हम भी ठहरे पूरे ऊँत खोपडी के जाट, बिना लडे हार मानने वाले तो हम भी ना थे, सबसे बडी बात जो उस समय थी कि हम दोनों में से कोई भी जरा सा भी नहीं थका हुआ महसूस नहीं कर रहा था, अत: भालू के निशान देखते ही सबसे पहले मैंने चारों और नजर घुमायी, भालू नजर नहीं आ रहा था, लेकिन ये भी पक्का था कि भालू कहीं आस-पास ही मौजूद था जिस कारण मैंने सांगवान को कहा देख भाई ये है भालू की निशानी, अब बता: लड कर जीतने की कोशिश करेगा या चुपचाप भालू का खाना बनना है, तो सांगवान ने कहा कि अब करना क्या है? उस जगह जहाँ हम खडे हुए थे एकदम घनघौर जंगल था मार्ग के नाम पर मुश्किल से दो फ़ुट की पगडंडी ही थी, सबसे पहले हमने एक लठ जैसी लकडी तलाश की, जो कि सांगवान को दे दी, साथ ही हम दोनों ने 5-5 पत्थर अपनी पतलून की जेब में भी भर लिये और जितने हो सकते थे उतने अपने-अपने हाथ में भी ले लिये। इतना सब करने के बाद हमने सामने दिखाई दे रहा लकडी का पुल पार किया, भालू जरुर यहाँ पर पानी पीने के लिये आया होगा, जिस कारण उसके पैरों के निशान यहाँ पुल के पास नजर आये थे। अब तक तो हम खूब धमाधम करते हुए आ रहे थे, लेकिन अब अचानक दोनों को जैसे साँप सूँघ गया हो। हम चुपचाप धीरे-धीरे चलते रहे, तेज ना चलने के दो कारण थे। पहला कि तेज चलने से हमें भालू की आवाज नहीं सुन पाती, दूसरा जंगली जानवर तेज चलने व डर कर भागने वाले प्राणी पर आसानी से हमला कर देते है। अगर आप हिम्मत करके जंगली जानवर के सामने डट जाओ तो जंगली जानवर ज्यादा देर मुकाबला नहीं कर पाता है, जल्दी मैदान छोड भाग खडा होता है। पुल से थोडा ही आगे बढे थे कि मार्ग से थोडा सा हटकर नीचे ढलान पर भालू कुछ तलाश कर रहा था अब हम एकदम चुपचाप लगभग आधा किमी शान्ति से चल रहे थे व बार-बार पीछे मुड कर देखते भी रहे थे कि कहीं भालू पीछॆ से हमला ना कर दे, भालू बहुत तेज जानवर होता है आप स्टेमिना व फ़ुर्ती में उसका मुकाबला नहीं कर सकते हो। जंगली जानवर हमेशा लापरवाह प्राणी पर हमला करते है।

स्वर्गरोहिणी पर्वत का आधार सामने दिखाई दे रहा है।

मंगलवार, 1 नवंबर 2011

HAR KI DOON हर की दून, भाग 3

हर की दून-
सुबह दस बजे से चलते-चलते दोपहर के एक बजने वाले थे, अपुन को तो कुछ नहीं हुआ क्योंकि पानी जगह-जगह उपलब्ध था। लेकिन सांगवान को चाय की हुडक लगी थी मार्ग में एक दो जगह इस बारे में बात भी होती रही कि अगर चाय की इच्छा हुई तो बेहिचक बोल देना, मेरे चक्कर में मत रहना। एक जगह तो मार्ग पूरा खिसक कर नदी में समाया हुआ था कुछ पहले किसी ऊपर के मार्ग से आना-जाना किया हुआ था। यहाँ मैं तो एक छ्लांग लगाकर खाई में कूद गया लेकिन जब सांगवान की बात आयी तो भाई ने सबसे पहले तो अपना बैग फ़ैका था उसके बाद जाकर सम्भलते हुए आराम से उस खाई में उतर गये थे। इसी खाई में वापसी में तो चढने की कोशिश भी नहीं की थी, किसी और पगडंडी से चढ गये थे। यहाँ खाई से आगे बढने पर बडा ही खतरनाक मार्ग हो चला था जिसके कारण ऊपर से पत्थर गिरने का भय था। खैर बिना किसी परेशानी के ये खाई पार हो गयी थी। 
ये फ़ोटो ओसला या कहो सीमा जाकर लिया गया है।