chandresh kumar said...
बहुत अच्छा आगाज़ है तो अंजाम तो बहुत ही धांसू होगा. आपके लिए बस यही कहना है की हम किस किस की नजर को देखें हम तो सबकी नजर में रहते है.क्या करे दोस्त हमने तो किस्मत ही ऐसी पाई है कि हमेशा सफ़र में ही रहते हैं. आगे भी ऐसे ही जरी रखें आपकी आँखों से नीले गगन, प्रकृति का यौवन फूलों कि नाजुक कलियाँ देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता है.
जवाब------जब तक इस शरीर में जान है ये घूमना लगा ही रहेगा।
ब्लॉ.ललित शर्मा said...
एकाध कोई उल्टा बोल्या के नही। :)
जवाब------लठ चार-चार हाथ में हो फ़िर किसकी मजाल की कोई उल्टा बोल दे।
नीरज जाट said...
मैं पहले दिन ही दिल्ली से नारकण्डा पहुंच गया और आप बाइक होते हुए भी पिंजौर ही पहुंच सके हैं। सालों लगेंगे आपको अभी मेरी बराबरी करने में। हा हा हामुझे भी बाइक चलानी सीखने दो, फिर देखना भरपूर टक्कर मिलेगी आपको और आपके जोडीदार को। लाइसेंस तो बन गया है। खाना और सोना मेरी कमजोरी नहीं बल्कि मेरी ताकत है। जरा एक बार इस यात्रा में से खुद को हटाकर देखो, कौन भारी पडा? आप को मैं अपना फिटनेस गुरू मानना चाहता हूं। अब मेट्रो में भी एस्केलेटर की जगह सीढियों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। बढिया शुरूआत। और हां, लिंक डालना भी सीखो। जहां पहली बार मेरा नाम लिखा है, वहां ब्लॉग का लिंक लगाया करो।
जवाब------सीख लो बाइक चलानी भी, ये अच्छा किया एस्केलेटर की जगह सीढियों का इस्तेमाल, इस दुनिया में सब गुरु है कोई अपने को कम नहीं मानता है।
निर्मला कपिला said...
तस्वीर चंदाल चौकडी से शुरू हुये मगर अगली हर तस्वीर मे से एक चंडाल गायब होता रहा। सुन्दर यात्रा वृतांट। शुभकामनायें।
जवाब------क्या करते फ़ोटो खींचने के लिये कोई मिलता ही नहीं था।
प्रवीण पाण्डेय said...
उत्तरी सड़को पर धौंकती फटफटिया उतरी।
जवाब------हमारे गाँव में बाइक को फ़िटफ़िटी भी कहते है।
Vidhan Chandra said...
श्रीखंड की यात्रा कठिन है, जो आप लोगों ने सफलता पूर्वक पूरी की!! सहस के धनी आप जैसे लोग चंडाल चौकड़ी न होकर "स्वर्णिम चतुर्भुज" है!!
जवाब------चारों बेहद ही हिम्मत वाले हैं, घूमने के मामले में किस्मत वाले भी।
veerubhai said...
संदीप जाट भाई बहुत सुन्दर प्रस्तुति .नीरज भाई के ब्लॉग पर भी यह वृत्तांत पढ़ा .आपका अंदाज़-ए-बयाँ आपका अपना शानदार नज़रिया प्रस्तुत करता है .
जवाब------शानदार नज़रिया कहो या कि जो देखा जो महसूस किया वो मान लो।
Bhushan said...
बढ़िया यात्रा वृत्तांत. बिण मांग्या सुझाव सै- बाद में इसे संपादित करके पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित कर दें.
जवाब------सोच तो रहा हूँ लेकिन ऐसी तो कई पुस्तक हो जायेगी।
डॉ टी एस दराल said...
भाई ये लट्ठ लेकर यात्रा तो जाट ही कर सकते हैं। बहुत दिलचस्प ।
जवाब------नहीं जी लठ लेकर कोई भी यात्रा कर सकता है बस हिम्मत होनी चाहिए।
Udan Tashtari said...
उल्टा पढ़ते आ रहे हैं...शुरुवात मस्त रही...
जवाब------कोई सीधा काम करे, कोई उल्टा, काम होना चाहिए।
Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...
behatarin sachitra yatra britant..sandeep ji anand aa gaya..journey trip plan nahi karna padega
जवाब------सही कहा आपने अगर ये लेख पढकर भी कोई परेशान हुआ तो क्या फ़ायदा इस लेख का।
ब्लॉ.ललित शर्मा said...
बाग के अन्दर ये क्या है, देखो कौन बताता है। यो है कली(चूना)मिलाने का जुगाड़। जब सीमेंट नहीं होती थी तो चिनाई कळी से ही की जाती थी। इस प्राचीन यंत्र से घोटाई करके ही चूने का इस्तेमाल किया जाता था। इसकी कहानी बहुत लम्बी है, फ़िर कभी इस पर चर्चा करेगें। बढिया फ़ोटु लगाए, मुगल गार्डन के।
जवाब------इस चूना मिलाने वाली जुगाड के बारे में आपका लेख अभी तक आया नहीं है।
रविकर said...
सुन्दर प्रस्तुति, बहुत-बहुत बधाई || ईश्वर से अलग से विपिन की सलामती की दुआ ||
जवाब------सही कहा, जब तीन सिरफ़िरे जाट एक साथ हो तो चौथा तो भगवाने को याद करता है।
S.N SHUKLA said...
जय भोले नाथ की , पंवार जी लगता है सारा हिन्दुस्तान घुमाकर ही मानेंगे , सुन्दर पोस्ट
जवाब------सोच तो ऐसा ही रखा है, मानूँगा नहीं।
नीरज जाट said...
लठ के साथ वो भी चारों के पास, किसी की हमारे साथ बोलने की भी हिम्मत नहीं होती थी। किसे बहका रहे हो। लठ तो हमारे पास थे ही नहीं। उन्हें तो हमने पकौडे वाले की ठेली के नीचे रख दिया था। हां, भारी भरकम बैग थे और दिल्ली से यहां तक बाइक सफर के बाद चेहरे पर उडती हवाईयां।
ध्यान से देखो हवाईयाँ तो हमारे पास थी भी नहीं।
डॉ टी एस दराल said...
सुन्दर और दिलचस्प तस्वीरें .फोटोज में रिपिटिशन को अवोइड करना चाहिए .बेशर्म की बेशर्मी को हमें क्यों दिखा रहे हो भाई :आखिरी फोटो का राज़ शायद ललित जी ने बता दिया है .
जवाब------बेशर्म की बेशर्मी को इसलिये दिखाया था ताकि वहाँ जाने से पहले सावधान होकर जाये।
कुमार राधारमण said...
बहुत बढ़िया विवरण। तस्वीरों के कारण लंबी पोस्ट भी दिलचस्प हो गई।
जवाब------यात्रा लम्बी थी तो पोस्ट तो लम्बी होनी ही थी।
नीरज जाट said...
इस बार स्पीड कुछ बढी है। मैं तो सोच रहा था कि आज नारकण्डा में रात्रि विश्राम होगा। साथ ही ये भी तो बता देते कि श्रीखण्ड जाते जाते रास्ते से हटकर जलोडी जोत की तरफ क्यों गये जबकि श्रीखण्ड का रास्ता तो रामपुर से जाता है। अगर कोई इस लेख को पढकर जायेगा तो बेचारा वो भी बिना बात के जलोडी जोत पहुंच जायेगा। जब वहां जाकर कहेगा कि श्रीखण्ड जाना है और उसे पता चलेगा कि उसका रास्ता तो 50 किलोमीटर पहले सैंज से जाता है तो बेचारा आपको कितनी गालियां देगा। कहेगा कि खुद तो सिरफिरा है ही, हमें भी बिना बात के 100 किलोमीटर दौडा दिया।
जवाब------कोई गाली नहीं देगा बल्कि इन शानदार जगह को देखकर उसका दिल भी खुश हो जायेगा।
Vidhan Chandra said...
"फाडू महादेव" के दर्शन करने चार "फाडू" निकले ...फाडू पिक्चर्स फाडू ब्लॉग! आप को मेरा सलाम जाट देवता!!
जवाब------इस सफ़र में सब कुछ फ़ाडू ही था एक से बढकर एक, हर एक।
Anil Avtaar said...
Waah! Ghumiye aap, paise kharch kijiye aap.. aur maje maine le liye.. Bahut hi badhiya blog.. badhai..
जवाब------फ़्री में वो बात नहीं आती है जो खुद जाकर आती है।
चन्द्रकांत दीक्षित said...
गजब फोटोग्राफी मजा आ गया भाई. गडबड वाले फोटो में लगता है कैमरे को पन्नी (पोलीथीन)से ढककर खींचा है
ब्लॉ.ललित शर्मा said...
नीचे चौथे नम्बर वाला फ़ोटु उल्टा तो लगा नहीं, कैमरे के लैंस पर ही कुछ चिपका हुआ दिखाई दे रहा है।
जवाब------कुछ नहीं था बस पानी में दिखाई दे रही परछाई का फ़ोटो था जिस पर आप सब चक्कर खा गये थे। मैंने उस परछाई को उल्टा कर दिया था।
Er. Diwas Dinesh Gaur said...
वाह क्या सुन्दर तस्वीरें व सुन्दर नज़ारे हैं| लगता है यहाँ तो जाना ही पड़ेगा...
जवाब------एक बार जाकर तो देखो, याद करोगे।
Tarun Goel said...
Fort ke saamne dkeho to do chotiyan dikhti hain, unme se ek Shringa Rishi Peak hai aur wo sabse unchi choti hai banjar valley ki. Barsaat ke mahinon mein wahan mela lagta hai aur wahan kam se kam 10 hajaar log aate hain, pahad ki choti pe. Faith ka prime example hota hai wo mela
जवाब------सही बताया है आपने।
नीरज गोस्वामी said...
हमेशा की तरह...ग़ज़ब की पोस्ट...हास्य का तड़का लाजवाब लगाया है...
जवाब------बिना हास्य के सफ़र में जाना बेकार है।
Vidhan Chandra said...
नज़ारे इतने भव्य हैं की ऐसा लग रहा है कि आप लोग जीवित ही स्वर्ग जा कर आये हो.
जवाब------आप भी घूम कर आये इस स्वर्ग में जीते जी।
चन्द्रेश कुमार said...
इस पोस्ट के सारे फोटो बहुत ही शानदार हैं. दिल को छू लेने वाला यात्रा वृतांत. मनमोहक वादियाँ, वो फिजायें, वो मदमस्त घटायें,वो मखमली घास का बिस्तर, दुल्हन की तरह सजी हुई प्रकृति, अंग-अंग को मदमस्त कर देने वाली खुशबु, और भी न जाने क्या-क्या कहने को दिल कर रहा है हमें तो लगता है जैसे हम दुसरे ही संसार में आ गए हों. ऐसे ही तमाम रंगों को हम तक पहुचाते रहिये आप सभी प्रकृति कुमारों को बहुत बहुत बधाई ऐसी यात्रा पर जाने के लिए. अगली कड़ी का बेसब्री से इंतजार रहेगा.
जवाब------आप मेरे कहने से एक बार इस प्यारी सी जगह होकर आओ फ़िर कहना वाह-वाह-वाह।
दर्शन कौर' दर्शी ' said...
जोरदार यात्रा चल रही है संदीप ..एकसाथ पढने का मजा ही निराला हैं ...बहुत सुंदर जगह हैं ...मेरे शिव का बसेरा ही भव्य जगहों पर होता हैं .. नीरज बिना नहाए भी ज्यादा फ्रेश दिख रहा है ...खुशबु यहाँ तक अ रही हैं ?
जवाब------सच कहा आपने कि खुशबू/बदबू यहाँ तक आ रही है।
Bhushan said...
बहुत ही रोचक वर्णन. लठ लेके चलने के कितने लाभ हैं इसका भी पता चला. मुहावरे का सुंदर रूप देखा कि "शेरों के मुँह किसने धोए". आनंद आ गया.
जवाब------बहुत फ़ायदे है लठ के पैदल चलने के अलावा भी।
प्रवीण पाण्डेय said...
नदी में नहाने का आनन्द अलग ही है, लठ्ठ लेकर चलें यदि तैरना नहीं आता है।
जवाब------लठ से पानी की गहराई का पता चल जाता है।
रेखा said...
'काफी रोचक वर्णन था....आगे का सफर तो कठिन मालूम होता है ...ध्यान रखिये .वैसे तो आपलोग बहुत बहादुर और हिम्मतवाले हैं अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा..
जवाब------हिम्मत वाले थे तभी तो ये यात्रा पूरी कर ली वर्ना अधूरी छोड कर भागनी पडती।
Suresh kumar said...
संदीप भाई क्या कंहू बस यूँ समझ लीजिये की बहुत ही मजा आ रहा है मै तो ये कहता हूँ की आगे की भी यात्रायें आप और नीरज भाई दोनों इक्कठे करे तो और भी बहुत मजा आएगा धन्यवाद्
जवाब------नीरज के साथ आगे उसी सूरत में यात्रा होस सकती है जब वो सुबह जल्दी चले व बाइक चलानी सीख ले।
vidhya said...
aare ye keya dar poke jeyese nahane chale nadi may teyarna nahi aatha to keyu ?bahut hi sundar post aur photo nice fully real
जवाब------पहाड की नदी की गहराई व रफ़तार का कोई भरोसा नहीं होता, इससे डरने में ही भलाई है।
नीरज जाट said...
चलो कम से कम आपने बस का जिक्र तो किया। जरा उस बन्दे का नाम भी उघाड देते जो खूब खाता पीता रहने के बावजूद भी उसे स्टोर करने में भरोसा रखता है। और हां, आप तो बताओगे नहीं मैं ही बता देता हूं कि नितिन यानी आशिक महाराज जी पिछले कई सालों से शादीशुदा हैं और दो बच्चों के पापा भी हैं।
जवाब------कई दिन तक खाते रहने के बाद भी पेट ना साफ़ करने वाला बंदा नीरज है। नहाने भी कई-कई दिन बाद होता है।
दर्शन कौर' दर्शी ' said...
जलेबी देख मुंह मे पानी आ गया संदीप !बहुत कठिन चडाई है देखकर घर में ही पसीने निकल रहे हें !
जवाब------बिल्कुल जलेबी की तरह ही रास्ते भी है, असली पसीना तो यात्रा में आता है।
Vaanbhatt said...
गज़ब बन्धु. मज़ा आ रहा है. अभी बहुत मसाला बाकी लग रहा है. मै चाहता तो अगली पोस्ट पढ़ सकता था. पर चुस्की ले-ले के पीने का मज़ा ही कुछ और है. हुजूर मै नज़ारों की बात कर रहा हूँ
जवाब------चुस्की ले-ले पढो या तेजी से रोमांच दोनों में आना है।
Mrs. Asha Joglekar said...
अदभुत रोमांचकारी दृष्य और मनोहर फोटोग्राफी । आपसे ईर्षा हो रही है ।
जवाब------मुझसे जलने के जगह इस जगह होकर आओ।
Vidhan Chandra said...
प्रकृति ने दुर्लभ नज़ारे दुर्लभ जगह छुपा कर रखे हैं और उनको देखने के लिए आप जैसे दुर्लभ लोगों को बनाया है ,ये हर किसी के बस में भी नहीं है और न ही नसीब में ! ऐसी यात्राओं की कठिनाईयाँ दूसरों को तब तक समझ में नहीं आती जब तक , उसे खुद करें नहीं और आप लोगों ने जो यात्रा की वो वाकई कठिन और कबीले तारीफ़ है साथ ही मैं खुद को तौलने की कोशिश भी कर रहा हूँकि ये यात्रा मैं कर पाऊंगा या नहीं, फोटो आप के लाजवाब हैं!
जवाब------आराम से कर पाओगे बस थोडी १०-१२ दिन शारीरिक तैयारी कर के जाना।
Suresh kumar said...
श्री खंड जाने से पहले जो शर्ते आपने रखी थी उनमे एक शर्त और होनी चाहिए थी सही वकत पर पेट भरना और सही वकत पर खाली करना आगे से धयान रखना संदीप भाई ...आपकी यात्रा बहुत अच्छी चल रही है लगे रहो
जवाब------अबकी बार प्रत्येक सफ़र में जाने वालों के लिये दो शर्त जरुरी कर दी है समय पर चलना सुबह पाँच बजे व समय पर पेट खाली करना, ताकि कोई सडाये नहीं।
चन्द्रेश कुमार said...
सुन्दर वर्णन सभी फोटो बहुत ही शानदार हैं. "जाट देवता आप बहुत किस्मत वाले है जो प्रकृति आपको बार-बार अपने पास बुलाती है" आगे बढते रहो .............
जवाब------किस्मत का बहुत बडा योगदान है इस बारे में।
प्रवीण पाण्डेय said...
न जाने कितनों के मनों में आग लगा दी, आपने यह सब दिखा कर।
जवाब------अगर किसी को आग लगती है तो बुझानी भी उसे ही होगी।
ब्लॉ.ललित शर्मा said...
चढाई पर "एक सांस और एक कदम" वाला फ़ार्मुला अपनाना चाहिए। जिससे चढाई आसान हो जाती है। आराम से चलना चाहिए। अच्छी यात्रा चल रही है, भोले बाबा की जय, जाट देवताओं की जय।
जवाब------आपकी सलाह बहुत काम आयेगी। इसी नियम पर मैं खुद चलता हूँ।
दर्शन कौर' दर्शी ' said...
खतरनाक ! रोमांचक ! यात्रा ! जो वहाँ भंडारा करते हैं और तम्बू लगते हैं उन्हें नमन ! भेड़ वहा क्यों चराते हैं ..क्या वहा कोई गाँव भी था ?
जवाब------गाँव की छोडो, जुलाई के अलावा वहाँ मानव जाति के भी दर्शन आसानी से नहीं होते है।
veerubhai said...
अब लगे हाथों जब मौक़ा मिले दक्षिणी गंगोत्री (एंटार्कटिका)और हो आओ ,दक्षिण ध्रुव की यात्रा बिरले ही कर पातें हैं ,टेक्नीकल पैरा -फर्निलिया चाहिए .हम देटरोइट में डॉ .सैनी से मिले जो ६० देशों की सैर कर चुकें हैं जिनमे दक्षिणी गंगोत्री (दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र )भी शामिल है .आप हिन्दुस्तान में अपना एक अलग मुकाम बना रहें हैं .दुर्गम परबत शिखरों को नापना आपकी आदत हो गई है ।
जवाब------ये आदत अब किसी भी हालत में सुधरने वाली नहीं है।
Vidhan Chandra said...
मान गए आप को संदीप भाई आपका स्टेमिना जबरदस्त है, लेकिनआप के साथ किसी यात्रा पर जाते वक्त सोचना पड़ेगा, क्योंकि आप स्पीड से चलते हो ......... फोटो आप का वाकई लाजवाब हैं!!देखिये हमें कब मौका मिलता है श्रीखंड यात्रा पर जाने का.
जवाब------स्टेमिना तो आम लोगों जैसा ही है लेकिन धुन का पक्का हूँ, पूरी तैयारी करने के बाद ही किसी यात्रा पर जाता हूँ। बाइक पर चलना हो तो अगले साल आपके साथ जरुर चलूँगा। बस में जाना हो तो अपनी राम-राम।
नीरज गोस्वामी said...
ग़ज़ब के चित्र...क्या जगह है वाह...कोई हिम्मत वाला ही यहाँ पहुँच सकता है...
जवाब------जी ठीक कहा साथ ही सिरफ़िरा सनकी भी हो तो ज्यादा बेहतर रहेगा।
दर्शन कौर' दर्शी ' said...
खतरनाक यात्रा ! पढ़ा भी नही जा रहा हैं और देखा भी नही जा रहा है ..?????? होश गुम ????
जवाब------होश तो ये शानदार जगह देखकर ही गुम हो जाता है।
डॉ टी एस दराल said...
ब्रेथटेकिंग ! माइंड ब्लोइंग ! आप तो पूरे पर्वतारोही हो यार . इतने दुर्गम स्थान की यात्रा देखकर हम तो अचंभित रह गए . बहुत बढ़िया रहा यह चित्रमयी विवरण .
जवाब------जी पर्वतारोही से कम भी नहीं हूँ बस अन्तर इतना है कि हमारे पास साधन कम होते है उनके पास पूरा तामझाम।
Vidhan Chandra said...
अद्भुत!!अविस्मरणीय!!हैरतअंगेज!! गजब !!भयानक!! रोमांचक!! दुस्साहसी!! इत्यादि शब्दों से नवाजा जा सकता है इस यात्रा को. जैसे जैसे आप लोग ऊपर की तरफ चढ़ रहे थे यात्रा में रोमांच आता जा रहा था!! इस यात्रा में मुझे लगा कि ये घुमक्कड़ों की नहीं भक्तों कि यात्रा थी. क्योंकि बिना भक्ति के आप यात्रा क्यों करने लगे ? जब आप जैसे लोग भी इस यात्रा से घबरा रहे थे, तो मेरे जैसे के तो शायद ही बस में नहीं हो!! इतनी कठिन यात्रा में भी आप ने फोटो खींचना जारी रखा और हमें भयानक दृश्यों से रूबरू करवाया इसके ले आप बधाई के पात्र हैं!! वैसे नीरज को आप को छोड़ के नहीं जाना चाहिए था.....साथ आये थे कुछ हो जाये तो साथ ही भुगते मेरा तो यही मानना है. टोर्च, माचिस और चाकू ऐसी यात्राओं में साथ जरूरी है.
जवाब------ऐसी दुर्गम जगह जबरन किसी को साथ नहीं ले जाना चाहिए, नहीं उसके साथ अन्य लोगों को भी परेशानी झेलनी पडेगी।
डॉ टी एस दराल said...
पूरा विवरण अब पढ़ पाए हैं । बहुत जोखम भरा और हैरतअंगेज़ सफ़र था । ऐसे सफ़र में ड्राई फ्रूट्स और चौकलेट बिस्कुट्स आदि रखना ज़रूरी होता है । साथ ही पानी की बोतल ।बेहद खतरनाक रहा यह ट्रिप।
जवाब------जरुरी ड्राई फ्रूट्स और चौकलेट बिस्कुट्स बहुत काम आते है, पानी की बोतल भी सबसे जरुरी है। बेहद ही रोमांचक रहा ये सफ़र।
ब्लॉ.ललित शर्मा said...
गजब की यात्रा रही, चढाई भी तगड़ी है, ट्रेकिंग की बिना ट्रेंनिंग लिए इस तरह की दुष्कर जगहों पर जाना सिरफ़िरों को ही काम है। इस तरह की कठिन चढाई से तो मैं परिचित ही नहीं था। सैल्युट है तुम्हारे जज्बे को। प्राचीन काल में पत्थरों को साईज से काटने के लिए उसमें लाईन से छेद किए जाते थे फ़िर उसमें ठाट ठोकी जाती थी जिससे पत्त्थर साईज से टुकड़ों में बंट जाते थे। यहाँ भी किसी ने पत्थर काटे होगें। उन्ही शिलाओं के टुकड़े जैसे नजर आ रहे हैं। जय फ़ाड़ू बाबा की। आनंद आ गया। कभी हिम्मत करेंगे, जब बाबा बुलावैगा। राम राम
जवाब------जरुर जाना इस जगह पर यादगार रहेगी।
अभिषेक मिश्र said...
अद्भूत यात्रा. और 'दो सितारों' का संग मिलन भी !ज्वाईंट वेंचर में कुछ मतभेद हो जाते हैं मनमौजियों के साथ. मगर 'सफर मस्ट गो ऑन'.
जवाब------ये छोटे-छोटे मतभेद तो ऐसी कठिन सफ़र में हो ही जाते है।
Arunesh c dave said...
एक बार आपके साथ सफ़र करने की इच्छा बलवती हो रही है। इश्वर ने चाहा तो अवश्य पूरी होगी
जवाब------जी आपका साथ मिलेगा तो खुशी होगी। लेकिन पूरी तैयारी के साथ चलना।
Bhushan said...
यात्रा वृत्तांत पढ़ते हुए मैंने दो बार पानी पिया जाट भाई. तुम गए तुम लौट आए. अच्छा हुआ. इतना ही कहूँगा कि पत्थर से पत्थर निपटे, मैं यहीं ठीक हूँ.
जवाब------हमने पता नहीं कितनी बार पानी पिया था याद ही नहें आ रहा है। एक बार आप भी हो ही आओ।
सतीश सक्सेना said...
काश हम भी होते .हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब------अगली बार आप भी हो आना फ़िर आप भी इसे याद करेंगे।
Kajal Kumar said...
वाह ये तो यात्रा की रनिंग कमेंट्री हो गई :) जितने सुंदर चित्र उससे भी कहीं अधिक संपूर्ण विवरण
जवाब------जैसा हुआ वैसा बताया।
बाकि कमैन्ट दो दिन बाद..........................
टिप्पणियों की यात्रा भी उतनी ही रोचक रही।
जवाब देंहटाएंye pehli baar dekha sawal ka jawab ka sawal ek saath
जवाब देंहटाएंकमेंट्स के साथ आपने इस यात्रा वृत्तांत को समेट कर कई नई बातें सामने ला दी हैं. इसका अपना सुहाना रंग है. आभार नीरज जी.
जवाब देंहटाएंआप के साथ साथ सुहाना रहा यह सफ़र ।
जवाब देंहटाएंटिप्पणियां भी यादगार बन गई ।
अब एक किताब छाप डालो भाई ।
vah vah ---
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ||
बहुत-बहुत बधाई ||
बहुत सुन्दर जवाब| धन्यवाद्|
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंदोस्तों की दुआएं...याद करने के लिए शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंबस से यात्रा करना मुझे भी पसंद नहीं है !! स्टेमिना को छोड़ दें तो आप में और हममे बहुत कुछ मिलाता है जी !! इश्वर ने पता नहीं कब आप के साथ यात्रा लिखी है ?
जवाब देंहटाएंसंदीप भाई आपने सभी कमेंट्स के जवाब बहुत ही अच्छी तरह दिए | हर कोई जानना चाहता है की जो कमेंट्स मैंने किया है उसकी लेखक के मन में क्या प्रतिकिर्या होती है | ये पहली बार देखा है की कोई अपने चाहने वालों के कमेंट्स का जबाब इतनी सूझ -भुझ और बिना भेद भाव के देता है एक बात और इतने सवालों के जवाब आप देते हैं और कुछ लोग आभार नीरज का जताते हैं | जैसे भूषण जी.....
जवाब देंहटाएंक्या बात है.. टिप्पणियां भी यादगार बना दी ।
जवाब देंहटाएंटिप्पणी प्रतिटिप्पणी का सिलसिला भी मस्त रहा...
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