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सोमवार, 26 सितंबर 2011

SHRIKHAND MAHADEV YATRA की तैयारी




SHRIKHAND MAHADEV YATRA श्रीखण्ड महादेव यात्रा के चार महारथी के बारे में संक्षेप में।

(1) नितिन जाट,        (2) नीरज जाट,        (3) विपिन गौड,        (4) संदीप पवाँर,

(1) नितिन जाट, 
सबसे पहले उस 27 वर्ष के महारथी के बारे में जिसने इस यात्रा के बारे में जमकर तैयारी की थी। लेकिन सारी तैयारी उसकी आशिकी भरी लापरवाही में धरी की धरी रह गयी। नितिन ने 10 दिन पहले ही जाने की हाँ कर दी थी जिस कारण उसने अपने कार्यालय से घर तक आना जाना जो कुल मिलाकर आठ-नौ किलोमीटर के आसपास है पैदल ही शुरु कर दिया था ताकि उसे इस कठिन यात्रा में कोई परेशानी न आये। सबसे बढिया तैयारी के बाद भी बंदा ये जानदार यात्रा पूरी नहीं कर पाया क्योंकि उसने पहाड में पैदल पगडन्डी पर चलते समय घोर लापरवाही बरती थी, जहाँ सावधानी से चलते हुए भी इन्सान के गिरने का भय रहता है वहाँ पर नितिन मोबाइल से बात करते हुए जा रहा था जिसका खामियाजा वो तीन बार गिर कर ऐसा भुगत चुका था जिससे कि वो दस किमी में ही आगे चलने लायक नहीं बचा था तीन बार गिरने से उसके घुटने व कुल्हे में जबरदस्त चोट आयी थी। हम चारों में सबसे हंसमुख मस्त बंदा था। बाइक व कार का तगडा चालक है। बस में यात्रा करने से बचता है।


अब बारी है अपने 24 वर्ष के नीरज जाट जी की, इनके बारे में- नीरज घूमने का बहुत शौकीन जरुर है लेकिन उसमें अभी तक असली घुमक्कड वाली बात नहीं आयी है, जो गुण है वे अभी कम ही लग रहे है,
नीरज ने सबको बताया कि ये यात्रा बेहद ही कठिन है ये सावधानी बरतों वो बरतों आदि-आदि लेकिन उन सब बातों में से शायद किसी पर भी स्वयं अमल नहीं किया होगा, तभी तो इस थोडी सी कठिन यात्रा पर हाथ पाँव फ़ूल गये थे। अगर नीरज ने अपनी बतायी हुई आधी तैयारी खुद भी कर ली होती तो उसे कोई समस्या नहीं आती, खैर देर आये दुरुस्त आये अब भी अगर उसने अपनी शारीरिक क्षमता नहीं बढायी तो आगे आने वाले समय में उसका शामली एक्सप्रेस बनना तय है। शामली एक्सप्रेस हमारे यहाँ उस ट्रेन को कहा जाता है जिसको रेलवे वाले सबसे बाद में जाने की झंडी दिखाते है। चारों में नितिन के बाद दूसरे नम्बर पर हंसमुख बंदा नीरज था। बाइक चलानी नहीं आती है। बसों में यात्रा करने का शौकीन कारण इसका आलसीपन है ताकि बस में सोते हुए जाये। नहाने से लेकर पेट साफ़ करने तक में बेहद ही लापरवाह है। लेकिन इतना लापरवाह होते हुए भी इस यात्रा को किसी के उकसाने पर ही सही, पूरी करने पर, इसके हौसले की दाद देनी पडॆगी। बंदा उतराई पर तेज उतरता है समझाया भी कि उतराई पर तेज उतरना खतरनाक होता है, जिसका खामियाजा पार्वती बाग से उतराई में गिर कर भुगत भी चुका है।

(3) विपिन गौड,
हम चारों में ये बंदा तीनों जाटों के लिये अन्जान था, उम्र मात्र 25 वर्ष हमें पहली बार मिला था। उससे पहले इसने मेरा ब्लॉग देख कर मुझे फ़ोन किया था कि क्या मैं भी चल सकता हूँ? वैसे केदारनाथ के पास का रहने वाला है यानि जन्मजात पहाडी जिस कारण पहाड पर चलने की उसकी आदत तो जरुर ही रही होगी, वैसे उसका ब्लॉग देख कर लगता है कि बंदा घूमता भी जरुर है खासकर पैदल यात्राएँ। बंदे की चढाई पर तो शाबासी देनी पडेगी कि कही हिम्मत नहीं हारी। पानी की कमी से इस बंदे को बेहाल होते हुए भी देखा है। चारों में से सबसे सीधा इन्सान कोई था तो सिर्फ़ ये विपिन गौड। बंदा कार्य तो किसी ट्रेवल कम्पनी में करता है लेकिन मुख्य स्थलों के अलावा ज्यादा जानकारी नहीं रखता है। इसे बाइक चलानी नहीं आती है। बस में यात्रा करने को मजबूरी मानता है।

(4) संदीप पवाँर,
इन चारों में से उम्र में सबसे बडे 36 साल, वजन भी सबसे ज्यादा 78 किलो, लेकिन मैं मानता हूँ कि उम्र व वजन से ज्यादा इन्सान की हिम्मत व हौसला होना चाहिए जो ऊपर तीनों बंदों में बेहद कम था या कहो कि अनुभवहीन थे। जो बंदा प्रतिदिन 30 किमी साईकिल चलाता हो पैदल व सीढी चढने का मौका ना चूकता हो तो भला ये तीनों उसकी बराबरी कैसे कर पाते। इन चारों में ये बन्दा ही ऐसा था जिसे ना पानी की चिंता और ना खाने की चिंता जो जब मिल जाये तब ठीक, ना मिले तो ठीक। एक मस्त इन्सान जिसे कोई फ़िक्र नहीं कैसे भी हालात हो कभी कोई परेशानी नहीं मानता। बसों में लगातार 24-25 घंटे व रेल में लगातार 70 घण्टे तक की बहुत यात्रा कर के देख ली है अब तो बाइक से अच्छा कुछ नहीं लगता है कार में भी वो आनन्द कहाँ मिलता है? सुबह जल्दी चलने व शाम को जल्दी रुकने में विश्वास करता है। इन चारों में चढाई व उतराई दोनों में सबसे आगे रहने वाला वो बात अलग है कि उतराई में सावधानी बरतने के कारण कुछ धीमा उतरता है, नहीं तो तीनों ने चढाई व उतराई पर रफ़तार देख ही ली है। खासकर थाचडू से ड्न्डाधार की उतराई पर


ऐसी कठिन मानी जाने वाली पैदल यात्राओं के लिये कुछ खास तैयारी करनी होती है जो ज्यादा नहीं है। कुछ सावधानियाँ सबके लिये।


सबसे बडी समस्या साँस फ़ूलने की है जो ऐसी जगह पर आती है। ये तो होना भी है क्योंकि पहाडों पर चढते समय हमारा शरीर ज्यादा मात्रा में आक्सीजन की खपत करता है। जिस कारण हमें साँस लेने में परेशानी महसूस होती है। उन लोगों को बहुत समस्या आती है जो साल में एक दो बार ही बिना कोई तैयारी के पहाडी पैदल यात्रा पर निकलते है ।

ऐसी यात्रा पर आने से पहले कम से कम 10-12 दिन पहले से अपने शरीर को ऐसी यात्रा के लायक बनाने की तैयारी जरुर कर देनी चाहिए। जिसके लिये एक घन्टा सुबह व एक घन्टा शाम को तेज पैदल चाल तो हर हालात में करनी ही चाहिए। यदि आप साइकिल चला सकते हो तो अपने कार्यालय आना जाना इसी पर शुरु कर सकते है जिससे आपके पैर पैदल यात्रा के लिये तैयार हो सकेव साँस लेने में भी परेशानी का पता लग सके। घर या कार्यालय में लिफ़्ट की जगह सीढियाँ चढनी व उतरनी शुरु कर देनी चाहिए।

अपने साथ मात्र दो जोडी कपडे ले जाने बहुत रहते हैहाँ एक गर्म कपडा जैसे चददर/हल्का कम्बल जरुर रखना चाहिए। कम से कम वजन लेकर जाना चाहिएपहाडों में ए. टी. एम. के भरोसे ज्यादा नहीं रहना चाहिए, कुछ दो हजार तो नकद नारायण भी जेब में रहना ही चाहिए। बारिश से बचने का प्रबन्ध कर ले। बुखार व दर्द की दवाएँ। कैमरा व अलग से बैट्री। दाँत साफ़ व दाडी बनाने का कम से कम सामान रखना चाहिए। बाइक के लिये पेंचर का सामान या टयूब लेस टायर होएक प्लगचैन साकेट अलग से रख ले।

शौच आदि करने के लिये सुबह मुँह अंधेरे जाना होगानहीं तो दिन निकलने पर खुले में समस्या/शर्म आयेगी। सारी यात्रा 70 किमी की पैदल ही करनी होगीकोई सहायता नहीं मिलेगीऐसी जगह लोगों को अपना खुद का वजन भारी पड रहा होता हैअत: दूसरे से मदद की उम्मीद ना करे। रात को रुकने की कोई परेशानी नहींप्रत्येक तीन-चार किमी बाद टैंट आसानी से मिल जाते है अगर भीड ज्यादा हो तो सिर्फ़ पार्वती बाग में (सीमित टैंट होने के कारण) दिक्कत हो सकती हैइस मार्ग पर अंधेरे में यात्रा करने में कोई खास समस्या नहीं हैहिमाचल के स्थानीय बंदे तो चाँदनी रात में ही यात्रा करते है। बारिश से बचने का उपाय जरुरी कर लेडन्डा अपनी इच्छानुसार लेबिना डन्डे भी कोई खास परेशानी नहींवैसे बर्फ़ में इसकी जरुरत पड सकती है। पीने का पानी जगह-जगह मिल जाता है व नैन सरोवर से आगे (असली यात्रा) बर्फ़ के भरोसे पर ही काम चलाना पडता है। आखिरी दिन दर्शन वाले दिन आप पूरे दिन सुबह पार्वती बाग से खाकर शाम तक बिना खाये रह सकते है तो कोई परेशानी नहीं आयेगीनहीं तो दिन में खाने का सामान लेकर जाये।

आप इस यात्रा को जॉव से सुबह जल्द शुरु कर शाम तक आराम से काली कुंड से आगे भीम डवार के आसपास तक जाने की कोशिश कर सकते हो दूरी मात्र 20-25 किमी है। अगले दिन सुबह जल्दी चलकर दर्शन कर शाम तक भीम डवार/काली कुंड तक आ सकते होजिसके बाद अगली सुबह जॉव तक आना व अपने घर की ओर जाया जा सकता है। नहीं तो आप के पास जॉव आने के बाद यदि दो घन्टे का भी समय है तो आगे की पैदल यात्रा पर निकल जाना चाहिए ताकि जितना सफ़र आप काट सको उतना अच्छा रहेगा।

   
                    इस यात्रा का जो भाग देखना चाहते हो उसके लिये यहाँ नीचे क्लिक करना होगा

भाग-01-दिल्ली से पिंजौर गार्ड़न तक।
भाग-02-पिंजौर का भव्य गार्ड़न
भाग-03-पिंजौर से जलोड़ी जोत/जलोढ़ी दर्रा

भाग-04-सरोलसर झील व रघुपुर किले के अवशेष
भाग-05-सैंज से निरमुन्ड़ होते हुए जॉव तक
भाग-06-सिंहगाड़ से ड़न्ड़ाधार की खड़ी चढ़ाई कर, थाचडू होते हुए काली घाटी तक


भाग-07-काली घाटी से भीमद्धार/भीमडवार तक
भाग-08-पार्वती बाग, नैन सरोवर होते हुए, श्रीखण्ड़ महादेव शिला के दर्शन
भाग-09-वापसी श्रीखन्ड़ से भीमड़वार होते हुए, रामपुर बुशैहर तक


भाग-10-रामपुर से रोहड़ होते हुए चकराता तक।
भाग-11-चकराता  का टाईगर फ़ॉल/झरना
भाग-12-सम्राट अशोक कालीन शिलालेख, कालसी में


भाग-13-पौंटा-साहिब गुरुद्धारा
भाग-14-पौंटा-साहिब से सहारनपुर-शामली होते हुए दिल्ली तक।
भाग-15-श्रीखन्ड़ यात्रा पर जाने के लिये महत्वपूर्ण बाते।

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19 टिप्‍पणियां:

  1. घूमने का शौक है तो यह सब करना ही पड़ेगा। बड़े व्यवस्थित ढंग से सब समझाया आपने, आभार।

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  2. आपका अनुभव अन्य घुमक्कड़ों के काम आएगा।

    राम राम

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  3. टीम की रोचक जानकारी सुंदर बन पड़ी है. अच्छे-बुरे अनुभवों के साथ दिलचस्प यात्राएँ करने, खतरे उठाने और सकुशल घर लौटने पर जाट ब्रिगेड को बधाई. भविष्य के लिए शुभकामनाएँ.

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  4. सन्दीप भाई,
    इस बार श्रीखण्ड महादेव की सफल यात्रा के बाद अगले साल का प्रोग्राम बनाते हैं- छोटा कैलाश का।
    आज की पोस्ट ने दिल जीत लिया। आप अपने बारे में तो जानते ही हैं, नितिन तो आपका पडोसी ही ठहरा, और विपिन था बेचारा सीधा सादा। विपिन जैसों की हर जगह इज्जत होती है।
    अब बचा मैं। आपने उन आठ दिनों में मेरे अन्दर एक भी नई बात नहीं देखी। आपने सभी वे ही बातें लिखी हैं जो मैं अपने बारे में पिछले तीन सालों से खुद ही लिखता आ रहा हूं। मुझे गर्व है कि आप जैसे ऊर्जावान, हिम्मतवाले इंसान मेरे ब्लॉग को इतना गौर से पढते हैं कि मेरी आदत से अच्छी तरह परिचित हो गये हैं।
    और सन्दीप भाई, मजाक नहीं कर रहा हूं, ना ही कटाक्ष कर रहा हूं। अगर कोई मुझसे पूछे कि सबसे ज्यादा हंसमुख कौन है तो मैं आपका ही नाम लूंगा। हालांकि आपने यह पद नितिन को दिया है, लेकिन वो तो इस मामले में कहीं भी नहीं ठहरता। वो तो नकारात्मकता की जबरदस्त मूर्ति है। आप भूल गये उन पलों को जब आप नितिन की घोर नकारात्मक हरकतों को देख-देखकर परेशान हुए जा रहे थे।
    और विपिन पण्डतजी महाराज के बारे में मेरे विचार। जब मुझे पता चला कि अगला केदारनाथ के पास का रहने वाला है, यानी जन्मजात पहाडी है और नौकरी भी किसी ट्रैवलिंग कम्पनी में करता है, तो भईया, मैंने खुद को तीसरे नम्बर पर धकेल दिया। मुझे उस समय घनघोर आश्चर्य हुआ जब बरफ का पहला पुल मिला और इसे पार करने में महाराज के तोते वोते सब उडने लगे। उसके चेहरे पर उस समय क्या जबरदस्त घबराहट थी। और उसी घबराहट का एक फोटू भी है जब भीमद्वारी में हमारे तम्बू के बराबर में ही वो आधा टूटा पुल था, एक बार उस फोटू को जरूर देखना। हालांकि उसके बाद लगातार नियमित अन्तराल पर बरफ पर चलने के कारण वो इसका अभ्यस्त भी हो गया था। लेकिन केदारनाथ के पास रहने वाले इंसान से इस तरह की उमीद हो ही नहीं सकती। हालांकि मेरी और पण्डत की ज्यादा बनी भी नहीं।
    और आखिर में मेरी बात। आपने अपने बारे में तो बहुत बढिया लिखा है, लेकिन मेरी खास बात नहीं लिखी। मैं पूरी यात्रा में वो इंसान था, जो बाकियों को अपने तरीके से चलाता था। शुरूआत जलोडी जोत से होती है। सेरोलसर झील पर लठ ले जाने वाला मैं अकेला बन्दा था। आप समेत किसी को लठ की महिमा पता ही नहीं थी। हालांकि इंसान बिना लठ के कहीं का कहीं पहुंच जाता है लेकिन जब हम सब वापस जोत पर आये तो चाय बाद में पी गई, पहले सभी ने लठों पर कब्जा किया और उसके बाद रघुपुर किला देखने गये।

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  5. अब चलते हैं नैन सरोवर पर। मेरे भाई, 4200 मीटर की ऊंचाई वो जगह होती है जहां एक तो हवा पतली हो जाती है, फिर ज्यादा मेहनत करने के कारण शरीर को हवा की जरुरत भी ज्यादा होती है। नतीजा? सबको पता है कि सांस चढती है, चक्कर आते हैं, घबराहट होती है- इसे हाई एल्टीट्यूड सिकनेस कहते हैं। कुछ समय ऊंचाई वाले इलाकों में बिताकर ही इस बीमारी से बचा जा सकता है। अगर किसी को यह बीमारी हो जाती है तो उसकी शारीरिक क्षमता की मजाक नहीं बनानी चाहिये। मैं उस समय इसी बीमारी का शिकार था और आगे जाने में बिल्कुल असमर्थ महसूस कर रहा था। फिर भी मैं आगे गया और यही सोचकर गया कि शाम को अन्धेरा होने से पहले भीमद्वारी वापस लौट आऊंगा। और कमाल देखो कि मैं अन्धेरा होने से पहले वापस आ भी गया। मैं भले ही आलसी और गन्धीला हूं लेकिन खोपडी के भीतर जो एक गोल सी आकृति होती है, वो अपनी बढिया विकसित है।
    और मुझे सबसे ज्यादा खुशी आपकी पिछली पोस्ट में तब मिली जब आपने लिखा कि आप नीरज जैसे आलसी इंसान की वजह से यमुना तट पर नहीं जा सके। नीरज को जाना ही नहीं था, अगर आप कहते तब भी नहीं जाता। यह उसकी मानसिक ताकत को दिखाता है। लेकिन आप लाख मन होने के बावजूद भी नहीं जा पाये। अब आप ही बताइये कि मानसिक रूप से कमजोर कौन है। त्यूनी के बाद जब हम अनजाने में रास्ता भटक गये और पचास किलोमीटर आगे आ गये, उस समय एक नीरज जाट ही था, जिसने गलती पहचानी और एक कामयाब सलाह दी कि टोंस पर अगला पुल जहां भी जैसा भी मिले, पार करके उत्तराखण्ड में घुस जाओ। नहीं तो होता कोई दूसरा तो वो सडक सीधे पांवटा साहिब जा रही थी, घण्टा भर लगना था, वहीं जा पहुंचते। हो हा लिया था चकराता और कालसी। सकारात्मक सोच का शानदार नमूना। और उसी समय आपके चहेते नितिन और विपिन ने आपको जो सुनाई थी, याद है या भूल गये।
    ...
    सन्दीप भाई, घुमक्कडी भागमभाग से नहीं होती। यह कोई रेस नहीं है हमें अपने ही साथ वालों से आगे निकलना है। दुनिया में सभी एक से नहीं होते। कोई आप जैसा जबरदस्त तंदुरुस्त है तो कोई मेरे जैसा कमजोर भी। घुमक्कडी होती है, हिम्मत से, हौंसलों से, बेफिक्री से और इन चीजों की इस जाट में ना कभी कमी थी, ना है, आगे का पता नहीं।
    और यह एक यादगार यात्रा रही। विवाद तो होते ही रहते हैं। आपने तो फोन करना ही बन्द कर दिया। अपने दिमाग से नीरज फोबिया उतारो और अगली यात्रा की कुछ बताओ। हां, आप तो हर की दून जाने वाले थे, उसका क्या हुआ?

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  6. बहुत अच्छा विवरण लगा संदीप ...जल्दी ही दून की यात्रा के लिए शुभकामनाए ....

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  7. सन्दीप भाई,
    लिंक ठीक करो। पता नहीं आपको मेरे और विपिन के लिंक कहां से मिल गये। बिल्कुल गलत लिंक हैं।

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  8. संदीप भाई ये तो पता था की आप साईकल चलाते हो पर हर रोज ३० किलोमीटर चलाते हो इस बात का अभी पता चला | बहुत ही अच्छी बात है इससे शरीर हमेशा तंदरुस्त रहेगा | बाकि तो हमें पहले ही सब कुछ पता था |

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  9. वाह! बहुत सुन्दर जानकारियाँ दी हैं आपने.
    आपकी अगली प्रस्तुति का इंतजार है.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

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  10. बहुत अच्छा विवरण !!
    भविष्य के लिए शुभकामनाएँ......

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  11. बहुत सुन्दरता से आपने यात्रा का विवरण दिया है ! बेहतरीन प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  12. एक अनुभवी ट्रेकर की तरह आपने बहुत सही टिप्स दिए हैं .
    ट्रेकिंग में खुश रहना बहुत ज़रूरी है और सहयोग की भावना भी होनी चाहिए . साथ ही किसी भी खतरे या विपरीत परिस्थिति से सामना करने का भी साहस रखना चाहिए . चलते हुए आस पास के नज़ारों का भरपूर आनंद उठाना चाहिए , लेकिन स्पीड मेंटेन करना भी ज़रूरी होता है .

    सभी का परिचय अच्छा लगा .

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  13. बहुत सुन्दरता से आपने यात्रा का विवरण दिया है| धन्यवाद|

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  14. अच्छा कायदे से अनुभव बांटा है...लोगों के काम आयेगा.

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  15. संदीपजी,आपकी हिम्मत और मेहनत की दाद देनी पड़ेगी.केवल ब्लॉग लिखने के लिए ये यात्राएँ नहीं हैं.आपको घूमने के साथ लिखने का भी शौक है,यहाँ तो हमें घूमने की कौन कहे ,लिखने में ही काहिलपना आता है आभार एवं शुभकामनाएँ अगली यात्रा की ! !

    जवाब देंहटाएं

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