दोस्तों मथुरा भरतपुर यात्रा का यह अंतिम लेख है।
आपने करीब तीन साल पहले इस यात्रा के अन्य सभी लेख पढ़े थे। चूंकि तीन वर्ष से लिखने का मन नहीं हो रहा था तो यह यात्रा आगे नहीं लिखी गयी थी। कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ के चिरमिरी में रहने वाले श्रीपत राय भाई ने फोन पर विशेष जोर दिया कि पुनः लिखना शुरू कीजिए।
लगातार लिखना कहाँ तक सम्भव हो पायेगा? यह तो अभी नहीं कह सकता!
इसलिए पुनः लेखन में सबसे पहले बची हुई मथुरा भरतपुर यात्रा का यह लेख पूरा कर रहा हूँ।
इस यात्रा में सबसे पहले हम वृंदावन के दर्शनीय स्थल घूमे थे। वृंदावन में घूमने के बाद हम मथुरा के कुछ अन्य क्षेत्र घूमे जिनके यात्रा लेख आप सब पहले पढ़ चुके हो। अब उससे आगे चलते है।
यूपी के मथुरा का भ्रमण के बाद हमारी टोली राजस्थान में प्रवेश कर गयी। बहुत वर्षों से भरतपुर महाराजा सूरजमल का निवास स्थान "डीग का जल महल" देखने की प्रबल इच्छा थी। सबसे पहले जल महल पहुंच गए।
इस यात्रा के दौरान हमारी टीम ने यहां जमकर धमाल मचाया। पहले तो हमने महल देखा। महल तो मुश्किल से आधे घंटे में देख लिया गया।
मुख्य द्वार से प्रवेश करते समय महल के अंदर एक हरा-भरा पार्क देखा था। इस पार्क को देखकर हम सबके मन में दबे हुए कबड्डी के खिलाड़ी बाहर निकल आए।
यहां, हमने लगभग एक घंटा जमकर कबड्डी खेली। हमारी हमारी घुमक्कड़ टीम दो भागों में विभाजित हो गयी।
सुबह के के चौधरी भाई के फार्मेसी कालेज में हमारी टीमों ने बैडमिंटन व वालीबाल में धमाल मचाया ही था।
डाक्टर अजय त्यागी यहां रैफरी बने थे। खिलाड़ी बनकर कबड्डी में दबने से अच्छा रैफरी बनना रहा।
इस महल में देखने के लिए बहुत सारे स्थान हैं। महाराजा सूरजमल का निजी कक्ष सबसे शानदार लगा। यहां महाराजा सूरजमल जिस पलंग पर सोया करते थे। वो भी देखा। एक पत्थर की छत देखी। तब लैंटर तो बनते नहीं थे।
अन्य कर्मचारियों के रहने के स्थान और महल के दोनों तरफ पानी से भरे हुए जलाशय आज भी पानी से भरे रहते है। जिनके कारण इस महल का नाम जल महल पड़ा था। पानी के ऊपर से जो हवा के झोंके आते थे। वह ठंडे होते थे। जिस कारण महल में जून के महीने में भी गर्मी महसूस नहीं होती। इस महल में एक जगह महाराजा सूरजमल का दरबार लगता था। उसके ठीक बराबर में यहां पर एक शेर का पिंजरा था। जिसमें एक शेर पिंजरे में रखा जाता था।
यह महल दिल्ली के लाल किले से भी शानदार है जिसने दिल्ली का लाल किला या आगरा का लाल किला देखा है। वह इंसान इसे देखेगा तो यह स्थान उन दोनों किलों से शानदार लगेगा। किले पर आजादी के बाद लगातार कांग्रेसी शासन रहने के कारण रखरखाव न होने के कारण बहुत सारे स्थान ढहने की अवस्था में पहुंच चुके हैं।
इसका कारण यह था कि यहां के महाराजाओं के वंशज का आजादी के बाद से ही कांग्रेसी सरकारों से हमेशा विरोध रहता था। हो सकता है यहां के महाराजा कांग्रेस के नेताओं को अंग्रेजों के दलाल मानते हो। इस रंजिश के कारण आज से तीस साल पहले एक कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने यहां के तत्कालीन राजा को सार्वजनिक रूप से भरतपुर में पुलिस से गोली चलवा कर मरवा दिया।
भारत के अंधे लचर पचर कानून का ढोंग देखिए कि उस मुकदमे का निर्णय 35 साल बाद 2020 में जाकर हो पाया। अब तक लगभग सभी आरोपी स्वयं की मृत्यु पा चुके थे। एक दो जो बचे भी है वो 80/85 साल के हो चुके है। राजनीति बडी गंदी चीज है।
खैर, महल बहुत शानदार है कभी भी घंटे दो घंटे का मौका मिले तो इस महल को देखने अवश्य जाये। यह स्थान महापुरुष श्रीकृष्ण की जन्म भूमि मथुरा के पास है और गोवर्धन पर्वत के तो बहुत ही नजदीक है। अपनी गाडी हो तो आधा घंटे से भी कम समय में यहां पहुंच जायेंगे। यहां से भरतपुर ज्यादा दूर पड़ता है गोवर्धन पर्वत नजदीक पड़ता है। इसलिए इस स्थान को देखने का मौका कभी न छोडा जाए।
डीग के जल महल में जल महल तो आश्चर्यजनक है ही और जल महल के अंदर बहुत कुछ देखने लायक है। जो आप इन फोटो में नहीं देख सकते। यहां आकर यहां के पार्क महल आदि सब कुछ देख सकते हैं। महल में सिर्फ राजा के शयनकक्ष वाले भाग में फोटो खींचने की रोक है। अन्यथा आप पूरे महल में कहीं भी फोटो और वीडियो बना सकते हैं। यहां काफी सारे पार्क भी हैं।
इस महल में एक हनुमान जी का मंदिर भी है। आप मंदिर के दर्शन करने के बहाने मंगलवार को या सुबह सुबह बिना टिकट के भी जा सकते हैं। वैसे भी यहां का टिकट बहुत ज्यादा महंगा नहीं है। शायद 5 या ₹10 का यहां का टिकट है। उसमें आप यहां का संग्रहालय भी देख सकते हो। इस महल के ठीक सामने में डीग का विशाल किला भी है। जिसे दुर्ग कहते हैं यह भी भरतपुर वाले दुर्ग की तरह अजय रहा है। कहते हैं सिर्फ एक बार यह दुर्ग दो-तीन महीने के लिए आक्रमणकारियों के अधीन चला गया था अन्यथा इस पर भरतपुर के शासकों का ही अधिपत्य रहा है।
डीग के किले में कोई टिकट शुल्क नहीं है। वहां आप सुबह 9:00 बजे से शाम के 5:00 बजे तक जा सकते हैं। दुर्ग में जाने पर आपको एक बुर्ज ऊंचाई पर एक महा विशाल तोप रखी मिलेगी। जो भारत की सबसे बड़ी मुख्य तीन चार तोप में शामिल है। ऐसी एक तोप तो जयपुर के किले में भी बताई जाती है ऐसी ही एक तोप मैंने महाराष्ट्र के मुरुड जंजीरें किले में भी देखी थी। मुरुड जंजीरा किला समुद्र के अंदर बना हुआ है।
डीग के किले में बुर्ज के ऊपर रखी विशाल तोप से इस जल महल की सुरक्षा की जाती थी। उस तोप के कारण इस महल पर आक्रमणकारियों का हमला करने की हिम्मत नहीं होती थी। किसी भी तरह की सेना हो इस तोप के कारण वह दूर हट जाती थी। चलिए अब हम भी 1 घंटे की कबड्डी खेल कर और अपने पसीने सुखाकर यहां से अपने अपने घर की ओर चलते हैं।
चलने से पहले थोडी जानकारी डीग के बारे में जान लीजिए।
डीग राजस्थान के भरतपुर जिले का एक प्राचीन शहर रहा है। इसका प्राचीन नाम दीर्घापुर था। भरतपुर यहां से 32 किमी दूर है। महाराजा बदन सिंह ने डीग को भरतपुर शासन की पहली राजधानी बनाया था। भरतपुर के जाट-राजाओं के बनवाये महल तथा अन्य भवन अपनी सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध हैं। महाराजा बदन सिंह ने 18 वीं सदी में मिश्रित शैली में डीग के भवनों की योजना तैयार की और उस योजना को महाराजा सूरजमल ने साकार रूप दिया।
महाराजा सूरजमल दुर्ग, महल एवं मंदिर निर्माण व मुगलों से लडाई करने में ज्यादा व्यस्त रहे। भरतपुर और डीग के आधुनिकतम महलों के निर्माण में भी उनका ही योगदान रहा। डीग में अपने पिता के समय के बने महलों से अलग सूरजमल ने फव्वारों जलाशय के साथ आधुनिक सुविधा युक्त महलों का निर्माण भी करवाया।
तो दोस्तों यह तो थी डीग बनने की कहानी। हम वापस अपने यात्रा वृत्तांत पर लौट आते है।
अभी हम सब एक साथ वापसी में सीधे मथुरा जा रहे है। मथुरा में हमें यह गाडियां छोड देनी है।
मथुरा पहुंच कर एक दूसरे को बाय बाय कहने व अलग अलग चलने से पहले आइसक्रीम पार्टी का आनंद लिया गया।
आइसक्रीम पार्टी के बाद जयपुर सीकर वाले साथी अनिल बांगड व उनके दोस्तों ने रोडवेज बस पकड ली।
डाक्टर त्यागी अपनी बाइक से आये थे।
वो अपनी बाइक से लौट गये।
मैं अनिल दीक्षित के साथ उनकी गाडी में आया था। वापसी में दीक्षित भाई को नींद आ रही थी तो मैंने यमुना एक्सप्रेस वे पर दिल्ली बार्डर तक गाडी चलायी।
दिल्ली आते ही अनिल दीक्षित को गाडी का हैंडल दे दिया गया।
बस अडडे के सामने पहुंचे तो उजाला हो चुका था। यहाँ सडक किनारे भीड लगी थी। पता लगा कि किसी बाइक सवार को हार्टअटैक आ गया है वह बाइक पर ही खत्म हो गया था।
पुलिस वाले बाइक वाले के पास आ चुके थे। बाइक वाले को देखा, वह जान पहचान का नहीं लगा। पुलिसकर्मियों के आने से हमारा वहां कोई काम नहीं था।
हम अपने अपने घर पहुंच गये। नहा धोकर नौकरी पर भी तो जाना था।
दोस्तों, जल्दी ही किसी यात्रा के साथ पुनः आने की कोशिश रहेगी।(यात्रा समाप्त)
धन्यवाद यादें ताज़ा करने के लिये … बहुत ही यादगार एवं अविस्मरणीय पल
जवाब देंहटाएंसुंदर यात्रा व्रतांत
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद दुबारा लिखने की शुरुवात हुई ह् तो हम य सोचे की अब लगातार लेख पढ़ने को मिलते रहेंगे
जवाब देंहटाएंGolmaal is back again
जवाब देंहटाएंलाजवाब लेख
जवाब देंहटाएंवाहः बहुत दिनों पश्चात आपके लेख को पढ़ने का मौका मिला ऐसे ही लिखते रहिए हर हर महादेव
जवाब देंहटाएंअब बचे लेख भी पढ़ने को मिलेंगे।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया ऐतिहासिक तथ्यात्मक और शानदार फोटो से युक्त लेख है.
जवाब देंहटाएंआपसे अनुरोध है कि अपनी लेखनी को विराम मत दीजिए. अग्रिम बधाई और धन्यवाद
यात्रा संस्मरणों को लिखते जाइये...पुनः लेखन के लिये स्वागत है...👍👍👍
जवाब देंहटाएंबढ़िया यात्रा।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया संदीप जी, अब तो जी कड़ा सा करके जितने भी पेंडिंग यात्रा ब्लॉग हैं सब को लिख डालिये
जवाब देंहटाएंवाह बहुत दिनो के बाद👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।