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रविवार, 1 सितंबर 2019

Reality of Neeraj jat Musafir नीरज जाट मुसाफिर की सच्चाई

#नीरज_जाट_का_सफेद_झूठ
झूठ की पोल खोलनी आवश्यक है। यदि झूठ की पोल नहीं खोली जाये तो सच्चाई से अनभिज्ञ लोग उसे सच मानेंगे लगते है।
झूठ चाहे किसी का भी हो।🙄

झूठ नामक अस्त्र का प्रयोग हमेशा अपने बचाव या फायदे के लिए ही किया जाता रहा है।
यदि झूठ एक ऐसे व्यक्ति का हो जिसे सैंकड़ों लोग पढते हो तो उसके सफेद झूठ को पाठक सच मान लेते है।
इन परिस्थितियों को देखते हुए, सच सबके सामने आना और भी आवश्यक हो जाता है।

समस्या यह है कि लोग झूठेे शब्दों को घूमा-फिराकर अपने लिए सहानुभूति बनाने में एक्सपर्ट हो गये है।
आज से तीन वर्ष पहले #अगस्त_2016 में जब पटना वाले राहुल कुमार की संदिग्ध मौत (हत्या या दुर्घटना, #लाश_सडने से पता न लग सका) हुई थी। उस समय भी सैंकड़ों लोगों ने झूठ का सहारा न लेने को कहा था।
राहुल कुमार की मौत पर अफसोस/खेद/माफी जताने की जगह स्वयं को पाक-साफ साबित करने के लिए सन 2011 में मेरे साथ की गयी एकमात्र #श्रीखंड_महादेव_यात्रा के बारे में 1 नहीं कई #सफेद_झूठ बताकर लोगों को दिगभ्रमित करने की कुटिल चाल अवश्य कर दी।

चलिए 1-1 झूठ की कलई नीरज जाट उर्फ उर्फ नीरज मुसाफिर के और अपनेे ब्लॉग के सन 2011 में लिखे गये विवरण से ही खोली गयी है।
नोट...
नीचे- सभी सफेद-झूठ की पोल स-सबूत खोली है उनके स्क्रीन शाट भी नीरज के ब्लाग से ही लेकर लगाये गये है। सिर्फ एक स्क्रीन शाट मेरे ब्लॉग से है।

#पहला_सफेद_झूठ...

स्थानीय लडकी के हादसे के बारे में सबको स्पष्ट झूठ बताया गया कि उसकी मौत खतरनाक पहाडी रास्ते से गिरने से हुई थी।

लडकी के पहाड से गिरकर मरने का एक-दम सफेद झूठ बताया गया है...........................

वो लडकी मात्र 13/14 वर्ष की रही होगी।
किसी टैंट वाले की उस बच्ची की कमर पर सामान बंधा था।
नदी के पानी वाले रास्ते को पार करते समय पानी के बहाव के अंदर किसी पत्थर पर गलत पैर पडने से या बहाव न झेलने से उसका संतुलन बिगडा और वह पानी में लुढक गयी।
कमर पर बंधे बोझ और पानी के बहाव से वह खडी नहीं हो पायी थी।
यदि वह बच्ची यात्रियों वाली पगडण्डी से जाती तो शायद बच सकती थी।

यहां स्पष्ट करना है कि हम चारों ने एक भी यात्री पानी के रास्ते जाते हुए नहीं देखा था।
सभी यात्री यात्रियों के लिए बनायी गयी पगडण्डी पर ही चल रहे थे।

खैर जो हो हुआ नहीं।

#दूसरा_सफेद_झूठ

दूसरा सफेद झूठ यह लिखा कि नितिन जाट
माउंटेन सिकनेस से परेशान था।

नितिन की बीमारी के बारे में भी एकदम सफेद झूठ बताया गया है.........................

यदि नितिन जलोडी-जोत व रघुपुर-फोर्ट की चढाई पर सबसे पीछे रहता और वहां चढाई में एक बार भी परेशान हुआ होता तो मैं इस सफेद झूठ को सच मान लेता।

खैर, जो बात हुई ही नहीं, उसे जबरदस्ती मान भी कैसे लूं..........

रघुपुर गढ लगभग 11,000 फीट ऊंचाई पर है।
थाचडू भी 11,300 फीट से ऊंचा है।
हमने जिस टैंट में नितिन को आराम करने बैठाया था।
वह जगह थाचडू से लगभग दो किमी पहले पैदल दूरी पर है।
यहां दो किमी धार की खडी चढाई वाले है। सडक की समतल दूरी वाले नहीं है।
जहां रात में हम ठहरे थे। वह जगह ऊंचाई में लगभग 10,000 फीट से कम ही रही होगी।
वो भी हरे भरे जंगल में।
जबकि रघुपुर फोर्ट एक बुग्याल है। वृक्ष विहीन क्षेत्र है।
सच्चाई यह है कि नितिन हम तीन जितना अनुभवी न सही, एकदम फिट बंदा  था।
फोन में लगातार बिजी रहता था। इस चक्कर में ध्यान बिखरने से उसके पैर में एक मोच रघुपुर फोर्ट से गलत रास्ते की उतराई में एक दिन पहले लग चुकी थी।
दूसरी चोट भी उसी पैर के घुटने में, जांव से सिंहगाड जाते समय खा बैठा।
दूसरी घुटने वाली चोट ज्यादा #खतरनाक साबित हुई।
जिससे उसके पैर में भयंकर दर्द हो गया।
#ताजी-ताजी मोच व चोट थी।
नितिन के दर्द को देखते हुए, सामूहिक निर्णय लिया कि सिंहगाड से आगे मिलने वाले सबसे पहले टैंट में ही रात्रि विश्राम का निर्णय करेंगे। जबकि दिन छिपने में दो घंटे से ज्यादा का समय बचा था।
यह शाम को ही तय हो गया था कि सुबह तक पैर की मोच व दर्द में आराम होगा तो ही नितिन आगे जायेगा। नहीं तो यही एक-दो दिन आराम करेगा। हमें यहां तक वापसी में तीन दिन तो आसानी से लगने ही है।
दो दिन में आराम होते ही धीरे धीरे चलकर बाइक तक पहुंच कर प्रतीक्षा करेगा।
हम जिस जगह ठहरे थे। वो जगह सिंहगाड व थाचडू के लगभग बीच में थी।
नितिन को ढाई तीन किमी उतराई उतरकर सिंहगाड तक जाना था। बीच में भंडारे में भी रुकने का प्रबंध था।
नोट................
पूरा रास्ता सुरक्षित था। सैंकडों लोग आ जा रहे थे। कही भी बिना लापरवाही गहरी खाई में गिरने का खतरा नहीं था।
नितिन पहली चोट के बाद भी फोन में बिजी न रहता तो दुबारा उसी जगह चोट न लगवाता।
खैर जो हो न सका...
श्रीखंड यात्रा में अधिकांश क्षेत्र मोबाइल रेंज में था इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं थी।
नेटवर्क की थोडी समस्या भीमडवार में आती है। वहां भी उस समय 2011 में टाटा के फोन काम करते थे।
ऊपर चोटी पर भीम बही तक एयरटेल वाले मोबाइल पर आसानी से बात कर रहे थे।

#तीसरा_सफेद_झूठ...

नैनसरोवर पर अकेले छोडकर जाने वाला सफेद झूठ .........................
यहां विपिन और मुझसे सुबह टैंट छोडते समय एक भयंकर चूक हो गयी थी। भीमडवार से चलते समय छोटे बैग में पानी की खाली बोतल रखना भूल गये थे।
बडे बैग टैंट में ही छोड आये थे।
नीरज अपना बडा बैग ऊपर तक लाया था।
अब सिर्फ एक बोतल थी वो भी नीरज के पास।
यहां नैनसरोवर पहुंच कर #नीरज_ने_साफ_मना_कर दिया कि मैं किसी को भी पीने के लिए पानी की एक बूूंद नहीं दूंगा।
कोई मरे या बचे, उसकी बला से......
नीरज ने एक सलाह अवश्य दी थी कि जिसे पानी चाहिए वो मुझसे पन्नी लेकर उसमें पानी भरकर ले जाओ।
इस नेक सलाह के लिए कोटी कोटी धन्यवाद..
उबड-खाबड पथरीले रास्ते व बर्फ में पन्नी की थैली में पानी ले जाना असम्भव काम था।
इस बात पर थोडी बहसबाजी भी हुई। जिसका नतीजा यह हुआ कि नीरज एक बार फिर हठधर्मिता पर उतर आया कि जाओ मुझे नहीं जाना। मैं वापसी जा रहा हूँ।
चार दिन में नीरज की रग रग से परिचय हो चुका था।
मुझे मालूम था कि आधे घंटे बाद ही सही, ये आयेगा तो अवश्य।
और यदि सच में लौट भी गया तो सैंकड़ों लोग आ-जा रहे है। 4 किमी उतराई पर ही हमारा टैंट में सामान पडा है टैंट में आज रात्रि की एडवांस बुकिंग भी है। वहां रुक जायेगा। यदि वहां भी नहीं रुका तो नितिन जहां कल से आराम कर रहा है। शाम तक वहां आसानी से पहुंच जायेगा।
पूरे रास्ते एक ही पगडण्डी है। देर रात तक यात्री चल रहे है।
ऐसा खतरनाक रास्ता अभी तक नहीं आया था।
जहां से कोई भटक कर जंगल में गायब हो जाये और खाई में गिर जाये।

मैं और विपिन गौड नीरज से लगभग 10 मिनट पहले नैन सरोवर पहुंच गये थे। नीरज के पहुंचने के बाद 10 मिनट बहसबाजी में और लग गये।
थोडी देर उसका अडियल रवैया देख, जब बोतल का पानी की एक घूंट देने से भी साफ मना कर दी तो हम बिन पानी के ही आगे बढ गये।
आगे की यात्रा में अब हम मुझे व विपिन को बिन पानी काम चलाना था।
चढाई लगातार थी तो प्यास तो लगनी ही थी।
हमें जहां प्यास लगती, सामने पडी पुरानी बर्फ की ऊपर की परत हटाकर साफ बर्फ निकालते खाते अपनी प्यास बुझाते हुए आगे बढ जाते थे।
वापसी में एक जगह विपिन सूखे गले से बैचेन हो गया था। बर्फ खाकर मन भर चुका था।
वहां एक यात्री से दो लीटर वाली खाली बोतल लेकर पानी लेने जाना पडा।
मैं उसकी खाली बोतल लेकर पगडंडी से नीचे उतरा और एक श्रोत से पानी भरकर लाया। तब हम दोनों को उस दिन पानी मिला था।
बिन पानी हम दोनों ने यात्रा पूरी की।
दोनों सही सलामत लौट आये।
हम दोनों बिन पानी नहीं मरे।
खैर.......जो हुआ नहीं, उसकी चर्चा करनी बेकार होती है।
जो असलियत में भुगतना पडा मुद्दे की बात वो है।

नीरज का ऐसा रवैया (बोतल न देने वाला) देखकर मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया कि इस बार साथी चुनने में भारी चूक हो गयी है।
यह अडियल बंदा तो किसी यात्रा में अपने किसी साथी को मरने के लिये भी छोड आयेगा लेकिन बचाने के लिये सहयोग नहीं करेगा।
#राहुल_कुमार_की_मौत_वही_असहयोग_है
श्रीखंड महादेव यात्रा मेरी छोटे भाई नीरज के साथ सम्भवतः पहली व अंतिम यात्रा थी।
सम्भवतः इसलिए लिखा कि हो सकता है कि भविष्य में सुधर जाये................

उस दिन मैं सोच रहा था कि ऐसी ही हरकतें रही तो भविष्य में इस भाई के कारण कोई हादसा अवश्य घटित होगा। तब शायद भाई सुधरेगा।
लेकिन #मैं_गलत_था
#राहुलकुमार_की_मौत भी शायद इसके रवैये में अब तक कोई सुधार न ला सकी।

हो सकता है सुधर भी गया हो,
मैं अब नीरज के सम्पर्क में नहीं हूँ।
मैंने फेसबुक पर नीरज को कुछ वर्ष पहले ही ब्लॉक किया हुआ है।
हो सकता है। अब सबको मान सम्मान से बोलता होगा, अडियल रवैया छोड दिया होगा।
दूसरों की खुशी के लिये अपनी खुशी त्याग देता होगा।

ट्रेकिंग का सबसे खास नियम सुबह जल्दी चलना होता है।
श्रीखंड यात्रा में लगातार 4 दिन से भाई के कारण यह एक बार भी सम्भव न हुआ।

पूरी यात्रा में दिन निकलने के डेढ-दो घंटे बर्बाद करवाने के बाद ही भाई आगे चलता था।

सिर्फ दो दिन दिल्ली से चलते समय और पांवटा साहिब से दिल्ली जाने वाले दिन मजबूरी में जल्दी सुबह 4.30 बजे पता नहीं कैसे चला होगा.......

मैं हर यात्रा में साथी की बहुत सारी अच्छी और बुरी हरकतें एडजस्ट कर लेता हूँ।
कारण यह कि मैं जानता हूँ कि दो चार दिन की यात्रा ठीक-ठाक राजी-खुशी काट लो।
कोई साथी यात्रा में ज्यादा नौटंकी दिखायेगा तो यह तय है कि भविष्य में उसके साथ भूलकर भी पुनः यात्रा नहीं करूंगा।

2011 के बाद भाई के साथ कोई यात्रा दुबारा करने की इच्छा नहीं हुई और अडियल रवैये के कायम रहते शायद निकट भविष्य में सम्भव भी नहीं है। बोतल वाली घटना विपिन का गला सूखना आज भी मुझे याद है।
नोट..............
श्रीखंड में बहुत भीड होती है टैंटों व भंडारे में जगह मिलना मुश्किल होता है।

#चौथा_सफेद_झूठ

दो घंटे तक नैन सरोवर में सांस काबू करने का सफेद  झूठ..............................

मुझे व विपिन को नैनसरोवर से ऊपर तक पहुंचने में तीन घंटे से ज्यादा ही लगे होंगे।
काफी देर तक लगभग आधा घंटा वहां रुके भी रहे।
गजब देखिए नीरज हमें वापसी में भीमबही (शिला से पौन एक किमी पहले) के पास मिल गया।
यदि कोई दो घंटे नैन सरोवर रुकता है तो यह सम्भव ही नहीं कि फिर आगे वाले बंदो को वापसी में भीम बही तक वापसी में भी मिल सके।

नीरज जान-बूझकर इसीलिए रुका कि ये साथ चलेंगे तो इन्हें पानी देना पडेगा। उससे अच्छा है इन्हें वापसी लौटने की कह कर इनके थोडे पीछे चलूँगा।

यहां एक बात पर ध्यान दीजिएगा कि हमारे साथ 10 मिनट बहसबाजी करते समय तो सांंस नहीं फूल रहा था। हो सकता हो वो सांंस हमारे जाने के बाद गुस्से में फूला होगा..........

अरे भाई साधारण शरीफ बंदा जितने सफेद झूठ बोलेगा उतना ही झूठ के जाल में फंसता है।

वापसी में नीरज से मिलने के बाद मेरी व विपिन की गति कम हो गयी थी। ताकि नीरज वापसी में हम तक पार्वती बाग तक पहुंच जाये।
पार्वती बाग हमनें थोडी देर विश्राम किया। कुछ खाया पिया। तब तक नीरज भी आ गया था।


.............अब आखिरी आवश्यक संदेश...............

सहानुभूति पाने के लिए कुछ भी लिख दो,
सच यही है कि पूरी श्रीखंड महादेव यात्रा में कही भी ऐसा नहीं होता है कि कोई आधा घंटा तो बहुत दूर की बात, 10 मिनट भी अकेले चलता रहे।
आते-जाते कोई न कोई अवश्य मिलेगा।

आखिरी में सहानुभूति पाने के लिए फिर झूठ कि राहुल की मृत्यु पर मनघडंत कहानी बनायी है।
उस समय के अखबार और स्कीनशाट देखिए कि इन्होंने दो चार के गैंग ने मिलकर क्या-क्या सफाई बनाई थी।

हद तो तब हुई थी जब राहुल के पिताजी-भाई वहां पहाडों में राहुल कुमार की लाश ढूंढने में पुलिस टीम के साथ भटकते फिर रहे थे।
खोजी दस्ता शायद दो बार असफल होकर लौट आया था।
और हाँ,
जिस रास्ते आपकी तथाकथित सोलो ट्रैवलर टीम के सभी सोलो सदस्य सकुशल लौट आये थे।
वो तो शुक्र है लोगों को पता है कि solo और team में क्या अन्तर है......

सोलो ट्रेवलर टीम के सदस्य थे।

नीरज जाट/ नीरज मुसाफिर,
नीरज की पत्नी, नीरज का भाई व नीरज के एक या दो खास दोस्त।
अरे हाँ मरने वाला राहुल कुमार तो रह ही गया वो भी इस सोलो टीम का अकेले जाने वाला सोलो सदस्य था।

किसी बंदे ने सोलो की एक नयी परिभाषा बनाने की असफल कोशिश में साबित करना चाहा कि पति, पत्नी, देवर और खास दोस्त साथ जाये तो सोलो solo कहलाते है।

और इन सभी सोलो के साथ एक पुरस्कार विजेता बंदा साथ जाये तो वो भी सोलो कहलाता है।

किस्मत अच्छी थी या पैसों का खेल। ये तो भोलेनाथ जाने या कहे, देरी होने से लाश सडने से मामला ठंडा पडता गया।
इंसानियत नाम की जरा भी चीज इन सभी solo के मुखिया में होती तो मणिमहेश वाली अपनी यादगार यात्रा की तुलना श्रीखंड यात्रा से न करते।


.........आखिरी में कुछ आवश्यक चंद बाते..........

मुझे घर आने का निमंत्रण दिया है। इससे लगता है कि भूतकाल की गलतियां शायद भविष्य में न दोहराया जायेगा।

गलती बोलकर भविष्य में न दोहराने की बात कहते तो मैं भागा-भागा तुम्हारे पास पहुंच गया होता।

सोचो कितना बुरा लगता है जब लोग कहते है तुम्हारा तो सबसे खास दोस्त है। तुम समझा नहीं सकते।

मैंने नीरज को कभी दोस्त नहीं माना...
नीरज मेरे छोटे भाई जैसा है।

समस्या समझाने की है।
कैसे समझाऊ, छोटे भाई को जो दो-चार बंदों के कारण पूरे हरियाणा को सार्वजनिक रुप से शराबी घोषित कर दे।

कोई इज्जत देकर समय निकाल कर अपनी गाडी से घूमाये तो उस पर अपहरण की शिकायत सत्यपाल चाहर तक भिजवा दे।
सत्यपाल चाहर क्या चम्बल से डकैत भिजवा छुडवायेगा।

साथ जाने वाले पर बुरी नियत से छेडखानी का सार्वजनिक आरोप लगा दो। शायद हल्दीराम ही नाम था।
कैसे उस बेचारे की बेइज्जती की थी कि बंदा नेट की दुनिया से ही गायब हो गया।

घर आने वाले किसी मेहमान पर नहाने कर जाने का सार्वजनिक ताना तक मार दो।
कि हमारे घर को सार्वजनिक शौचालय बना रखा है लोगों ने।

एक नहीं दर्जनों किस्से लोगों के साथ कर चुके हो। आखिर हर चीज का अन्त आता है।

कहने को तो बहुत है।
ये ऊपर जो लिखा है ये सब पुराने पाठक लोग जानते है।
क्योंकि आपने स्वयं इसके बारे में लिखा हुआ है।


..............छोड दो ये विवादित व्यवहार.............

खैर..
निमंत्रण दिया, अच्छा लगा,

मेरी नीरज से कोई निजी दुश्मनी नहीं है।
नीरज तो अपना है। किसी पराये से भी नहीं है।

कुछ वर्ष पहले लोगों से दान मांगकर इकट्ठा रुपयों से घूमने के लिए की गयी हवाई यात्रा करने को लेकर मैंने घुमक्कड़ी का केजरीवाल बोलकर सावधान किया था। तो बुरा मान गया था।

मैं लापरवाही और साथियों के साथ अडियल रवैया रखने की आदत के खिलाफ हमेशा रहूंगा।

छोटे भाई हो, पहले भी हम एक दूसरे के घर आते रहे है। भविष्य में फिर आ सकते है।

जानबूझकर सहानुभूति प्राप्ति का यह कुटिल खेल बंद करो।
जो गलती हुई है उसे स्वीकार करो।
जो बात हुई नहीं हो, उसका उदाहरण मत दो।

और जो मुँह पर सच कहते है उनकी सुनना की आदत डालो।
मीठी छुरी रुपी चमचे कभी भला नहीं करते।

झूठे प्रशंसक कडुवा सच नहीं बता सकते।
कडुवे प्रशंसक सही होते है।

ये सही को सही और गलत को गलत ही कहेंगे।

पहले भी कहा था जब केजरीवाल की तरह चंदा लेकर हवाई जहाज से श्रीनगर जांस्कर आदि घूमते थे।

चलो अच्छा है खुशी हुई कि अब चंदे के धंधे को छोड लोगों को घूमाने का काम आरम्भ किया है।

अब भी बडा भाई मानता है तो सीधे मुझसे बात कर सकता था।
सहानुभूति के लिए झूठी फेसबुक पोस्ट का सहारा नहीं लेना था।
अब भी समय है।
छोड दे वो गलियां, जहाँ कोई सच न बता रहे हो।
लौट आ मेरे छोटे भाई,

सुबह का भटका शाम को घर आ जाये तो भटका नहीं कहते।
बच्चे भी पूछते है नीरज चाचा लोनी बार्डर तो आते थे। जगतपुर एक बार भी नहीं आये।
अब तो उनकी शादी भी हो गयी है।

अब नया घर जगतपुर, वजीराबाद में है, यह पता चल ही गया होगा।
बहु के हाथ का खाना अवश्य खायेंगे।

वैसे मैं तो बहु से शादी से पहले फ्लैट पर मिल चुका हूँ।
अब देवरानी-जेठानी की मुलाकात बाकी है।

साथ आइसक्रीम खाये बहुत दिन हो गये।
मोबाइल नम्बर न हो तो यह रहा. 9716768680
किसी तीसरे पक्ष की जरूरत नहीं।
यह हम दो भाईयों की आपसी बात है।

यदि कोई भाई शालीनता से अपने विचार रखता है तो उसका स्वागत है।
यदि मैंने कुछ गलत कह दिया हो तो मेरी गलती सुधारने में सहयोग करे।
वायदा है आज तक किसी को अपशब्द नहीं कहे है तो अब भी नहीं कहने वाला।

यह स्क्रीन शाट नीरज के ब्लॉग का है जो नैन सरोवर विवाद के बारे में स्वयं लिखा है।
यह मेरे ब्लॉग का है जो लडकी की मौत के बारे में लिखा है।
नीरज के ब्लॉग की भाषा देखिए, झूठ देखिए पहली दो लाइनों में क्या लिखा है..
नितिन के बारे में झूठ की पोल नीरज के ब्लॉग से स्वयं देखिए।
नितिन के बारे में बताये गये झूठ का दूसरा विवरण, नीरज ब्लॉग पर लिखता कुछ है फेसबुक पर सहानुभूति के लिए बचाव में लिखता कुछ है......
झूठ पर झूठ बोलना छोडो। मुझे व विपिन को पीने के बोतल से पानी तक तो दे ना सके....
अब बताये कि जिसे खतरनाक जगह बताया है वो सिर्फ चढने में ही खतरनाक थी उतराई में खतरे समाप्त हो गये थे....।
लो दोस्तों, ये आखिरी फोटो भी, 9 साल पहले 2011 मेंं लिखा गया ब्लॉग है। 
अब फैसला आप के हाथों में, 
अपने बचाव में आदमी आखिर कितना झूठ बोलता है।
सिर्फ एक गलती मान लेता कि भविष्य में अब दुबारा ऐसा नहीं होने दूंगा।
देखते है भविष्य में सुधार होता है या नहीं....


4 टिप्‍पणियां:

  1. संदीप जी राम राम सच झूट का तो पता नही पर मुझे तो आप दोनो ही अच्छे लगते हो !

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  2. सर मै भी जाट हू और जाट गुरूप मै शामिल होना चाहती हू

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  3. Yakeen nhi ho rha h ye sb neeraj musafir k bare mein h, ye ghumakkadi h ya kisi ko peechhe chhodne ki race ya fir kuchh or😯

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