मथुरा-वृंदावन, भरतपुर-डीग यात्रा-01 लेखक -SANDEEP PANWAR
इस यात्रा में आपको मथुरा-वृंदावन के मुख्य दर्शनीय
स्थलों की यात्रा करायी जा रही है। मथुरा-वृंदावन के उपरांत आपको महाराजा सूरजमल
का भरतपुर वाला अजेय लोहागढ किला व महाराजा
सूरजमल का अन्य महल डीग जल महल भी घूमाया जायेगा। इस यात्रा को
आरम्भ से पढने के लिये यहाँ क्लिक करना न
भूले। इस लेख की यात्रा दिनांक 10-09-2016 को की गयी थी।
MATHURA-VRINDAVAN TEMPLE TOUR
मथुरा-वृंदावन
की सैर, मुख्य मन्दिरों के दर्शन
मथुरा यात्रा का ताना-बाना देहरादून यात्रा के समय ही बुना जा चुका था। जैसे ही
देहरादून यात्रा से वापिस आये, वैसे ही एक नई यात्रा पर विचार-विमर्श हुआ। आखिरकार
मथुरा पर सहमति बन गयी। इस यात्रा में कुल 12
दोस्त एक जगह इकट्ठे हो गये।
१.
सबसे दूर से आने वाले दोस्त का नाम महेश गौतम जी, (कोटा
के पास बाराँ) सबसे पहले लिख रहा हूँ।
२.
इनके बाद जयपुर के पास अजीतगढ के रहने वाले अनिल बांगड
भाई का नाम आता है। अनिल भाई के साथ उनके भाई व एक दोस्त भी साथ आये थे।
३.
गुरुदेव सत्यपाल चाहर जी धौलपुर राजस्थान से आये थे।
४.
पानीपत से सचिन जांगडा जी अपनी बाइक पर आये थे।
५.
मेरठ से डाक्टर अजय त्यागी जी भी बाइक से ही मथुरा पहुँचे
थे।०
६.
दिल्ली से हम चार यार मथुरा पहुँचे थे। दिल्ली से आने
वालों का नाम राकेश बिश्नोई, गाडी मालिक अनिल दीक्षित, अखिलेश कुमार व संदीप
पवाँर।
७.
मथुरा से हमारे साथ दो दिन तक घूमने वाले दोस्तों के नाम
है नरेश चौधरी, के के चौधरी व के के भाई के बडे भाई भी हमारे
साथ घूमे।
८.
मथुरा में बाबा रामदेव जी के संस्थान में डाक्टर श्याम
सुन्दर जी एक दिन पहले ही नरेश भाई के यहाँ पहुँच चुके थे। अगले दिन दोपहर तक
हमारे साथ रहे थे।
परिचय का काम हुआ पूरा। अब यात्रा की शुरुआत करते है। तय
हुआ था कि सभी 10-09-2016 को नरेश भाई के गाँव में सुबह-सुबह
पहुँच जायेंगे। पहला दिन मथुरा में गोवर्धन परिक्रमा करने का विचार बनाया हुआ था।
हम दिल्ली से चार साथी अनिल दीक्षित भाई की तवेरा गाडी
में सवार होकर मथुरा पहुँचने वाले थे। अनिल भाई दिल्ली व गुडगाँव में गाडी चलाते
है। राकेश बिश्नोई को छतरपुर मन्दिर से बोटनिकल गार्डन स्थित मैट्रों स्टेशन पहुँचना
है। जबकि मुझे व अखिलेश को दिल्ली विश्वविधालय से मैट्रों में सवार होकर बोटनिकल
गार्डन पहुँचना है। अधिकतर स्थानों से अंतिम मैट्रों रात 11 बजे प्रस्थान कर देती है। इसलिये
हम सभी अंतिम मैट्रों छूटने से पहले ही मैट्रो में सवार हो चुके है।
राकेश भाई हमें राजीव चौक पर ही मिल गये। वहाँ से हम
तीनों एक साथ बोटनिकल गार्डन पहुँचे। बोटनिकल गार्डन से बाहर निकल कर थोडी दूर
पैदल चलकर मुख्य सडक पर पहुँचे। यहाँ पर आधा घंटा प्रतीक्षा करने के बाद एक रोडवेज
बस मिली। यह बस लम्बे रुट की है। कंडक्टर ने चालक से बात कर हमें परी चौक तक बैठा
लिया। परी चौक तक उसने 81 रुपये किराया लिया।
बोटनिकल गार्डन से परी चौक बहुत दूर है मैं समझ रहा था कि
होगा 10-12 किमी। लगभग 30 मिनट बस दौडती रही, तब परे चौक
आया। रात को 12 बजे नौएडा के परी चौक पर मिलना तय
हुआ था। वहाँ एक दोस्त रुपेश शर्मा होटल व्यवसाय से जुडे हुए है। रुपेश भाई की
डयूटी रात 12 बजे तक होती है। रुपेश भाई अपनी मारुति ओमनी लेकर परी चौक पर
पहले ही तैयार थे। बस हमें छोडकर परी चौक से वापिस मुड गयी। हम रुपेश भाई की ओमनी
में सवार होकर उनके होटल/रिजार्ट पहुँचे।
अनिल भाई लगभग तीन घंटे देरी से हमारे पास पहुँचे। तीन
घंटों में हमने रुपेश भाई के यहाँ आइसक्रीम पार्टी भी कर डाली। रुपेश भाई के होटल
में बिलियर्ड रुम भी है। थोडी देर उसमें हाथ आजमाये। पहला तीर तो तुक्के से निशाने
पर बैठा, लेकिन उसके बाद सारी कोशिश बेकार गयी। अंगूर खट्टे देखकर छोडने पडे।
राकेश भाई को नीन्द सताने लगी थी उन्होंने दो घंटे की
झपकी सोफे पर ही ले डाली। मैं और रुपेश भाई कुछ देर रिजार्ट के पार्क में टहल आये।
थोडी देर सडक पर खडे होकर मैट्रों के निर्माण कार्य को निहारते रहे। विदेशी तर्ज
पर बन रहे नौएडा को रात को समझने की कोशिश होती रही।
खैर तीन बजे अनिल अपनी गडडी लेकर पहुँच जाते है तो राकेश
भाई को कुम्भकर्ण नीन्द से उठाया गया। थोडी देर रुकने के बाद अनिल हमें लेकर मथुरा
की ओर चल दिया। आज से पहले मैने यमुना एक्सप्रैस वे नहीं देखा था। आज पहली बार
यमुना एक्सप्रैस वे पर यात्रा करने का मौका मिला है। इस मार्ग पर गाडियों की भीड
नाममात्र की दिखाई दे रही है। इसका कारण यही लगा कि इस मार्ग पर चलने के लिये जेब
ढीली करनी पडती है। हमने मथुरा तक का टोल चुकाया था जो शायद 275/- रु के आसपास था।
मथुरा पहुँचने से पहले उजाल होने लगा था। पूरी रात नीन्द
नहीं आयी थी। नरेश भाई ने बोला था कि मथुरा कट से नीचे उतरना है। हम मथुरा से पहले
वृन्दावन वाले कट से इस हाइवे को छोड बैठे। हाईवे के नीचे से निकलते हुए मथुरा-हाथरस
वाली रेलवे लाईन को दो बार आर-पार करते हुए नरेश भाई के गाँव पहुँचे। मथुरा कट से
आते तो इस रेलवे लाइन के साथ-साथ ही मथुरा की ओर जाते। गाँव के ठीक बाहर ही नरेश
भाई ने हमारी गाडी किनारे पर रुकवा दी।
गाडी से उतरकर नरेश भाई के घर पहुँचे। यहाँ श्याम सुन्दर
जी पहले ही मौजूद मिले। श्याम सुन्दर भाई से पुरानी दिल्ली स्टेशन पर पहले एक बार
विजय कुकरेती के गाँव जाते समय मुलाकात हो चुकी है। वहाँ रुपेश भाई से भी पहली बार मुलाकात हुई थी।
रुपेश भाई की लायी बालूशाही का स्वाद आज भी याद है। आज रुपेश भाई की आइसक्रीम का
स्वाद ताजा है। रुपेश भाई ने आज भी बालूशाही का एक डिब्बा हमें चलते समय सौंप दिया
था। मथुरा में उन बालूशाही का काम तमाम किया जायेगा।
एक दिन पहले ही नरेश भाई के यहाँ बेटे का जन्मदिन/छटी
मनाया गया है। जिसमें उन्होंने विशेष प्रकार का एक लडडू बनाया गया था। सुबह का
नाश्ता हमने उसी लडडू के साथ किया था। नाश्ते से पहले नहाने के लिये गाँव के बाहर
एक घेर में गये। घेर गाँव में उस स्थान को बोला जाता है जहाँ गाँव के पुरुष आपस
में बैठकर गपशप करते है। घरों को केवल महिलाओं व पारिवारिक सदस्यों तक ही सीमित
रखा जाता है। घेर में पालतू पशु भी रखे जाते है। नरेश भाई से आज पहली मुलाकात उनके गाँव में हुई
है।
हम नहा-धोकर एक बार फिर घर पहुँच गये। दो बाइक वाले साथी
सचिन जांगडा जो पानीपत से आ रहे है व अजय त्यागी जो मेरठ से आ रहे है। दोनों से
बात की तो पता लगा कि उन्हे अभी दो घंटे का समय लग जायेगा। इसलिये तय हुआ कि एक
घंटे बाद हम लोग नरेश भाई के गाँव से यात्रा की शुरुआत करेंगे। बाइक वाले भाई हमें
सीधे वृन्दावन के मन्दिरों में मिलेंगे। पहले तय हुआ था कि गोवर्धन परिक्रमा
करेंगे। लेकिन बाइक वाले साथियों के देरी से पहुँचने के कारण तय हुआ कि परिक्रमा
फिर कभी देखेंगे। आज मन्दिरों के दर्शन करते है। जहाँ बाइक वाले मिल जायेंगे। वहाँ
से आगे साथ-साथ चलेंगे। यमुना नदी का पुल पार ही किया था कि मेरठ वाले बाइकर अजय
त्यागी जी आ गये। अजय भाई से सबकी मुलाकात करवाई।
एक गाडी में हम दिल्ली से आये थे दूसरी गाडी के के भाई ले
आये। इस तरह सभी लोग आसानी से घूमने के लिये निकल पडे। मन्दिर से करीब एक किमी
पहले बडी पार्किंग है यहाँ दोनों कारे व बाइक लगा दी गयी। पार्किंग से आगे बढते ही
जबरदस्त भीड देखने को मिलती है। शुक्र रहा कि पार्किंग खाली मिल गयी नहीं तो गाडी
को वापिस लेकर जाना पडता।
पार्किंग से आगे बढते ही एक बन्दा मिला उसने राधे-राधे
नाम की मोहर बनवा रखी थी वह हर किसी के माथे पर हल्दी की राधे नाम की मोहर लगा रहा
था। लगे हाथ हमने भी राधे की मोहर लगवा कर अपने आप को राधेमय कर लिया।
बांके
बिहारी मन्दिर
के दर्शन
सबसे पहले हम लोग बांके बिहारी मंन्दिर की ओर चल रहे है। यहाँ
मैं सपरिवार कुछ वर्ष पहले आ चुका हूँ। आपको याद हो तो जब मैं आगरा का ताजमहल
देखने गया था। जहाँ आगरा के रहने वाले रितेश गुप्ता व इन्दौर के रहने वाले मुकेश
भालसे के परिवारों के साथ ताजमहल देखा था। उस रात वापसी में मैं वृन्दावन में ही
ठहरा था। अगले दिन वृन्दावन छान मारा था। बांके बिहारी जी यहाँ का सबसे ज्यादा
मान्यता प्राप्त मन्दिर है। वृन्दावन आने वाला शायद ही कोई ऐसा यात्री मिलेगा जो
यहाँ न आया हो। अपनी चप्पले बाहर ही निकाल दी थी। जिससे दर्शन करने में आसानी हो
गयी। दर्शन करने के बाद जांगडा भाई का फोन आया कि कहाँ हो? उन्हे बताया कि हम अभी
निधि वन जा रहे है।
शाह जी
मन्दिर के दर्शन
निधी वन के बाद शाहजी मन्दिर की ओर चलते है। शाहजी मन्दिर
में लगे बलखाते खम्बे देखकर थोडा आश्चर्य हुआ। राधा कृष्ण को समर्पित इस मन्दिर
में पेंटिंग व नक्काशी वाली गैलरी देखकर मन खुश हो गया। वैसे तो मथुरा वृन्दावन
में 5000 के आसपास मन्दिर बताये जाते है
लेकिन उनमें से याद रखने लायक दर्जन भर ही है।
निधी
वन की सैर
निधी वन में प्रवेश करते समय भयंकर भीड से जूझना पडा। भीड
ऐसी कि जैसे लाखों लोगों की कोई रैली छूटी हो और भीड इसी गली में मोड दी गयी हो।
निधी वन के बारे में पता लगा कि यह एक रहस्यमयी जगह है। कहते है कि हर रोज रात को
श्रीकृष्ण व राधा जी यहाँ रास लीला करने आते है। इस वन में एक कमरा भी बनाया गया
है जिसे रंग महल नाम दिया गया है। इस कमरे में रोज बिस्तर भी लगाया जाता है।
श्रीकृष्ण जी की पसन्दीदा मक्खन मिश्री यहाँ रखी जाती है।
अगले दिन सुबह पलंग देखा जाता है तो उसे देखकर लगता है कि
जैसे रात को उस पर कोई सोया हो। यहाँ जो पौधे है वे बहुत ज्यादा ऊँचे नहीं है।
टेडे-मेडे तने वाले पौधे है। निधी वन में रात को ठहरना मना है बताते है कि यदि कोई
रात में यहाँ रुक जायेगा तो वह अंधा व पागल हो जायेगा। चूंकि मैं नास्तिक किस्म का
प्राणी हूँ ऐसी कहानियाँ पर मुझे विश्वास नहीं होता है। इसके चारों ओर आबादी है
क्या वे लोग अपनी छतों से इस वन को रात में नहीं देखते होंगे”? कहते है कि इस 2 एकड वन में जो पौधे है वे सब
श्रीकृष्ण की रानियाँ है। कहते है यहाँ 16000
पौधे है। इतने कम क्षेत्र में 5000 पौधे उग जाये वो ही बडी बात होगी।
कहते है कि रात को बन्दर भी यहाँ नहीं टिकते है। ध्यान से देखे तो पायेंगे कि यहाँ
के पौधे इतने मजबूत ब बडे है ही नहीं कि उनपर बन्दर रात्रि में विश्राम कर सके।
यदि रात में इसे देखने वाला अंधा हो जाता तो इसके आसपास
कोई घर न होता। जो पौधे यहाँ है ऐसे पौधे यमुना किनारे अक्सर देखने को मिल जाते
है।
जलेबी
समौसा
दो तीन मन्दिर के दर्शन तो हो गये है चलो आगे बढने से
पहले कुछ खा-पी लिया जाये। पेट में कुछ जायेगा तो घूमने का आनन्द भी आयेगा। सबसे
पहले जलेबी खायी गयी। जलेबी वाले के यहाँ काफी भीड थी जिस कारण जलेबी मिलने में
समय लगा। फिर समौसे पर धावा बोल दिया गया। गली ज्यादा बडी नहीं थी। हम लगभग एक
दर्जन हो गये थे। एक साथ दुकान के आगे इतने लोग खडे हो तो वहाँ से निकलने वालों को
परेशानी होने लगी। कुछ बन्दर हमें खाते देख मौके की तलाश में दिखाई दे रहे थे।
बन्दरों को चौकन्ना होते देख हम भी सावधान हो गये। बन्दर शैतान होता है। डराकर
भोजन झपट ले जाता है।
रंग जी
मन्दिर
जलेबी समौसा चट करने के बाद अगले मन्दिर की ओर बढते है। रंग
जी बोले भगवान विष्ण का मन्दिर पहली नजर में देखने पर दक्षिण भारत के मन्दिरों की
याद दिला देता है। यह द्रविड वास्तु निर्माण शैली का बना मन्दिर है। मन्दिर के
बाहर एक कुन्ड है। मन्दिर के मुख्य आंगन में एक बडा सा 50 फीट का स्तम्भ है।
गोविंद
देव मन्दिर
यह यहाँ का ऐसा मन्दिर मन्दिर है जो अधूरा बना हुआ है।
कहते है कि इसे भूतों ने एक रात में बनाया था। भूतों वाला झूठ क्यों चलाया गया। यह
समझ नहीं आया। यदि भूतों ने ही बनाना था तो वे तो पूरा बना कर मानते। जबकि
सच्च्चाई यह है कि यह सात साल में बनकर तैयार हो पाया था। इसका ऊपरी हिस्सा मुस्लिम
शासक औरंगजेब ने तुडवा दिया था। शुक्र यह रहा कि मथुरा राम जन्म भूमि व काशी
विश्वनाथ मन्दिर की तरह इसे मस्जिद नहीं बनाया गया। लगता है कि इसकी ऊँचाई ज्यादा
होने से इसे मस्जिद जैसी छत में नहीं बदला जा सका। इस मन्दिर की मुख्य मूर्ति को
जयपुर के गोविन्द देव मन्दिर में स्थापित कर दिया गया था। जयपुर के सिटी पैलेस के
पीछे जयनिवास उधान के सूर्य महल में स्थापित है। जयपुर के राजा कुछ अन्य राजपूतों
की तरह मुगलों के यहाँ सरदार/सेनापति का काम करते थे।
इस्कान
मन्दिर
इस्कान मन्दिर देखने की इच्छा थी लेकिन समय की कमी के
कारण छोड दिया गया। इसके बारे में बताया जाता है यह मन्दिर ठीक उसी स्थान पर बनाया
गया है जहाँ श्रीकृष्ण बचपन में गाय चराने आया करते व खेला करते थे। आजकल यहाँ
वैदिक धर्म व गीता का अधय्यन संस्कृत व अंग्रेजी में कराया जाता है।
सचिन जांगडा से बात हुई। दोपहर होने जा रही थी। हमारा
वृंदावन समाप्त होने जा रहा है। जांगडा से कहा कि तुम चन्द्रोदय मन्दिर या वैष्णों
मन्दिर पहुँचो। हम लोग दस मिनट में वही पहुँच रहे है। कोटा से आने वाले महेश गौतम से
बात हुई, उन्हे भी वैष्णों देवी मन्दिर मिलने की बोल दी।
चन्द्रोदय
मन्दिर
इस मन्दिर का निर्माण कार्य अभी होना बाकि है। जब यह
मन्दिर बनकर तैयार हो जायेगा तो दुनिया का सबसे ऊँचा मन्दिर कहलायेगा। मन्दिर का
नक्शा देखकर अंदाजा हो गया कि बहुत भव्य ईमारत बनाने की तैयारी हो रही है।
मन्दिरों में सनातन धर्म प्रेमी दिल खोल कर दान देते है जिस कारण आजकल यह सबसे
अच्छा बिजनेस बन गया है। भारत में विदेशी संस्था भी मन्दिरों का निर्माण कार्य
करने लगी है। इस्कान उसी तरह का समूह लगता है। वाह रे भगवान, तुझे भी नहीं छोडा तो
किसे छोडेंगे....
यहाँ हमें एक विशाल रसोई देखने का मौका मिला। इस रसोई में
एक साथ हजारों लोगों के लिये भोजन तैयार होता है। सब कार्य आधुनिक मशीनों द्वारा
किया जा रहा था। जिस समय हम वहाँ गये थे उस समय वहाँ सब्जी बनायी जा रही थी।
सब्जी बनाने के लिये बडे-बडे कढाह मौजूद है। जिनमें सब्जी
छीलने से लेकर उठाकर डालने तक सब कुछ आधुनिक मशीनों से कार्य हो रहा था। बात रोटी
बनाने की आती है तो यहाँ रोटी बाने के लिये एक भी आदमी काम करता नहीं दिखा। आटे की
पूरी की पूरी बोरी एक बार में मशीन में डाल दी जाती है। मशीन अपने-आप पानी लेकर
उसे गूँथ भी देती है। गूँथने के बाद आटे को फैला कर मशीन में आगे भेज दिया जाता
है। मशीन में फैला आटा एल लम्बी चादर के रुप में आगे बढता है। आटे की लम्बी चादर
को गोल-गोल रोटी में काट कर मशीन वापिस घूमती है तो तवा रुपी लोहे की चददर पर रोटी
की सिकाई होती है। यहाँ से आगे रोटी पलटते हुए जालीदार चददर पर गिरती है जिसकी
सिकाई होने पर सभी रोटियाँ एक बाक्स में समाती जाती है।
इस लेख की लम्बाई ज्यादा हो रही है। इस लेख में अभी तक
कुल शब्द 2600 हो चुके है। (मथुरा के शेष स्थल राधा
रमण रेती मन्दिर, केसी घाट, बलदेव जी का मन्दिर, रसखान की समाधी, चौरासी खम्बा आदि
अगले लेख में देखते हुए भरतपुर जायेंगे।
गजब विवरण यात्रा की यादें ताज़ा कर दी आपने एक बार फिर से देवता जी
जवाब देंहटाएंविवरण ओर चित्र शानदार देवताजी,
जवाब देंहटाएंविस्तृत जानकारी अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा
बहुत ही सुंदर लेख संदिप भाई जी।
जवाब देंहटाएंवृंदावन व मथुरा है ही ऐसी जगह कि हम महीना भर भी हर एक मंदिर को नही देख पाएंगे।
सभी चित्र सुंदर है।
एक चित्र चन्द्रोदय मन्दिर के model का भी लगाना चाहिये था, सोने पर सुहागा हो जाता जी
काफी समय पहले यह जाना हुए था पर तब भी इतना ज्ञान नहीं था पुरानी यदि पढ़ कर ताजा हो गई है बहुत साल हो गए कुछ मंदिर जनी phechani लगी
जवाब देंहटाएंब्लॉग लंबा नहीं हुआ है देवता जी अभी तो पढ़ने में मस्त था अपने खतम कर दिया
बेहद ही खूबसूरती के साथ वर्णन किया हैं
जवाब देंहटाएंपुरानी यादें .....अपनो के साथ......शानदार यात्रा लेख......
जवाब देंहटाएंबढिया लेख है संदीप भाई
जवाब देंहटाएंनिजी वन के फोटो देखने की ईछा है
रोटी बढिया पकायी आपने
बहुत बढ़िया संदीप भाई, वृन्दावन कई बार जाना हुआ है ! आपका लेख पढ़कर यादें ताजा हो गई, अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा !
जवाब देंहटाएंबहुत खुब संदीप भाई। मजा आ गया ,गांव का चित्रण ,रोटी बनाने वाली मशीन की कार्यप्रणाली जानकर अच्छा लगा। मन्दिरो के बारे में बताने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंसंक्षिप्त मगर सूंदर वर्णन
जवाब देंहटाएंHi Blogger,
जवाब देंहटाएंNice Posting. Keep Sharing...
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