दोस्तों, आज आपको किसी घुमक्कड स्थल के भ्रमण की जगह, एक घुमक्कड दोस्त के जीवन का लेखा-जोखा दिखाता हूँ। इन दोस्त की जीवन गाथा इनकी खुद की लिखी हुई है। यह गाथा हजारों लोगों को प्रेरणा देने का कार्य भी करेगी। ज्यादा कुछ न लिखते हुए, आप नीचे दिये गये लेख को पढिये और जानिये कि कैसे-कैसे झटकों के बाद भी एक साधारण सा मानव जीवन की भयंकर लहरों से लडकर अपनी मंजिल पा ही लेता है।
पहले आप्रेशन की तैयारी |
मेरा जन्म सन 1988 में हुआ था। जब मैंने होश सम्भाला तो पाया कि
पिता जी का एक छोटा सा पेट्रोल पंप था। हमारा पैट्रोल पम्प शाहपुर में मित्तल मार्किट के पास था, जो शामली
मुज़फ्फरनगर रोड पर एक छोटा सा कस्बा है। माता जी बहुत ही धार्मिक प्रवृति की है। आज
भी 2 घंटे सुबह व 2 घंटे शाम को पूजा करती है। पूरा परिवार सुबह 4 बजे उठ कर, नहा धो कर, पिता जी, मै और छोटा भाई
लगभग 6 बजे पेट्रोल पंप पहुच
जाते थे।
हम वहाँ कुछ घंटे क्रिकेट खेल कर पढने के लिये स्कूल चले जाते थे। पिता जी को भी क्रिकेट का बहुत शौक था। वह भी अच्छा खेलते थे। इस तरह देखा जाये तो मुझे यह शौक विरासत मे मिला है। मै भी ठीक-ठाक बैटिंग और बोलिंग दोनों ही कर लेता हूँ। क्रिकेट खेलने का लाभ यह हुआ कि मैं अपने मेडिकल कॉलेज की टीम में कई साल से ओपनिंग करता आ रहा हूँ।
खैर, जब मैं सरस्वती शिशु मंदिर में चतुर्थ कक्षा में था। एक रोज जब स्कूल से घर आया तो देखा कि पिता जी नीचे लेटे हुए है। माता जी रो रही है। तब पिताजी को पैरालिसिस का पहला अटैक आया था। उनके शरीर का आधा हिस्सा paralysed हो गया था। अगले 3 साल तक लगातार पिता जी का इलाज चलता रहा। तीन साल के इलाज के दौरान लगातार खर्च होता गया और जो भी जमा-पूँजी गहने वगैरह हमारे पास थे, सब बिक गये तो माताजी सबको लेकर गॉव वापिस आ गयी। गाँव में लगभग 6 महीने रहने के दौरान पिता जी काफी हद तक ठीक हो गए तो उन्होंने पुनः शाहपुर आकर, खाद की एक एजेंसी खोल ली। किस्मत से यह काम भी जम गया। हम लोग शीघ्र ही फिर से खाते-पीते हो गए। लगभग 2 साल तक सब ठीक रहा। अचानक, पिता जी को दूसरी बार पैरालिसिस का अटैक आया। इसका इलाज भी 2 साल तक चला। लम्बी बीमारी से परिवार की आर्थिक स्थिति का वही बुरा हाल हो गया, जो हमारे साथ पहले भी हो चुका था।
हम वहाँ कुछ घंटे क्रिकेट खेल कर पढने के लिये स्कूल चले जाते थे। पिता जी को भी क्रिकेट का बहुत शौक था। वह भी अच्छा खेलते थे। इस तरह देखा जाये तो मुझे यह शौक विरासत मे मिला है। मै भी ठीक-ठाक बैटिंग और बोलिंग दोनों ही कर लेता हूँ। क्रिकेट खेलने का लाभ यह हुआ कि मैं अपने मेडिकल कॉलेज की टीम में कई साल से ओपनिंग करता आ रहा हूँ।
खैर, जब मैं सरस्वती शिशु मंदिर में चतुर्थ कक्षा में था। एक रोज जब स्कूल से घर आया तो देखा कि पिता जी नीचे लेटे हुए है। माता जी रो रही है। तब पिताजी को पैरालिसिस का पहला अटैक आया था। उनके शरीर का आधा हिस्सा paralysed हो गया था। अगले 3 साल तक लगातार पिता जी का इलाज चलता रहा। तीन साल के इलाज के दौरान लगातार खर्च होता गया और जो भी जमा-पूँजी गहने वगैरह हमारे पास थे, सब बिक गये तो माताजी सबको लेकर गॉव वापिस आ गयी। गाँव में लगभग 6 महीने रहने के दौरान पिता जी काफी हद तक ठीक हो गए तो उन्होंने पुनः शाहपुर आकर, खाद की एक एजेंसी खोल ली। किस्मत से यह काम भी जम गया। हम लोग शीघ्र ही फिर से खाते-पीते हो गए। लगभग 2 साल तक सब ठीक रहा। अचानक, पिता जी को दूसरी बार पैरालिसिस का अटैक आया। इसका इलाज भी 2 साल तक चला। लम्बी बीमारी से परिवार की आर्थिक स्थिति का वही बुरा हाल हो गया, जो हमारे साथ पहले भी हो चुका था।
अब मैं कक्षा 9 में पहुँच चुका था तो मेरी माताजी ने मुझे अपने डॉक्टर
चाचा के पास पढ़ने के लिए मेरठ भेज दिया। मेरे 2 चाचा डॉक्टर है। इस तरह देखा जाये तो मैं अपने
परिवार का पाँचवा डॉक्टर हूँ। (एक चाची व भाई भी डाक्टर ही है।)
मैंने कक्षा 9 मेरठ के गवर्नमेंट इंटर कॉलेज से पास
की है। खैर, माता जी के अथक
प्रयासों से पिता जी पुनः ठीक हुए। इस बार उन्होंने गाँव में ही गुड बनाने का क्रेशर खोल लिया। यह काम
भी शीघ्र जम गया तो उन्होंने मुझे गाँव में अपने पास बुला लिया। पिता जी क्रेशर में तैयार गुड को, हर महीने ट्रक
में लेकर पंजाब, गुजरात, या राजस्थान जाया करते थे। मैं भी कभी-कभी उनके साथ चला जाता
था। गुड बेचने के दौरान मैंने कई स्थलों का भ्रमण किया। यहाँ से मेरी घुमक्कड़ी की शुरुआत हुई थी।
12 वी कक्षा पास करने के
बाद, मै राजस्थान के कोटा में मेडिकल परीक्षा की तैयारी करने चला गया। इस साल फिर से पिता जी को पैरालिसिस का अटैक आया। घर की परिस्थिति ऐसी बनी कि मैं अपनी मेडिकल की तैयारी बीच मे छोड़ कर
वापस लौट आया। घर खर्च चलाने के मैंने एक स्कूल मे 1500 रुपये महीने की नौकरी कर ली। निजी स्कूल में पढाने के साथ ट्यूशन भी पढ़ाने लगा।
इसके दो साल बाद पिता जी व माता जी
से मेरी शादी के विषय़ पर विवाद हो गया। मैं गुस्से में घर छोड़ कर चला आया। शाम को पिता
जी को फ़ोन करके जानकारी दी कि जब मैं डॉक्टर बन जाऊंगा तो ही वापस घर आऊँगा। मैंने दिल्ली मे 6000/- रूपया महीने की एक नौकरी कर
ली। जिसमे मैं साइकिल पर घर-घर जाकर पत्रिकाएँ बेचता था। लगभग 8 महीने बाद, मुझे एक कॉल सेंटर मे 10000 रूपया महीने की नौकरी भी मिल गयी। अब इसके बाद मैंने घर आना-जाना भी
शुरू कर दिया। पिता जी ने इसके बाद मुझसे कभी बात नहीं की। मेरा और पिताजी का,
मेरे डॉक्टर बनने का सपना कही खो चुका था।
मै सिर्फ नौकरी पेशा बन कर रह गया था।
खैर, 1 साल बाद मुझे एक और काल सेंटर मे 18,000/- महीने की नौकरी मिली, जो 2 साल में बढ़ कर 28,000/- तक पहुँच गयी। सन 2011 में मैंने अपने छोटे भाई को अपने पास मेडिकल परीक्षा की तैयारी करने के लिए बुला लिया। मैंने
उसका एडमिशन कोचिंग संस्थान मे करा दिया। जहाँ उसे दिक्कत होती, मै भी पढ़ा देता था लेकिन उस साल
उसका सिलेक्शन नहीं हो पाया। अगले 6 महीने यू ही निकल गए। इस बीच
वो कोचिंग सेंटर बंद हो गया जहाँ भाई पढ रहा था।
मैंने अपने छोटे भाई
के लिए एक नया कोचिंग सेंटर तलाश किया। नये सर से टाइम लेकर में उनसे मिलने पहुँच गया। उन्होंने
मुझसे अनेक सवाल पूछे। जिनका मैंने जवाब दे दिया। वो खुश हो गए और आधी फीस पर पढ़ाने को
तैयार हो गए। अगले दिन उनका कॉल आया और पूछा की तुम क्यों नही आये? तो मैंंने कहा, "सर
मैं खुद के लिए नहीं, छोटे भाई के लिए आपके पास आया था।" तो सर ने कहा कि तुम भी तैयारी करो,
मैंने कहा, "सर इतने पैसे नही है कि दोनों भाईयों की फीस भर सकूँ। तो उन्होंने कहा कि नौकरी छोड़ दो, मै आधी फीस में ही तुम
दोनों भाइयों को पढ़ा दूंगा। मैंने एक महीने तक सोच-विचार कर नौकरी छोड़ कर मेडिकल की पढाई में लग गया। सन 2012 का मेडिकल परीक्षा का रिजल्ट आया तो उसमें मेरी 242 वी रैंक के साथ सेलेक्शन हो गया। मैंने पिता जी के नंबर पर काल
किया और हम दोनों काफी देर तक रोते रहे।
खैर, पिता जी की अस्वस्था
को देखते हुए, मैंने मेरठ मेडिकल कॉलेज चुना। मेरठ मेरे घर के पास था। अतः पिता
जी का इलाज भी वहाँ सम्भव हो जाता। मेरठ से देल्ही भी पास था। अतः खर्च चलाने के लिये मेरी नौकरी भी हो जाती। मेडिकल में एडमिशन लेने
के 3 महीने बाद ही पिता जी का
देहांत हो गया। मै बहुत परेशान हो गया था। इस कारण 2 महीने तक कॉलेज भी नहीं जा पाया।
मेरी एक पारिवारिक मित्र डाक्टर मधु जी की कोटद्वार के सिद्धबली बाबा मे बहुत श्रद्धा है। उन्होंने मुझे वहाँ जाने को बार-बार कहा। एक
दिन मैं कोटद्वार सिद्धबली दर्शन के लिये आया। फिर वहाँ से पौड़ी घूमने के लिए निकल गया। सतपुली से
आगे एक प्रेग्नेंट/गर्भवती औरत जीप में बैठी। जिसे ब्लीडिंग हो रही थी। उसे बहुत दर्द हो रहा
था। उसकी जितनी मदद हो सकती थी उतनी मदद की गयी।
बस यही टर्निंग पॉइंट था।
वापस कालेज आया और पढाई मे जुट गया। हर महीने जो दवाई इकठ्ठा होती थी उसे उत्तराखंड के दूर-दराज गाँव में जाकर दे आता था। आज भी ये सिलसिला कायम है। छोटे भाई का सिलेक्शन नही
हो पाया तो पिछले साल उसने तैयारी छोड़ दी
एक बहुत महत्वपुर्ण घटना तो रह ही गयी कि मेडिकल में एडमिशन के 1 महीने बाद पिता जी ने मेरी शादी अपने एक मित्र
की बेटी से करवा दी थी। जिसको उसके भाई ने सम्पति के लालच मे घर से निकाल दिया था। इस लड़की ने कठिनाइयों के समय मेरा जी जान से साथ दिया है।
अभी तक हमारे कोई बच्चा नहीं है। हम दोनों ने आपसी सहमति से तय
किया था कि बच्चे का विचार जीवन में कामयाबी के बाद ही आयेगा।
यह मेरी कहानी पिता जी
के जन्मदिवस पर उनको समर्पित है।
पिताजी व माताजी |
मेडिकल कालेज में पहला इनाम |
मेडिकल कालेज बैच मेट |
मेरा पहला मरीज |
घुमक्कडों के साथ कुछ पल |
Dr saab ki mehant aur lagan ko bahut samman ,jo unhone itni lagan se ye sab hasil kar paaye
जवाब देंहटाएंUnke mata ,pita ko bhi namaskar jinhone unka har samy saath diya
Bahut badhai ho aapke carrer ke liye
संघर्ष की ऐसी गाथा, वाकई हर एक के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी रहेगी। मित्र अजय त्यागी को जीवन में सदैव सफलता मिले।
जवाब देंहटाएंdr. shahb aapne fir ahsash dilwa diya ki sangresh karne walo ki kabhi haar nahi hoti .... maan gaye aapko bus aage bhi aap esse hi rahoge yahi umid hai aapse
जवाब देंहटाएंअजयभाई ने आजतक जो संघर्ष किया उसका मीठा फल उन्हें मिला,तुफनोंसे लड़ने वाले की कभी हार नहीं होती, डरनेवालोंकी नैय्या कभी पार नहीं होती,
जवाब देंहटाएंसलाम है डॉक्टर साहब
अजयभाई ने आजतक जो संघर्ष किया उसका मीठा फल उन्हें मिला,तुफनोंसे लड़ने वाले की कभी हार नहीं होती, डरनेवालोंकी नैय्या कभी पार नहीं होती,
जवाब देंहटाएंसलाम है डॉक्टर साहब
प्रेरणादायी आत्मकथा आपकी कहानी बहुत लोगों को प्रेरणा व कठिन समय में धैर्य से काम लेने की हिम्मत देगी बहुत कठिन समय झेलने के बाद सफ़लता की ख़ुशी कई गुणी होती है 👍💐💐
जवाब देंहटाएंअपने सारे ग़मों को ‘दृढ़ इच्छशक्ति’ में बदलकर जीवन में सतत संघर्ष करने के हौंसले को सलाम 🙏
जवाब देंहटाएंजिसने हार नहीं मानी जीत उसी की होती है
जवाब देंहटाएंडॉक्टर त्यागी जी को सलाम
महान सख्शियत वाले हमारे मित्र अजय जी को मेरा प्रणाम आपने दुःख भरे दिन बीते रे भैया अब सुख आयो रे गीत को आज सही साबित किया
जवाब देंहटाएंजीवन मे बहुत से ऐसे लम्हे आते है जी आदमी हतोत्साही हो जाता है और ऐसा होते आत्म विश्वास की कमी सोंचने समझने नही देता । पर इस आत्मकथा को पढ़कर ये सम्बल मिलता है कि विपरीत परिस्थिति में सकारात्मक संघर्ष नई ऊंचाइयों की ओर ले जाता है और डॉ अजय इसका प्रमाण है । बहुत बधाई और शुभकामनाय ।।। जाट देवता को साधुवाद ।।।।
जवाब देंहटाएंजाट भाई भावुक कर दिया अजय जी के जीवन ने, इंसान हैं या हिमालय जो हर मुसीबत में अटल खड़ा रहा । बहुत-बहुत धन्यवाद् ऐसे देव-पुरुष के बारें में रूबरू कराने के लिए । दुआ करता हूँ अजय जी एवेरेस्ट से भी ऊँची उंचाईयों पर जायें ।
जवाब देंहटाएंSandeep Bhai aapne bhahut achha kia ishko blog pr upload karke, ye sabhi logo k liye prerna ka source baneega... DR. tyagi aapke junun Aur sad-gi ko hands-off....
जवाब देंहटाएंमंजिल मिले ना मिले
जवाब देंहटाएंये तो मुकदर की बात है!
हम कोशिश भी ना करे
ये तो गलत बात है...
जिन्दगी जख्मो से भरी है,
वक्त को मरहम बनाना सीख लो,
हारना तो है एक दिन मौत से,
फिलहाल वक़्त के साथ जिन्दगी जीना सीख लो..!!
अजय भाई जी की एक सच्ची कहानी जैसे अजय भाई ने किसी मूवी का किरदार निभाया हो । अजय भाई आप हमेशा नई ऊंचाइयों को छुओ और आप बड़े नेकदिल इंसान है
आपका का ऋणी
उमेश
Sir ji aap ki story ham sabhi ko prerana deti rahegi.
जवाब देंहटाएंसेल्यूट अजय आपको ओर आपकी मेहनत को 👍ईश्वर आपके जीवन में उन्नति और तरक्की दे
जवाब देंहटाएंनमन अजय भाई आपके हौसले को।
जवाब देंहटाएंबुलंद होंसले हो तो ज़ाहिर है मिलना मंज़िल का.. जुनून हो तो ख्वाब बदलते हैं हकीक़त में खुद-ब खुद.......डॉ साब आपके लिए.....साभार संदीप भाई
जवाब देंहटाएंबुलंद होंसले हो तो ज़ाहिर है मिलना मंज़िल का.. जुनून हो तो ख्वाब बदलते हैं हकीक़त में खुद-ब खुद.......डॉ साब खास आपके लिए.....साभार संदीप भाई
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरूवार (01-06-2017) को
जवाब देंहटाएं"देखो मेरा पागलपन" (चर्चा अंक-2637)
पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हर इन्सान के जीवन में उतार चढाव आते हैं लेकिन कुछ ही लोग जीवन क उतार में खुद को संयमित कर भविष्य के लिए झूझ रहे होते हैं ऐसे लोग ही स्वर्णिम भविष्य के हक्कदार होते हैं |
जवाब देंहटाएंअजय भाई ने जीवन की कठिनाइयों का बखूबी सामना करके आगे बड़े जो कि कइयों के लिए एक जीवंत उदाहरण है और हम सभी को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए
जवाब देंहटाएंसाथ ही संदीप भाई आपका भी हृदय से आभार जो आपने अपने एक साथी की संघर्षपूर्ण जीवनगाथा को अपने ब्लॉग के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों के सामने लाये जिससे हर वो व्यक्ति जो आपके ब्लोग्स को पड़ता होगा अजय भाई से सीख सके कि " रुक जाना नहीं तू कहीं हार के.... ओ राही चला चल" जय हो������
जवाब देंहटाएं"सन 2012 का मेडिकल परीक्षा का रिजल्ट आया तो उसमें मेरी 242 वी रैंक के साथ सेलेक्शन हो गया। मैंने पिता जी के नंबर पर काल किया और हम दोनों काफी देर तक रोते रहे।"
जवाब देंहटाएंयह पढकर मेरी आँखे भी गीली हो गयी
ग्रेट आप सच्चे विजेता हो
संघर्षपूर्ण जीवन रहा अजय भाई का.. grand salute
जवाब देंहटाएंसंघर्षपूर्ण जीवन रहा अजय भाई का.. grand salute
जवाब देंहटाएंएक प्रेरणादायक पोस्ट बहुत बहुत नमन .....
जवाब देंहटाएंडां अजय एक चमत्कारी सकारात्मक व प्रेरणादायक व्यक्तित्व । अटल जी की कविता का मूर्त रूप टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी?
जवाब देंहटाएंअंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी।
हार नहीं मानूँगा,
रार नहीं ठानूँगा
जीवंत उदाहरण । डां साहब को हृदय से नमन
संघर्ष के इस नायक को सलाम
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