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बुधवार, 1 मार्च 2017

Travel to new Wandoor Beach, Port Blair वंडूर बीच, पोर्ट ब्लेयर



अंडमान व निकोबार की इस यात्रा में आपने अभी तक पोर्टब्लेयर का Chidiya Tapu, डिगलीपुर में अंडमान की सबसे ऊँची चोटी Saddle Peak, अंग्रेजों की क्रूरता की निशानी Cellular Jail, Haw lock island के सुन्दर तट और खूबसूरत Neil island, अंग्रेजों का मुख्यालय Ross island, Samudrika संग्रहालय, Mount harriet National Park देखा। इस यात्रा को शुरु से पढना हो तो यहाँ माऊस से चटका लगाकर  सम्पूर्ण यात्रा वृतांत का आनन्द ले। इस लेख की यात्रा दिनांक 29-06-2014 को की गयी थी
NEW WANDOOR BEACH & ORGANIC HORTICULTURE FARM, PORT BLAIR वंडूर बीच व जैविक बागवानी फार्म की यात्रा

वंडूर बीच कैसे जाये?
पोर्ट ब्लेयर के टील हाऊस होटल से अपना सामान लिया। एक आटो में सवार होकर दोपहर के ठीक 12 बजे नया गाँव स्थित अपने पुराने होटल पहुँच गये। ऑटो वाले को कहा, 5 मिनट रुको। हम अपना सामान अपने कमरे में रख अभी आते है। होटल में फटाफट अपना सामान रख बाहर आये। ऑटो हमारी प्रतीक्षा में था। ऑटो भी वंडूर बीच जा सकता था लेकिन वह बस से ज्यादा समय व भाडा लेता। ऑटो हमने पोर्टब्लेयर के मुख्य बस अडडे छोड दिया। बस अडडे से हर घंटे एक सरकारी बस वंडूर बीच (Wandoor beach) के लिये प्रस्थान करती है। जिस बस की वंडूर बीच जाने की बारी थी जानकारी लेकर हम उसी बस में बैठ गये। 

हमारे नया गाँव वाले होटल से वंडूर बीच की दूरी 21 किमी है। जबकि बस अडडे से वंडूर बीच 25 किमी है। बस नया गाँव होकर नहीं जाती है बस हवाई अडडे से होकर जाती है। हवाई अडडा नया गाँव से दो किमी ही है। हवाई अडडे से बस में सीट मिलना बहुत मुश्किल है। अत: बस अडडे जाना उत्तम उपाय है। वंडूर से आखिरी बस शाम 6 बजे पोर्टब्लेयर लौट आती है। किसी दूर के स्थान जाने के लिये बस सबसे बढिया साधन होता है। किसी अंजान स्थान जाने के साथ-साथ आने का के साधन की जानकारी पहले ही जुटा लेना समझदारी भरा कदम बताया गया है। इस बस में हम सीधे वंडूर बीच नहीं जायेंगे।
जैविक बागवानी फार्म
वंडूर बीच के आधे रस्ते, सिपीघाट में जैविक बागवानी (Organic Agriculture form) फार्म पडता है। यह बागवानी फार्म मुख्य ग्रेट ट्रंक हाईवे पर ही है। जो सडक डिगलीपुर जाती है इसके सामने से ही होकर जाती है। डिगलीपुर जाते व आते समय बस में से इसकी झलक देखी थी तभी विचार बना लिया था कि समय मिला तो यहाँ एक बार अवश्य घूम कर आना है। यह फार्म रविवार को बन्द रहता है। इसकी जानकारी हमें नहीं थी। हम रविवार के दिन ही यहाँ गये थे। इसलिये अन्दर जाने का मौका नहीं मिल पाया। बाहर से जितना तांक-झांक कर देख सकते थे। वो आपको दिखा दिया गया है। यह फार्म काफी लम्बे चौडे क्षेत्र में बनाया गया है। जिसमें बहुत सारे पेड-पौधे, फल-फूल आदि किस्में यहाँ तैयार की जाती है। चलिये यह बन्द है। तो कुछ नहीं हो सकता है। हमें कल सुबह अंडमान को अलविदा बोल देना है इसलिये यह टीस मन में रह जायेगी कि जैविक बागवानी फार्म अन्दर जाकर तस्ल्ली से नहीं देख पाये।
वंडूर बीच पहुँच ही गये।
जिस बस में बैठ कर जैविक फार्म तक आये थे। वो बस तो निकल गयी। अब दूसरी बस आयेगी, तो वंडूर बीच जायेंगे। अंडमान में लोकल रुट व लम्बे रुट पर चलने वाली दो तरह की बस होती है। एक सरकारी वाली व दूसरी निजी संचालकों की। सरकारी बस में बैठकर हम बस अडडे से जैविक फार्म तक आये थे। दूसरी सरकारी बस तो अब एक घंटे बाद आयेगी। हम यही सोचकर सडक किनारे मस्ती करते हुए पैदल चलने लगे। अभी हमें 10 मिनट ही हुए होंगे कि एक निजी बस वंडूर का बोर्ड लगाये हुई आती दिखायी दी। हमने वंडूर का बोर्ड देख तुरन्त उसे रुकने का इशारा किया। बस वाला हमें लेकर वंडूर की ओर रवाना हो गया।
बस में बैठने के लिये कोई सीट खाली नहीं थी। वंडूर बीच अभी 10 किमी से ज्यादा दूरी पर है। आगे आने वाले किसी गाँव में कुछ सवारियाँ उतरी तो हमें बैठने के लिये सीट मिल गयी। संयोग देखिये, मुझे सबसे आगे सीट मिली। आगे की सीट अपनी फेवरेट सीट है। मुझे बस में सबसे आगे या सबसे पीछे वाली सीट पर बैठना पसद है। आगे बैठने का लाभ यह होता है कि हमें सडक किनारे लगे दूरी बताने वाले मार्गसूचक से यह पता चलता रहता है कि हम अपने गंतव्य से कितनी दूर रह गये है। वंडूर बीच अभी 2 किमी दूर होगा कि एक गाँव आया। यहाँ शानदार सरकारी ईमारत बनी हुई देखी। यह तहसील या ब्लाक स्तर का कार्यालय होगा। यही एक मोड पर एक बोर्ड देखा, उसमें दर्शाया गया था कि जॉली बॉय व स्किन द्वीप नामक द्वीपों पर जाने के लिये नाव यहाँ से मिलती है। ये द्वीप अपने कोरल रीफ के लिये जाने जाते है। इन दोनों बीच पर जाने के लिये सुबह 9 बजे से पहले पहुँचना होता है। यदि किसी कारण से इन दोनों द्वीपों पर न पहुँच सको तो मोडेरा द्वीप में भी कोरल (मूँगा) देखने का मौका मिलता है।
वंडूर बीच की बेपनाह खूबसूरती
आखिरकार वो लम्हा आ ही गया। हमारी बस वंडूर पहुँच गयी। हम तीनों वंडूर की खूबसूरती का आनन्द उठाने के लिये किनारे की ओर चले ही थे कि एक नारियल पानी वाला दिखाई दिया। इस पूरी यात्रा में शायद ही ऐसा कोई दिन रहा होगा, जिस दिन हमने 4-5 से कम नारियल का कत्ले-आम ना किया हो। पूरे दस दिन की यात्रा में नारियल पानी का जमकर दोहन किया गया। वंडूर बीच पर आगमन करते ही एक बोर्ड पर नजरे गयी। बोर्ड पर लिखा था। “खारे पानी के मगरमच्छ से सावधान।“ अंडमान में खारे पानी के मगरमच्छ से सावधान करने वाले बोर्ड बहुत स्थानों पर देखे थे। मगरमच्छ के कारण, यहाँ ज्यादा गहरे पानी में घुसकर स्नान करना खतरनाक हो सकता है। नील द्वीप की तरह शीशे की तली वाली नाव में बैठकर कोरल रीफ मूँगे की चट्टान देखने का मौका यहाँ भी मिलता है जो नील द्वीप न जा पाये। उसकी मूँगे देखने की इच्छा यहाँ पूर्ण हो जाती है। हम ऑफ सीजन (बारिश में)  यहाँ गये थे। दोपहर भी हो चुकी थी। हमें कोई नाव वहाँ दिखाई नहीं दी। लगता है, सभी नाव यात्रियों को लेकर समुन्द्र में गयी हुई है। 

वंडूर बीच में साफ-सफाई शानदार है। जो कोई भी यहाँ साफ-सफाई की देखभाल करता है वो बधाई का पात्र है। बस स्टैंड के सामन पर्यटकों की भीड ज्यादा नहीं थी। सीधे हाथ दूर तक लोग दिखाई दे रहे थे। हम तीनों सीधे हाथ की तरफ चलते गये। लगभग एक किमी चलने के बाद इस बीच का अंतिम छोर आया। यहाँ से मुडकर जो दृश्य देखा। तबीयत खुश हो गयी। समुन्द्र में अभी ज्वारभाटा उतार पर है। जिस कारण किनारे पर पानी की मात्रा कम है। कुछ लोग समुन्द्र के कम पानी में भी स्नान करने का पूरा आनन्द उठा रहे है। यहाँ आते समय पेडों के झुरमुट में एक रिजार्ट दिखाई दिया था। होटल के बारे में हमने कोई जानकारी नहीं ली। वैसे भी समुद्र किनारे के होटल बहुत मँहगे होते है। जो अपनी पहुँच से बाहर है।
पोर्टब्लेयर का सुन्दरतम बीच
वंडूर बीच व राधा नगर बीच की तुलना की जाये तो मैं वंडूर बीच को ज्यादा अंक दूँगा। इसके पीछे कई कारण है। एक तो यहाँ का बीच का पानी ज्यादा गहरा नहीं है। दूसरा पोर्टब्लेयर से यहाँ आना-जाना बहुत कम समय में हो जाता है। खर्चे की बात करना तो यहाँ बेमानी है। पोर्टब्लेयर में इससे कम खर्चे में कोई सुन्दर बीच घूमा ही नहीं जा सकता है। यहाँ खाने-पीने की सुविधा भी उपलब्ध है। पोर्टबेल्यर से अपने साथ खाने-पीने का समान लाने की आवश्यकता नहीं है।
सुनामी की भयंकर लहरों की निशानी
यहाँ किनारे पर बडे-बडे पेडों की विशाल जडे उखडी हुई पडी हुई थी। इनके बारे में पता लगा कि कुछ साल पहले यहाँ भयंकर सुनामी आयी थी। यह सब उसी की देन है। वंडूर बीच के किनारे पर लम्बे-लम्बे पेड है। किनारे की भूमि दूर तक समतल ही है। ऊबड-खाबड जमीन रही होती तो उस सुनामी से बहुत कम नुक्सान होता। समतल भूमि होने से सुनामी की लहर सीधी जंगलों से टकरायी। जो पेड समुन्द्र किनारे सबसे आगे थे। उन्होंने उन लहरों का प्रकोप सबसे ज्यादा बार झेलना पडा। कुछ अभागे पेड ऐसे भी रहे जो उस झलझले को ज्यादा देर झेल नहीं पाये। बताते है कि वंडूर बीच पर सैकडों पेड, जड-समेत उखकर लहरों के साथ बह गये थे। बहुत सारे पेड तो जंगल के अन्दर पडे हुए है। जिन्हे लहर अपने साथ खींचकर जंगल से बाहर ना ला सकी। किनारे पर कुछ विशालकाय पेडों की जडे अभी भी पडी हुई है। जिन्हे लौटती लहरे अपनी साथ खींचकर जंगल से बाहर ले लायी थी। दूसरे शब्दों में कहे तो जिन्हे लहरे अपने साथ समुन्द में नहीं ले जा सकी।
भीमकाय पेडों की दैत्याकार जडों पर फोटो
ऐसी ही एक विशालकाय जड के नीचे छाँव में बैठकर घंटा भर विश्राम किया। जड के नीचे बैठे-बैठे विचार आया कि जड की ऊँचाई 15 फुट के आसपास है। चलो जड पर चढकर दूर तक देखते है। कैसा दिखाई देता है? जड पर चढकर दूर तक नजारे भी देखेंगे और लगे हाथ फोटो सेसन भी हो जायेगा। सबसे पहले यह देखा कि कौन सी जड सबसे ऊँची है। जिस जड के नीच हम बैठे हुए थे। वही जड सबसे ऊँची व मजबूत दिखाई दे रही थी। जड पर सावधानी से चढते हुए फोटो लिये गये। ऊपर चढकर दूर तक दिखाई दे रहा था। इन जडों पर चढना कठिन काम तो नहीं था। सावधानी बहुत जरुरी थी। यदि गलती से ध्यान भंग हुआ और फिसले तो पता नहीं जड का कौन सा सिरा कहाँ घुस जाये? जब बन्दा ऊँचाई से गिरता है तो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल से तेजी से धरातल की ओर आता है। नीचे की ओर आते समय कम पैनी वस्तु भी बीच में आ जाये तो वो भी चीर-फाड करने में सक्षम हो जाती है।  

इस बीच पर आकर मुझे सबसे ज्यादा खुशी हुई। मुझे आरामदायक जगहे देखने में वैसे भी कम ही रुचि होती है। ये जगह आरामदायक होने के साथ-साथ बेहद ही सुन्दर है। खूबसूरत जगहों की बढाई करने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए। हम यहाँ दिन के लगभग 4-5 घंटे रहे। शाम होने वाली है। आखिरी बस तो 6 बजे पोर्टब्लेयर जाती है। हो सकता है कि आखिरी बस में ज्यादा भीड हो जाये या कुछ अन्य कारण हो जाये। अभी 5 बजने वाले है। हम उससे पहले वाली बस में लौट चलते है। मुझे वैसे भी यात्रा के आखिरी चरण में किसी चक्कर में पडना पसन्द नहीं है। जैसे ही हम बीच के सामने बस स्टैंड पर आये तो एक सरकारी बस हमारे ठीक सामने निकल गयी। थोडी देर बाद निजी बस जायेगी। 

जो बस जायेगी उसका पता कर, अपना बैग रख एक सीट पर कब्जा पक्का कर दिया। बस थोडी देर बाद जायेगी, तब तक क्या करे? भाई लोगों, मैं चला नारियल पानी पीने व कच्ची गिरी खाने। आप दोनों को आना हो तो आ जाओ। नहीं आना तो बस में बैठे रहो। राजेश सहरावत जी व मनु प्रकाश त्यागी जी नारियल पानी में मुझसे कम नहीं रहते थे। लेकिन कच्ची गिरी खाने में मैं उन दोनों पर भारी पडता रहा। मैं नारियल पानी वाले को हमेशा गिरी वाला नारियल देने को कहता था। ताकि उसी कीमत में दो काम एक साथ हो जाये। कहते है ना, आम के आम गुठलियों के दाम। यहाँ आम की जगह नारियल पानी के दाम में कच्ची गोला गिरी रुँगे में मिल जाती थी। एक के साथ एक मुफ्त तो बडी बडी कम्पनियाँ भी स्कीम देती रहती है। तो भला कुदरती योजना का लाभ क्यों न लिया जाये।
जब तक नारियल पानी से निपटे, तब तक बस का समय भी हो गया। 

अभी तक बस आधी ही भर पायी थी। हम अपनी सीट पर जाकर बैठ गये। कुछ मिनटों बाद बस हमें लेकर पोर्टब्लेयर की ओर दौड पडी। निजी बस हमें लेकर पोर्ट ब्लेयर के निजी बस अड्डे पहुँच गयी वहाँ से एक आटो में सवार होकर पोर्टब्लेयर के घंटा घर के आगे से होते हुए, अपने नया गाँव स्थित होटल पहुँच गये। हमारी अंडमान निकोबार के पोर्टब्लेयर द्वीप समूह में आज की रात अंतिम रात होगी। कल सुबह हवाई अड्डे के सामने वाली पहाडी पर बने जॉगर्स पार्क से हवाई अड्डे को निहारकर हवाई अडडे पहुँच जायेंगे। कल दोपहर हमारी फ्लाइट है। जो हमें चैन्नई होते हुए बोम्बे ले जाकर छोडेगी। बोम्बे से दूसरी फ्लाईट में सवार होकर दिल्ली आयेंगे उस बीच खाली समय में मुम्बई की जुहू चौपाटी भी घूमने जायेंगे। (क्रमश:) (Continue)



























1 टिप्पणी:

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