उत्तरी अंडमान के अंतिम छोर डिगलीपुर में यहाँ की सबसे
ऊँची चोटी फतह कर वापिस पोर्टब्लेयर लौट आये। वहाँ से लौटते ही कार्बनकोव बीच की
यात्रा में आप मेरे साथ रहे। अब यात्रा वृतांत पर आगे बढ चलते है। यदि आप अंडमान
की इस यात्रा को शुरु से पढना चाहते हो तो यहाँ माऊस से चटका लगाये
और
पूरे यात्रा वृतांत का आनन्द ले। इस लेख की यात्रा दिनांक 25-06-2014 को की गयी थी।
अंडमान निकोबार AMUSEMENT
PARK, GANDHI PARK, PORT BLAIR
अण्डमान निकोबार के पोर्ट ब्लेयर में घूमते हुए
हम गाँधी पार्क के सामने आ पहुँचे। यह पार्क महात्मा गाँधी उर्फ मोहनदास कर्मचन्द
गाँधी को समर्पित है। इसलिये इसका नाम गाँधी पार्क रखा हुआ है। इसके बाद हम पोर्ट ब्लेयर
की खूनी व खतरनाक मानी गयी सेलुलर जेल भी जायेंगे। जहाँ पर भारत की आजादी की लडाई
के महान सैनानियों को कैद किया जाता था। महात्मा गाँधी जैसे नेता उस जेल की शोभा
अपने जीवन में कभी नहीं बढा सके। सेलुलर जेल में अंग्रेज उन्ही सैनानी को लाते थे
जिनसे उन्हे खतरा होता था। इससे साबित हो गया कि गांधी जी से अंग्रेजों को कभी
खतरा नहीं रहा। गाँधी ने अंग्रेजों के बनाये नियम कई बारे तोडने की असफल कोशिश भी
की शायद, जिस कारण अंग्रेज सरकार उन्हे कुछ दिन के पकड कर अन्दर कर देती थी। उसके
बाद फिर छोड देती थी कि जाओ बहुत प्रचार हो गया है। एक थे वीर सावरकर, उनसे
अंग्रेज इतने डरते थे कि उन्हे पूरे दस साल तक सैलुलर जेल में कैद करके रखा था। 01 DEC 1993 को इस अमूसमैन्ट पार्क बोले तो गाँधी पार्क का
उदघाटन हुआ था।
इस पार्क में घुसते ही शेर की एक मूर्ति है।
शेर के साथ अन्य जानवरों की मूर्तियाँ भी उन्ही के कद अनुसार बनायी गयी है। असलियत
में शेर के साथ तो हम उल्टी सीधी हरकते नहीं कर सकते है लेकिन शेर की मूर्ति के
कान पकड कर, अपनी मन की मुराद तो पूरी कर ही सकते थे। यदि ऐसी हिम्मत हम असली शेर
के साथ कर बैठेंगे तो शेर की दावत पक्की समझो। शेर दावत उडायेगा और हमारे घरवाले
हमें तलाशते रह जायेंगे। शेर की दावत से एक बात याद आयी। एक पहाडी दोस्त ने बताया
कि उसके यहाँ हर साल बकरों की बलि देते है। मैंने कहा एक बार बकरे की जगह शेर की
बलि देकर देखो, शायद तुम्हारे कथित ढोंगी भगवान ज्यादा खुश हो पाये। दोस्त बोला,
जाट भाई आपकी बात में दम है लेकिन शेर की बलि देने में एक पंगा हो सकता है। बकरा,
भैंस, आदि तो शाकाहारी व सीधे-साधे जीव है। जिन्हे हम जैसे बुजदिल आसानी से बलि के
नाम पर एक झटके में ही काट डालते है। शेर ठहरा मांस-भक्षी जीव। बलि देते समय यह
पूरी सम्भावना होगी कि बलि देने वाला ही शेर का शिकार हो जाये। फिर तो दावत शेर ही
मनायेगा।
इस पार्क में देखने के लिये एक छोटी सी लेकिन
सुन्दर सी झील है। इसके अलावा यहाँ पर गाँधी जी की एक बडी सी सुनहरी रंग की मूर्ति भी बनायी गयी है। बच्चों के खेलने
के लिये काफी सारे झूले भी लगाये हुए है। छ: साल के बच्चों को घूमाने के लिये छोटी
सी रेल भी चलायी जाती है। यह आपको पहले ही बताया जा चुका है कि बहुत सारे जानवरों
की उनके साइज के हिसाब से मूर्तियाँ भी बनायी गयी है। यहाँ झील के पानी में घूमाने
के लिये बोट का प्रबंध भी किया गया है। जापानियों ने यहाँ भी सुरक्षा के लिये बंकर
बनाये थे। हम शेर के साथ पंगा लेने के बाद, पार्क के अन्दरुनी भाग में पहुँचे थे।
सामने ही एक झील दिखायी दी। झील किनारे लगे बोर्ड से पता लग रहा था कि झील की
गहराई मात्र एक से डेढ फीट ही है। इतनी गहराई वाली झील में कोई गिर जाये तो उसके
डूबने का खतरा भी नहीं होता है। हमने झील की परिक्रमा करने का निर्णय लिया।
झील कोई ज्यादा बडी नहीं थी। मुश्किल से आधा
किमी में पूरी झील का चक्कर लग गया झील के चारों ओर घूमने में ही पूरा पार्क भी
देख लिया गया। पार्क को बच्चों के हिसाब से तैयार किया गया है। बच्चों के झूलने के
लिये यहाँ पर बहुर सारे झूले भी है। जिस पर बच्चे खेलते हुए अपना समय बिता सकते
है। बच्चों को छोटी रेल में घूमने में बडा आनन्द आता है। इसका भी यहाँ प्रबन्ध
किया हुआ है। छोटी सी ट्राय ट्रेन में बच्चों को घूमाना मुफ्त में नहीं होता है
उसके लिये थोडा सा शुल्क भी अदा करना होता है। मन तो हमारा भी था कि उस छोटी सी
रेल में दो चक्कर लगाये लेकिन वहाँ लगे बोर्ड से पता लगा कि इस रेल में सिर्फ 6 साल तक के बच्चे ही
यात्रा करने योग्य है ज्जो इससे ज्यादा उम्र के है उन्हे यहाँ यात्रा नहीं करने दी
जायेगी। दिल्ली के रेल संग्रहालय में ऐसी ही छोटी सी रेल में बच्चों व बडे के लिये
उपल्ब्ध है जिसकी यात्रा मैंने सपरिवार की थी। जब हम कश्मीर हवाई जहाज से घूमने जा
रहे थे। पार्क में आधा-पौना घंटा व्यतीत कर वाहर आये।
पार्क से बाहर आते ही सबसे पहले सामने दिख रहे
उपराज्यपाल निवास के ठीक सामने बने हवाई जहाज को देखने पहुँच गये। हवाई जहाज को एक
खम्बे में टांगा गया है। हवाई जहाज के नीचे बने पार्क में कुछ बच्चे क्रिकेट खेल
रहे थे। एक बच्चे की नजर हमारे कैमरे पर पडी तो उसने अपने साथियों को बता दिया।
सभी बच्चे अपने फोटो खिचवाने को लेकर तैयार हो गये। जब बच्चे अपने आप तैयार हो तो
फिर बच्चों को नाराज नहीं करना चाहिए। मैंने बच्चों की फोटो लेने के बाद एक बच्चों
को पास बुलाकर उनकी फोटो दिखायी भी। बच्चे अपनी फोटो देखकर बडे खुश हुए। बच्चों ने
सोचा कि हमारे पास बडे-बडे कैमरे है हम किसी अखबार या न्यूज पत्रिका की ओर से
समाचारों की तलाश में घूम रहे है। बच्चों को क्या पता कि हम तो घुमक्कड पर्यटक
जन्तु है। हमें समाचारों से क्या काम? हमें तो सिर्फ जगहों को देखने से मतलब है।
अन्डमान एक सम्पूर्ण राज्य नहीं है, जिस
प्रकार, दिल्ली, चण्डीगढ, पुदुचेरी, दादर एन्ड नगर हवेली केन्द्र शासित राज्य है।
यह अन्डमान और निकोबार भी उसी तरह केन्द्र शासित प्रदेश है यहाँ भी राज्यपाल की
जगह उप-राज्यपाल ही होते है। केन्द्र शासित प्रदेशों में पूर्ण राज्य के मुकाबले
बहुत कम अधिकार दिये गये होते है। कुछ केन्द्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री बडे
प्रदेशों जैसे अधिकार चाहते है जबकि संविधान उन्हे यह अधिकार नहीं देता है।
संविधान में संसोधन करने के बाद ही इस प्रकार के अधिकार मिल सकते है। जो पार्टी
केन्द्र में होगी, वह शायद ही इस प्रकार के संसोधन के पक्ष में कभी हो पाये। भारत
की आजादी को 70 साल होने जा रहे है। यदि सब कुछ सही होता तो एक भी छोटा या बडा प्रदेश
केन्द्रशासित नहीं रह पाता। इससे साबित होता है कि काफी जानकारी व मुसीबत से बचने
के लिये ही ये केन्द्रशासित प्रदेश बनाये गये होंगे। जो आज ऐसे प्रदॆशों को
सम्पूर्ण राज्य की मान्यता देने के नाम पर आंदोलन चलाने की धमकी देते है उन्हे 70 साल पुराने वाद विवाद की
गहराई में उतर कर सारी जानकारी जुटानी होगी।
राजनीति बातों को यही छोडना बेहतर है। अब हम
चाथम की सरकारी आरा मिल की ओर चलते है। यह मिल एशिया की सबसे बडी लकडी काटने वाली
मिल कही जाती है। मिल बहुत बडे इलाके में फैली हुई है। मिल में एक संग्रहालय भी
है। चलो दोस्तों अगले लेख में Govt saw mill,
Chatham का दर्शन करते है। (क्रमश:) (Continue)
ऐसे नार्मल पार्क हर जगह होते है मुझे ऐसे पार्क पसन्द नहीं
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