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मंगलवार, 10 जनवरी 2017

Dhani Nallah- Longest bench walk way of india in Mangrove beach धनी नाला भारत की सबसे लम्बी मैंग्रोव बैंच वाक



अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की इस यात्रा में हम डिगलीपुर जाते हुए बाराटाँग उतरकर चूने की गुफा देखने के बाद रंगत की ओर चल दिये। अभी तक हमने मरीना पार्क, चिडिया टापू जैसे स्थल देख चुके है। आदिमानव युग के कुछ मानव अभी भी धरती पर निवास करते है। उनका जारवा क्षेत्र होते हुए यहाँ बाराटाँग तक आये है। अब उससे आगे रंगत के समुन्द्र तट की यात्रा, यदि आप इस यात्रा को शुरु से पढना चाहते हो तो यहाँ चटका लगाये और आनन्द ले। यह यात्रा दिनांक 21-06-2014 को की गयी थी।
अंडमान निकोबार- धनीनाला बीच के मैंग्रोव वन में भारत का सबसे लम्बा लकडी वाला पैदल पथ और उस पर हमारी पद यात्रा  DHANI NALA - LONGEST BENCH WALK OF MANGROVE BEACH IN INDIA
लाइम स्टोन गुफा, चूने की गुफा से वापिस लौटकर बाराटाँग अंडमान ग्रांट ट्रंक मार्ग पर पहुँचे। किनारे पहुँचकर आगे रंगत जाने वाली अगली बस की जानकारी मिल गयी। आगे जाने वाली अगली बस करीब एक घन्टे बाद आयेगी। गुफा तक आने-जाने में हमें दो घन्टे लगे। जारवा लोगों के इलाके वाला बैरियर तीन घन्टे बाद ही खुलता है। वहाँ से 3 घन्टे बाद आने वाली बस पानी के जहाज में चढ कर इस पार आ रही है। अब हम आगे रंगत की ओर जायेंगे। हमें आज की रात रंगत से करीब 18 किमी आगे एक होटल HOW BILL NEST में रुकना है। आज हमारी बुकिंग वही पर है। रात को वहाँ रुकेंगे। इस पार आने वाली पहली बस में घुसकर बैठने की जगह देखने लगे। तीन बस आयी लेकिन तीनों में बैठने की जगह न मिली। उधेडबुन में दो बस निकल गयी। तीसरी बस भी जाने को तैयार थी। फटाफट फैसला हुआ कि जाना तो पडेगा ही, यहाँ खडे रहे तो रात यही हो जायेगी, इसके बाद अगली बस कल सुबह आयेगी। इसलिये खडे-खडे आगे की यात्रा शुरु की।

बाराटाँग से दोपहर के करीब 2 बजे हमारी बस यात्रा शुरु हुई। एक घंटे बाद कुछ सवारियाँ उतरी तो हमें सीट मिल गयी। कंडक्टर से बातचीत करके रंगत के बारे में कुछ जानकारी ली गयी। उसी ने बताया कि आपका होटल तो रंगत से 18 किमी आगे पडेगा। आपकी बस रंगत से आगे जा रही है तो हमें वहाँ उतार देना। हमने पहले तो रंगत तक की टिकट ली थी। रंगत बस अडडे में बस थोडी देर रुककर आगे बढ चली। रंगत के बारे में जानकारी लेते समय पता लगा कि रंगत से सीधे पोर्टब्लेयर व हैवलाक द्वीप के पानी के जहाज भी चलते है उसके टिकट बुक करने के लिये जेट्टी जाना पडता है। बस में यात्रा करते हुए समय का पता ही नहीं लगा। लगभग ढाई घन्टे बाद बस ने हमें रंगत से आगे हमारे होटल HOW BILL NEST के सामने उतार दिया। शाम के साढे चार बजने वाले थे। दिन छिपने में डेढ घंटा बाकि था इसलिये तय हुआ कि तुरंत धनीनाला बीच देखने निकल पडो। होटल में अपना सामान रख धनीनाला बीच व धनीनाला में भारत के सबसे लम्बे बैंच वाक घूमने निकल गये।

धनीनाला की दूरी हमारे होटल से करीब एक-डेढ किमी तो होगी। किसी बस आटो की इन्तजार किये बिना पैदल ही आगे बढते रहे। इस दूरी को हमने राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 4 पर तय किया था। यह भारत के अंडमान प्रांत का सबसे लम्बा हाईवे है। सडक किनारे धनीनाला का बोर्ड लगा हुआ था। जिससे इसे तलाशने में ज्यादा समस्या नहीं आयी। यहाँ सडक से भी लगभग आधा किमी चलने के बाद मैंग्रोव का प्रवेश द्वार आया। प्रवेश द्वार से आगे बते ही घना जंगल आरम्भ हो गया। आसमान में हल्का-हल्का अंधेरा होने लगा था। अंधेरा होने से पहले धनीनाले के सुन्दर से बीच को देखने के लिये तेजी से लकडी के पथ पर बढते चले गये। जहाँ से धनीनाला बीच व मैंग्रोव के घने जंगल का बैंच मार्ग मार्ग शुरु होता है। वहाँ वाहन खडा करने के लिये काफी जगह छोडी हुई है। अन्दर प्रवेश करने के लिये सुन्दर सा प्रवेश द्वार भी बनाया हुआ है। इसके प्रवेश द्वार पर खडे होकर फोटो सेसन हुआ था तभी आगे बढे थे।

करीब एक किमी के इस बैंच मार्ग को दस मिनट में पार कर दिया। बैंच मार्ग पार करने के बाद सामने ही धनीनाला का समुन्द्र भी दिखने लगता है। अंधेरा होने जा रहा था। वहाँ हमारे अलावा कोई नहीं था। हम भी वहाँ थोडी देर ही ठहर पाये। जल्द ही अंधेरा छाने लगा। अंधेरा शुरु होते ही हम भी वहाँ से वापिस चल दिये। मैंग्रोव के पेड के बीच से निकलते-निकलते अंधेरा हो गया। टार्च हमारे पास थी उसकी रोशनी में मैंग्रोव का जंगल पार किया। टार्च की रोशनी में ही होटल की ओर चले दिये। अंधेरे के कारण होटल पहुँचने में ज्यादा समय नहीं लिया। धनीनाला बीच जाते समय हम सडक के बीच में बैठकर फोटो ले रहे थे। लेकिन अब वापसी में अंधेरा छा जाने के बाद फोटो लेने का कोई काम नहीं था। वापसी में सडक पर लगे दूरी बताने वाले बोर्ड का एक फोटो ही ले पाये। 

होटल पहुँचकर नहा-धोकर रात के भोजन के लिये तैयार हो गये। आज का खाना खाने के लिये होटल में ही जाना पडा। वहाँ आसपास कोई ढाबा या बाजार जैसा कुछ नहीं था। सिर्फ़ दो चार घर थे एक छोटी सी दुकान थी। कल सुबह यहाँ का MORICEDERA BEACH SHIVPURAM देखने जायेंगे। आज बस से आते समय कुछ किमी पहले हमारी बस समुन्द्र किनारे से होकर आयी थी। चलती बस में मन हो रहा था कि उतर जाऊँ। कल सुबह सबसे पहले उसी किनारे भ्रमण किया जायेगा। उसके लिये लोकल बस या आटो जैसा कुछ साधन किराये पर मिल जायेगा तो बहुत अच्छा रहेगा। कल की रात हमने पोर्टब्लेयर के होटल में वातानुकूलित कमरा लिया था। आज रंगत के जिस होटल में रुके थे उसका एसी खराब था। वैसे गर्मी इतनी ज्यादा भी नहीं थी कि सहन न हो सकती हो। 

हमने कल तो चार बैड वाला कमरा लिया था। आज डबल बैड वाला कमरा लिया। होटल स्टाफ से एक अलग गददा का जुगाड करने का बोला गया। होटल स्टाफ ने उसका कुछ चार्ज अलग से बोला। उन्हे उसका चार्ज दे दिया गया। रात का खाना खाकर कुछ देर आंगन में टहलते रहे उसके बाद सोने के लिये अपने कमरे में आकर सो गये। होटल में खाने का दाम लगे हाथ चुका दिया गया। खाने में थाली सिस्टम नहीं था। दाल सब्जी व रोटी के हिसाब से बिल चुकाया गया था। होटल के पानी का स्वाद ज्यादा बढिया नहीं लगा। मिनरल वाटर की बोतल वहाँ उपलब्ध नहीं थी। होटल स्टाफ ने बताया कि यह होटल शहर से थोडा दूरी पर है इसलिये यहाँ कोई वस्तु समाप्त होने के तुरन्त बाद नहीं मिल पाती है। आज ही पानी की बोतले समाप्त हुई है कल सुबह पानी की बोतले आ जायेगी।
 (क्रमश:) (Continue)


















8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खुब

    प्रवेश द्वार से आगे बड़ते ही को बधते लिखा हुआ है।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (12-01-2017) को "अफ़साने और भी हैं" (चर्चा अंक-2579) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. सुन्दर वर्णऩ रंगीन चित्रों ने दृष्यात्मक बना दिया है.प्रभाव भी -आप,तन्मय समाधिलीन से बैठे हैं एक में .

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  4. इस बार तुमने लिंक नहीं डाले अगले भाग को पढ़ने के लिए बहुत परेशानी हो रही है हर अंक का लिंक पोस्ट करो

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    उत्तर
    1. जी आपका आदेश अवश्य माना जायेगा,पूरी यात्रा लिखने के बाद लिंक एक साथ ही लगाऊँगा।

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