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शुक्रवार, 10 जून 2016

Madhyamaheshwar kedar to Anusuiya Devi मध्यमहेश्वर केदार से अनुसूईया देवी

नन्दा देवी राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-07           लेखक SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
 भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02  वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03  रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04  शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05  वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06  मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07  रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08  अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09  सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10  रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11  धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
3 बजे नून चट्टी पहुँच गया। यहाँ कुछ देर रुक गया। दो परांठे बनवा कर खाये गये। साढे 5 बजे बनतोली पहुँचा। बनतोली में पवाँर रेस्ट हाऊस वालों के यहाँ मेरे कमरे के बराबर में ठहरे बंगाली परिवार वाले मिले। मुझे देखकर बोले अरे तुम वापिस भी आ गये। हाँ ज्यादा कठिन नहीं है। कठिन है हम तो 10 बजे से चलकर अभी आधा घन्टा पहले ही यहाँ आये है। हो सकता है परिवार के साथ, छोटे बच्चों के साथ अठिन हो लेकिन अकेले इन्सान के लिये यह कठिन नहीं है। आप अपने साथ एक पोर्टर लाये है उससे पूछो वह दिन भर में एक चक्कर आसानी से लगा सकता है। कुछ देर उनके पास बैठकर आराम मिला। अब आगे चढाई भी चढनी है अभी 6 किमी से ज्यादा यात्रा बाकि है देखते है अंधेरा कहाँ होता है। घने जंगल में सामने से आते हुए कई ग्रामीण मिले। वे सब यही बोल रहे थे तेजी से चलते रहो नहीं तो जंगल में अंधेरा हो जायेगा। अंधेरा 50 फुट वाली सीढियों पर हो गया था। इसलिये टार्ज निकालनी पडी। ठीक साढे 7 बजे रांसी पहुँच गया।



एक दिन में मदमहेश्वर आना-जाना करना सच में कठिन काम है। अपुन को कठिन काम में ही मजा आता है। रांसी में जहाँ ठहरा हुआ था एक दिन में आना-जाना देखकर वो भी बोल रहे थे क्या आप पहाडी हो? क्यों भाई क्या पहाड में पहाडी ही ज्यादा चल सकता है। तैयारी की हो तो कोई भी पहाडी को टक्कर दे सकता है। पहाड में बिहारी व झारखन्डी लोग मजदूरी करते हुए मिल जायेंगे। रात को आलू की सब्जी और गर्मा-गर्म रोटी खाकर दिनभर की थकान से आराम मिला। दिन भर में जाते हुए एक बिस्कुट का पैकेट खाया था तो वापसी में कून चटटी में दो परांठे खाये थे।

अगली सुबह चलने की कोई जल्दी नहीं थी। कल बाइक से चोपता होते हुए मंडल जाकर अनुसूईया मन्दिर तक आना-जाना करने का इरादा व शाम को रुद्रनाथ के आधार स्थल सगर गाँव तक पहुँचने का सोचा हुआ था। जो ज्यादा मुश्किल कार्य नहीं था। रांसी से सुबह चलकर शाम तक सगर गाँव तक पहुँचना था। पूरे दिन में 70 किमी के करीब बाइक चलानी थी इस बीच अनुसूईया देवी के मन्दिर तक आना-जाना मिलाकर 10-11 किमी की ट्रेकिंग ही करनी थी जिसमें ज्यादा से ज्यादा 3 घन्टे लगने थे। सुबह जल्दी उठने का भी कोई कारण नहीं था। अत: आराम से उठा। रांसी में पहाडी आलू की सब्जी व घर की बनी रोटियाँ मिल गयी थी। जिनके यहाँ रात को ठहरा था उन्होंने अपने यहाँ रहने के साथ खाने का प्रबन्ध भी किया हुआ था। जिस कारण यहाँ रहकर एकदम घर जैसा वातावरण व रहना खाना मिल सका। अब मेरा यहाँ सपरिवार आने का ही इरादा है। यहाँ आना कोई मुश्किल भी नहीं है। हरिद्वार से व ऋषिकेश से रांसी के लिये बस सेवा उपलब्ध है। यदि अपना वाहन हो तो मजे ही मजे। रास्ते भर के जितने भी अच्छे नजारे मिलेंगे उनके फोटो-सोटू खिचते रहना। यदि हरिद्वार से सीधी बस भी न मिल पाये तो भी चिंता की बात नहीं है। रुद्रप्रयाग से रांसी के लिये बहुत सी बसे व जीप की सुविधा है। रुद्रप्रयाग से रांसी 80-90 किमी तो होगा ही। 

मैंने रांसी में अपनी नीली परी पर अपना सामान लाधा और ऊखीमठ की ओर उतरना शुरु किया। रांसी से ऊखीमठ की ओर ढलान है जिस कारण कुछ किमी बाइक स्टार्ट किये बिना भी पार हो जाते है। ढलान शुरु के कई किमी तक तो बहुत ही तीखी है जिस पर लगातार ब्रेक मारते रहना पडा। लोहे के पुल को पार करने के बाद बाइक स्टार्ट किये बिना काम नहीं चलता है। इसके बाद ऊखीमठ तक ठीक ठाक सडक है। बीच के कई गाँवों में बच्चे सडक पर ही खेलते हुए मिल जाते है। सडक पर एक मोड पर ऊपर से गिरते पानी की बून्दों से गुजरती सूर्य की किरणों से इन्द्रधनुष बना दिखायी दिया। तुरन्त बाइक रोक इसका वीडियो बनाया व फोटो भी लिया। ऊखीमठ पहुँचने के बाद मोड पर रुद्रप्रयाग के लिये सीधे हाथ न मुडकर उल्टे हाथ चोपता, गोपेश्वर, चमोली वाली साइड चढाई की तरफ़ नीली परी दौडा दी। यहाँ ऊखीमठ मोड पर सामने ही संतोष गेस्ट हाऊस है। लेकिन वो अभी खुला नहीं था।

ऊखीमठ से चोपता पहुँचने के लिये बाइक की पूरी ताकत लगाये बिना बात नहीं बनती है। यह सडक घने जंगल से होकर लगातार चढाई चढते हुए चोपता तक पहुँचती है। चोपता से कुछ किमी पहले बनिया कुन्ड नाम की जगह पर अब कुछ होटल आदि बन गये है जहाँ लोग आवारगी व शराब पीने के लिये आते है इसका सबूत बनियाकुन्ड में सडक किनारे शराब की खाली बोतलों का बडा सा ढेर गवाही दे रहा था। बनिया कुन्ड तो कोई धार्मिक स्थल भी नहीं है। लोग तो आजकल केदारनाथ आदि पवित्र स्थलों पर हनीमून मनाने के इरादे से आने लगे है। पवित्र स्थानों पर मांस भक्षण व अय्याशियाँ को बढावा दोगे तो उसके परिणाम भी ऐसे ही खतरनाक मिलेंगे जैसे सन 2014 की केदारनाट घाटी में प्रलयंकारी बाढ ने दिखाये थे। बनियाकुन्ड से आगे कोई आबादी नहीं है। इसके बाद चोपता बुग्याल आता है। चोपता मैंने पहली बार आज से कोई दस साल पहले बाइक पर ही पहली बार देखा था। उस यात्रा में मेरे साथ महाराष्ट्र के संतोष तिडके व दिल्ली के अनिल शर्मा मेरी बाइक पर ही सवार थे। उस यात्रा की कहानी मैं लिख चुका हूँ। जिसमें हमारे साथियों की सूमो जीप पहाड खिसकने के कारण बीच में ही फँस गयी थी जो पूरे 3 दिन बाद जाकर निकल पायी थी।

चोपता में कुछ देर दो चार फोटू लेने के लिये रुका। इससे ज्यादा मुझे वहाँ कुछ काम नहीं था। वैसे भी अब तक मैंने बाइक पर चोपता कई बार देखा हुआ है। दो बार तो मैं यहाँ रात भर रुका भी हूँ। चोपता पार करते ही सडक की चढाई समाप्त हो जाती है अब यहाँ से मंडल तक घने जंगलों के बीच से होकर लगातार उतराई मिलती है। चोपता से मंडल के बीच का जंगल इतना घना है कि कई जगह सडक पर काई जमी हुई मिल जाती है। सडक पर घास तो बहुत जगह उगी हुई दिख ही जाती है। इस 25-30 किमी के घनघोर जंगल को अकेले बाइक पर पार करना आसान नहीं है यदि कोई डरपोक बन्दा होगा तो यहाँ से उसके लिये पार होना बेहद कठिन हो सकता है। चलती बाइक के सामने अचानक जब कोई जंगली जानवर तेजी से भागता हुआ निकलता है तो साँसे धम सी जाती है।(continue)


















7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (11-06-2016) को "जिन्दगी बहुत सुन्दर है" (चर्चा अंक-2370) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ऊखीमठ-चोपता-गोपेश्वर सड़क वाकई बेहद खूबसूरत है।

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  3. क्या खूबसूरत जगह है ! संदीप भाई बढ़िया यात्रा वृतांत ! मौका मिला तो जरूर जाऊँगा

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