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सोमवार, 4 अप्रैल 2016

Trekking Barsudi to Bhairav Garhi via Hanuman Garhi बरसूडी से हनुमान गढी - भैरो गढी की ट्रेकिंग


बरसूडी गाँव- हनुमान गढी - भैरो गढी यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।    लेखक- SANDEEP PANWAR


कल चाय पीने वाले शिकारी भी सुबह आँवला जूस पीकर दीवाने हुए जा रहे है। मैंने भी आंवला जूस के तीन-चार गिलास पीये। एक दो गिलास से मेरा कुछ न होने वाला था। रात को सोचा था कि आंवले के इस जूस को, पाँच लीटर कैन में पैक करवा साथ लेकर जाऊँगा लेकिन हम सभी को दिन भर ट्रेकिंग भी करनी थी। आज की ट्रेकिंग के लिये तैयार हो चुके है। इसलिए बिना जूस लिये आज की यात्रा पर चल दिये। वैसे श्याम भाई का दिया बाबा राम देव पतंजलि में पैक हुआ एक लीटर जूस अभी भी बचा था जो आज की ट्रेकिंग में बचने वाला नहीं था। अगर मैंने आंवले वाला जूस ले भी लिया होता तो शत-प्रतिशत सम्भावना यही बनती कि उसे हम ट्रेकिंग में ही निपटा डालते। हलवाई अपनी दुकान की मिठाई दूसरों के लिये रखता है। हम ठहरे दूसरे किस्म के जीब, खाने-पीने घूमने वाले। बरसूडी के जंगल वाले घर की समुंद्र तल से जो ऊँचाई अमित भाई की घडी ने बतायी। वह 1130 मीटर थी। यहाँ से करीब दो किमी पर बरसूडी गाँव आता है जिसकी ऊँचाई 1360 मीटर है। बरसूडी से द्वारीखाल सात किमी दूर है हमें द्वारीखाल से हनुमान गढी होकर भैरो गढी तक जाना है वहाँ से कीर्तिखाल उतरने के बाद आज की ट्रेकिंग समाप्त हो जायेगी। कीर्ति खाल से कोटद्वार तक बस में यात्रा जारी रहेगी उसके बाद कोटद्वार से दिल्ली तक रेल से पहुँचा जायेगा तब यह यात्रा समाप्त हो पायेगी।

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

Life style of Barsudi Village बरसूडी गाँव का जीवन

बरसूडी गाँव- हनुमान गढी-भैरो गढी यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।    लेखक- SANDEEP PANWAR



गाँव में थोडे से ही प्राणी दिख रहे थे वे। वे हमें चौकन्नी नजरों से देख रहे थे। जैसे कोई विदेशी परिन्दे आये हो। अमित की वेशभूषा विदेशियों जैसी ही थी। गाँव के सन्नाटे जैसे वातावरण से स्थिति का वास्तविक अनुमान लग गया। गाँव में ज्यादा आबादी दिखायी नहीं दी। घर भी बहुत ज्यादा नहीं थे। पहाड के गाँव तो वैसे भी बहुत ज्यादा बढे नहीं होते है, लेकिन जितने भी घर थे। अधिकतर खाली थे। अब यह तो हो नहीं सकता है कि सभी एक साथ खेत में काम करने गये हो। सच्चाई यही थी कि सचमुच कुछ घर में कोई रहने वाला ही नहीं था। पहाड में ऐसी स्थिति लगभग हर उस गाँव की है जहाँ सडक नजदीक नहीं है। जो गाँव सडक से जुड गये है वहाँ ऐसी वीरानगी कम ही दिखायी देती है। सडक किनारे रहने वाले ग्रामीण फ़िर भी अपनी आजीविका चलाने के लिये कुछ ना कुछ काम काज कर ही लेते है। लेकिन दूर-दराज के गाँव सिर्फ़ खेती पर ही निर्भर होकर रह गये है। गाँव में सामने ही ढलान में, एक महिला प्याज या लहसुन की खेती में लगी हुई थी। बीनू की ताई के यहाँ कुछ बकरियाँ थी वे एक साथ मुझे व नटवर को देख रही थी। मैंने तुरन्त उन बकरियों को कैमरे में कैद कर लिया। नटवर ने भी बकरियों का फोटो लिया। नटवर अपने कैमरे से आँख मारता रह जाता है। बकरियाँ शायद हम दोनों की चाँद को देखकर असमंजस में थी कि आज तक तो हमने एक ही चाँद के दीदार किये है। ये एक साथ दो चाँद कहाँ से निकल आये? ताई के यहाँ भौटिया जैसी नस्ल का एक कुत्ता है। पहले तो उसने भी अपना नमक का कर्ज उतारते हुए हमें डराया, लेकिन ताई जी ने उसकों चुप कराया। तब जाकर हम घर में घुस पाये।