साईकिल
मैं सन 1987 से साईकिल चलाता आ रहा हूं। इन सालों में मैंने कई साईकिले अदला-बदली की है। दो बार नई साईकिल भी ली, लेकिन चोरो ने उन्हे ज्यादा समय मेरे पास टिकने नहीं दिया। एक साईकिल तो मात्र 26 वे दिन चोरी हो गयी, जबकि दूसरी वाली 5 महीने बाद गायब कर दी गयी। अत: अपना काम पुरानी साईकिलों पर ही चलता रहता है।
बैग
मेरे पास सन 1991 या 1992 में लिया गया नीला बैग सबसे लम्बे समय तक साथ निभाता रहा। इस बैग ने मेरे साथ इस अवधि की सभी यात्राएँ की है वे यात्राएँ चाहे कैसी भी रही हो? इस बैग ने मेरा साथ नहीं छोड़ा। लगभग 22-23 वर्ष सेवा के बाद अब मैंने इसको सम्भाल कर अपने खजाने में सुरक्षित रख दिया है। इसके पूरे जीवन में इसे सिर्फ़ एक बार हेमकुन्ठ साहिब से लौटते समय सिलवाना पड़ा था। अब नया रकसैक बैक आने से इसे आराम दे दिया गया है
कैमरा
मेरे पास सबसे पहले यासिका का रील वाला कैमरा था जिसकी कीमत सन 1993 में 5500 रु थी। इसे दो साल चलाने के बाद बेच दिया था। इसके बाद बेहद सस्ता आटोमैटिक रील वाला कैमरा लिया गया था, जो आज भी मेरे पास सुरक्षित रखा हुआ है। इसके साथ एक अन्य डिजीटल कैमरा भी लिया गया था। लेकिन उसमें रंगो की समस्या आने के बाद प्रयोग नहीं किया गया। अब बीते 2 साल से रु 23,500/- का सोनी का 50 एक्स जूम वाला नया कैमरा लिया गया। देखते है यह कब तक साथ निभाता है?
कपड़े
मेरे पास ज्यादातर कपड़े 10-12 साल तक साथ निभाते रहे है। मैं आज भी शादी के समय की एक कमीज पहन रहा हूँ। घूमने में काम आने वाली गर्म चददर तो 17 साल से मेरे साथ है। एक मफ़लर जिसको मैंने सन 1986 में लिया था आज भी बाइक यात्रा व ट्रेकिंग में मेरे साथ रहता है। इसके अलावा दो विंड़ शीटर साल 2008 से मेरे पास है। बाइक यात्रा में बिना विंड़ शीटर जाना बेकार है।
मोटर बाइक
मैंने बाइक पर घूमने की शुरुआत छोटे भाई की 100 सीसी की Hero Honda पैसन बाइक से की थी सन 2001 में पहली बार बाइक से लम्बी यात्रा पर निकला था। यह बाइक आज भी छोटे भाई के पास है। इस बाइक से कई बार (6/7) गंगौत्री व यमुनौत्री की यात्रा हो चुकी है। अब जो नीली परी बाइक मेरे पास है यह सन 2005 का माड़ल है इसका नम्बर उत्तरकाशी का है। इसे सन 2006 से नियमित चलाता आ रहा हूँ।
हैल्मेट
बाइक वाले के लिये हैल्मेट बेहद जरुरी चीज है इसके बिना बाइक यात्रा करने की सोचना भी नहीं चाहिए। मैंने आज तक लोकल हैल्मेट पर लम्बी यात्रा नहीं की है। हैल्मेट ऐसा होना चाहिए जो कम से कम 5-7 फ़ुट ऊँचे से गिरने के बाद सुरक्षित रहना चाहिए। फ़ाइबर इस मामले में अच्छी वस्तु है। लोकल हैल्मेट गिरते ही टुकड़े-टुकड़े हो जाते है। मेरे कपाल सुरक्षा कवच की वर्तमान कीमत दो हजार रुपये से ज्यादा है। यह सन 2005 से मेरे साथ है।
मोबाइल
अब तक कई मोबाइल बदले जा चुके है सबसे पहला 4500 रु का सन 2003 में लिया था। जो मात्र दो दिन में ही एक जानकार ने गायब कर दिया था। इसके बाद अब तक हर दो-तीन साल में नया मोबाइल बदलता रहा है। आजकल नोकिया वाला मोबाइल प्रयोग कर रहा हूँ। मेरे पास सबसे लम्बे तक टिकने वाला कार्बन का मोबाइल रहा है जो सन 2009 में सरकारी यात्रा LTC के समय लिया गया था।
दोस्त
बचपन से अब तक कई तरह के दोस्त बनते रहे है। 0-10 वर्ष तक की उम्र के एक-दो ही दोस्तों से सम्पर्क बना हुआ है। 10-20 वर्ष की उम्र में जान-पहचान बने सिर्फ़ 4-5 दोस्तों से सम्पर्क बनाया हुआ है। बीस की उम्र के बाद अधिकतर दोस्त घुमक्कड़ी में रुचि रखने वाले सम्पर्क में आये है। इनमें से मुख्य सम्पर्क में रहने वाले निम्न है-
अनिल शर्मा, प्रेम सिंह, अनिल पवाँर, (सभी लोनी बार्डर निवासी),
विशाल राठौर, राजेश सहरावत, अजय कुमार (भारतीय), मनु प्रकाश त्यागी, राकेश, नीरज कुमार, संजय अनेजा (सभी इन्टरनेट के कारण मिले)
अनिल शर्मा, प्रेम सिंह, अनिल पवाँर, (सभी लोनी बार्डर निवासी),
विशाल राठौर, राजेश सहरावत, अजय कुमार (भारतीय), मनु प्रकाश त्यागी, राकेश, नीरज कुमार, संजय अनेजा (सभी इन्टरनेट के कारण मिले)
घर-पडौसी
मैंने अन्य सभी वस्तुओं की तरह अपना घर भी बदला है। घर के साथ घरवाली भी बदली। जीवन में कुछ ना कुछ नया होता रहना चाहिए अन्यथा इन्सान बोर होने लगता है। अपने पास घर परिवार बच्चों की जिम्मेदारी तो है लेकिन मौका मिलते ही घुमक्कड़ी करने का मौका छोड़ता नहीं हूँ।
पडौसियों को जब तक देते रहोगे, अच्छे बने रहेंगे, लेकिन एक बार उन्हे कुछ देने से इन्कार करो तो उनकी असलियत का पता लग जाता है। अपना अधिकतर सामान (औजार) पडौसियों के माँगने के चक्कर में खो चुका हूँ।
पडौसियों को जब तक देते रहोगे, अच्छे बने रहेंगे, लेकिन एक बार उन्हे कुछ देने से इन्कार करो तो उनकी असलियत का पता लग जाता है। अपना अधिकतर सामान (औजार) पडौसियों के माँगने के चक्कर में खो चुका हूँ।
बाकी सब ठीक है लेकिन छ: शब्दों वाला एक वाक्य समझ नहीं आया। आमने सामने मिलने पर पूछूंगा :)
जवाब देंहटाएंbhagwan ka shukr hau ki aap wapas aa gaye --- Welcome
जवाब देंहटाएंसंदीप भाई ये लाइन समझ नहीं आई "घर के साथ घरवाली भी बदली" ! थोडा प्रकाश डालिए ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
बहुत दिनों बाद आपका लेख दिखा.... स्वागत है मित्र |
जवाब देंहटाएंwelcome sandeep ji, chalo appne likhna toh shuru kiya akhirkar.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, देर आये दुरुस्त आये |हमें बहुत ख़ुशी है संदीप भाई |
जवाब देंहटाएंघर के साथ घरवाली भी बदली ? क्या यह टाइपिंग एरर है
जवाब देंहटाएंअपने बारे मे अच्छी जानकारी दी है,लिखते रहिए .आप जैसे जुनूनी आदमी को लिखना नही छोडना चाहिए।।।।।।।
जवाब देंहटाएंअपने बारे मे अच्छी जानकारी दी है,लिखते रहिए .आप जैसे जुनूनी आदमी को लिखना नही छोडना चाहिए।।।।।।।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंशेयर के लिए धन्यवाद
Know About Uttarakhand
good to know that you kept the bag safely
जवाब देंहटाएंwaiting for next post
घर के साथ घरवाली भी बदली ?
जवाब देंहटाएंभाई आजकल आप ब्लॉग अपडेट नहीं कर रहे ,क्या बात है ?
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया संदीप भाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया संदीप भाई
जवाब देंहटाएं"Very simple, kind hearted, hopelessly devoted to travelling and straight forward man" this is what I know of you and I like it very much. Keep writing, dear!
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