KHAJURAHO-ORCHA-JHANSI-11
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद
आज के लेख
में दिनांक 28-04-2014 को की गयी यात्रा
के बारे में बताया जा रहा है। यदि आपको इस यात्रा के बारे में शुरु से पढना है तो
ऊपर दिये गये लिंक पर क्लिक करे। इस यात्रा में अभी तक आपने पढा कि खजुराहो के बाद
ओरछा यात्रा में जहाँगीर महल देखने के बाद आगे चल दिये। बाहर आते ही रेल वाला
अमेरिकी पेट्रिक मिला। हमारा फ़ोटो लेने के बाद वह जहाँगीर महल के अन्दर चला गया।
हम राय प्रवीन देखने चल दिये। राय प्रवीण महल की कहानी भी काफ़ी मजेदार है। बुन्देल
राज्य की सबसे होनहार गायिका, नृतिका व गीतकार का दर्जा इसी प्रवीण राय को प्राप्त
था। राय प्रवीण की यही प्रसिद्दी इसकी मुसीबतों का कारण भी बन गयी। इनकी चर्चा
मुगल बादशाह के कानों में भी पहुँची तो मुगल बादशाह ने ओरछा के राजा से कहा कि राय
प्रवीण हमारे दरबार की शोभा बढायेगी। आखिरकार मुगल बादशाह ने राय प्रवीण को आगरा
बुलवा लिया। यह गायिका राय प्रवीण भी पहुँची हुई चीज थी।
हम जहाँगीर
महल से निकलकर बाहर आये तो सबसे पहले ऊंटों को रखने का ठिकाना मिला। इसका नाम ऊँट
खाना था। ऊँट की ऊँचाई व मोटाई के हिसाब से इसके दरवाजे बनाये गये है। इसका बोर्ड
तो हमने बाद में देखा। तब मैं इसे कुछ और ही मान रहा था। चूंकि हाथी ज्यादा मोटा
होता है इसलिये पतला दरवाजा देखकर हमारा माथ ठनका था कि इसमें से हाथी का घुसना
मुमकिन नहीं है। हमने सोचा कि हो सकता हाथियों के आने-जाने के लिये अलग दरवाजा
बनाया गया होगा। यह दरवाजा घुडसवारों के लिये होगा लेकिन इसके दूसरी ओर भी कोई
दरवाजा नहीं मिला। अचानक हमारा ध्यान इसके बोर्ड पर गया तो मामला समझ में आ गया कि
इसके दरवाजे पतले क्यों है? ऊँट खाने को यही छोडते है राय प्रवीण महल सामने है
पहले सीधे वही चलते है।
शाही दरवाजा
सीधे हाथ बेतवा की तरफ़ दिखायी दे रहा है। उधर से जायेंगे तो बेतवा नदी किनारे
पहुँच जायेंगे। हमें नदी किनारे नहीं जाना है। तीन दासियों का महल भी उसी दिशा में
है। उसके बारे में मुकेश जी ने कहा कि उसकी जगह सिर्फ़ खन्डहर बचे है। शिव मन्दिर
भी उधर ही है। पंचमुखी महादेव मन्दिर भी उधर ही है। राधिका बिहारी मन्दिर भी उसी
ओर है। वनवासी मन्दिर भी उसी दिशा में है। मेरा इरादा इनमें से कोई जगह देखने का
नहीं था। मुकेश जी के फ़ोन पर एक कॉल आयी जिसमें उन्हे पता लगा कि उनके अधिकारी डीएसपी
आज दोपहर ओरछा आ सकते है। अभी उनके अधिकारी झांसी गये हुए है। अधिकारी की बीबी रेल
से दिल्ली जाने वाली है। अधिकारी के आने में अभी काफ़ी समय है तब तक ओरछा में कुछ
ना कुछ देखते रहेंगे।
जहाँगीर महल
से प्रवीण महल आने के लिये थोडा सा चलना पडा। मुकेश जी यहाँ कुछ महीने पहले आये थे
इसलिये हम दनादन चलते हुए इसके दरवाजे पर पहुँच गये। दरवाजे पर पहुँचकर पता लगा कि
वहाँ तो कोई दरवाजा ही नहीं है। हमें पीछे एक दरवाजा दिखायी दिया था लेकिन मुकेश
जी ने कहा था कि प्रवीण महल का प्रवेश दरवाजा तो उधर है जिस कारण हम उस दरवाजे की
ओर गये ही नहीं। एक बार फ़िर वापिस आना पडा। यहाँ राय प्रवीण महल के नाम से बोर्ड
लगा देखा। लोहे के चैनल वाला दरवाजा बन्द स्थिति में लग रहा था। थोडा जोर लगाया तो
यह खुल गया। अन्दर जाकर पुन: उसी तरह बन्द कर आगे चल दिये।
राय प्रवीण
महल को राजा इन्द्र मणि की खूबसूरत गायिका के रहने-नाचने-गाने के लिये बनवाया गया
था। यह छोटा सा महल एक घर जैसा है। एक छोटी सी हवेली जैसा दिखता है। राय प्रवीण एक
उच्च प्रतिभा की गायिका होने के साथ संगीतकार भी थी। मुगल बादशाह क्रूर अत्याचारी
अकबर को राय प्रवीण की अदाकारी के चर्चे इतने ज्यादा भाये कि उसने उसे मुगल दरबार
में लाने का हुक्म जारी कर दिया। राजा इन्द्रमणि को ना चाहते हुए भी राय प्रवीण को
मुगल दरबार में भेजना पडा। राय प्रवीण काफ़ी होशियार थी मुगल दरबार पहुँचने के बाद
उसने काफ़ी होशियारी से काम लिया। अकबर के आदेश के बाद राय प्रवीण ने एक दोहा अकबर को सुनाया जिसमें कहा कि विनती राय प्रवीण की सुनो ए शाह सुजान, झूठी पातर कौन भखे बारी? बायस स्वान। इस दोहे का सीधा सा अर्थ है कि बादशाह
क्या आप बुन्देल राजा की झूठन खाना पसन्द करोगे? झुठी पतल तो कुत्ते चाटते है। अकबर दोहे का संदेश समझ गया कि वह अपने बारे में
बात कर रही है। अकबर को झूठन वाली बात तीर की तरह चुभ गयी। अब अकबर के पास राय
प्रवीण को वापिस भेजने के अलावा कोई मार्ग नहीं था। अकबर ने राय प्रवीण को वापिस
ओरछा भिजवा दिया।
राय प्रवीण
महल के सामने काफ़ी बडा बगीचा बनाया गया है। इस महल का निर्माण सन 1572 में कराया गया था। जब राजा यहाँ राय
प्रवीण का नाच-गाना सुनने आता होगा तो यहाँ का माहौल संगीतमय हो जाता होगा। इस
छॊटे से घर में नाचने के लिये एक ओपन थियेटर जैसा स्थल भी बनाया गया है। यहाँ के
बगीचे के बीचोबीच एक दीवार थी जो बगीचे को दो भागों में विभाजित करती थी। राय
प्रवीण कोई नगर वधू (वैश्या) नहीं थी। राय प्रवीण राजा की रानी भी नहीं थी फ़िर भी
राजा इन्द्रजीत इसे बहुत प्यार करते थे। यह राय प्रवीण भी राजा को उतना ही प्रेम करती
थी।
प्रवीण महल
के झरोखे से जहाँगीर महल एकदम सामने दिखायी देता था। राय प्रवीण महल के अन्दर कई
भित्ति चित्र है। जो यह दर्शाते है राय प्रवीण कैसी लगती थी? इस छोटे से महल में
ऊपर जाने के लिये जो जीना/सीढी बनाया गया था। वह बहुत पतला है। सुरक्षा के लिहाज
से इस प्रकार के जीने बनाये जाते थे। ऐसा पतला जीना मैने बीकानेर के महल की ऊपरी
मंजिल पर देखा था। इतने पतले जीने में एक बार में सिर्फ़ एक ही व्यक्ति ऊपर आ या जा
सकता है। जीने के ऊपरी छोर पर खडा एक सैनिक नीचे से आने वाले सैकडों सैनिकों को
रोक सकता था। जीने में छत भी काफ़ी नीचे बनायी गयी है जिससे जीने के अन्दर लम्बे
हथियार लेकर हमला ना जा सके।
वापिस चलने
लगे तो ओझा का मकान का बोर्ड लगा देखा। ओझा के बारे में बताया गया यह घोडों व
हाथियों की जगह का चौकीदार था। जो जानवरों की रखवाली करता था। ओझा के बिना कोई भी
जानवर अन्दर या बाहर ले जाना मना था। आज ओझा का मकान नहीं बचा है इसकी केवल थोडी
बहुत दीवारे ही बची हुई है। आगे बढे तो एक पेड के नीचे बहुत सारे पत्ते दिखायी
दिये। यह फ़ल ऐसे लगते थे जैसे ताश के पत्ते बिखरे हुए हो। मुझे इस पेड का नाम
मालूम नहीं था। मुकेश जी ने इस पेड का नाम अमलताश बताया। इसके नाम के साथ ताश शब्द
कब जुडा? ताश का खेल बनने के बाद या ताश का खेल इस पेड के नाम से चुराया गया।
अपनी बाइक
के पास पहुँच गये। बाइक पर सवार होकर चले ही थे कि कुछ लंगूर बैठे हुए थे। मुकेश
जी बोले संदीप जी क्या इनके फ़ोटो नहीं लोगे? इन्हे कैसे छोड सकता हूँ? आप बाइक
घूमा कर लाइये उसके बाद इनका फ़ोटो लेता हूँ। बाइक थोडा आगे ले जाकर वापिस लाये।
यहाँ एक पेड दिखायी दिया जिससे काफ़ी अच्छी महक आ रही थी। वह पेड मधु कामिनी के
फ़ूल का लग रहा था। उन फ़ूलों की महक को साथ लेकर लंगूरों के पास आये। लंगूर फ़ोटो
खिचवाने के लिये तैयार बैठे हुए थे। उन्होंने अच्छे-अच्छे फ़ोटो दिये। बन्दर के
मुकाबले लंगू काफ़ी शांत स्वभाव के होते है। मैंने तो पाया है कि यह इन्सान से डरते
भी बहुत है। जैसे ही इनके नजदीक जाओगे तो यह भाग खडे होते है।
ओरछा में
लक्ष्मी नारायण मन्दिर भी देखने लायक है। इसे वीरसिंह देव ने बनवाया था। इस मन्दिर
में भित्ति चित्र देखने लायक है। यहाँ झांसी की लडाई और भगवान श्रीकृष्ण के चित्र
भी है। फ़ूलबाग भी पालकी महल के निकट देखने लायक है। ओरछा का पिकनिक स्थल है। यहाँ
का भूमिगत महल और आठ स्तभों वाला मंडप है। इसके बारे में कहते है कि यह चन्दन के
कटोरे से गिरता पानी झरने जैसा लगता है। सुन्दर महल राजा जुझार सिंह के पुत्र
धुरभजन का बनवया हुआ है। जिसको एक मुस्लिम लडकी से प्यार हो गया था। उसने उस लडकी
से निकाह कर लिया। मुसलमान बन गया। शाही जीवन भी छोड दिया। धुरभजन के मरने के बाद
लोग इसे संत मानने लगे।
हम बाइक पर
सवार होकर सबसे पहले उस होटल में गये। जहाँ मैंने रात्रि विश्राम किया था। यहाँ
मेरा बैग रखा हुआ था। मैंने अपना बैग लिया और बाइक पर सवार होकर मुकेश जी के
ठिकाने पहुँच गये। मुकेश जी का ठिकाना ओरछा के आबकारी विभाग के कंट्रोल रुम में ही
था। मुकेश जी की अभी तक कंट्रोल रुम में ही रहते है। मुकेश जी के मोबाइल पर फ़ोन
आया कि सुपरिन्डॆन्ट रैंक के अधिकारी महोदय ओरछा दौरे पर कुछ देर में आने वाले है।
मुकेश जी अभी तक बिना खाकी वर्दी पहने ही घूम रहे थे। अधिकारी के आने का संदेश मिलते
ही मुकेश जी वर्दीधारी बनकर तैयार हो गये।
उनके यहाँ
कंट्रोल रुम में काम करने वाले सिपाही व हवलदार अपनी दैनिक ड्यूटी करने पहुँचने
लगे थे। सभी कर्मचारी समय पर आ गये थे। जो अपने काम में लग गये। ओरछा में मई माह
के आरम्भ होने से पहले ही गर्मी का प्रकोप दिखायी देने लगा था। सूर्य महाराज अपनी
लपटों से झुलसाने की तैयारी कर रहे थे। मुझे कमरों से अच्छा बाहर खुले में पेड के
नीचे बैठना लग रहा था। मुकेश जी ने वहाँ कुछ पौधे उगाने में मेहनत की हुई है। बरसात
के बाद यहाँ का मौसम काफ़ी सुहाना होता होगा। अबकी बार यहाँ आऊँगा तो दीवाली के
बाद, तब मेरा परिवार साथ रहेगा। साल में पूरे परिवार के साथ एक यात्रा तो बनती ही
है। अकेले की जाने वाली यात्रा की गिनती तो दस तक पहुँच जाती है।
घूमने की
इच्छा तो हर महीने रहती है लेकिन अपनी आदत नहीं है कि किसी से अपने शौक के लिये
माँग कर काम चलाया जाये। मैं हर महीने अपनी वेतन से मात्र 5000 हजार रुपये घूमने के लिये अलग रखता हूँ।
जिसमें से मेरा सब तरह का खर्च पूरा हो जाता है। मैंने तो 50,000 हजार महीने कमाने वाले लोगों को अपने शौक के लिये सार्वजनिक लिखित रुप
में डोनेशन रुपी दान माँगते हुए देखा है। ऐसे लोगों की मानसिकता पर आश्चर्य होता
है कि 50,000 हजार प्रति माह कमाने वाला भी माँगेगा तो
साधुओं की हालत क्या होगी?
कुछ देर में
वरिष्ट अधिकारी कन्ट्रोल रुम पहुँच गये। ओरछा का पानी पीने में अच्छा नहीं लगता
है। अधिकारी महोद्य अपने साथ पानी की बोतल भी लेकर आये थे। कन्ट्रोल रुम का मुआयना
करने के बाद अधिकारी वहाँ से प्रस्थान कर गये। अधिकारी ओरछा के दौरे पर थे जिस
कारण मुकेश जी को ओरछा का सर्वेसर्वा होने के कारण उनके साथ जाना पडा। उनके जाने
के बाद मैंने कुछ देर पेड की छाँव में बितायी। बाहर नीम के पेड के नीचे गर्मी बढती
देख मुझे अन्दर जाना पडा। दोपहर होते-होते काफ़ी गर्मी हो गयी थी। मुकेश जी के नाना
जी के साथ बातचीत का दौर चला। उसी दौरान मैंने देखा कि वहाँ पर एक बन्दूक रखी हुई
है। बन्दूक तो मेरे पास भी है लेकिन यहाँ जो बन्दूक है वो सरकारी है। मध्यप्रदॆश
में आज भी बन्दूकों के सहारे सुरक्षा? जबकि अपराधियों के पास स्वचालित हथियार होते
है जिनका मुकाबला बन्दूक से नहीं किया जा सकता है। जागो सरकार जागो। आजकल रेलवे ने
अत्याधुनिक हथियार अपने सुरक्षा बलो को दिये है नहीं तो इससे पहले अंग्रेजों के
जमाने की राईफ़ले ही सुरक्षा कार्य में लगी हुई थी।
मैंने
नानाजी के साथ दो घन्टे आराम किया। नानाजी ने दोपहर के भोजन में दाल चावल बनाये
थे। मैंने भी दाल चावल खाये। कुछ भी हो, घर के बने भोजन का स्वाद ही अलग होता है।
मुझे हाथ से चावल खाने की आदत नहीं है इसलिये मैंने नानाजी से कहा कि नानाजी चम्मच
कहाँ है? नानाजी ने मुझे चम्मच दी उसके बाद मैंने चावल खाये। मुकेश जी दो घन्टे
बाद लौट कर आये। अब तेज धूप में बाहर जाने का मन नहीं था। मुकेश जी ने अपना
कम्प्यूटर चालू किया। अपने कैमरे के फ़ोटो उनको दिये। उनके खजाने के कुछ फ़ोटो देखे।
मुकेश जी के पास मैमोरी कार्ड लगाने वाला कार्ड रीडर नहीं था। मुझे रखने की
आवश्यकता नहीं पडती क्योंकि मेरे लेपटॉप में कैमरे का बडा मैमोरी कार्ड डायरेक्ट
लग जाता है। छोटी मैमोरी लगाने के लिये भी मैंने बडॆ मैमोरी कार्ड का साकेट लाया
हुआ है जो यहाँ लेकर नहीं आया था। लाता भी तो वो मुकेश जी के डेस्कटॉप में नहीं लग
पाता।
मुकेश जी के
पास मध्यप्रदेश के सागर की झील का एक फ़ोटो देखा। सागर शहर के उस फ़ोटो को देख लगा
कि जैसे बोम्बे के मरीन ड्राइव का फ़ोटो देख रहा हूँ। मैं बोम्बे कई बार जा चुका
हूँ। अन्डमान निकोबार यात्रा आते-जाते समय भी बोम्बे घूमकर आये थे। मुकेश जी ने
बताया कि उनकी शादी कुछ दिन बाद 17 मई
2014 को होने होने वाली है। उन्होंने मुझे भी शादी का न्यौता दिया।
लेकिन मैं शादियों व अन्य भीडभाड वाले कार्यक्रम से काफ़ी दूर रहता हूँ। इसलिये साफ़
मना कर दिया।
यदि एक बार
उधर जाने का विचार मन में लाया भी जाता तो सबको पता है कि बिहार की ट्रेनों में
दिल्ली से टिकट कितनी मुश्किल से मिलता है? दिल्ली से बिहार जाने का अर्थ है कि
अगर बिहार जाना है तो दो माह पहले ही रेलवे के टिकट बुक कर दो। नहीं तो जितनी देर
करोगे उतनी आफ़त आती जायेगी। सुना है मोदी सरकार ने प्रीमियम ट्रेन जैसी कोई सुविधा
बिहार रुट पर भी आरम्भ की है यदि ऐसा है तो फ़िर बहुत अच्छा रहेगा। प्रीमियम ट्रेन
से सबसे ज्यादा नुक्सान बिचौलियों उर्फ़ दलालों का होने जा रहा है जो यात्रियों के
पाँच सौ रु के टिकट के दो हजार तक वसूल कर लेते है। अगर यात्रियों को प्रीमियम
ट्रेन में ज्यादा कीमत पर टिकट मिलने की गारन्टी होगी तो दल्लों का काम तो अपने आप
समाप्त हो जायेगा?
मुझे आज रात
की ट्रेन से दिल्ली जाना है लेकिन मेरी ट्रेन तो झांसी से है। झांसी में रानी
लक्ष्मीबाई का किला भी देखना है। दिन के तीन बज चुके है। ओरछा से झांसी की सडक से
दूरी लगभग 17 किमी है यह दूरी तय करने
में एक घन्टा मान ले तो चार बजे तक झांसी पहुँच पाऊँगा। उसके बाद झांसी का किला
सूरज छिपने से पहले देखना है तो दो-तीन घन्टे उसके लिये भी चाहिए। मैंने मुकेश जी
से कहा कि तीन बज गये है ओरछा से चलने का समय हो चुका था। मुकेश जी कहते रहे कि
शाम को जाना झांसी का किला परिवार के साथ आओगे तो तब देख लेना। लेकिन जब जाना ही
है तो फ़िर रुकना क्या? मुकेश जी मुझे मन्दिर वाले चौराहे तक बाइक पर छोडने आये।
कन्ट्रोल रुम यहाँ से 2 किमी दूर है।
यहाँ ओरछा
से झांसी के बीच बस व शेयरिंग ऑटो सेवा उपलब्ध है। बस तो एक घन्टे में एक ही जाती
है लेकिन ऑटो जल्दी-जल्दी चलते है। एक ऑटो जाने को तैयार खडा था। मैंने अपना बैग
उसकी किनारे वाली सीट पर दिया। हिन्दुस्तान में तो सीट पर रुमाल रख देने से सीट पर
कब्जा हो जाता है मैंने तो बैग रखा था। अभी तीन सवारी कम थी। तीन सवारी भी जल्द ही
आ जायेंगी। वहाँ सामने ही गन्ने के जूस की एक दुकान थी। गन्ने की जूस की दुकान पर
एक महिला जूस पीने में इस कदर मस्त थी कि उसे अपने गोद के बच्चे की स्थिती का
ध्यान भी नहीं रहा। बच्चा लटक कर गिरने वाला था। उस समय मैं गन्ने की दुकान का
फ़ोटो ले रहा था। लगे हाथ उस मां-बेटे का फ़ोटो भी कैमरे में कैद हो गया। हमारे लिये
गन्ने के जूस से भरे गिलास आ चुके थे। उस दुकान पर गन्ने का जूस पिया गया।
अब तक तीन
सवारियाँ भी आ गयी थी। ऑटो वाले ने मुझे आवाज लगायी। मुकेश जी से दुबारा मिलने की
उम्मीद लगाये विदा ली। ऑटो मॆ बैठ झांसी की ओर चल दिया। ओरछा से कोई चार किमी बाहर
आने पर शहीद चन्द्रशेखर आजाद का स्थल आता है। ओरछा को चन्द्रशेखर आजाद के कारण
पुन: यश प्राप्त हुआ। जहाँ आजाद ठहरे थे वहाँ स्मृति स्थल बनाया गया है। इस यात्रा
में मैंने यह स्थल दूर से ही देखा है। सपरिवार यात्रा में इस स्थल पर नमन करने
अवश्य जाऊँगा। अगर भारत में चन्द्रशेखर जैसे महापुरुष नहीं हुए होते तो यह देश आज
भी अंग्रेजों का गुलाम रहा होता। जैसे आज नेताओं का गुलाम है।
जिस ऑटो में
बैठकर ओरछा से झांसी आया था उसने मुझे झांसी के बस अड्डे तक लाकर छोड दिया। मैंने
पटरी पर सामान बेचने वाले एक बन्दे से पूछा कि किले तक जाने के लिये ऑटो कहाँ से
मिलेगा? उसने कहा कि शहर जाने वाला ऑटो किले के किनारे तक छोड देगा। दस मिनट बाद
शहर जाने वाला ऑटो मिल पाया। यहाँ झांसी बस अडडे से झांसी के किले की दूरी 7 किमी के करीब है। इसने लगभग 20 मिनट में मुझे झांसी किले के सामने पहुँचा दिया। अगले लेख में झांसी का
किला। (यात्रा
जारी है।)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (29-07-2014) को "आओ सहेजें धरा को" (चर्चा मंच 1689) पर भी होगी।
--
हरियाली तीज और ईदुलफितर की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
संदिप भाई आपने प्रवीन महल की जानकारी दी उसके लिए धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंये जो छोटी सीढ़ीयां है ऐसी ही सीढीया ग्वालियर के किले में भी है.
सुन्दर यात्रा वृर्तान्त.....
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमुकेश जी ने आपको घुमाया और आपने हमको। हमने भी ओरछा घूम लिया। आने जाने का भाड़ा बच गया। कोई पूछेगा तो सारी दास्तान यूं की यूं सुना देगें। :)
जवाब देंहटाएंभाई कमेंट पोस्ट नही हो पा रहा है.
जवाब देंहटाएंवाह भाई वाह...खूबसूरत यात्रा हम सबसे साझा करने के लिये धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंमहल की जानकारी दी उसके लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएं